2/01/2022

न्यायपालिका का अर्थ, संगठन, कार्य

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nyaypalika arth paribhasha sanghtan karya;न्यायपालिका सरकार का तीसरा एवं महत्वपूर्ण अंग है। लोकतान्त्रिक सरकार तथा सर्वाधिकारवादी सरकार के मध्य प्रमुख अन्तर न्यायपालिका की उपस्थिति में ही सम्भव है। न्यायपालिका ही विधि के शासन की स्थापना का एक मात्र मार्ग है। मेरियट के शब्दों में, सरकार के जितने भी महत्वपूर्ण कार्य है, उनमें निःसन्देह न्याय कार्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका सीधा संबंध नागरिकों से है। चाहे कानून के निर्माण की मशीनरी कितनी भी विस्तृत और वैज्ञानिक हो, चाहे कार्यपालिका का संगठन कितना भी पूर्ण हो। परन्तु फिर भी नागरिक का जीवन दुःखी हो सकता है और उसकी सम्पत्ति को खतरा उत्पन्न हो सकता है। यदि न्याय करने में देरी हो जाए या न्याय में दोष रह जाए अथवा कानून की व्याख्या पक्षपातपूर्ण या भ्रामक हो।"

न्यायपालिका का अर्थ (nyaypalika kya hai)

मनुष्य एक विचारवान प्राणी है। प्रत्येक मनुष्य के विचार भिन्न हो सकते है। विचारों की भिन्नता के कारण पारस्परिक संघर्ष भी नितान्त स्वाभाविक है। साथ ही साथ शासक वर्ग भी नागरिकों के अधिकारों में कटौती कर सकता है तथा अपनी शक्तियों का दुरूपयोग कर सकता है। ऐसे में एक स्वतन्त्र न्यायिक सत्ता का होना आवश्यक है, जो व्यक्तियों के पारस्परिक विवादों का हल कर सके तथा शासन को अपनी मर्यादाओं में रहने के लिए बाध्य कर सके। 

प्रो. लास्की के मत में," एक राज्य की न्यायपालिका अधिकारियों के ऐसे समूह से परिभाषित की जा सकती है, जिसका कार्य राज्य के किसी कानून विशेष के उल्लंघन या तोड़ने संबंधी शिकायत का विभिन्न लोगों के बीच या नागरिकों और राज्य के बीच एक दूसरे के विरूद्ध होती हैं, समाधान व फैसला करता है।" 

इस प्रकार न्यायपालिका समाज में प्रचलित विधियों को लेकर उठने वाले विवादों का समाधान करने की संस्थागत व्यवस्था है। 

लार्ड ब्राइस ने न्यायपालिका के महत्व को इन शब्दों में व्यक्त किया है," यदि विधि का शासन ईमानदारी के साथ काम नहीं करता है तो यही माना जाएगा कि नमक ने अपना क्षारीय स्वभाव खो दिया है। न्यायदीप ही यदि अन्धकार में विलीन हो जाए तो अन्धकार की गहनता का क्या अनुमान लगाया जा सकता है।" 

लोकतान्त्रिक एवं संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। संघात्मक व्यवस्था में संघ तथा राज्य इकाईयों के बीच अधिकारों का विभाजन होता है, इसलिए दोनों के बीच वैधानिक संघर्ष की सम्भावना अधिक रहती है। अतः एक स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका इस संघर्ष को दूर कर सकती है। 

वास्तव में न्यायपालिका न केवल न्याय करने बल्कि जनता की स्वतन्त्रता एवं अधिकारों के संरक्षण एवं कानून का उल्लंघन करने वालों को दण्ड देने के लिए भी आवश्यक है। 

प्रो. लॉस्की ने लिखा जब हम जानते है कि राष्ट्र राज्य किस प्रकार अपने यहाँ न्याय करता है तब हमें यह ज्ञात होता है कि वह नैतिक चरित्र के किस स्तर पर है।" 

प्रो. गार्नर ने न्यायपालिका के महत्व को बड़े सरल शब्दों में व्यक्त किया है," न्यायपालिका के अभाव में एक सभ्य राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है।" 

न्यायपालिका संगठन (nyaypalika ka sanghtan)

