prajatantra ka arth paribhasha visheshtaye or pirakary;मानव जाति के राजनीति विकास मे जो विभिन्न प्रकार की शासन व्यवस्थाएँ रही उनमे प्रजातंत्र विश्व की प्रमुख शासन प्रणाली मानी गयी है। इसकी मुख्य अवधारणा यह है कि, राज्य की सम्पूर्ण शक्ति की स्वामी जनता है, कोई व्यक्ति, समूह या कोई वंश नही हैं।
प्रजातंत्र के आरंभिक काल मे सीमित जनसंख्या एवं सीमित क्षेत्रफल वाले छोटे राज्य होने से सारी जनता शासन संचालन संबंधी निर्णय मे सहभागी होती थी। अत: सीमित क्षेत्रफल एवं सीमित जनसंख्या वाले छोटे राज्यों मे इसका व्यवहार होने लगा। यूनान के नगर राज्यों से प्रत्यक्ष प्रजातंत्र (लोकतंत्र) की शुरूआत मानी जाती है।
आज हम प्रजातंत्र या लोकतंत्र किसे कहते हैं? प्रजातंत्र का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषताएं जानेगें।
वर्तमान राज्य उनके विस्तार एवं जनसंख्या की दृष्टि से बड़े होने से जनता द्वारा प्रत्यक्ष शासन संभव नही था। अत: जनता अप्रत्यक्ष रूप से अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन की शक्ति का उपयोग करती है। वर्तमान मे प्रजातंत्र अप्रत्यक्ष रूप से जन प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित प्रजातंत्र कहलाता हैं।
प्रजातंत्र या लोकतंत्र का अर्थ ऐसी शासन प्रणाली जिसमे जनहित सर्वोपरि होता है। प्रजातंत्र का अर्थ केवल एक शासन प्रणाली तक ही सीमित नही है। यह राज्य व समाज का रूप भी है। अतः यह राज्य, समाज व शासन तीनों का मिश्रण है। राज्य के प्रकार के रूप मे प्रजातंत्र, जनता को शासन करने, उस नियंत्रण करने एवं उसे हटाने की शक्ति है। समाज के रूप मे प्रजातंत्र एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमे समानता का विचार और व्यवहार प्रबल हो।
अब्राहम लिंकन के अनुसार " प्रजातंत्र को जनता का जनता द्वारा और जनता के लिए शासन कहा जाता है।
डायसी के अनुसार " प्रजातंत्र वह शासन है जिसमे शासक समुदाय, संपूर्ण राष्ट्र का अपेक्षाकृत बड़ा भाग हो।
प्रजातंत्र के आरंभिक काल मे सीमित जनसंख्या एवं सीमित क्षेत्रफल वाले छोटे राज्य होने से सारी जनता शासन संचालन संबंधी निर्णय मे सहभागी होती थी। अत: सीमित क्षेत्रफल एवं सीमित जनसंख्या वाले छोटे राज्यों मे इसका व्यवहार होने लगा। यूनान के नगर राज्यों से प्रत्यक्ष प्रजातंत्र (लोकतंत्र) की शुरूआत मानी जाती है।
आज हम प्रजातंत्र या लोकतंत्र किसे कहते हैं? प्रजातंत्र का अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं विशेषताएं जानेगें।
वर्तमान राज्य उनके विस्तार एवं जनसंख्या की दृष्टि से बड़े होने से जनता द्वारा प्रत्यक्ष शासन संभव नही था। अत: जनता अप्रत्यक्ष रूप से अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन की शक्ति का उपयोग करती है। वर्तमान मे प्रजातंत्र अप्रत्यक्ष रूप से जन प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित प्रजातंत्र कहलाता हैं।
प्रजातंत्र या लोकतंत्र का अर्थ (prajatantra ka arth)
प्रजातंत्र शब्द अंग्रेजी भाषा के Democracy शब्द का पर्यायवाची हैं। यह यूनानी भाषा के दो शब्दों Demos और cratil से मिलकर बना है, जिसका अर्थ क्रमशः जनता और शक्ति है। इस प्रकार जनता की शक्ति प्रजातंत्र हैं। प्रजातंत्र या लोकतंत्र का अभिप्राय एक ऐसी शासन प्रणाली से है जिसमे शासन की शक्ति जनता के पास होती है और शासन संचालन जनता स्वयं एक ऐसी शासन प्रणाली से है जिसमे शासन की शक्ति जनता के पास होती है और शासन संचालन जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से करती है। इसे ही लोकतंत्र या जनतंत्र भी कहा जाता है।प्रजातंत्र या लोकतंत्र का अर्थ ऐसी शासन प्रणाली जिसमे जनहित सर्वोपरि होता है। प्रजातंत्र का अर्थ केवल एक शासन प्रणाली तक ही सीमित नही है। यह राज्य व समाज का रूप भी है। अतः यह राज्य, समाज व शासन तीनों का मिश्रण है। राज्य के प्रकार के रूप मे प्रजातंत्र, जनता को शासन करने, उस नियंत्रण करने एवं उसे हटाने की शक्ति है। समाज के रूप मे प्रजातंत्र एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसमे समानता का विचार और व्यवहार प्रबल हो।
