11/06/2021

भाषा की प्रकृति, मुख्य तत्व

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भाषा की प्रकृति (bhasha ki prakriti)

1. भाषा मानव की विशेषता हैं 

भाषा मानव की विशेषता हैं। जहाँ तक भावाभिव्यक्ति की बात है संसार के सभी प्राणी करते हैं और अपने-अपने तरीकों से करते हैं। सामान्यतः इन्हीं तरीकों को उनकी भाषा कहते हैं। पर वे अपनी इस भाषा में विचार-विनिमय नही कर पाते और विचार के अभाव में अपनी भाषा में विकास नहीं कर पाते। विचार प्रधान एवं विकासशील भाषा तो मानव की ही विशेषता हैं। 

2. भाषा भावाभिव्यक्ति एवं विचार-विनिमय हेतु किसी समाज द्वारा स्वीकृत ध्वनि संकेतों का समूह हैं 

भाषा की उत्पत्ति मानव के मनोभावों को अभिव्यक्त करने के प्रयत्न से हुई है और उसका विकास विचार-विनिमय के द्वारा निरन्तर होता रहता हैं। यह भावाभिव्यक्ति एवं विचार-विनिमय का साधन होती हैं। हम जानते हैं कि मनुष्य यह भावाभिव्यक्ति एवं विचार-विनिमय ध्वनि संकेतों के माध्यम से करते हैं। ये ध्वनि संकेत समाज द्वारा विकसित एवं स्वीकृत होते हैं। 

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3. भाषा और विचार में अटूट संबंध होता हैं 

यूँ भाव और विचारों की अभिव्यक्त करने के प्रयत्न में मनुष्य ने भिन्न-भिन्न ध्वनि संकेतों (भाषा) का विकास किया हैं परन्तु यह भी बात सत्य है कि जैसे-जैसे मनुष्य भाषा सीखता जाता हैं और उसकी भाषा में विकास होता जाता है वैसें-वैसें वह विचार करने और विचार-विनिमय करने में भी सक्षम होता जाता हैं। इस प्रकार भाषा एवं विचारों का विकास एक दूसरे पर निर्भर करता हैं। सच बात तो यह कि विचारों के अभाव में भाषा की उत्पत्ति एवं विकास नहीं हो सकता और भाषा के अभाव में विचारों की उत्पत्ति एवं विकास नहीं हो सकता। इन दोनों में अटूट संबंध होता हैं।

4. भाषा वाचिक प्रतीकों की एक व्यवस्था हैं 

मनुष्यों की सभी भाषाओं में वाचिक प्रतीकों की अपनी-अपनी व्यवस्था हैं। प्रत्येक भाषा की अपनी मूल ध्वनियाँ (अक्षर, वर्ण) हैं, अपने शब्द हैं और अपनी-अपनी वाक्य रचना हैं। भाषा संबंधी ये नियम निश्चित होते हुए भी लचीले होते हैं और भाषा के विकास के साथ-साथ इनमें भी परिवर्तन होता रहता हैं। 

5. भाषा लिपि संकेतों के द्वारा लिखित रूप धारण करती हैं 

यूँ प्रारंम में मौखिक भाषाओं का ही विकास हुआ था परन्तु धीरे-धीरे सभी समाजों ने अपनी-अपनी भाषाओं की मूल ध्वनियाँ निश्चित की, उन निश्चित मूल ध्वनियों के लिए भिन्न-भिन्त्र चिन्ह निश्चित किए और इस तरह अपनी-अपनी भाषाओं के लिए लिपियों का विकास किया। वर्तमान मे मानव समाज की प्रत्येक भाषा किसी न किसी लिपि में लिखी जा सकती हैं। कुछ लिपियाँ तो ऐसी हैं जिनमें संसार की किसी भी भाषा को लिखा जा सकता हैं। देवनागरी लिपि उन सबकी सिरमौर हैं। 

