प्रश्न; पंडित जवाहरलाल नेहरू के सामाजिक विचारों का विवेचन कीजिए।
अथवा" जवाहरलाल नेहरू के सामाजिक विचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर--
जवाहरलाल नेहरू के सामाजिक विचार
pandit jawaharlal nehru ke samajik vichar;नेहरू भी भारत की अमूल्य निधि थे। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में अति महत्वपूर्ण भाग लिया था। स्वतंत्रता के बाद जब वे भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने यह अनुभव किया कि हमारा देश राजनीतिक तथा सामाजिक दृष्टि से काफी पिछड़ गया हैं। उन्होंने अपने इन विचारों को अपनी तीन पुस्तकों में संकलित किया। ये पुस्तकें हैं-- विश्व इतिहास की झलक' 'भारत की खोज' तथा आत्मकथा'। इन पुस्तकों का अध्ययन करने से पता चलता है कि नेहरू जी एक प्रगतिवादी व्यक्ति थे तथा वे संपूर्ण विश्व शांति, सहयोग, सद्भावना एवं समन्वय का वातावरण स्थापित करना चाहते थे। श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखते हैं," नेहरू जी ने देश को दो महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किये-- (अ) निर्भय अस्तित्व की पद्धित (ब) वैज्ञानिक बुद्धिजीवी ढंग से चिंतन की पद्धित।
वास्तव में नेहरू जी एक आदर्शवादी विचारक न होकर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आकर पूर्ण यथार्थवादी विचारक थे। विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के प्रभावों ने उन्हें धर्म निरपेक्ष बना दिया था। वे श्रद्धा के स्थान पर तर्क को ज्यादा महत्व देते थे। वे बुद्धिवादी थे तथा आध्यात्मिकता की बजाय भौतिकता को ज्यादा महत्व देते थे। उस पर गाँधी जी के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा था, लेकिन वे गाँधी जी की आध्यात्मवादी एवं धर्म युक्त राजनीति की भावना से प्रभावित नहीं हुए थे। रसल के 'अविश्वासवाद' के प्रभाव के कारण उन पर श्रीमती एनीबीसेंट आदि लोगों का जो प्रभाव पड़ा था, वह भी समाप्त हो गया था।
अब हम जवाहरलाल नेहरू के विभिन्न सामाजिक विचारों की समीक्षा करेंगे।
1. नेहरू जी तथा अहिंसा
अहिंसा का विचार नेहरू जी को गाँधी जी से विरासत के रूप मेः प्राप्त हुआ था, लेकिन वे गाँधी जी की तरह कट्टर अहिंसावादी नहीं थे। उन्होंने तो तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार ही अहिंसा के सिद्धांत को अपनाया था। नेहरू जी अहिंसात्मक राज्य की कल्पना के विरोधी थे। वे समझते थे कि हिंसा के बगैर राज्य का कार्य चल ही नहीं सकता और राज्य में शांति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने हेतु पुलिस तथा सेना का भी होना जरूरी हैं।
इस तरह स्पष्ट है कि नेरूह जी गाँधी जी की तरह अहिंसा को एक सिद्धांत के रूप में स्वीकार नहीं करते थे, जिसको हर परिस्थिति में लागू किया जाये। इतना होने पर भी उन्होंने अहिंसा को अपनाया। उन्होंनें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को अहिंसा के आधार पर सुलझाने का प्रयत्न किया।
2. उदार मानवतावाद
