लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ ( lok kalyankari rajya kya hai)
लोक कल्याणकारी राज्य वह राज्य है जिसमे शासन की शक्तियों का प्रयोग किसी वर्ग विशेष के हितों के लिए नही अपितु सम्पूर्ण जनता के हितों के लिए किया जाता है। लोक कल्याणकारी राज्य एक ऐसा राज्य होता है जो जनता के कल्याण के लिए अधिकाधामिक कार्य करता है तथा जो अपने सभी नागरिकों को न्युनतम जीवन-स्तर प्रदान करना अपना अनिवार्य उत्तरदायित्व समझता है।
यद्यपि आज हर राज्य अपने लिए कल्याणकारी राज्य होने का दावा करता है लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक राज्य पुलिस राज्य से अधिक नही थे जिनका मुख्य कार्य शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखना था। उस समय कल्याण कार्य व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूहों का कार्य क्षेत्र माना जाता था।
इस अवधारणा के विपरीत यह धारणा विकसित हुई कि राज्य के कुछ और भी कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व हैं यथा नागरिकों का अधिक से अधिक कल्याण इस बात की व्यवस्था करना कि उनके रहन-सहन तथा खान-पान का अच्छा स्तर रहे। उनके भौतिक, बौद्धिक तथा नैतिक विकास के समस्त साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों। उनकी तथा उनके बच्चों की शिक्षा का समूचित प्रबन्ध हो।
टी.डब्लू केन्ट के अनुसार," कल्याणकारी राज्य वह राज्य है जो अपने नागरिकों को बड़े पैमाने पर सामाजिक सेवायें उपलब्ध कराता है।"
हॉबमैन ( Hobman ) का विचार है कि कल्याणकारी राज्य साम्यवाद (पूर्ण राज्य नियंत्रण) तथा निरपेक्ष व्यक्तिवाद (न्यूनतम राज्य हस्तक्षेप) के मध्य समझौता है। अन्य शब्दों में कल्याणकारी राज्य निजी उद्यम के लाभों को स्वीकार करते हुए जीविकोपार्जन की सुरक्षा प्रदान करता है तथा इसके द्वारा राष्ट्रीय आय के पुनर्वितरण की व्यवस्था की जाती है। इस प्रकार कल्याण दया का विषय नहीं है। बल्कि यह नागरिकों का अधिकार है।
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लोक कल्याणकारी राज्य की परिभाषा (lok kalyanakari rajya ki paribhasha)
टी. डब्ल्यू. केन्ट के अनुसार " लोकहितकारी वह राज्य है जो अपने नागरिकों के लिए व्यापक समाज सेवाओं की व्यवस्था करता है। इन समाज सेवाओं के अनेक रूप होते है। इनके अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और वृद्धावस्था मे पेंशन, आदि की व्यवस्था होती है। इनका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सभी प्रकार की सुरक्षा प्रदान करना होता है।
पंडित नेहरू के अनुसार " सबके लिए समान अवसर प्रदान करना, अमीरों-गरीबों के बीच अंतर मिटाना व जीवन-स्तर को ऊपर उठाना, कल्याणकारी राज्य के आधारभूत तत्व है।
लास्की के शब्दों मे " कल्याणकारी राज्य लोगों का वह संगठन है, जिसमे सबका सामूहिक रूप से अधिक हित हो सके।
डाॅ. अब्राहम के अनुसार " कल्याणकारी राज्य वह है जो अपनी आर्थिक व्यवस्था का संचालन आय के अधिकाधिक समान वितरण के उद्देश्य से करता है।"
उपरोक्त सभी परिभाषाओं मे लोक कल्याणकारी राज्य के अर्थिक पक्ष पर अधिक बल दिया गया है, जबकि कल्याण सामाजिक पक्ष से अधिक सम्बद्ध है। इसकी विवेचना करते हुये एस.सी. छावड़ा ने उचित ही कहा था, कि लोक कल्याणकारी राज्य का कार्य एक ऐसे पुल का निर्माण करना है, जिसके द्वारा व्यक्ति जीवन को पतित अवस्था से निकालकर एक ऐसी अवस्था मे प्रवेश करा सके जो उत्थानकारी और उद्देश्यपूर्ण हो।
