राजनीतिक दलों की उत्पत्ति एवं विकास
राजनीतिक दलों का रूप चाहे कैसा ही रहा हो पर प्राचीनकाल में भी राजनीतिक दल थे। प्राचीन रोम मे भी दो परस्पर विरोधी पक्ष राजनीतिक दलों के सामने ही थे-- प्लैवियन्स तथा पैट्रीशियन्स। प्रजातंत्र की जननी इंग्लैंड को माना जाता हैं। अतः इतिहास में खोज करने पर पता चलता है कि आधुनिक राजनीतिक दलों की उत्पत्ति का भी स्थान इंग्लैंड ही हैं। साम्यवादी संभव हैं, इस बात से चिढ़ जाये कि इंग्लैंड को हर बात में इतना महत्व क्यों दिया जाता पर सत्य बात कहने में किसी के चिढ़ने की परवाह नहीं करनी चाहिए। आधुनिक राजनीतिक दलीय प्रणाली ब्रिटिश राजनीतिक दलीय प्रणाली की ॠणी है। 1455-85 के 'वार ऑफ रोजेज'य के समय मे हमें इंग्लैंड के इतिहास में राजनीतिक दलों का नाम मिलता हैं। आगे चलकर स्टुआर्ट काल में जब राजा और संसद के मध्य गृह-युद्ध दा तो राजपक्ष वाले दल का नाम कैविलियर्स (Cavaliers) तथा संसद के पक्षपाती राउण्डहैड्स (Roundheads) कहलाते थे। पर उस समय तक राजनीतिक दलों के तरिके बड़े असभ्य और उग्र थे। एक प्रकार से उन्हें दल का नाम न देकर गुट का नाम दिया जा सकता हैं। यही दल आगे चलकर टोरी एवं ह्रिग (Whig) कहलाने लगे। इस समय दलों की प्रकृति में परिवर्तन हुआ। 1688 में जेम्स द्वितीय गद्दी छोड़ कर भाग गया। परिवर्तन यह था कि अब राजा को हटाने या बदलने का उद्देश्य इन दलों का न रहा, बल्कि अब वे संसद पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे। इस प्रकार शस्त्रयुद्ध के स्थान पर वाक्युद्ध का श्रीगणेश हुआ। धीरे-धीरे टोरी और ह्रिग दलों का रूप राजनीतिक होने लगा। टोरी दल, अनुदार (Conservative) बन गया तथा ह्रिग दल उदार (Liberal) बन गया। श्रमिक दल का जन्म कुछ ही शताब्दी में ही हुआ।
संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ब्रिटिश उपनिवेशों का ही एक समूह था अतः वहाँ इन दलों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। संयुक्त राज्य के स्वतंत्र देश बनने पर संविधान निर्माता अपने देश को दलबन्दी से दूर रखना चाहते थे। पर संविधान निर्माता शायद यह अनुभव न कर सके कि फिलाडेल्फिया सम्मेलन के प्रतिनिधिगण दलबन्दी से प्रभावित हो चुके हैं। सम्मेलन संघवादी (Federalist) तथा संघ विरोधी (Anti-Federalist) दो गुटों में विभक्त हो चुका था। इस पृष्टभूमि के आधार पर प्रथम राष्ट्रपति जार्ज वाशिङ्गटन के काल मे ही राजनीतिक दलों का जन्म हो गया। हैमिल्टन यह चाहता था कि संघीय सरकार शक्तिशाली बने और राष्ट्रीय विकास के लिए आर्थिक रूप से सम्पन्न बने। उसके अनेक पक्षपाती थे अतः यह गुट 'संघवादी' था। जैफरसन चाहता था कि शक्ति का केन्द्र केन्द्रीय सरकार न बने, बल्कि उसका वितरण राज्य-सरकारों में हो। जैफरसन के भी समर्थक थे अतः उसे रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक रिपब्लिकन (Republican or Democratic Republic) कहना प्रारंभ किया गया।
मार्क्स की विचारधारा के प्रभाव से समाजवादी दलों का संगठन प्रारंभ हुआ पर ऐसे दलों का विकास यूरोप के देशो में हुआ। जर्मनी के निर्माण के समय विस्मार्क को समाजवादियों से टक्कर लेनी पड़ी थी। आगे चलकर रूस की क्रांति ने साम्यवादी दल को जन्म दिया। वहाँ केवल एक ही दल है। रूस की प्रेरणा से ही विभिन्न देशों में साम्यवादी दल की शाखाएँ खुलीं। चीन के लाल बनने पर साम्यवादियों के दो दल हो गये। एक चीन समर्थक और दूसरा रूस समर्थक। फ्रांस यद्यपि इंग्लैंड का पड़ौसी हैं पर वहाँ द्वि-दलीय पद्धित के स्थान पर बहुदलीय पद्धित का विकास हुआ। भारत यद्यपि 150-200 वर्षों तक अंग्रेजों के शासन में रहा पर यहाँ भी द्वि-दलीय पद्धित न पनप सकी, फ्रांस का प्रभाव यहाँ जाने कैसे आ गया और बहुदलीय पद्धित का प्रचलन हुआ।
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