12/28/2021

डाॅ. राममनोहर लोहिया के राजनीतिक एवं सामाजिक विचार

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प्रश्न; डाॅ. राममनोहर लोहिया के राजनीतिक चिंतन पर प्रकाश डालिए। 

अथवा" डाॅ. राममनोहर लोहिया के भारतीय समाजवाद संबंधी विचारों का वर्णन कीजिए। 

अथवा" डाॅ. राममनोहर लोहिया के राजनीतिक विचारों पर एक निबंध लिखिए। 

अथवा" डाॅ. लोहिया के राजनीतिक विचारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

अथवा" लोहिया नव-समाजवाद के प्रवर्तक थे। विवेचन कीजिए। 

अथवा" डाॅ. राममनोहर लोहिया के सामाजिक चिंतन पर प्रकाश डालिए। 

अथवा" डाॅ. लोहिया के राजनीतिक एवं सामाजिक विचारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर--

डाॅ. राममनोहर लोहिया के राजनीतिक व सामाजिक विचार 

dr. lohiya ke rajnitik or samajik vichar;लोहिया उच्च कोटि के विचारक और मौलिक चिंतक थे। वे एक सशक्त लेखक व उन्मुक्त वक्ता थे। निर्धन तथा शोषित वर्ग के हितों की रक्षा के लिए डाॅ. लोहिया प्रतिबद्ध थे। वे समाजवादी विचारों के उग्र प्रचारक थे। भारत में समाजवादी विचारधारा के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान हैं। उनके समाजवादी विचारों के अनेक रूप हैं जिन्हें निम्नलिखित शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता हैं-- 

इतिहास चक्र 

इतिहास चक्र डाॅ. लोहिया की एक पुस्तक हैं। इस पुस्तक में डाॅ. लोहिया ने कुछ महत्‍वपूर्ण राजनीतिक प्रश्नों पर गहराई से विचार किया हैं। 

इतिहास चक्र में डाॅ. लोहिया ने इतिहास की प्रक्रिया पर विचार किया हैं। उनका कहना हैं कि इतिहास कठोरतापूर्वक, बिना किसी आवेश एवं भावना के, चक्राकार ढंग से गतिमान दिखाई देता हैं। डाॅ. लोहिया ने हेगेल और मार्क्स द्वारा की गई इतिहास के विकास की व्याख्या को स्वीकार नहीं किया। इसका कारण वे बतलाते हैं कि हेगेल और मार्क्स इतिहास के विभिन्न कालों में विभिन्न जातियों का उत्थान-पतन क्यों हुआ, इसका समीचीन कारण नहीं बतलाते हैं। उन्होंने उत्थान-पतन के कुछ लक्षण अवश्य बताए हैं, पर डाॅ. लोहिया का विचार है लक्षण कारण नहीं होते। डाॅ. लोहिया का मत है कि इतिहास के क्या उद्देश्य हैं अथवा उसकी क्या प्रक्रिया रही हैं, इसका कोई निश्चित नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता। मानव इतिहास के संबंध में डाॅ. लोहिया का मत था कि ऐतिहासिक खोजों का संबंध मुख्य रूप से मुख्य तथ्यों को सामने लाने से हैं, पर अभी भी बहुत से तथ्य अज्ञात बने हुए हैं। ऐसी कई स्थितियाँ और घटनाएँ हैं, जिनके संबंध में प्रमाण और तथ्यों के बीच संबंध अभी तक नही सुलझा हैं। डाॅ. लोहिया कहते थे कि जब यह स्थिति गोचर पदार्थों एवं घटनाओं के संबंध में है तो सूक्ष्म प्रवृत्तियों एवं भावनाओं के संबंध में तो जो निरंतर मानव के अर्धचेतन मन को एवं उनके माध्यम से इतिहास को उद्वेलित एवं प्रभावित करते रहे हैं कहाना ही क्या हैं? डाॅ. लोहिया का कहना था कि इतिहास अपनी निश्चित चक्राकार गति से घूमता हैं। इस चक्राकार गति में पुनरावृत्ति भी होती रहती है। जो चीज एक बार हुई, वही चीज पुनः दूसरी परिस्थिति और काल में हो सकती हैं। डाॅ. लोहिया का इतिहास संबंधी यह विचार प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तु के इतिहास संबंधी काल चक्र सिद्धांत से मेल खाता हैं। इतिहास सीधी और सरल रेखा की भाँति आगे नहीं बढ़ता, अपितु उसकी गति चक्रवत् हैं, टेढ़ी-मेढ़ी हैं। वह चक्रवात गति से प्रभावित होता हैं। पश्चिम में भी कुछ विचारक हैं, जो इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं, जैसे-- स्पेगलर, सोरोकिन, टायनवी आदि।