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा राज्य के कार्य क्षेत्र का एक आधुनिक सिद्धान्त है। यह शब्द सामान्यतः उस राज्य के लिए अपनाया जाता है जो अपने नागरिकों के लिए केवल न्याय सुरक्षा तथा आन्तरिक व्यवस्था करके ही संतोष नहीं कर लेता, अपितु उनके कल्याण की अभिवृद्धि के लिए जीवन के समस्त आयामों के विकास पर बल देता है। लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा व्यक्तिवाद तथा समाजवाद का मिश्रण है। यह व्यक्तिवाद की भाँति व्यक्ति की स्वतंत्रता का अपहरण नहीं करती और समाजवाद की भाँति अधिक से अधिक कार्यों का निष्पादन करती है। लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा के पीछे यही ध्येय है कि व्यक्ति को सुखी एवं समृद्ध बनाया जाए और इस हेतु राज्य द्वारा आवश्यक सेवा कार्यों का निष्पादन किया जाए।
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के विकास में इंग्लैण्ड का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। बेन्थम और जे. एस. मिल के उपयोगितावादी चिन्तन में कल्याणकारी राज्य का दर्शन समाहित है। इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के समय जिस निर्धन कानून की सृष्टि गरीबों एवं शारीरिक दृष्टि से अयोग्य व्यक्तियों को राहत देने के लिए की गई थी उसमें जनहित की भावना निहित थी। इंग्लैण्ड के फेबियन सामाजिक दार्शनिकों ने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा की प्रगति में परोक्ष रूप से योगदान किया है इंग्लैण्ड की श्रमिक दलीय सरकार ने उद्योगों के राष्ट्रीयकरण द्वारा अनेक प्रगतिशील नीतियाँ अपनाई।
आधुनिक युग में प्रो. हेराल्ड लास्की को कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को प्रतिपादित करने वाले विचारकों में प्रमुख माना जाता है।
लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा के उदय के कारण
कल्याणकारी राज्य की धारणा के उदय के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं---
1. व्यक्तिवाद के विरूद्ध प्रतिक्रिया
कल्याणकारी राज्य आदर्श व्यक्तिवाद के विरूद्ध एक प्रतिक्रिया है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के कार्यक्षेत्र को सीमित कर दिया गया था और राज्य ने अहस्तक्षेप की नीति अपना ली थी। इससे औद्योगिक क्रान्ति के युग में मजदूरों की दशा दयनीय हो गई। कारखानों के पूँजीपति श्रम के अनुसार वेतन न देकर श्रमिकों का शोषण करते थे राज्य पूँजीपतियों और मजदूरों के इन सम्बन्धों में हस्तक्षेप नहीं करता था। अतः शनैः शनैः ऐसी व्यक्तिवादी विचारधारा के विरूद्ध प्रतिक्रिया हुई। यह अनुभव किया गया कि मजदूरों की दशा सुधारने के लिए अहस्तक्षेप नीति का परित्याग कर राज्य को सक्रिय हस्तक्षेप करना चाहिए। सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में मजदूरों के हितों के लिए राज्य ने कानून बनाए और इस प्रकार राज्य की लोक कल्याणकारी धारणा का सूत्रपात हुआ।
2. मार्क्सवादी साम्यवाद के प्रभाव का भय
कार्ल मार्क्स और ऐंजिल ने वर्ष 1848 में साम्यवादी घोषणा-पत्र प्रकाशित किया। वर्ष 1917 में लेनिन के नेतृत्व में सोवियत रूस में साम्यवादी क्रान्ति हुई तथा मार्क्स की विचारधारा को ठोस आधार प्राप्त हुआ साम्यवाद के भय के कारण पाश्चात्य देश पूँजीवादी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने लगे और लोक कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त को अपनाने लगे।
3. लोकतांत्रिक समाजवाद की धारणा का प्रचलन
मार्क्सवादी साम्यवाद हिंसा और क्रान्ति के उपायों के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन चाहते थे। परिणामस्वरूप लोकतांत्रिक समाजवाद की धारणा का उदय हुआ। यह धारणा शान्तिपूर्ण और वैध उपायों द्वारा सामाजिक परिवर्तन करना चाहती है। इस विचारधारा के समर्थक राज्य को एक लोक कल्याणकारी संस्था मानते हैं। यह धारणा राज्य की सहायता से समाजवाद की स्थापना करना चाहती है।
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्य (lok kalyanakari rajya ke karya)
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्य काफी व्यापक है। व्यक्तिवादी विचारक राज्य के कार्यों को दो वर्गों मे बाँटते है एक राज्य के अनिवार्य कार्य दूसरा राज्य के ऐच्छिक कार्य/ लोक कल्याणकारी राज्य के समर्थक विचारक इस वर्गीकरण मे विश्वास नही करते वे जनहित मे किए जाने वाले सभी कार्यों को आवश्यक और अनिवार्य मानते है। इस दृष्टि से लोक कल्याणकारी राज्य राज्य के निम्म प्रमुख कार्य है--
