11/07/2019

अहिंसा पर गांधी जी के विचार

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महात्मा गाँधी जी का व्यक्तित्व बहुमुखी था और उनके विचारों का केन्द्रीय बिन्दु " सत्य और अहिंसा रहा हैं। महात्मा गाँधी जी अहिंसा को एक व्यापक वस्तु मानते थे। उनका मानना था की अहिंसा व्यक्तिगत लाभ के बजाय समस्त विश्व को लाभ पहुंचाती हैं। आज हम इस लेख मे महात्मा गाँधी के अहिंसा सम्बन्धि विचारों को जानेंगे। गाँधी जी एक ऐसे सामाजिक विचारक थे जिन्होंने भारतीय आदर्शों और मूल्यों की आधुनिक परिप्रेक्ष्य मे विवेचना की और यह सिध्द कर दिया कि वे भारतीय आदर्श और मूल्यों समाज के सशक्त विवेचना करने मे समर्थ हैं।

अहिंसा पर गांधी जी के विचार 

गाँधी जी कहते है की "अहिंसा कायर का कवच नही हैं अपितु यह बहादुरी का उच्चतम गुण है।" गाँधी जी का मानना था कि जो व्यक्ति हिंसा की राह पर चलते है वे विनाश की ओर बढ़ते है और जो अहिंसा के पथ पर चलते है वे परम सत्य की प्राप्ति करते है तथा दूसरो को भी सत्य से परिचित कर बातें हैं। गाँधी जी कहते है की लालची और कायर व्यक्ति कभी भी अहिंसा का पुजारी नही हो सकता।
निभर्भीकता के बिना सच्ची अहिंसा प्राप्त करना असंभव है। अहिंसा शूरवीरों का आभूषण है एक शुरवीर ही अहिंसा का पुजारी हो सकता है। जो मनुष्य सशक्त होकर भी बल का प्रयोग न करे दण्ड देने की शक्ति होने पर भी क्षमा कर दे वही अहिंसा का उपासक है।
अहिंसा का अर्थ
अहिंसा का सामान्य अर्थ हैं "किसी की हिंसा न करना, किसी भी प्राणी को मानसिक या शारीरिक चोट न पहुंचाना, मार-पीट न करना आदि।"
गांधी जी के अहिंसा पर विचार
गाँधी जी का मानना था कि "अहिंसा प्रेम का पर्यायवाची है।" गाँधी जी का कहना था की सभी व्यक्तियों और जीवधारियों के साथ प्रेम का व्यवहार किया जाना चाहिए। महात्मा गांधी का विश्वास था कि प्रेम मे वह शक्ति है जिसकी मदद से असंभव को भी संभव किया जा सकता हैं।
गाँधी जी ने कहा है " अहिंसा का अर्थ प्रेम का समुद्र और बैर भाव का त्याग है। अहिंसा मे सफल होने के लिए लगन का आवश्यक है यदि लगन नही होगी तो व्यक्ति मे अहिंसा के लिए उत्कंठा और उतावलापन नही होगा। इसलिए हमेशा व्यक्ति को साहस, लगन और धैर्य के साथ अहिंसा के सिध्दान्तों का पालन करना चाहिए। अहिंसा मे दिनता, भीरूता बिल्कुल न हो और डरकर भागना भी नही होना चाहिए। अहिंसा मे दृढ़ता, वीरता, तथा निश्चलता होनी चाहिए।
हमारे जीवन मे कभी-कभो कुछ ऐसी परिस्थितियां भी बन जाती है जिनमें बाध्य होकर कुछ न कुछ हिंसा करनी ही पड़ती है। इसलिए गाँधी जी कहते है कि "जिस प्रकार अपने रोगी के शरीर पर रोगी की भलाई के लिए चाकू चलाना चिकित्सक ( डाॅक्टर ) के लिए हिंसा का कार्य नही बल्कि विशुद्ध रूप से अहिंसा का पालन है, उसी प्रकार किन्हीं अनिवार्य परिस्थिति मे एक व्यकि को उससे भी आगे बढ़ने की और पीड़ित के कष्ट निवारण हेतु उसे मार डालने तक की जरूरत हो सकती हैं। उदाहरण के दौर पर किसी ऐसा व्यक्ति को ले लिजिए जिसे को भयानक रोग है और वह हर पल तड़प रहा है और उसे ठीक करने का कोई इलाज नही है वहा पर यह बात लागू होती है।