मार्क्सवाद और समाजवाद 

डाॅ. लोहिया ने मार्क्सवाद के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत को तो स्वीकार किया, पर उन्होंने कहा कि यह सिद्धान्त भारत पर पूरी तरह लागू नहीं होता। उनका विचार था कि जातियों तथा वर्णों में निरन्तर संघर्ष चलता हैं। भारत मे तथाकथित उच्च वर्ग तथा जातियों के हरिजनों तथा पिछड़ी जातियों का हमेशा शोषण किया। भारत में अमीर-गरीब का नही, पूँजीपति और श्रमिक का नही बल्कि उच्च जातियों द्वारा निम्न समझी जाने वाली जातियों पर किए गए अत्याचार व शोषण के संघर्ष का इतिहास हैं। इस संघर्ष में अन्ततः पिछड़ी हुई जातियों की विजय होगी। डाॅ. लोहिया ने मार्क्सवादी और समाजवादी दर्शन की भारतीय और मौलिक व्याख्या की। 

गांधीवाद और समाजवाद 

डाॅ. लोहिया का विश्वास गांधीवादी समाजवाद में था। गांधी के विचारों की ही भाँति डाॅ. लोहिया आर्थिक तथा राजनीतिक शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के पक्ष मे थे। आर्थिक विकेन्द्रीकरण के अनुसार वे गाँव-गाँव में छोटे उद्यागों की स्थापना चाहते थे। पूँजीवाद के दोषों तथा आर्थिक असमानता को केवल कुटीर उद्योगों, सहकारी संस्थाओं तथा छोटी मशीनों द्वारा ही रोका जा सकता हैं। 'मार्क्स, गांधी और समाजवाद' में डाॅ. लोहिया ने लिखा हैं," मैं उस जमाने का चित्र आँखों के सामने देख रहा हूँ, जबकि देश के सभी गाँवों और शहरों में विद्युत चलित छोटी मशीनों का एक बहुत बड़ा जाल बुनकर लोगों को काम दिया गया है और देश की संपत्ति बढ़ रही हैं।" 

राजनीतिक स्तर पर लोहिया गांधी जी के उन विचारों से प्रभावित थे जिनके अनुसार गाँवों को स्वायत्तशासी बनाने की बात थी। ग्राम शासन में लोहिया का दृढ़ विश्वास था। राज्य को शक्तिशाली बनाने की बजाय स्वायत्त संस्थाओं को शक्तिशाली बनाना चाहिए ताकि व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन न हो। 

गांधीवाद और लोहिया के समाजवाद में एक और समानता थी। लोहिया गांधी जी की तरह शांतिपूर्ण क्रांति में विश्वास करते थे। लोहिया, गांधी जी के साध्य और साधन के औचित्य में विश्वास करते थे। समाज में परिवर्तन लाने के लिए हिंसात्मक उपायों का सहारा न लेकर शांतिपूर्ण उपायों में समाजवाद की स्थापना होनी चाहिए। 

परन्तु लोहिया गांधी जी के अंधभक्त भी नही थे; न ही वे गांधी के अनुयायी थे। श्री गणेश मंत्री के शब्दों में," लोहिया, गांधी नही थे। वे किसी की अनुकृति हो भी नहीं सकते थे," न ही लोहिया मार्क्सवादी थे। वे मार्क्स से प्रभावित थे। परन्तु, उन्हें मार्क्स में भी कई गलतियाँ दिखती थी।

