2/02/2022

अधिनायकवाद/तानाशाही के गुण एवं दोष

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अधिनायकवाद या तानाशाही के गुण एवं दोष 

adhinayak tantra ke gun or dosh;प्रजातंत्र और तानाशाही में से कौन-सी शासन-व्यवस्था अधिक ग्राह्रा और व्यावहारिक है इस पर युगों से बौद्धिक अखाड़ा बना रहा हैं। दोनों ही शासन-व्यवस्थाओं के गुणों और दोषों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है और इतिहास में ऐसे भी अवसर आते रहे हैं जब किसी समय विशेष में तानाशाही या अधिनायकतंत्रीय व्यवस्था प्रजातंत्रीय व्यवस्था से अधिक प्रभावी सिद्ध हुई। लेकिन इतिहास इस बात का भी साक्षी है कि अन्ततोगत्वा वही शासन-व्यवस्था अधिक स्थाई और सफल सिद्ध हुई हैं जो प्रजातांत्रिक आदर्शों पर आधारित रही, फिर चाहे उसका नामकरण कुछ भी हुआ हो।

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प्रत्येक तंत्र अथवा वाद में कुछ गुण और दोष होते हैं, प्रत्येक चीज के दो पहलू होते हैं, अच्छे और बूरे। इसी प्रकार अधिनायकवाद के भी कुछ गुण और दोष हैं। एक ओर अधिनायकवाद के समर्थकों ने अधिनायकवाद की प्रशंसा के पुल बाँद दिये हैं तो दूसरी ओर उसके विरोधियों ने उसकी घोर आलोचना की हैं। अधिनायकवाद के गुण और दोषों का वर्णन अग्रलिखित शीर्षकों द्वारा किया जा रहा हैं--

अधिनायकवाद या तानाशाही के गुण (adhinayak tantra ke gun)

अधिनायकवाद के समर्थकों ने अधिनायकतंत्र में निम्नलिखित गुणों की गिनती की हैं-- 

1. समर्थक कहते है कि अधिनायकवाद सुदृढ़ लोगो का शासन है जिसमें शासक वर्ग अपनी इच्छा की पूर्ति आसानी से कर लेते हैं। विचार वैमिन्यता को ऐसे शासन में कोई स्थान नही मिलता। शासन का संचालन सुचारू रूप से होता हैं। आलोचना किसी स्तर पर नही होती। आदेशों का पालन द्रुतगति से होता हैं। युद्धकाल में प्रजातंत्रीय शासन संकट का सामना करने में असफल हो जाता हैं। संसदों में निरर्थक वाद-विवाद चलता हैं। प्रस्ताव पास करने में काफी विलम्ब हो जाता है। राजनीतिक नेताओं को कदम-कदम पर आलोचना का सामना करना पड़ता है। किन्तु तानाशाह राष्ट्रीय एकता स्थापित करने मे सफल होते हैं, तानाशाह की एक आवाज है। किन्तु तानाशाह राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में सफल होता है, तानाशाह की एक आवाज पर राष्ट्र खड़ा हो जाता हैं। युद्धकाल में तो यह शासन अत्यंत सफल होता हैं। 

2. अधिनायक के अंदर समस्त शक्तियों का केंद्र होता है। उसे विश्वास होता है कि उसका आदेश समस्त राष्ट्र मानेगा। उसे सलाह लेने की भी विशेष आवश्यकता न पड़ेगी। उसके आदेश की कोई आलोचना भी नही करेगा। उसकी आज्ञा सैनिक आज्ञा के समान प्रभावी होगी। उसका निर्णय अन्तिम निर्णय होगा। उसकी योजना के भेद खुलने का खतरा न होगा। इसी आधार पर जर्मनी, इटली व रूस के नेताओं ने बड़ी द्रुतगति से अपने आदेशों का पालन कराके आननफानन देश में सुधार योजनाओं को सफल बनाया।

3. तानाशाही मे एक दल का शासन होता है। विभिन्न दलों का अंत कर दिया जाता है। समस्त राष्ट्र में एकता व्याप्त हो जाती हैं। जो नेता कहता हैं, उसी की ध्वनि चारों ओर सुनाई देती है। एक दल के प्रति सभी नागरिक बफादार रहते हैं। उनकी वफादारी विभिन्न दलों में नही बँटी होती है। समस्त योजनाओं को पूर्ण करने में  सरकार स्वतंत्र होती हैं। राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने मे अधिनायकतंत्र बहुत सफल होता है। 

4. तानाशाही सरकार में व्यर्थ के अनेक खर्चें नही हो पाते क्योंकि लम्बी-चौड़ी शासन व्यवस्था की जरूरत नहीं होती। प्रजातांत्रीय शासन बहुत खर्चीला होता हैं परन्तू तानाशाही शासन में धन की पर्याप्त बचत होती हैं। 