अहिंसा के तत्व

गांधीजी ने अहिंसा के विभिन्न तत्वों को समझाया है जो इस प्रकार है--
1. सत्य
गाँधी की मानना है कि बिना अहिंसा के सत्य की खोज असंभव है, अहिंसा वस ज्योति है, जिसके द्वारा मुझे सत्य का साक्षात्कार होता है। अहिंसा यदि साधन है तो सत्य साध्य है। वे दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते है। अहिंसा के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक दशा मे सत्य का पालन किया जाये।
2. ह्रदय की पवित्रता
अहिंसा का पालन करने के लिये ह्रदय की पवित्रता का होना अत्यंत आवश्यक है। अर्थात् व्यक्ति मे आत्मानुशासन, नम्रता और न्याय की भावना का पाया जाना। इन विशेषताओं के आधार पर व्यक्ति बड़े से बड़े अन्याय का मुकाबला भी डटकर कर सकता है।
3. दृढ़ता
दृढ़ता का अभिप्राय है कि व्यक्ति अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु दृढ़ता से रहे चाहे कितना भी विपरीत परिस्थितियां आयें परन्तु वह अपना धैर्य न खोये।
4. निर्भीकता
"यंग इंडिया मे" गांधी ने लिखा है, अहिंसा भीरू और कायर लोगों का तरीका नही है। यह तो वीरों का तरीका है जो मृत्यु का सामना करने को तैयार है। वह जो हाथ मे तलवार लेकर मरता है निःसंदेश वीर है, परन्तु वह जो अपनी छोटी उँगली तक को उठायें बिना तथा बिना डरे मृत्यु का सामना करता है अधिक वीर है।
5. अपरिग्रह
अपरिग्रह का तात्पर्य है केवल उतनी ही वस्तुओं को अपने पास रखा जाये जो व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त हों। लालची व्यक्ति न तो दूसरों के साथ न्याय कर सकता है और न ही उसमे अन्याय का विरोध करने की सामर्थ्य रहती है।
6. प्रेम
गाँधीजी के अनुसार अहिंसा का ब्रह्रास्त्र घृणा नही, सर्वोच्च प्रेम है और घृणा सदैव मारती है, पर प्रेम कभी मारता नही है, जो कुछ भी प्रेम से प्राप्त होता है वह चिरस्थायी होता है, जो कुछ घृणा द्वारा प्राप्त होता है वह वास्तव मे एक बोझ ही बन जाता है क्योंकि घृणा, घृणा को बढ़ती है।
7. उपवास
शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक पवित्रता के लिये उपवास अत्यावश्यक है। केवल मात्र अन्न को ग्रहण न करना ही उपवास नही है बल्कि सभी प्रकार के दूषित विचारों से मन को मुक्त रखना भी उपवास है।

अहिंसा के स्वरूप 

1. नकारात्मक अहिंसा
किसी भी प्रकार से किसी भी जीवधारी को कष्ट न पहुंचाना नकारात्मक अहिंसा हैं।
2. सकारात्मक अहिंसा
सभी से प्रेम करना सकारात्मक अहिंसा हैं।
3. कायरो की अहिंसा
जब कोई व्यक्ति किसी के डर से अत्याचारों को बर्दाश्त करता है तो उसे कायरो की अहिंसा कहा जाता हैं।
4. दुर्बलों की अहिंसा
नीति के अनुसार कार्य करना दुर्बलों की अहिंसा हैं।
5. वीरों की अहिंसा
शक्तिशाली होते हुए भी अपनी शक्ति का प्रयोग न करना दण्ड के अधिकारी होते हुए भी क्षमा कर देना वीरों की अहिंसा के अन्तर्गत आता है।

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