6. भाषा अर्जित संपत्ति हैं 

मनुष्य में भाषा सीखने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती हैं। वह जिस समाज में रहता हैं, उसी के सदस्यों का अनुकरण कर उस समाज की भाषा सीख जाता हैं। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाला बच्चा अपने सामाजिक वातावरण में हिन्दी भाषा सीखता है लेकिन यदि उसे जन्म के बाद मद्रास (चेन्नई) में तमिल भाषा-भाषियों के बीच भेज दिया जाए तो वह उनका अनुकरण कर तमिल भाषा ही सीखेगा और यदि किसी मनुष्य को किसी भी भाषा-भाषी का संपर्क प्राप्त न हो तो वह भाषा सीखने से वंचित रह जाएगा। 

7. भाषा परिवर्तनशील एवं विकासशील होती हैं 

यद्यपि प्रत्येक समाज अपनी भाषा में कम से कम परिवर्तन करना चाहता हैं परन्तु फिर भी देश काल एवं विकास के साथ-साथ उसकी भाषा में परिवर्तन होता रहता हैं। उदाहरण के लिए भारत की आदि भाषा वैदिक संस्कृत कालांतर से संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि रूपों को पार करती हुई आज की हिन्दी के रूप में विकसित हुई हैं। यदि हम हिन्दी को ही देखें तो आज की हिन्दी से पाँच सौ वर्ष पहले की हिन्दी से बहुत भिन्न हैं। पर किसी भी भाषा मे जो परिवर्तन होता है वह सदैव विकासोन्मुक होता हैं। जैसे-जैसे किसी समाज में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विकास होता हैं वैसे-वैसे उसकी भाषा के शब्दकोश में वृद्धि होती हैं, नए-नए शब्दों का निर्माण होता हैं और लेखन की नई-नई शैलियों का विकास होता हैं। 

8. भाषा का मूल रूप सदैव सुरक्षित रहता हैं 

किसी भी समाज में भाषा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी द्वारा ग्रहण की जाती हैं। यही कारण हैं कि किसी भाषा में कितना भी परिवर्तन हो, उसमें कितना भी विकास हो, लेकिन उसमें उसके मूल रूप के दर्शन अवश्य होते हैं। उदाहरण के लिए आज की हिन्दी अपनी मूल भाषा संस्कृत से एक दम भिन्न हैं परन्तु फिर भी उसमें संस्कृत के तत्सम एवं तद्भव शब्द इतने अधिक हैं कि उसे संस्कृत की वंशजा के रूप में सरलता से पहचाना जा सकता हैं। 

9. मनुष्य एक से अधिक भाषा सीख सकता हैं 

भाषा सामाजिक व्यवहार का साधन होती हैं। जब मनुष्य को भिन्न भाषा-भाषियों से व्यवहार करना होता हैं तो वह उनकी भी भाषा को सीख लेता है पर इस भाषा को सीखने के लिए उसे विशेष प्रयत्न करना होता हैं।

भाषा के मुख्य तत्व (bhasha ke mukhya tatva)

भाषा के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं-- 

1. वाक्य 

भाषा का प्रमुख कार्य विचार-विनिमय हैं तथा यह कार्य वाक्यों द्वारा संपन्न होता हैं। अतः वाक्य ही भाषा में सर्वाधिक स्वाभाविक तथा महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता हैं। 

2. पद 

वाक्य का निर्माण पदों से होता हैं, अतः वाक्य के बाद पद-रचना भाषा का अंग हैं। 

3. शब्द 

रूप अथवा पद का आधार शब्द हैं। अतः भाषा का एक तत्व शब्द भी हैं। 

4. ध्वनि 

शब्द का आधार ध्वनि हैं। यह भी भाषा का महत्वपूर्ण अंग हैं। 

5. अर्थ 

भाषा की आत्मा अर्थ हैं। यदि वाक्य, पद, शब्द तथा ध्वनि भाषा के शरीर हैं, तो 'अर्थ' भाषा की आत्मा हैं।

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