प्रजातंत्र या लोकतंत्र की परिभाषा ( prajatantra ki paribhasha)
अरस्तू के अनुसार " बहुतों का शासन प्रजातंत्र या लोकतंत्र कहा जाता है।अब्राहम लिंकन के अनुसार " प्रजातंत्र को जनता का जनता द्वारा और जनता के लिए शासन कहा जाता है।
डायसी के अनुसार " प्रजातंत्र वह शासन है जिसमे शासक समुदाय, संपूर्ण राष्ट्र का अपेक्षाकृत बड़ा भाग हो।
लार्ड ब्राइस के अनुसार " लोकतंत्र ऐसी सरकार है " जिसमे योग्य नागरिकों के बहुमत की इच्छा का शासन होता है।"
ए. बी. हाॅल के अनुसार " अंतिम विश्लेषण मे और व्यावहारिक एकरूपता मानी जाती है।"
चाल्र्स. ई. मेरियम के अनुसार " लोकतंत्र राजनीतिक समुदाय का एक ऐसा रूप है जिसमें राज्य की नीतियों का राजनीतिक नियंत्रण और दिशा-निर्दश समुदाय के बहुसंख्यक भाग द्वारा किया जाता है।
1. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र
जब किसी राज्य के निवासी सार्वजनिक विषयों पर प्रत्यक्ष रूप से स्वयं विचार विमर्श करते है और इसके आधार पर नीतियों का निर्धारण और विधिनिर्माण होता है, तो ऐसे शासन को प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते है।
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कम जनसंख्या वाले एवं छोटे आकार वाले राज्यों मे ही संभव है। वर्तमान मे बड़े आकार वाले राष्ट्रों मे जहाँ नागरिकों की संख्या करोड़ों मे होती है वहा प्रत्यक्ष प्रजातंत्र संभव नही है। वर्तमान मे स्विट्जरलैंड के कुछ कैंटनों एवं भारत मे पंचायत राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्रामसभाओं में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की व्यवस्था हैं।
2. अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र
जब जनता निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि निर्माण तथा शासन के कार्यों पर नियंत्रण रखने का कार्य करती है तो उसे अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते है। वर्तमान समय मे अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र ही प्रचलित है। इसमे जनता निश्चित अवधि के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है, जो व्यवस्थापिका का गठन करते है और कानूनों का निर्माण करते है। इस प्रणाली मे जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से होती हैं। प्रजातंत्र के प्रकार जानने के बाद अब हम प्रजातंत्र की विशेषताएं जानेगें।
प्रजातंत्र या लोकतंत्र जनता प्रत्यक्ष अथवा अपने निर्वाचिन प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करती है। इसमे जनता का शासक वर्ग पर निरंतर प्रभाव रहता है। शासन से प्रश्न पूछने एवं उसकी आलोचना के माध्यम से जनता शासन से उत्तरदायित्व व्यवहार करा सकती है। यहाँ शासन कि सत्ता मूलतः जनता की होती है, जो नियत अवधि के लिए ही प्रतिनिधियों को सौपी जाती है। अतः शासन का जनता के प्रति उत्तरदायित्व अनिर्वाय होता है अन्यथा अगले चुनाव मे जनता के पास किसी अन्य को सत्ता सौंपने का विकल्प होता हैं।
2. समानता पर आधारित शासन
प्रजातंत्र समानता के सिद्धांत पर आधारित शासन प्रणाली है। इस शासन प्रणाली मे सभी नागरिकों को बिना भेदभाव के समान नागरिक व राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रजातंत्र मे निश्चित समय अवधि मे चुनाव आवश्यक होते है। इन चुनावों मे प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत (वोट) देने व चुनावों मे प्रत्याशी बनकर भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता हैं। सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर भी वर्तमान प्रजातंत्र मे बल दिया जाता है। धर्म, जाति, लिंग सामाजिक स्तर आदि के आधार पर भेदभाव न होना तथा आर्थिक दृष्टि से सभी को न्यूनतम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन समानरूप से उपलब्ध होना, प्रजातंत्र या लोकतंत्र का का प्रमुख लक्ष्य हैं।
