11/09/2021

पाठ योजना के चरण/सोपान, प्रकार

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पाठ योजना के चरण या सोपान (path yojna ke sopan ya charan)

पाठ-योजना के व्यवस्थित निर्माण के लिये उसे कई सोपिनों में विभाजित किया जाता हैं। शिक्षा शास्त्री हर्बट ने पाठ-योजना के निम्नलिखित 5 सोपानों का वर्णन किया हैं-- 

1. भूमिका 

इसमें छात्रों को नये पाठ के लिए तैयार करना होता है। इसमें छात्रों को नया ज्ञान प्राप्त करने के लिए अनुप्रेरित किया जाता हैं। पूर्व ज्ञान-परीक्षण के लिये शिक्षक छात्रों से केवल तीन या चार प्रश्न पूछता हैं। इस सोपान का प्रयोजन प्रमुख रूप से छात्रों में नये ज्ञान के प्रति रुचि एवं जिज्ञासा उत्पन्न करना हैं। 

2. प्रस्तुतीकरण 

इस सोपान में छात्रों को नया ज्ञान ग्रहण करने के लिए पर्याप्त मानसिक क्रिया करनी होती है। इसलिए शिक्षक को विषय सामग्री इस प्रकार से प्रस्तुत करनी चाहिए कि छात्र उसे आसानी एवं सहजता से ग्रहण कर सकें। इसके लिये विषय सामग्री को क्रमानुसार दो या तीन इकाई में बाँटना तथा उसकी प्रस्तुतीकरण के लिए उचित शिक्षण विधि का प्रयोग करना चाहिए। 

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3. तुलना या संबंध का निर्धारण 

इस सोपान में नवीन ज्ञान तथा पूर्वज्ञान की तुलना करके दोनों में संबंध स्थापित करना होता है। इससे उनके ज्ञान में वृद्धि होती है तथा नये ज्ञान को आत्मसात करना उनके लिये आसान हो जाता है। वस्तुतः यह सोपान रचनात्मक प्रक्रिया का सोपान है जिसमें छात्रों के चिंतन को प्रेरणा मिलती है तथा उनमें खोजने की प्रवृत्ति जाग्रत होती हैं। अतः इस सोपान का आयोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि छात्रों को चिंतन एवं खोज का पर्याप्त सुअवसर प्राप्त हो सके। 

4. प्रयोग 

इस सोपान में छात्रों को नये ज्ञान के प्रयोग का अवसर दिया जाता हैं। इस प्रकार इस सोपान का प्रयोजन छात्रों को नये ज्ञान के प्रयोग करने के लिये योग्य बनाना हैं, क्योंकि प्रयोग करने से प्राप्त ज्ञान मस्तिष्क में पर्याप्त रूप से अंकित हो जाता हैं। 

5. पुनरावृत्ति 

इस सोपान में सम्पूर्ण पाठ की संक्षिप्त रूप से पुनरावृत्ति की जाती है। पुनरावृत्ति के लिए छात्रों से सहयोग लेना चाहिए अर्थात् प्रश्नोत्तर के माध्यम से या कोई प्रयोगात्मक कार्य कराके या लेखन कार्य के माध्यम से संपूर्ण पाठ की पुनरावृत्ति करानी चाहिए। 

पाठ योजना बनाने से पूर्व ध्यान देने योग्य बातें 

पाठ योजना बनाने से पहले शिक्षक को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-- 

1. जिस विषय में शिक्षक पाठ-योजना बनाने जा रहा हो उस विषय का उसे अच्छा ज्ञान होना चाहिए।

2. शिक्षक को बाल प्रकृति का ज्ञान होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, उसे बालकों के संपर्क में रहकर तथा बाल मनोविज्ञान का अध्ययन कर बालकों की आवश्यकताओं, रूचियों, अभिवृत्तियों और क्षमताओं आदि की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए, जिनके लिए वह पाठ योजना का निर्माण करने जा रहा हैं। 

3. शिक्षक को सीखने के सिद्धांतों का ज्ञान होना चाहिए ताकि वह बालकों को सिखाने में उनकी सहायता कर सके। 

4. शिक्षक को कक्षा के बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नता का भी ज्ञान होना चाहिए। 

5. शिक्षक को शिक्षण के सामान्य सिद्धांतों तथा विधियों के स्वरूप तथा उनके योग करने के संबंध में जानकारी प्राप्त होनी चाहिए। 

6. उसे शिक्षा के उद्देश्यों से परिचित होना चाहिए। 

7. उसका शिक्षा की समस्याओं के प्रति विशाल तथा सुधारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए। 

8. जहाँ तक हो शिक्षक को यह जानना चाहिए कि बालकों को इस प्रकरण का कितना ज्ञान हैं। 

9. यह आवश्यक नहीं कि पाठ योजना पूर्णरूपेण निर्धारित पाठ्यपुस्तक पर ही आधारित हो। 

10. पाठ योजना का विभिन्न भागों से समन्वय होना चाहिए। 

11. सभी प्रकार के पाठों की योजना एक ही प्रकार की नही बनानी चाहिए। 

12. पाठ योजना को आवश्यकता से अधिक पूर्णता प्रदान करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।

पाठ योजना के प्रकार (path yojna ke prakar)

विभिन्न पाठ योजनाओं का उनके स्वरूप के आधार पर निम्न प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता हैं-- 

1. व्यापक पाठ योजना 

यह एक दीर्घकालीन पाठ योजना है। यह पाठ योजना लगभग 35 से 45 मिनट तक पूर्ण कालांश के दौरान पढ़ाने के लिये तैयार की जाती है। इसमें शिक्षण सामग्री का समावेश अधिक मात्रा में होता हैं। विक्षार्थियों की विभिन्न क्रियाओं पर अधिक ध्यान दिया जाता है। प्रचलित शिक्षण अभ्यास में इसी प्रकार की पाठ योजना का प्रचलन हैं।

2. सूक्ष्म पाठ योजना

यह पाठ योजना अल्पकालीन पाठ योगना हैं। इसमे दीर्घ शिक्षण-सामग्री को छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त कर दिया जाता हैं। इसमें शिक्षण का एक खण्ड लगभग 5-10 मिनिट के लिए तैयार किया जाता है। यह पाठ योजना शिक्षक व्यवहार में सुधार एवं उनके गुणात्मक विकास पर अधिक बल देती हैं। 

3. लिखित पाठ योजना 

वे पाठ योजनायें जिन्हें शिक्षक कक्षा मे शिक्षण से पहले लिखित रूप में तैयार करता हैं, लिखित पाठ योजनायें कहलाती हैं। पाठ योजना पुस्तिका में पूरे कालांश की शिक्षण प्रक्रियाओं को लिखकर उसी के अनुरूप कक्षा अध्यापन किया जाता हैं। 

4. अलिखित पाठ योजना 

एक अनुभवी एवं लम्बे समय से शिक्षण एवं विषय से संबंधित व्यक्ति समयाभाव के कारण कक्षा-शिक्षण के पूर्व अपने मस्तिष्क में अपनी कक्षा में शिक्षण करने वाले संपूर्ण पाठ की रूपरेखा बना लेता है और कक्षा में शिक्षण के दौरान उसी रूपरेखा का अनुकरण करता हैं। कार्य की दृष्टि से यह पाठ योजना अधिक लचीली हैं। इसमें शिक्षक परिस्थिति के अनुसार स्वयं के प्रस्तुतीकरण में मोड़ लेता हैं।

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