वाचन शिक्षण की विधियाँ
शिक्षा-जगत में वाचन की शिक्षा के लिए कई विधियां प्रचलित हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं--
1. देखो तथा कहो विधि
इस विधि में एक पूरा शब्द श्यामपट पर लिख दिया जाता हैं तथा अक्षरी की पहचान के स्थान पर शब्द के स्वरूप की पहचान कराई जाती हैं। इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि अव्यवह्रत शब्दों के रूप तथा प्रयोग में धोखा हो जाता हैं। एक तो शब्दों की संख्या अपरिमित होती हैं-- कहाँ तक उसका परिचय कराया जाये। दूसरी बात यह है कि थोड़ी-सी सावधानी से 'मर्म' का 'धर्म' या 'धर्म' पढ़ा जा सकता हैं। इसलिए यह विधि त्याज्य हैं।
2. अक्षर-बोध विधि
इसमें वर्णमाला के अक्षरों का क्रम उच्चारण के स्थानानुसार सज्जित हैं। जब वर्ण पहचान लिया जाता हैं तो बालक को शब्द दे दिया जाता हैं, जैसे-- क, म, ल अक्षरों से मिलकर 'कमल' शब्द। इस विधि में इस तरह ऐसा अभ्यास कराया जाये कि छात्र की दृष्टि-परिधि सध जाये। अक्षर का स्वरूप उसे स्थिर न करना पड़े, बल्कि देखते ही शब्द का स्वरूप उसकी दृषि पकड़ ले।
3. ध्वनि-साम्य विधि
इसमें एकसमान उच्चरित होने वाले शब्द एक साथ सिखाये जाते हैं, जैसे-- श्रम, क्रम, भ्रम आदि। इसमें जान-बूझकर बालकों को ऐसे शब्द सीखने पड़ते हैं, जिसको वह अपने व्यवहार में नही पाते, जैसे-- चर्म, कर्म, गर्म, एवं मर्म आदि। इसमें कुछ ऐसे शब्द हैं, जिनका बालक तद्भव रूप में प्रयोग करते हैं, इसलिए यह विधि भी असंगत एवं त्याज्य हैं।
4. अनुध्वनि विधि
यह भी 'देखो' तथा 'कहो' विधि का रूपांतर मात्र ही हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि इसमें एकसमान उच्चरित होने वाले शब्द एक साथ ही सिखाए जाते हैं। इसमें शिक्षक एक शब्द कहता है तथा छात्र उस शब्द की ध्वनि का अनुकरण करता हैं। इसका प्रयोग ज्यादातर उन भाषाओं में होता हैं, जिनमें एक अक्षर की अनेक ध्वनियों हों या लिखा कुछ जाये, पढ़ा कुछ जाये; जैसे-- अंग्रेजी भाषा में Put, Cut, But में u अक्षर एक ध्वनि न देकर उ, क्+अ, व+अ की ध्वनि से उच्चरित होता हैं, लेकिन नागरी में यह प्रश्न नहीं उठता।
5. भाषा-शिक्षण की यंत्र-विधि
यह एक नवीन विधि हैं। इसमे ग्रामोफोन के एक तवे में एक पाठ भरा रहता हैं, जिसे सुनकर बालक उसी का अनुकरण करके पढ़ने का अभ्यास करते हैं। इसमें उच्चारण में एकरूपता तथा पढ़ने के क्रम में समता आ जाती हैं पर अभी तक नागरी शिक्षा के लिंग्वाफोन के तवे नहीं बन पाये हैं तथा बनने पर सभी स्थानों पर प्राप्त हो सकेंगे, इसमें भी संदेह हैं। साथ ही यह ज्यादा व्ययसाध्य तथा दुर्लभ हैं, इसलिए त्याज्य हैं।
6. समवेत पाव विधि
इस विधि से छोटे पद्य एवं गीत सिखाने में सुविधा होती हैं। अध्यापक पाठ के एक अंश को स्वयं भावपूर्ण रीति से पढ़ता हैं तथा कक्षा के सब विद्यार्थी एक साथ उसकी आवृत्ति करते हैं। ऐसा करने में स्वर सधता हैं तथा वाचन संस्कार दृढ़ हो जाता हैं। इसलिए यह विधि कुछ सीमा तक लाभकारी हैं।
7. सुंगति विधि
इस विधि का प्रयोग माॅण्टेसरी ने किया था। इसमें बहुत-सी वस्तुओं, चित्रों, खिलौनों आदि के आगे उनके नाम कार्डों पर लिखकर रखे जाते हैं। वे कार्ड फेंक दिये जाते हैं और बालकों से कहा जाता हैं कि जिस वस्तु का जो नाम हैं, वह नाम वाला कार्ड उसी वस्तु के आगे रख दिया जाये। खिलवाड़ मात्र होने के कारण इस विधि को शिक्षा में सम्मिलित नहीं किया जाता हैं।
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