1. नागरिक स्वतंत्रता
कल्याणकारी राज्य का आदर्थ लोकतन्त्रीय व्यवस्था मे भली प्रकार प्राप्त और पूरा किया जा सकता है और लोकतंत्र मे नागरिक स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। राज्य को चाहिए कि वह अपने नागरिकों को विचार अभिव्यक्ति, सम्मेलन, संगठन निर्माण, आने-जाने, बसने, व्यवसाय करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करे। इससे कल्याणकारी राज्य की व्यवस्था का औचित्य सही होता है।
2. स्वास्थ्य की व्यवस्था करना
रोगों की रोकथाम, टीकों की व्यवस्था, चलते-फिरते औषधालयों की व्यवस्था राज्य को करनी चाहिए। नशीले वस्तुओं की बिक्री पर रोक लगाना चाहिए और निर्धन लोगों की मदद करनी चाहिए।
3. सामान्य ज्ञान मे वृद्धि
कुछ लोगों का कथन है कि कल्याणकारी राज्य को सामान्य ज्ञान-वृद्धि के साधनों की व्यवस्था करनी चाहिये। ऐसा करके राज्य नागरिकों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सकता है।
4. सार्वजनिक शिक्षा की व्यवस्था करना
यदि राज्य के नागरिक सुसंस्कृत व शिक्षित होगे तो राज्य भी मजबूत होगा। अतः राज्य को शिक्षा के विभिन्न साधन उपलब्ध कराने चाहिए तथा ऐसी व्यवस्था हो कि सभी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार व अवसर प्राप्त हो सके।
5. श्रमिकों का कल्याण
लोक-हितकारी राज्य के समर्थकों का कथन है कि राज्य को ऐसे साधनों को प्रोत्साहिन देना चाहिए जिसमे श्रमिकों का अधिक से अधिक हित सम्भव हो सके।
6. आन्तरिक शांति एवं व्यवस्था की स्थापना करना
जब तक राज्य मे शांति व्यवस्था स्थापित नही होती राज्य के नागरिक प्रगति नही कर सकते, उनका जीवन भी सुरक्षित नही रहेगा। शांति व्यवस्था के लिए कानूनों का बनाना, उनका पालन कराना तथा उल्लंघन करने वालों को दण्डित करना राज्य का कार्य है। अपने इन कार्यो को भली प्रकार सम्पन्न करने के लिए राज्य सरकारी कर्मचारियों, न्यायालय, पुलिस आदि की व्यवस्था करता है।
7. बाहरी आक्रमण से रक्षा करना
राज्य की और राज्य के नागरिकों की बाहरी आक्रमण से सुरक्षा करना राज्य का कार्य है। यदि राज्य बाहरी आक्रमण से रक्षा करने मे असमर्थ रहता है तब उसके परिणामस्वरूप उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। अतः बाह्रा आक्रमण से समुचित सुरक्षा आवश्यक है।
8. समाज सुधार के कार्य करना
लोक कल्याणकारी राज्य का लक्ष्य व्यक्तियों का न केवल आर्थिक वरन सामाजिक कल्याण भी होता है। इस दृष्टि से राज्य के द्वारा मद्यपान, बाल-विवाह, छुआछूत, जाति-व्यवस्था आदि परम्परा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के उपाय किये जाने चाहिए।
9. आर्थिक सुरक्षा
राज्य को आर्थिक व्यवस्था में ऐसा सुधार करना चाहिए जिससे कि सभी नागरिकों के लिए गरिमापूर्ण जीवन यापन की दशाएँ एवं सुविधाएँ उपलब्ध हो सकें। सभी व्यक्तियों के लिए रोजगार की व्यवस्था की जाऐ।
10. परिवार नियोजन संबंधी कार्य
राज्य को जनसंख्या सीमित करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे वर्तमान जनसंख्या के जीवन स्तर को उन्नत किया जा सके। परिवार नियोजन कार्यक्रम का विस्तार करने के लिए लोगों की सुविधाएँ बढ़ायी जानी चाहिए।
लोक कल्याणकारी राज्य की समस्याएँ
आधुनिक राज्य के अस्तित्व का आधार बस यही है कि वह नागरिकों की कितनी सेवा कर सकता हैं। राज्य लोक-कल्याण की भावना से ही कार्य करना चाहते हैं, किन्तु उनके सामने कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिससे वे सफलतापूर्वक कल्याणकारी कार्य नहीं कर पाते। ऐसी ही कुछ समस्याएं इस प्रकार हैं--
1. आर्थिक साधनों का अभाव