3. स्वतंत्रता की पोषक प्रणाली
प्रजातंत्र मे नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्राप्त होती है। राजनैतिक स्वतंत्रता के अतिरिक्त नागरिकों को अनेक प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रताओं के अधिकार भी प्राप्त होते है। प्रजातंत्र मे नागरिकों को मत देने, निर्वाचित होने, सार्वजनिक पद ग्रहण करने, भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सूचना प्राप्त करने का अधिकार, सम्मेलन सभा करने, समूह बनाने, व्यापार व्यवसाय करने आदि की स्वतंत्रताएँ प्राप्त होती है। नागरिक यदि शासन की नीतियों से असहमत हो तो संयमित विरोध की स्वतंत्रता भी उन्हें प्राप्त है। स्वतंत्रता प्रजातंत्र की आत्मा है। बिना स्वतंत्रता प्रजातंत्र सम्भव नही हैं।
4. कानून का शासन
प्रजातंत्र की चौथी विशेषता यह हैं की प्रजातंत्र मे शासन व्यवस्था मे जनता की इच्छाओं पर आधारित सरकार कानून के अनुसार कार्य करती है, इसलिए इसे कानून का शासन भी कहा जाता है। कानून के शासन का आश्य है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान है। एस सा अपराध करने पर व्यक्ति को एकसा दण्ड दिया जाता है चाहे उसका मान अथवा पद कोई भी क्यों न हों। कानून के समक्ष सब समान है। यह किसी व्यक्ति विशेष एवं समूहों का शासन न होकर कानून पर आधारित शासन है, इसलिए इसमें संविधान का होना भी अवश्यक है, जिसमे मूलभूत कानूनों का उल्लेख होता हैं। नागरिकों के ऐसे कार्यों के विरुद्ध आदेश दे सकती है जिससे किसी कानून का उल्लंघन हुआ है।
5. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
प्रजातंत्र मे चुनाव कराना ही पर्याप्त नही हैं, बल्कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होने चाहिए ताकि सत्ता मे बैठे लोगों के लिए भी जीत-हार की समान संभावना हो। चुनाव के समय मतदाता पर किसी भी प्रकार का दबाव न हो एवं चुनाव व्यवस्था पक्षपातरहित हो। प्रजातंत्र मे जनता की इच्छा ही सर्वोपरि होती हैं। इस शासन व्यवस्था मे सरकार के गठन के लिए समय-समय पर चुनाव होते हैं। इन चुनावों मे विभिन्न राजनैतिक दलों और निर्दलीय स्वतंत्र प्रत्याशियों को भी चुनाव मे भाग लेने की स्वतंत्रता होती है। भारत सहित विश्व के अधिकांश प्रजातांत्रिक देशों मे खुली चुनावी प्रतियोगिता होती है। मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी का निर्भीकता से गुप्त मतदान द्वारा चुनाव कर सकें इसी पर प्रजातंत्र का व्यवहारिक स्वरूप निर्भर हैं।
6. लिखित संविधान का होना
शासन संगठन के मूलभूत सिद्धांत तथा प्रक्रिया निश्चित होना प्रजातंत्र का महत्वपूर्ण लक्षण है, जिससे कोई भी सत्तारूढ़ दल अपने बहुमत के आधार पर इसे जैसा चाहे वैसा परिभाषित या परिवर्तित न कर सके। शासन के अंगों का गठन, शासन की शक्तियाँ एवं कार्य, प्रक्रिया आदि संविधान मे स्पष्ट हों, इसलिए लिखित संविधान का होना आवश्यक माना गया है। प्रजातंत्र नागरिकों की समानता एवं स्वतंत्रता पर आधारित हैं। अतः संविधान के मूलभूत कानूनों में ये भी परिभाषित होना आवश्यक है।
7. स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका
संविधान की समस्त व्यवस्थाएँ व्यवहार मे लागू की जा सके, इसलिए प्रजातंत्र मे स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका का होना उसका महत्वपूर्ण लक्षण है। शासन के व्यवहार संविधान के अनुकूल हों, नागरिक अधिकार सुरक्षित हों, कानूनों के उल्लंघनकर्ता दण्डित हों, इस हेतु न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था को व्यवहार मे बनाए रखने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका आवश्यक हैं।
स्त्रोत; समग्र शिक्षा, मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र, भोपाल।
प्रजातंत्र या लोकतंत्र के प्रकार (prajatantra ke prakar)
प्रजातंत्र दो प्रकार का होता है--1. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र