गाँधी जी के समान नेहरू जी का दृष्टिकोण भी मानवतावादी था। वे लिखते हैं," जब मैं चारों तरफ देखता हूँ, तो मुझे एक गौरवपूर्ण सभ्यता के गिरते हुए ध्वंसावशेष दिखाई पड़ते हैं मानो वे निरर्थकता का एक विशाल ढेर हों। फिर भी मैं मनुष्य में विश्वास खो देने का घोर पाप नहीं करूँगा। वरन् मैं तो आशा करता हूँ कि जब प्रलय गुलजार हो जायेगी तथा सेवा एवं बलिदान की भावना से वातावरण निर्मल हो जायेगा, तो इतिहास में एक नवीन अध्याय खुलेगा। नहीं, मनुष्य में विश्वास नहीं खो सकता। ईश्वर की सत्ता से हम इंकार कर सकते हैं, परन्तु हम मनुष्य की सत्ता से इंकार कर दें तथा इस प्रकार प्रत्येक वस्तु को निरर्थक बना दें, तो हमारे लिए आशा ही क्या रह जायेगी।'
नेहरू जी मनुष्य के अस्तित्व तथा उसकी सत्ता में पूर्ण विश्वास रखते थे। नेहरू जी विश्व के समस्त मनुष्यों के प्रति गहरी सहानुभूति रखते थे। वे एक श्रेष्ठ दी थे।
3. नेहरू जी और समाजवाद
नेहरू जी लोकतंत्र के पक्षपाती होने के साथ ही साथ समाजवाद के भी पक्के समर्थक थे। वे समाजवाद की स्थापना कर आदर्श लोकतंत्र की स्थापना करना चाहते थे। वर्तमान औद्योगिक युग में मुक्त व्यापार के कारण समाज धनी तथा निर्धन दो वर्गों में बंट गया है एवं इन वर्गों में घृणा, द्वेष और संघर्ष का वातावरण बना रहता हैं। नेहरू जी ने समाज की इस बुराई को दूर करने हेतु समाजवाद की स्थापना पर बल दिया।
नेहरू जी पूँजीवाद के भी विरोधी थे तथा उसे समाज विरोधी तत्व कहा करते थे। उन्होंने मार्क्स के समान पूँजीवाद के दोषों को गंभीरता के साथ देखा था। वे भारत में पूँजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने के पक्ष में नही थे। वे समाजवाद की स्थापना कर देश में विद्यमान असमानता, बेरोजगारी, गरीबी एवं दरिद्रता का अंय करना चाहते थे। नेहरू जी फासिस्टवाद के समर्थक नहीं थे। इस तरह नेहरू जी का समाजवाद गाँधी तथा मार्क्स के विचारों का निचोड़ था। वह आर्थिक ही नही था बल्कि मानवतावाद, आदर्शवाद तथा उदारवाद उसके प्रमुख गुण थे। वास्तव में नेहरू जी लोकतंत्रिक समाजवाद के समर्थक थे एवं उसे भारत के लिए उपयोगी समझते थे।
4. नेहरू जी तथा सामुदायिक विकास योजनाएं
सामुदायिक विकास योजनाओं का कार्यक्रम गाँधी जी ने आदर्श ग्राम राज्य में रखा था क्योंकि गाँधी जी कोरे आदर्शवादी न होकर एक रचनात्मक व्यक्ति भी थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद गाँधी जी की उक्त योजना का उद्घाटन नेहरू जी ने 2 अक्टूबर, 1952 ई. को स्वयं फावड़े से मिट्टी खोदकर किया।
भारत एक ग्राम ग्राम प्रधान देश हैं। यहाँ की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती हैं। अतः गाँधी जी का विचार था कि इन ग्रामों की उन्नति के बगैर देश की उन्नति संभव नहीं हो सकती। नेहरू जी ने गाँधी जी के उत्तराधिकारी के रूप में सामुदायिक विकास योजनाओं का कार्यक्रम लागू किया। इस योजना का लक्ष्य था," भूमि पर जनसंख्या का दबाव कम करना, ग्रामों का बहुमुखी विकास करना एवं ग्रामवासियों के रहन-सहन के स्तर को ऊँचा करना।"
नेहरू जी ने प्रथम पंचवर्षीय योजना में सामुदायिक योजना के कार्यक्रम को शामिल कर लिया। उन्होंने कहा कि अगर इस योजना को भली-भाँति सफलीभूत कर लिया गया तो देश का नक्शा ही बदल जायेगा। आज यह कार्यक्रम राष्ट्रव्यापी बन गया हैं।
यह एक क्रांतिकारी योजना हैं तथा व्यक्तियों के जीवन में परिवर्तन लाने वाली हैं। इस योजना का उद्देश्य ग्रामवासियों में आत्म-निर्भरता, इच्छा शक्ति प्रबलता एवं साहस का उत्थान करना हैं।
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