लोहिया ने स्वयं कहा था," मैं मानता हूँ कि गांधीवादी या मार्क्सवादी होना हास्यास्पद हैं, और उतना ही हास्यास्पद हैं गांधी विरोधी या मार्क्स विरोधी होनी। गांधी और मार्क्स के पास सीखने के लिए बहुमूल्य धरोहर हैं, किन्तु सीखा तभी जा सकता हैं जब सोच का ढाँचा किसी एक युग या किसी एक व्यक्ति से नहीं बनता हों।"

नवीन समाजवाद 

डाॅ. लोहिया आजीवन समाजवादी रहे। वे समतायुक्त समाज की स्थापना के लिए संघर्ष करते रहें। काँग्रेस मे रहते हुए 1934 में कांग्रेस समाजवादी दल का गठन करने वालों में डाॅ. लोहिया प्रमुख थे। तब से जीवन के उत्तरार्द्ध तक भारत के समाजवादी आंदोलन के साथ वे पूरी तरह जुड़े रहे। उन्होंने भारत में समाजवाद को क्रियान्वित करने के लिए संघर्ष किया था। अपने संपूर्ण जीवन के उत्तरार्द्ध में उन्हें यह लगने लगा कि परम्परागत एवं संगठित समाजवाद एक मृत सिद्धांत एवं नष्ट होने वाली व्यवस्था हैं। अतः डाॅ. लोहिया ने नवीन समाजवाद का विचार दिया। 

नवीन समाजवाद के पाँच आधारभूत उद्देश्य हैं-- समानता, प्रजातंत्र, अहिंसा, विकेन्द्रीकरण और समाजवाद। नवीन समाजवाद के अंतर्गत आय तथा व्यय के क्षेत्र में अधिकतम समानता के स्तर को प्राप्त करना आवश्यक हैं। संसदात्मक शासन प्रणाली और विध्वंसात्मक तरीकों के विकल्पों के बीच एक ऐसी व्यवस्था लागू की जाए, जो संवैधानिक तथा सिविल नाफर्मानी के तरीकों के मिश्रित रूप से बनेगी। संपत्ति का समाजीकरण किया जाएगा। इसमें उस सम्पत्ति को छोड़ दिया जाएगा जिसमें मूल्य देकर खरीदा हुआ श्रम नहीं लगा हो। अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में असमान सदस्य की संस्था के स्थान पर सभी राष्ट्रों को समान दर्जा देते हुए वयस्क मताधिकार के आधार पर एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था का निर्माण किया जाएगा। 

डाॅ. लोहिया राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के साथ-ही-साथ विश्व संगठन की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे। उन्होंने विश्व की सभी समाजवादी पार्टियों से विश्व संगठन के बनाने की दिशा में सोचने का परामर्श दिया। डाॅ. लोहिया ने राजनीतिक स्वतंत्रता तथा निजी जीवन की स्वतंत्रता के क्षेत्र को सुरक्षित रखने का समर्थन किया। वे निजी जीवन में किसी भी प्रकार सरकार के बलात हस्तक्षेप के विरोधी थे। सप्त क्रांतियों के द्वारा वे नवीन समाजवाद की स्थापना करना चाहते थे।

सात क्रांतियों से संबंधी विचार 

डाॅ. लोहिया का 'सप्त क्रांतियों का सिद्धांत' बहुत प्रसिद्ध हैं तथा वे मानते थे कि संपूर्ण विश्व में निम्नलिखित सात क्रांतियाँ हो रही है और तेजी से होनी चाहिए। यह सात क्रांतियां भारत में भी एक साथ होनी चाहिए। यह सात क्रांयियां हैं-- 

1. नर-नारी की समानता के लिए क्रांति 

लोहिया मानते थे कि संसार के अधिकांश देशों में स्त्री और पुरुष के बीच बहुत असमानता हैं, स्त्रियां बहुत दलित तथा शोषित हैं। यह शोषण और अत्याचार बंद होना चाहिए और स्त्री-पुरुष के बीच समानता होनी चाहिए। इसके लिए विश्व में क्रांति हो रही हैं। 

2. चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आर्थिक और दिमागी असमानता के खिलाफ क्रांति 

लोहिया मानते थे कि विश्व में नस्ल आधार पर काले-गौर के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इस भेदभाव के विरूद्ध युद्ध चल रहा हैं। 

3. संस्कारगत, जन्मजात, जातिप्रथा के खिलाफ पिछड़ा को विशेष अवसर के लिए क्रांति 

भारत में जातिप्रथा तथा वर्ण-व्यवस्था के नाम पर जो सामाजिक एवं आर्थिक असमानता हैं, उसे समाप्त करने के लिए क्रांति की जरूरत हैं। 

4. विदेशी गुलामी के विरूद्ध तथा विश्व लोक राज्य की स्थापना के लिए क्रांति 

विश्व में उपयोगितावाद तथा साम्राज्‍यवाद के विरूद्ध क्रांति होनी चाहिए। विदेशी शासन से मुक्त होने तथा स्वतंत्रता प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक देश को हैं। इस संघर्ष में अन्य देशों को भी साथ देना चाहिए। एक लोकतांत्रिक विश्व सरकार की स्थापना के लिए क्रांति होनी चाहिए। 

5. निजी संपत्ति पर आधारित आर्थिक विषमताओं को समाप्‍त करना तथा सुनियोजित उपायों द्वारा उत्पादन वृद्धि के लिए क्रांति

विश्व में निजी संपत्ति तथा व्यक्तिगत पूँजी के कारण आर्थिक विषमताएँ विद्यमान हैं। इस व्यवस्था के विरूद्ध क्रांति होनी चाहिए। आर्थिक समानता स्थापित करने का सुदृढ़ प्रयास होना चाहिए। उत्पादन में वृद्धि हो ताकि अधिक से अधिक व्यक्तियों को रोजगार मिले। यह क्रांति प्रारंभ हो चुकी हैं। इसका विस्‍तार होना चाहिए। 

6. निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के विरूद्ध क्रांति 

डाॅ. लोहिया का विचार था कि लोगों के निजी जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इससे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता हैं। लोकतंत्रिक व्यवस्था में भी शासन के अनावश्यक हस्तक्षेप को बंद किया जाना चाहिए तभी सही अर्थों में प्रजातंत्र की स्थापना हो सकती हैं। व्यक्तिगत अन्याय के विरुद्ध भी क्रांति होनी चाहिए। 

7. अस्त्र-शस्त्रों के विरूद्ध तथा सत्याग्रह के अधिकार के लिए क्रांति 

विश्व में निःशस्‍त्रीकरण के लिए क्रांति की जानी चाहिए। राज्यों में भी पुलिस तथा सेना द्वारा अस्त्रों-शस्त्रों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। सत्याग्रह तथा सविनय अवज्ञा के अहिंसक उपायों का प्रयोग होना चाहिए। लोहिया की क्रांति का माध्यम अहिंसक तथा शांतिपूर्ण उपाय थे।

चौखम्भा राज्य 

राजनीतिक शक्ति के विकेन्द्रीकरण के लिए ही डाॅ. लोहिया ने चौखम्भा राज्य का विचार प्रस्तुत किया। डाॅ. लोहिया ने अपने समाजवादी राज्य को चार स्तरीय राज्य कहा। डाॅ. लोहिया भारत की संघात्मक शासन-व्यवस्था को अपूर्ण व्यवस्था मानते थे। उनका मानना था कि शक्ति का निवास केन्द्र राज्यों में ही नहीं अपितु अन्य छोटी-छोटी इकाइयों में होना चाहिए। राज्य का लक्ष्य आर्थिक और राजनीतिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। डाॅ. लोहिया ने राज्य के चार स्तर, जिन्हें वे चार स्तम्भ कहते थे, बतलाए-- ग्राम, मण्डल (जिला), राज्य (प्रान्त) और केंद्र। चारों स्तरों को व्यावसायिक प्रजातंत्र के सिद्धांत के आधार पर व्यवस्थित किया जाएगा। इस व्यवस्था में चारों स्तर एक दूसरे के सहयोगी होंगे। डाॅ. लोहिया ने चौखम्भा राज्य की निम्नलिखित विशेषताएं बतालाई हैं-- 