जब किसी राज्य के निवासी सार्वजनिक विषयों पर प्रत्यक्ष रूप से स्वयं विचार विमर्श करते है और इसके आधार पर नीतियों का निर्धारण और विधिनिर्माण होता है, तो ऐसे शासन को प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते है।
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कम जनसंख्या वाले एवं छोटे आकार वाले राज्यों मे ही संभव है। वर्तमान मे बड़े आकार वाले राष्ट्रों मे जहाँ नागरिकों की संख्या करोड़ों मे होती है वहा प्रत्यक्ष प्रजातंत्र संभव नही है। वर्तमान मे स्विट्जरलैंड के कुछ कैंटनों एवं भारत मे पंचायत राज व्यवस्था के अन्तर्गत ग्रामसभाओं में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की व्यवस्था हैं।
2. अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र
जब जनता निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि निर्माण तथा शासन के कार्यों पर नियंत्रण रखने का कार्य करती है तो उसे अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते है। वर्तमान समय मे अप्रत्यक्ष प्रजातंत्र ही प्रचलित है। इसमे जनता निश्चित अवधि के लिए अपने प्रतिनिधि चुनती है, जो व्यवस्थापिका का गठन करते है और कानूनों का निर्माण करते है। इस प्रणाली मे जनता की इच्छा की अभिव्यक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से होती हैं। प्रजातंत्र के प्रकार जानने के बाद अब हम प्रजातंत्र की विशेषताएं जानेगें।
प्रजातंत्र या लोकतंत्र की विशेषताएं (prajatantra ki visheshta)
प्रत्येक व्यक्ति लक्ष्य स्वयं का विकास होता है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को कुछ अवसरों की आवश्यकता होती हैं। प्रजातंत्र या लोकतंत्र ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमे सभी को अपने सर्वांगीण विकास के लिए बिना किसी भेदभाव के समान अवसर प्राप्त होते है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था नागरिकों कि गरिमा तथा समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व और न्याय के सिद्धांत पर आधारित है।प्रजातंत्र या लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार से हैं--
1. उत्तरदायी शासन व्यवस्थाप्रजातंत्र या लोकतंत्र जनता प्रत्यक्ष अथवा अपने निर्वाचिन प्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करती है। इसमे जनता का शासक वर्ग पर निरंतर प्रभाव रहता है। शासन से प्रश्न पूछने एवं उसकी आलोचना के माध्यम से जनता शासन से उत्तरदायित्व व्यवहार करा सकती है। यहाँ शासन कि सत्ता मूलतः जनता की होती है, जो नियत अवधि के लिए ही प्रतिनिधियों को सौपी जाती है। अतः शासन का जनता के प्रति उत्तरदायित्व अनिर्वाय होता है अन्यथा अगले चुनाव मे जनता के पास किसी अन्य को सत्ता सौंपने का विकल्प होता हैं।
2. समानता पर आधारित शासन
प्रजातंत्र समानता के सिद्धांत पर आधारित शासन प्रणाली है। इस शासन प्रणाली मे सभी नागरिकों को बिना भेदभाव के समान नागरिक व राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रजातंत्र मे निश्चित समय अवधि मे चुनाव आवश्यक होते है। इन चुनावों मे प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत (वोट) देने व चुनावों मे प्रत्याशी बनकर भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता हैं। सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर भी वर्तमान प्रजातंत्र मे बल दिया जाता है। धर्म, जाति, लिंग सामाजिक स्तर आदि के आधार पर भेदभाव न होना तथा आर्थिक दृष्टि से सभी को न्यूनतम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन समानरूप से उपलब्ध होना, प्रजातंत्र या लोकतंत्र का का प्रमुख लक्ष्य हैं।
3. स्वतंत्रता की पोषक प्रणाली