5. तानाशाही शासन देश की गिरती दशा को शीघ्र उठाने में सफल होता है। इटली और जर्मनी का उदाहरण हमारे सामने हैं। युद्ध के बाद दोनों की आर्थिक दशा इतनी खराब हो गई थी कि देश दिवालिया बन गया था। परन्तु अल्पकाल में ही इनमें तानाशाही ने आशातीत उन्नति की। जर्मनी को तो हिटलर ने इतनी जल्दी उठाया कि बिस्‍मार्क और कैसर विलियम जो काम 40 वर्ष में कर पाये वह हिटलर ने 5 वर्ष में कर दिखाया। एक विद्वान के अनुसार," जिस काल में अधिनायकों ने अपना जीवन प्रारंभ किया, उस समय लगभग सभी महाद्वीपीय देशों की आर्थिक और राजनीतिक अवस्था पूर्णतया अशांत थी। उन्होंने राष्ट्रीय पुनरूत्थान के वातावरण में कार्य आरंभ किया और अपने देशवासियों के समाने देशभक्ति, सहयोग और त्याग के उच्च आदर्श निरन्तर उपस्थित किये जिससे उनमें सेवा तथा राष्ट्रीय गुणों और भावनाओं का जागरण हुआ।" इस भावना ने देश को उन्नति के उच्च शिखर पर चढ़ा दिया। 

6. अधिनायक राष्ट्र का लोकप्रिय नेता होता है, उसका विरोध करने की शक्ति किसी में नहीं होती। वह अपने विरोधियों को निर्दयतापूर्वक कुचल देता हैं। राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अधिनायक का प्रभुत्व होता है। वह राष्ट्र को जिधर चाहे मोड़ सकता हैं। 

7. अधिनायकवाद सैनिकवाद होता है। सेना की शक्ति बड़ी द्रुतगति से बढ़ती हैं। हिटलर ने अपने अल्प शासन काल में जर्मनी को एक महा शक्तिशाली राज्य में बदल दिया। यदि संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस उसके विरूद्ध न होते तो जर्मनी इंग्लैंड को घुटने टेकने के लिए विवश कर देता और समस्त पश्चिमी यूरोप में उसका आधिपत्य स्थापित होता। रूस जैसी शक्ति जिसे इंग्लैंड, जापान तथा जर्मनी कई बार हार चूका था, तानाशाही शासन के अंदर उसने वह शक्ति तैयार कर ली कि अमेरिका के अतिरिक्त विश्व का कोई देश सैनिक शक्ति में उसका मुकाबला नहीं कर सकता। यदि उसके विस्तार में अमेरिका रोड़ा न अटकाता तो आज रूस समस्त विश्व पर विजय पा चुका होता।

अधिनायकवाद या तानाशाही के दोष (adhinayak tantra ke dosh)

अधिनायकवाद या अधिनायकतंत्र के निम्नलिखित दोष हैं--

1. तानाशाही शासन व्यक्तित्व के विकास को रोकता है तथा मौलिक अधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कोई महत्व नहीं देता। तानाशाह की स्वेच्छाचारिता पर व्यक्ति की स्वतंत्रताओं की बलि चढ़ जाती है। समाचार-पत्रों, संघों आदि की स्वतंत्रता का नाश हो जाता हैं। 

इस तरह समाज के मौलिक चिन्तन में शिथिलता आती है। मानव-जीवन को एक ढर्रे पर चलाना और उसे पूरी तरह राज्य के अधीन कर देना और स्वतः प्रेरणा का अंत करना है। नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा के भुलावे में डालकर उनके सर्वस्व को राज्य की बलिवेदी पर चढ़ा देना  उनकी वास्तविक स्वतंत्रता का अपहरण कर लेना किसी भी रूप में उचित मानवीय नही कहा जा सकता। 

2.अधिनायकवाद का शासन जंगल का शासन होता है जहाँ पर एक सिंह सभी जंगली पशुओं पर शासन करता हैं। सिंह की एक दहाड़ से समस्त जंगल में हल-चल मच जाती है। उसी प्रकार तानाशाह ही अधिनायकवाद का एक स्वतंत्र व्यक्ति होता है, शेष सभी उसके आधीन होते हैं। किसी भी व्यक्ति को स्वतन्त्रता नहीं मिली होती। तानाशाह निरंकुश, स्वेचाछाचारी एवं सर्वशक्तिशाली व्यक्ति होता हैं। वह देश को चाहे तो पतन के घोर गर्त में गिरा सकता है, उसे रोकने की शक्ति किसी में भी नही होती। उसके इशारे पर लाखो नागरिक अपना जीवन उत्सर्ग करने को तैयार रहते है। उसके विरूद्ध कोई नागरिक मुँह नहीं खोल सकता, लेख नहीं लिख सकता और न कोई संगठन बना सकता है। भाषण, लेख, समाचार-पत्र आदि सभी पर प्रतिबंध लगे होते हैं। 