1. संपूर्ण सरकारी एवं योजना व्यय का एक चौथाई भाग ग्राम, मण्डल तथा नगर पंचायतों के माध्यम से व्यय किया जाएगा। 

2. पुलिस इन ग्राम, मण्डल तथा नगर पंचायतों के अधीन रहकर कार्य करेगी। सशस्त्र सेना केंद्र के अधीन रहेगी। सशस्त्र पुलिस राज्य के एवं पुलिस ग्रामों तथा मण्डल के अधीन रहेगी। 

3. जिलाधीश का पद समाप्त कर दिया जाएगा तथा उसके संपूर्ण अधिकार एवं कार्य मण्डल के अधिकारियों अथवा विभिन्न संस्थाओं में विभाजित कर दिए जाएंगे। 

4. देश के बड़े उद्योग मण्डल तथा ग्रामों के अधीन रहेंगे। मूल्यों पर नियंत्रण केंद्र का रहेगा। मण्डल तथा ग्राम कृषि, पूँजी तथा श्रम का अनुपात निर्धारित करेंगे। 

5. सहकारिता, कृषि, सुधार, सिंचाई, भू-राजस्व की वसूली राज्य द्वारा नियंत्रित होगी।

जाति प्रथा संबंधी विचार 

भारत में जाति प्रथा को एक अभिशाप कहा हैं भारत में जाति प्रथा आर्थिक गैर-बराबरी दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। 

डाॅ. लोहिया के अनुसार," जो लोग कहते हैं कि फूट के कारण देश गुलाम बनता हैं, वे इतिहास, राजनीति अथवा समाजशास्त्र कुछ भी नहीं जानते। हिन्दुस्तान गुलाम बनता रहा हैं, मुख्यतः जनता की उदासी के कारण तथा इस उदासी का सबसे बड़ा कारण जाति प्रथा रही हैं।" 

लोहिया का आह्वान था," जाति तोड़ो।" लोहिया ने कहा था कि भारत में जातिप्रथा को समाप्‍त करने के लिए 'धर्म-युद्ध' लड़ा जाना चाहिए। 

जाति प्रथा के समान ही लोहिया वर्ण व्यवस्था को भी बहुत बुरा मानते थे। डाॅ. लोहिया वर्ण व्यवस्था के विरूद्ध लड़ाई को 'सबसे बड़ा पुण्य' मानते थे।

मूल्यांकन 

ओंकार शरद के शब्दों में," लोहिया गांधी के सत्याग्रह तथा अहिंसा के अखंड समर्थक थे, पर गांधीवाद को वे अधूरा दर्शन मानते थे। वे समाजवादी थे, पर मार्क्‍स को एकांगी मानते थे। वे राष्ट्रवादी थे पर आधुनिक सभ्यता को बदलने का प्रयत्न करते थे। वे विद्रोही और क्रांतिकारी थे, पर शांति तथा अहिंसा के अनूठे उपासक थे।" 

डाॅ. लोहिया ने नवीन समाजवाद का प्रतिपादन किया। लोहिया समता में विश्वास करते थे, उसी प्रकार वे स्वतंत्रता में भी विश्वास रखते थे। लोहिया आर्थिक तथा राजनीतिक शक्तियों के विकेन्द्रीकरण में विश्वास रखते थे। 

डाॅ. लोहिया क्रांतिकारी थे। पर उनकी क्रांति की धारणा मार्क्‍स की क्रांति की धारणा से नही बल्कि गांधी की क्रांति धारणा से मिलती थी। 

डॉक्टर लोहिया संगठन के महत्व को भी समझते थे। एक संगठन के अभाव में उनके उच्च कोटि के मौलिक तथा परिवर्तनवादी विचार भी केवल 'यूटोपिया' बनकर रह गए हैं। 

लोहिया ने शायद ठीक ही कहा था," एक दिन लोग मेरी बात सुनेंगे। शायद मेरे मरने के बाद, लेकिन सुनेंगे जरूर।"

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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