1. जनता द्वारा निर्वाचित न्यायाधीश  

विश्व के कुछ राष्ट्रों में न्यायाधीशों का निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली से होता है जैसे अमेरिका तथा स्विडजरलैण्ड के कुछ कैन्टस् लेकिन यह प्रणाली दोषपूर्ण है क्योंकि इसमें योग्य व्यक्तियों का निर्वाचन संदिग्ध है तथा न्यायाधीश दलबन्दी का शिकार भी हो सकते है। 

प्रो. गार्नर ने कहा है कि, " जनता द्वारा निर्वाचित न्यायाधीशों का मुख्य दोष यह है कि इसमें दुर्बल एवं स्वतन्त्रताविहीन न्यायालयों का जन्म होता है। 

2. व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचित 

न्यायपालिका स्विटजरलैण्ड के कुछ कैन्टंस तथा पूर्व सोवियत संघ में व्यवस्थापिका द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती रही है। लेकिन इसमें भी न्यायपालिका के व्यवस्थापिका की कठपुतली बनने का खतरा है। साथ ही न्यायाधीशों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर न होकर दलगत राजनैतिक मान्यताओं के आधार पर होने की सम्भावना है। 

3. कार्यपालिका द्वारा नियुक्त 

न्यायपालिका दुनिया के अधिकांश देशों में न्यायाधीशों की नियुक्ति कार्यपालिका द्वारा होती रही है। इस व्यवस्था से राजनैतिक दलबन्दी पर रोक लगती है तथा योग्य व्यक्ति न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होते है।   

न्यापालिका के कार्य (nyaypalika ke karya)

सामान्यतः प्रत्येक देश की न्यायपालिका निम्नलिखित कार्यों को सम्पन्न करती है-- 

1. न्याय करना तथा अपराधियों को दण्ड देना

न्यायपालिका का सर्वप्रथम कार्य कानून के अनुसार न्याय करना तथा कानून के उल्लंघनकर्ता को विधि के अनुसार दण्ड देना है। न्यायपालिका व्यक्तियों के बीच तथा व्यक्ति एवं राज्य अथवा राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करती है दीवानी, फौजदारी तथा संवैधानिक मामलों में आवश्यक तथ्यों की जानकारी कर अपने-अपने पक्ष के दिए गए कानूनी तर्क के आधार पर फैसला करती है। प्राचीनकाल से ही कानून का उल्लघंन करने वाले को दण्ड देना न्यायपालिका का प्रमुख कार्य है। 

2. संविधान की व्याख्या 

संविधान एवं कानून की भाषा प्रायः सर्वसाधारण के समझने की दृष्टि से कठिन है। कई बार संविधान में उत्पन्न विवादों और विभिन्न मुकदमों के सिलसिले में कानून की व्याख्या करना न्यायपालिका का मौलिक कार्य बन जाता है। जहाँ कानून मूक अथवा अस्पष्ट होता है वहाँ न्यायपालिका न केवल कानून को स्पष्ट करती है बल्कि अपने निर्णयों से विभिन्न प्रकार के कानूनों का निर्माण भी करती है । जिसे न्यायिक कानून (Case Law) कहते है। न्यायपालिका द्वारा की गयी व्याख्या तथा न्यायिक कानून का महत्व विधायिका द्वारा बनाए गए कानून के समान ही होता है। 

3. संविधान का संरक्षण 

न्यायपालिका देश के संविधान की संरक्षक होती है। विशेषकर संघात्मक राज्यों में संविधान की सर्वोच्चता होती है। वहाँ व्यवस्थापिका या कार्यपालिका यदि संविधानेत्तर कोई कार्य करती है तो न्यायपालिका इसे असंवैधानिक घोषित करते हुए संविधान की रक्षा करती है। 2015 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को अवैधानिक घोषित कर संविधान में प्रदत्त व्यवस्था का संरक्षण किया है। 

4. मौलिक अधिकारों की रक्षा 

प्रायः प्रत्येक देश के संविधान ने अपने नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं, जब भी किन्हीं व्यक्ति अथवा राज्य द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर आघात किया जाता है तो नागरिक इन अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका की शरण लेते हैं। न्यायालय विभिन्न प्रकार के लेख जारी कर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। भारत में संवैधानिक उपचारों का अधिकार मूल अधिकारों के संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन है। जिसके तहत न्यायालय, बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा लेख द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है। 