प्रजातंत्र मे नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए अनेक प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्राप्त होती है। राजनैतिक स्वतंत्रता के अतिरिक्त नागरिकों को अनेक प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रताओं के अधिकार भी प्राप्त होते है। प्रजातंत्र मे नागरिकों को मत देने, निर्वाचित होने, सार्वजनिक पद ग्रहण करने, भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सूचना प्राप्त करने का अधिकार, सम्मेलन सभा करने, समूह बनाने, व्यापार व्यवसाय करने आदि की स्वतंत्रताएँ प्राप्त होती है। नागरिक यदि शासन की नीतियों से असहमत हो तो संयमित विरोध की स्वतंत्रता भी उन्हें प्राप्त है। स्वतंत्रता प्रजातंत्र की आत्मा है। बिना स्वतंत्रता प्रजातंत्र सम्भव नही हैं।
4. कानून का शासन
प्रजातंत्र की चौथी विशेषता यह हैं की प्रजातंत्र मे शासन व्यवस्था मे जनता की इच्छाओं पर आधारित सरकार कानून के अनुसार कार्य करती है, इसलिए इसे कानून का शासन भी कहा जाता है। कानून के शासन का आश्य है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान है। एस सा अपराध करने पर व्यक्ति को एकसा दण्ड दिया जाता है चाहे उसका मान अथवा पद कोई भी क्यों न हों। कानून के समक्ष सब समान है। यह किसी व्यक्ति विशेष एवं समूहों का शासन न होकर कानून पर आधारित शासन है, इसलिए इसमें संविधान का होना भी अवश्यक है, जिसमे मूलभूत कानूनों का उल्लेख होता हैं। नागरिकों के ऐसे कार्यों के विरुद्ध आदेश दे सकती है जिससे किसी कानून का उल्लंघन हुआ है।
5. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
प्रजातंत्र मे चुनाव कराना ही पर्याप्त नही हैं, बल्कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होने चाहिए ताकि सत्ता मे बैठे लोगों के लिए भी जीत-हार की समान संभावना हो। चुनाव के समय मतदाता पर किसी भी प्रकार का दबाव न हो एवं चुनाव व्यवस्था पक्षपातरहित हो। प्रजातंत्र मे जनता की इच्छा ही सर्वोपरि होती हैं। इस शासन व्यवस्था मे सरकार के गठन के लिए समय-समय पर चुनाव होते हैं। इन चुनावों मे विभिन्न राजनैतिक दलों और निर्दलीय स्वतंत्र प्रत्याशियों को भी चुनाव मे भाग लेने की स्वतंत्रता होती है। भारत सहित विश्व के अधिकांश प्रजातांत्रिक देशों मे खुली चुनावी प्रतियोगिता होती है। मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी का निर्भीकता से गुप्त मतदान द्वारा चुनाव कर सकें इसी पर प्रजातंत्र का व्यवहारिक स्वरूप निर्भर हैं।
6. लिखित संविधान का होना
शासन संगठन के मूलभूत सिद्धांत तथा प्रक्रिया निश्चित होना प्रजातंत्र का महत्वपूर्ण लक्षण है, जिससे कोई भी सत्तारूढ़ दल अपने बहुमत के आधार पर इसे जैसा चाहे वैसा परिभाषित या परिवर्तित न कर सके। शासन के अंगों का गठन, शासन की शक्तियाँ एवं कार्य, प्रक्रिया आदि संविधान मे स्पष्ट हों, इसलिए लिखित संविधान का होना आवश्यक माना गया है। प्रजातंत्र नागरिकों की समानता एवं स्वतंत्रता पर आधारित हैं। अतः संविधान के मूलभूत कानूनों में ये भी परिभाषित होना आवश्यक है।
7. स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका
संविधान की समस्त व्यवस्थाएँ व्यवहार मे लागू की जा सके, इसलिए प्रजातंत्र मे स्वतंत्र व निष्पक्ष न्यायपालिका का होना उसका महत्वपूर्ण लक्षण है। शासन के व्यवहार संविधान के अनुकूल हों, नागरिक अधिकार सुरक्षित हों, कानूनों के उल्लंघनकर्ता दण्डित हों, इस हेतु न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा गया है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था को व्यवहार मे बनाए रखने के लिए स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका आवश्यक हैं।
स्त्रोत; समग्र शिक्षा, मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र, भोपाल।
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Thanks 🙏 sir you are so great 👍 aap isi tarah hamare questions me help karne keliye sir thank you sir you and we'll 👍 sir great job
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हटाएंलोकतंत्र और प्रजातंत्र में क्या अंतर है
जवाब देंहटाएंदोनो एक ही हैं दोनो मे कोई अंतर नही हैं।
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