3. तानाशाही शासन मानवों को खुशामदी बना देता है। भय के मारे वह सच्ची बात नहीं कह सकता हैं। आलोचना से गुण-दोष का पता चलता हैं लेकिन तानाशाही मे आलोचना देश द्रोह मानी जाती हैं। अतः तानाशाह चाहे कैसा ही योग्य व्यक्ति हो पर गलती उससे भी हो सकती हैं, परन्तु उसे अपनी गलती का पता चलता ही नही क्योंकि उसके प्रत्येक उचित या अनुचित आदेश का पालन करना अनिवार्य हैं। कभी-कभी एक गलती पूरे देश को गर्त में डाल सकती हैं। 

4. तानाशाह का आतंक समस्त जनता पर व्याप्त रहता हैं। वह जनता के भाग्य का निर्माता होता हैं। दल भी उसके अनुशासन का पालन करता हैं। समस्त शक्ति इसमें केंद्रति होती हैं। इस प्रकार का सत्ताधारी, निरंकुश, विवेकहीन और घमण्डी बन जाता है। वह किसी व्यक्ति का प्रभाव सहन नहीं कर पाता। हिटलर ने अपनी सफलता से अपनी शक्ति का प्रयोग विवेकपूर्ण रूप से करना प्रारंभ कर दिया। एक भयानक युद्ध को जन्म दिया। उसने युद्ध के परिणाम का सही अन्दाजा नहीं लगाया। विजय प्राप्त करने की धुन में उसने शत्रुओं के साथ अमानवीय अत्याचार करना प्रारंभ किया। विश्व जनमत उसके विरूद्ध हो गया। यदि वह विवेक से काम लेता तो रूस उसके विरूद्ध न होता तथा उसे निश्चित सफलता मिलती। 

5. तानाशाही शासन विश्व शान्ति के लिए एक महान खतरा होता है। अपनी सैनिक शक्ति को बढ़ाकर वह विश्व विजय का अभियान चलाता हैं। छोटे-मोटे राज्यों की स्वतंत्रता के प्रति वह कोई सम्मान नहीं रखता। उसके मस्तिष्क में युद्ध और विशाल साम्राज्‍य के सपने समाये रहते हैं। अन्तरराष्ट्रीयता के विचार उसके लिए धोखामात्र होते हैं। हिंसा और पशु शक्ति ही उसके लिए समस्त समस्याओं का एकमात्र हल होता हैं। वह अपने विरोधियों से गिन-गिन कर बदला लेता हैं। 

इस प्रकार की नीति भविष्य के लिए विनाश उत्पन्न करती हैं, क्योंकि सभी मतभेदों को दूर करने के लिए उस सबकों उखाड़ फेंकना पड़ता है जो समुदाय को मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से जीवित रखता हैं। ऐसी राष्ट्रीय शक्ति की उपासना 'अन्तरराष्ट्रीय अशांति की जन्मदात्री होती हैं।' इसे 'मानव तर्क और विवेक का दिवालियापन' कहा जाता हैं। 

6. तानाशाह समस्त सत्ता पाकर अन्धा हो जाता है। वह दूर दृष्टि नहीं रख पाता। वह अत्याचार और अमानुषिकता का प्रसार करता है। उचित अनुचित का वह ध्यान नहीं रखता हैं। उसका ह्रदय दया शून्य हो जाता हैं। एक लेखक के मतानुसार," अधिनायकतंत्र अत्याचारियों का स्वर्ग होता हैं। ऐसा अधिकेन्द्रित राज्य एक जेलखाना होता हैं और उसकी प्रजा ऐसी दिवारों के अंदर बंद होती है जो अदृश्य होते हुए भी वास्तविक हैं।" "जुल्मी थोड़े दिन जीता है" तानाशाही "डाकुओं का राज्य" होता हैं। इन तानाशाहों का अंत बहुत बुरा होता हैं। वे तो गिरते ही हैं, अपने साथ अपने समाज और राज्य को भी ले डूबते हैं। हिटलर और मुसोलिनी का जो अंत हुआ वह सबके सामने हैं। 

7. तानाशाही सरकार अधिक समय तक नही चलती हैं। जब तक राष्ट्रीय भावना जागृत न हो तब तक ही तानाशाह राज्य या शासन करता हैं। शांति काल में ही उसकी शक्ति पनपती हैं। संकटकाल में तानाशाह को आन्तरिक विद्रोह और बाहरी आक्रमण दोनों का सामना करना पड़ता हैं और दो पाटों में आकर वह पिस जाता हैं। कभी-कभी तानाशाह अपने ही विश्वास पात्र सेवकों से धोखा खा जाता हैं और बेमौत मारा जाता हैं। तानाशाह की शक्ति उसका दल होता हैं, उसके समर्थक होते है परन्तु जब तानाशाह अपने दल एवं समर्थकों का विनाश करने पर लग जाता हैं तो उसका अंत किसी भी समय हो सकता हैं।

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