भाषा का महत्व
bhasha ka mahatva;वर्तमान समय में मानव जीवन में भाषा का इतना अधिक महत्व है कि भाषा को मानवीय विकास का पर्याय माना जाता हैं। मानव शिशु समाज के वातावरण के मध्य विकसित होता हैं। समाज में भाषा की सुनिश्चित परम्परा होती हैं। इसी भाषायी परिवेश में बालक का सम्यक् तथा सन्तुलित विकास होता हैं। मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विचारों तथा भावों की अभिव्यक्ति एवं ज्ञानार्जन के लिए भाषा पर ही निर्भर रहता है। कहा जा सकता है कि समस्त मानवीय गुणों का विकास भाषा के द्वारा ही होता हैं। भाषा का महत्व स्वयं सिद्ध हैं।
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काव्यादर्श के अनुसार," यह समस्त तीनों लोक अन्धकारमय हो जाते, यदि शब्द रूपी ज्योति से यह संसार प्रदीप्त न होता हैं।" यथा--
"इदमंघतमः कृत्सनं जातेत् भुवन् त्रयम्,
यदि शब्दह्रयं ज्योतिरात्संसार न दीप्यते।"
भाषा के महत्व को हम निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से सरलता से समझ सकते हैं--
1. भाषा भावाभिव्यक्ति एवं विचार-विनिमय का साधन हैं
मनोभावों की अभिव्यक्ति के प्रयत्न ने भाषा को जन्म दिया। बुद्धिप्रधान प्राणी होने के कारण मनुष्य ने धीरे-धीरे विचार प्रधान भाषा का विकास किया। आज मनुष्य भाषा के माध्यम से भावाभिव्यक्ति के साथ-साथ विचार भी करता है और विचार-विनिमय भी। इस दृष्टि से मानव जीवन में भाषा का बड़ा महत्व हैं।
2. अध्ययन-अध्यापन का मूलधार
भाषा अध्ययन एवं अध्यापन का सरलतम् साधन हैं। भाषा शिक्षा की मूलधार हैं। भाषा के माध्यम से शिक्षक अपने बालकों को ज्ञान की पूर्णता से परिचित करवाता है।
3. मानसिक विकास
मानसिक विकास के लिए विचार शक्ति की जरूरत होती है। विचारों का प्रवाह भाषा के द्वारा ही हो सकता हैं। विचार, भाषा को जन्म देते हैं और भाषा विचारों को जन्म देती हैं जिस व्यक्ति के पास जितनी सशक्त भाषा होगी उतनी ही उसकी विचार शक्ति सुदृढ़ होगी।
4. भाषा सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक अन्तःक्रिया का आधार हैं
मनुष्यों के बीच जो भी सामाजिक अन्तःक्रिया होती है वह सब भाषा के माध्यम से होती हैं, वे आपस में जो भी व्यवहार करते हैं, वह सब भी भाषा के माध्यम से करते हैं। भाषा के माध्यम से ही मानव जाति सामाजिक समूहों में संगठित हुई हैं, राष्ट्र के रूप में गुँथी हैं और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर आसीन हुई हैं। भाषा के अभाव में यह सब संभव नही था। इस दृष्टि से भी मानव जीवन में भाषा का बड़ा महत्व हैं।
5. भाषा मानव विकास का मूल आधार हैं
सृष्टि के सभी पशु-पक्षी एवं कीट-पतंग मनुष्य से प्राचीन हैं परन्तु प्रगति पथ पर केवल मनुष्य ही अग्रसर हुआ हैं। आखिर यह कौन-सी शक्ति हैं जिसके द्वारा मनुष्य जाति ने यह सब विकसित किया हैं? वह शक्ति भाषा की शक्ति है विचार की शक्ति हैं। यूँ तो संसार के अन्य प्राणियों के पास भी अपनी-अपनी भाषाएं हैं परन्तु विचारप्रधान भाषा मनुष्य की ही विशेषता हैं। मनुष्य की भाषा और उसके विचारों में अटूट संबंध होता हैं, विचार से भाषा प्रस्फुटित होती है और भाषा के माध्यम से विचार। भाषा के अभाव में मनुष्य विचार नही कर सकता और विचार के अभाव में वह अपने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति नहीं कर सकता। संस्कृताचार्य दंडी के शब्दों में-यदि शब्दरूपी ज्योति इस संसार में प्रकाशित न हुई होती तो तीनों लोक अज्ञानरूपी बने अन्धकार से परिपूर्ण रहे होते (इदम्न्धतमः कृत्स्नं जायेत् भुवनत्रयम्)। यदि शब्दाह्रयं ज्योतिरा संसार न दीप्यते।। - दण्डी, काव्यादर्श)।
6. भाषा मानव के भाव, विचार, अनुभव एवं आकांक्षाओं को सुरक्षित रखती हैं
भाषा के माध्यम से हम अपने भाव, विचार, अनुभव एवं आकांक्षाओं को सुरक्षित रखते हैं और उसी के माध्यम से हम उस सबको आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते हैं। आने वाली पीढ़ी उसमें भाव, विचार, अनुभव एवं आकांक्षाएं जोड़कर अपने से आगे की पीढ़ी को हस्तांतरित करती है। इस प्रकार विचारों में सदैव परिवर्तन एवं परिवर्द्धन होता रहता हैं। मानव जाति ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जो भी उपलब्धियाँ की हैं, वे सब भाषा के माध्यम से सुरक्षित हैं। वर्तमान का ज्ञान-विज्ञान भविष्य के ज्ञान-विज्ञान की नींव हैं। भाषा के अभाव में यह सब संभव नहीं।
7. भाषा मानव सभ्यता एवं संस्कृति की पहचान हैं
भाषा की कहानी मानव सभ्यता एवं संस्कृति की कहानी हैं। जैसे-जैसे किसी मानव समाज से अपनी भाषा में प्रगति की वैसे-वैसे उसकी सभ्यता एवं संस्कृति में विकास हुआ, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई, श्रेष्ठतर साहित्य का सृजन हुआ। तभी किसी जाति, समाज अथवा राष्ट्र की सभ्यता एवं संस्कृति का आंकलन उसके साहित्य से किया जाता है। आदिकाल में भारत जगत् गुरू था, इसका प्रमाण उस समय का साहित्य-वेद, उपनिषद और स्मृतियाँ ही हैं।
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