नागरिकों को अधिकतम सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रचुर आर्थिक साधनों की आवश्यकता होती हैं। अधिकांश राज्यों की आर्थिक स्थिति वर्तमान में दुर्बल हैं। अतः वे कुशलता से कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं कर पाते।
2. नौकरशाही की समस्या
कल्याणकारी राज्य में अधिकांश कार्य सरकारी कर्मचारी करते हैं। जन कल्याण की अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं को ये नौकरशाह असफल बना देते हैं।
3. वैचारिक संघर्ष की समस्या
वैचारिक दृष्टि से कल्याणकारी राज्य की धारणा व्यक्तिवाद तथा समाजवाद का मिश्रण हैं। दोनों विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करके सन्तुलित मध्यम मार्ग पर चलना अत्यंत दुष्कर हैं।
कल्याणकारी लोक कल्याणकारी राज्य की आलोचना
लोक कल्याणकारी राज्य की आलोचना में निम्न तर्क दिये जाते हैं--
1. व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन
राज्य की प्रणाली द्वारा व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है। राज्य बहुत से कार्य केवल अपने ही नियंत्रण तथा तत्वावधान में करता है। ऐसी परिस्थितियों में राज्य की शक्ति में वृद्धि हो है और व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित हो जाती है। राज्य की बाध्यकारी शक्ति का उपयोग बढ़ जाता है और उसी मात्रा में व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है।
2. राज्य की बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग
आलोचकों का मत है कि कल्याणकारी राज्य की आड़ में धनी वर्ग से कर के माध्यम से धन लेकर समाज में समानता स्थापित करने के लिए राज्य की बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग किया जाता है जो उचित नीति नहीं है।
3. नौकरशाही की समस्या
लोक कल्याणकारी राज्य के अन्तर्गत अधिकांश कार्य नौकरशाही द्वारा किये जाते हैं। सरकार के कार्यों एवं दायित्वों में वृद्धि के कारण प्रशासन का ढाँचां बहुत विस्तृत हो जाता है, शासन की शक्ति सरकारी कर्मचारियों के हाथों में केन्द्रित हो जाती है जिससे नौकरशाही की निरंकुशता बढ़ने का भय रहता है। जन कल्याणकारी अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं को ये नौकरशाह अपने स्वार्थों के कारण असफल बना देते हैं।
4. प्रेरणा का अभाव
लोक कल्याणकारी राज्य द्वारा प्रदान की गई सेवाएँ सबको ही प्राप्त होती हैं ऐसे व्यक्तियों को भी जो स्वयं अपने संकट का निवारण करने की क्षमता रखते हैं। बहुत से ऐसे व्यक्ति भी हैं जो आत्मनिर्भरता की आवश्यकता नहीं समझते हैं और राज्य पर आश्रित हो जाते हैं।
5. समग्रवादी शासन का भय
कल्याणकारी शासन में वस्तुतः जनतंत्र की आड़ में समग्रवादी प्रवृत्तियों का विकास होने लगता है ऐसा राज्य साम्राज्यवाद को बढ़ावा देकर निरंकुश राज्य की सत्ता स्थापित करता है।
6. खर्चीला शासन
कल्याणकारी राज्य पर्याप्त खर्चीला होता है, समस्त कार्य राज्य द्वारा निष्पादित किये जाते हैं। फलतः ज्यों-ज्यों राज्य का नियंत्रण बढ़ता है, त्यों-त्यों महँगाई और लागत भी बढ़ती जाती है।
7. उत्पादन में कमी
कल्याणकारी राज्य में सामान्य जन की भलाई के लिए राज्य को बहुत सारे कार्य करने पड़ते हैं। इसके लिए सरकार को धनी व्यक्तियों पर बड़े पैमाने पर कर लगाने होते हैं। इससे धनी व्यक्ति हतोत्साहित होकर उत्पादन एवं विकास के प्रति उदासीन हो जाते हैं।
निष्कर्ष
कल्याणकारी राज्य के विरोध में किये जाने वाले तर्क समुचित नहीं हैं। इंग्लैण्ड में लोक कल्याणकारी सेवाओं में वृद्धि के साथ-साथ राष्ट्रीय उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। इसी प्रकार वैयक्तिक स्वतंत्रता तथा राज्य की भूमिका के मध्य समुचित समन्वय स्थापित किया गया है। लोक कल्याणकारी राज्य सामाजिक न्याय को अपना लक्ष्य मानता है जिसकी प्रेरणा इसे समाजवाद से मिली है। अतः समाजवाद को ही कार्यान्वित करने वाली प्रजातांत्रिक व्यवस्था लोक कल्याणकारी राज्य है।
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