11/11/2021

लेखन कौशल की विधियाँ

By:   Last Updated: in: ,

लेखन कौशल की विधियाँ 

वर्णों को लिखना सिखाने की अनेक विधियां हैं, जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं-- 

1. अनुकरण विधि 

इस विधि के माध्यम से सामान्यतः विद्यालय में लिखना सिखाया जाता हैं। इस विधि में शिक्षक स्टेट पर या श्यामपट्ट पर वर्ण लिख देते है और उसका अनुकरण करके छात्र स्वयं वैसे ही वर्ण लिख लेते हैं। इस प्रकार से विद्यार्थी शिक्षक के हाथ के परिचालन को देखकर उसका अनुकरण वैसे ही अपनी स्लेटों पर नकल कर लेते हैं। सुलेख की पुस्तिकाओं में पहली पंक्ति लिखी होती है शेष पूरा पृष्ठ छात्र अनुकरण द्वारा सिखकर लिखता हैं। 

यह भी पढ़े; लेखन कौशल का अर्थ, परिभाषा, महत्व

यह भी पढ़े; लेखन कौशल के उद्देश्य 

2. पेस्टालाॅजी की रचनात्मक विधि 

इस विधि के द्वारा तीन बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना बहुत जरूरी हैं, इस विधि की पहली विचारणीय बात यह हैं कि प्रत्येक वर्ण को निम्न आकृतियों के संयोग से बनने के कारण छोटे-छोटे भाग में पृथक्करण करना, खड़ी, टेढ़ी और आड़ी लकीर, वृत्त, अर्द्धवृत्त, उल्टा अर्द्धवृत्त (।, /, ---, °, ~, ~,) इत्यादि। इस विधि की दूसरी विचारणीय बात यह हैं कि कठिनाइयों के क्रमानुसार वर्णों का वर्गीकरण होना चाहिए। उदाहरणार्थ, हिंदी में इनका कार्यान्वयन इस प्रकार किया जा सकता है ग, म, न, भ, झ, र, ण, स, ए, ऐ आदि। इस विधि की तीसरी विचारणीय बात इस विधि के अनुसार यह है कि विभिन्न आकृतियों का वर्ण बनाने के लिए एकीकरण करना। अतः इस प्रकार से रचनात्मक विधि तीन क्रियाओं पर आधारित हैं--  पृथक्करण, वर्गीकरण और एकीकरण।

3. माॅण्टेसरी विधि 

लिखना सिखाने की विधि माॅण्टेसरी की एक मौलिक देन हैं। लिखना सिखाने के लिए बालक को लकड़ी अथवा गत्ते से बने अक्षरों पर अंगुली फेरने को कहा जाता हैं। जब बालक की अंगुलियाँ गत्ते से बने अक्षरों पर जम/सध जाती है तब वह अक्षर लिखना सरलता-पूर्वक सीख जाता हैं। गत्ते के एक बड़े तख्ते पर वर्ण की आकृतियाँ बनाकर शिक्षक दे देता हैं। बालक शिक्षक की सहायता से उन्हें काट लेंगे, अब गत्ते में कटी हुई आकृतियाँ रह जाएंगी अतः नीचे कागज रखकर खाली कटे हुए स्थानों पर पेन्सिल चलाने से नीचे के कागज पर वर्ण बन भी जाएंगे और वर्ण लिखने के लिए हाथ के परिचालन का अभ्यास भी बालक को हो जाएगा। यह एक रोचक विधि हैं। लिखना सिखाने की यह पद्धित वास्तव में प्रशंसनीय विधि हैं। 

4. जैकाॅटाॅट विधि 

जैकाॅटाॅट विधि के माध्यम से लिखना सिखाने के लिए बालक को पठित वाक्य लिखकर दे दिया जाता है। जब एक शब्द बालक लिख लेता हैं तो स्वयं ही उसे शिक्षक द्वारा लिखी हुई मूल प्रति से मिला लेता है और अपनी अशुद्धि का सुधार स्वयं करता हैं। जब इसी प्रकार पूरा वाक्य लिख चुका होता है तो फिर उसे स्मृति के आधार पर पूरा वाक्य लिखने को कहा जाता हैं और मूल प्रति की सहायता से अंत में अपनी अशुद्धि का सुधार वह स्वयं करता हैं। 

5. विश्लेषण विधि 

विश्लेषण विधि में लेखन शिक्षण शब्द, वाक्य एवं वाक्य शब्द इन दो क्रमों में चल सकता हैं दोनों क्रमों को रोचक बनाने के लिए चित्रों की सहायता भी ली जा सकती हैं। इन चारों विधियों को क्रमशः शब्द विधि, वाक्य विधि, चित्र, शब्द विधि तथा वाक्य चित्र विधि कहा जाता हैं। विश्लेषण विधि वाचन शिक्षण की दृष्टि से अधिक उपयोगी हैं लेकिन लेखन शिक्षण हेतु अधिक उपयोगी नहीं हैं क्योंकि लिखने में अक्षर विशेष पर ध्यान करना पड़ता हैं। संपूर्ण वाक्य का आकार विद्यार्थियों की दृष्टि परिधि से बाहर हो जाता हैं। लेखन शिक्षण की दृष्टि से ये विधि कठिन हैं। 

6. संश्लेषण विधि 

संश्लेषण विधि के अंतर्गत पहले वर्ण, फिर शब्द और अंत में वाक्य लिखना सिखाया जाता हैं। वर्णमाला से परिचित कराने के बाद वर्णों से मिलकर बनने वाले शब्दों को लिखना सिखाया जाता हैं इसलिए इसे संश्लेषण विधि कहते हैं। इसे वर्ण, शब्द, वाक्य विधि भी कहा जाता हैं। वर्ण तीन प्रकार से प्रस्तुत किए जा सकते हैं। वर्णमाला विधि द्वारा निश्चित क्रम के अनुसार (अ, आ, इ, ई) एक सी आकृति वाले वर्ण एक साथ (समूह विधि द्वारा) जैसे-- अ, आ, ओ, औ, अं, अः चित्राक्षर विधि द्वारा जिस वस्तु का नाम उस वर्ण से आरंभ होता हैं उसके चित्र के साथ संबंध स्थापित करते हुए संश्लेषित करता हैं (अ से अमरूद, आ से आम चित्र सहित)। हमारी वर्तमान पाठ्य-पुस्तकें चित्राक्षर विधि द्वारा लिखी गई हैं। चित्राक्षर विधि सबसे अधिक रोचक है यह वर्ण का संबंध सार्थक वस्तु के साथ जोड़कर वर्ण को भी सार्थक बना देती हैं। लेखन शिक्षण प्रारंभ करने की दृष्टि से संश्लेषण विधि सर्वश्रेष्ठ विधि हैं। 

7. मनोविज्ञानिक प्रणाली 

लिखना सिखाने के लिए मनोवैज्ञानिक विधि का विशेष महत्व हैं। मनोवैज्ञानिक विधि में वर्णमाला के अक्षर तथा शब्द आदि सिखाने की अपेक्षा पूरा वाक्य बोलना तथा लिखना सिखाया जाता हैं। बालक जब पूरे वाक्य बोलने लगते एवं उनकी कर्मेन्द्रियाँ तथा ज्ञानेन्द्रियाँ मजबूत हो जाएँ, तो उन्हें पढ़ने व लिखने के लिए तैयार करना चाहिए।

संबंधित पोस्ट,

यह भी पढ़े; भाषा का विकास

1 टिप्पणी:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।