4/27/2022

राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार

By:   Last Updated: in: ,

प्रश्न; राजा राममोहन राय भारत में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। समझाइए! 

अथवा" राजा राममोहन राय के सामाजिक विचारों का विवेचन कीजिए।

उत्तर--

राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार 

raja ram mohan roy ke samajik vichar;राजा राममोहन राय महान समाज सुधारक थे। उन्होंने देश में व्याप्त विभिन्न सामाजिक कुरीतियों तथा अंधविश्वासों को दूर किया तथा उनका खोखलापन जनता के सामने उजागर किया। राममोहन राय ने एक सामाजिक क्रांति को प्रारंभ किया था। उन्होंने ही लोगों को बताया कि अगर धर्म तथा समाज सुधार नहीं होता हैं तो सिर्फ राजनीतिक विकास का कोई मूल्य नहीं रहेगा, चाहे हमें राजनीतिक स्वतंत्रता क्यों न मिल जाए। उन्होंने कहा कि अगर सामाजिक सुधार नहीं होगा, समाज का विकास नहीं होगा, और हम धार्मिक अंधविश्वासों में ही उलझे रहेंगे तो राजनीतिक स्वतंत्रता खोखली साबित होगी। इन्हीं सभी बातों तथा संभावनाओं के दूरगामी परिणामों पर विचार करके राममोहन राय ने सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया। 

राममोहन राय ने मूर्तिपूजी का विरोध किया और यह बताया कि यह पहले से प्रचलित परंपरा नहीं हैं बल्कि इसका प्रचलन बाद में हुआ। उनका मानना था कि इसने हिन्दू धर्म के असंख्य विभाजन तथा उप-विभाजन करके हिन्दू धर्म पर कुठाराघात किया हैं। मूर्तिपूजा के समर्थन में तर्क था कि श्रद्धा के साथ मूर्तिपूजा से ईश्वर प्राप्त होता हैं। उन्होंने कहा कि यह सब खोखले विश्वास हैं, क्योंकि अगर हम विष को श्रद्धा से भी पियेंगे तो भी वह घातक ही सिद्ध होगा, वह अमृत नहीं बन जाएगा। 

राममोहन राय ने परंपराओं का विरोध किया और इसे खतरनाक बताया। उनका कहना था कि कई पंरपराओं में अंधश्रद्धा के साथ गलत चीज को भी प्राचीन तथा पवित्र बता दिया जाता हैं, जबकि वास्तविकता यह नहीं रहती। उनका कहना था कि अगर आप परंपरा को ही सब कुछ मानते हैं, तब तो कर्मकांड तथा मूर्तिपूजा को छोड़कर शुद्धा ब्रह्रा की पूजा करना अत्यंत जरूरी हैं क्योंकि शुद्ध ब्रह्रा की पूजा ही आपके धर्म की सबसे प्राचीन परंपरा हैं। 

राममोहन राय ने सती प्रथा का विरोध किया और भारतीय समाज में चली आ रही इस सामाजिक कुप्रथा को काफी हद तक खत्म किया। इन्होंने साफ कहा कि सती प्रथा या सहमरण शास्त्रसम्मत प्रथा नहीं हैं, वरन् यह तो शास्त्र विकृत कुसंस्कार हैं। इस संबंध में उन्होंने बहुत प्रयास किये, उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप ही 1829 में लार्ड विलियम बैंटिक ने एक आज्ञा जारी कर इसे 1829 में निषिद्ध कर दिया।

उपर्युक्त सामाजिक सुधारों के अतिरिक्‍त भी उन्होंने अनेक सामाजिक सुधारों का सूत्रपात किया। उन्होंने नारी शिक्षा, नारी अधिकार तथा स्वतंत्रता पर अत्यधिक बल दिया। उन्होंने हिन्दू  समाज में नारी पर किये जाने वाले अत्याचार तथा शोषण की कड़ी निंदा की। राममोहन राय ने कहा कि कट्टर हिन्दुओं को शैव विवाहों को भी वही मान्यता देना चाहिए जो वैदिक विवाहों को प्राप्त हैं। यह सारे हिन्दू समाज की ही बदकिस्मती हैं कि उनकी यह बात नहीं मानी गई नहीं तो आज इस समाज में विधवा विवाह, अंतर्जातीय विवाह, आदि मान्य होते। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा के विरूद्ध भी आवाज उठाई। बाल-विधवाओं के पुनर्विवाह एवं प्रौढ़ विधवाओं को शिक्षा देने की सुविधा की उन्होंने मांग की। 

उन्होंने इस बात पर विश्वास नहीं किया कि स्त्रियों में पुरूषों की बजाय कम बुद्धि रहती हैं। वे स्वयं एक पुरूष थे फिर भी उन्होंने स्पष्ट रूप से दावा किया कि अगर स्त्री एवं पुरूष दोनों के चरित्रों का मूल्‍यांकन किया जाए तो आसानी से पता चल जाएगा कि स्त्रियों एवं पुरूषों में कौन ज्यादा बेईमान हैं। उनका इशारा पुरूषों की ओर था। 

राजा राममोहन राय का मत था कि भारतीय समाज में जाति प्रथा समाज का एक घोर अभिशाप बना हुआ है जिसके कारण समाज सुधार की गति कुण्ठित हो रही हैं;  सामाजिक रोड़े के अतिरिक्‍त यह प्रथा देश की राजनीतिक एकता तथा आर्थिक प्रगति में भी बाधा हैं। उनका कथन था कि," जाति पर आधारित भेदों ने इनमें अनेक खण्ड-उपखण्ड बना दिए है जिनके कारण (हिन्दू) लोग देशभक्ति के भावों से वंचित हो चुके हैं।" उन्होंने अनुभव किया कि भारत की राजनीतिक दुर्बलता का एक प्रमुख कारण असंख्य जातियों-उपजातियों की व्यवस्था हैं।

राममोहन राय ने 1815 में 'आत्मीय सभा' की स्थापना की थी जिसमें धार्मिक एवं समस्त सामाजिक कुप्रथाओं की आलोचना की जाती थी। 'आत्मीय सभा' एक तरह से सामाजिक सुधार की ही सभा थी।

राममोहन राय स्वयं एक मृदुभाषी व्यक्ति थे अतः कटु बोल उन्होंने एकदम पसंद नही किए। ईसाई धर्म प्रचारकों से उनके वाद-विवाद के समय आरोपों के उत्तर में उन्होंने कहा," हमें यह बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि हम यहां गंभीर धर्म विवेचना कर रहे हैं। इसमें एक-दूसरे के लिए अशिष्ट भाषा का व्यवहार करना एकदम अनुचित हैं।" 

इस प्रकार राममोहन राय के सामाजिक विचारों को देखकर उन्हें एक महान समाज सुधारक की पंक्ति में हम पाते हैं। वे ऐसे समाज सुधारक थे जिन्होंने एक-एक कुसंस्कार मिटाने में अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी। उन्होंने स्त्रियों को उनके अधिकार दिलाने तथा शिक्षा की उन्नति के लिए अथक प्रयास किये। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो लोगों में नैतिक उत्थान एवं धार्मिक विकास करके समाज की उन्नति की ओर अग्रसर करना चाहते थे।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।