5. संघ-राज्य विवादों का निपटारा 

संघात्मक राज्य व्यवस्था में केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान द्वारा किया जाता है किन्तु अनेक बार केन्द्र और राज्यों में शक्तियों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है, ऐसे में न्यायपालिका दोनों के हितों का संरक्षण कर न्याय एवं कानून सम्मत निर्णयों द्वारा विवादों का निपटारा करती है। इसलिए संघात्मक शासन व्यवस्था के लिए स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका का होना नितान्त आवश्यक है। न्यायपालिका संघ तथा राज्यों को अपनी-अपनी सीमा का अतिक्रमण न करने के लिए बाध्य कर सकती है। 

6. परामर्श सम्बन्धी कार्य  

न्यायपालिका का एक अन्य महत्वपूर्ण कार्य कार्यपालिका को परामर्श देना भी है। वह मुकदमों की सुनवाई एवं निपटारे के साथ-साथ संवैधानिक मसलों पर आवश्यकता पड़ने पर कार्यपालिका को सलाह देती है। ब्रिटेन की प्रिवी कौंसिल की न्यायिक समिति को राज्याध्यक्ष को कानूनी एवं वैधानिक मसलों पर परामर्श देने का अधिकार प्राप्त है। यद्यपि अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय को परामर्श सम्बन्धी क्षेत्राधिकार नहीं है किन्तु स्वीडन, कनाड़ा, आस्ट्रेलिया सहित भारत में संविधान के अनुसूचि 143 के तहत न्यायपालिका को परामर्श देने का अधिकार है। 

प्रशासनिक कार्य

न्यायपालिका को अपने आन्तरिक प्रशासन के सम्बन्ध में पर्याप्त अधिकार हैं। उच्चतम तथा उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ अधिकारी/कर्मचारियों की सेवा शर्तें, नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानान्तरण आदि का निर्धारण स्वयं करते है। न्यायालय के आन्तरिक प्रशासन में कार्यपालिका का किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं है। न्यायालय के आन्तरिक प्रशासन सम्बन्धी छोटे-छोटे नियमों को लागू करने का कार्य स्वयं न्यायपालिका का है।

विविध कार्य 

उक्त कार्यों के अतिरिक्त न्यायपालिका कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी करती है जैसे विवाह, तलाक व नागरिकता के प्रमाण पत्र जारी करना, अपनी मानहानि करने पर किसी व्यक्ति को दण्डित करना, सार्वजनिक सम्पत्ति के न्यासी (Trustee) नियुक्त करना, दिवालिया फर्म के लिए रिसीवर नियुक्त करना, नाबालिगों के संरक्षकों की नियुक्ति, वसीयतनामों का प्रमाणीकरण न्यायिक समीक्षा आदि कार्य। अमेरिका में राष्ट्रपति अथवा किसी न्यायाधीश के विरूद्ध लगाए महाभियोग पर चर्चा के लिए बुलाई गई सीनेट की बैठक की अध्यक्षता वहाँ के सर्वोच्च न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश करता है। भारत में भ्रष्टाचार तथा शक्तियों के दुरुपयोग सम्बन्धी मामलों के लिए न्यायाधीशों की अध्यक्षता में आयोग का गठन किया जाता है।

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संदर्भ; माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अमेर 

लेखगण

डॉ. मधुमुकुल चतुर्वेदी, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान शहीद कैप्टन रिपुदमनसिंह राजकीय महाविद्यालय, सवाईमाधोपुर 

डॉ. मनोज बहरवाल, सह आचार्य (राजनीति विज्ञान) सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर 

भवशेखर, सहायक आचार्य (राजनीति विज्ञान) राजकीय मीरा कन्या महाविद्याल, उदयपुर 

प्रवीण कौशिक, प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय खरवालिया जिला नागौर 

सुनील चतुर्वेदी, प्राचार्य मास्टर आदित्येन्द्र राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय भरतपुर 

गोपाललाल अग्रवाल, प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रेल्वे स्टेशन, दौसा।

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