2/12/2022

संविधान अर्थ, परिभाषा, वर्गीकरण/प्रकार

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samvidhan ka arth prakar;प्रत्येक संस्था की स्थापना का कुछ-न-कुछ ध्येय होता हैं और उस संस्था को चलाने के लिए कुछ-न-कुछ नियम होते हैं। यह सब बातें उसकी नियमावली के अध्ययन से हमें ज्ञात हो सकती हैं। राज्य भी एक संस्था है और उसकी भी एक नियमावली होती है। उसी नियमावली को हम संविधान का नाम देते है। 
प्रत्येक राज्य चाहे उसका रूप या प्रकार कुछ भी हो अपना एक जीवन-मार्ग रखता हैं, इसी जीवन-मार्ग को संविधान कहा जाता हैं। जिस राज्य का कोई संविधान नही होता, उसका न कोई ध्येय होता है और शासक के बीच संबंधों में न कोई उल्लेख होता हैं। ऐसी अवस्था में राज्य में न शान्ति रह सकी है और न कोई व्यवस्था अर्थात् वहाँ अराजकता छायी रहती हैं। जन-जीवन अस्त-व्यस्त रहता है अर्थात् वहाँ जंगल का कानून ही चलता हैं। 
श्लुट्ज कहते हैं कि," राज्य कहलाने का अधिकार रखने वाला हर समाज का संविधान अवश्य होना चाहिए....संविधानहीन राज्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती।"

संविधान का अर्थ (samvidhan kise kahte hai)

samvidhan meaning in hindi;संविधान उन नियमों के समूह या संग्रह को कहा जाता है, जिनके अनुसार किसी देश की सरकार का संगठन होता है। ये देश का सर्वोच्च कानून होता है। सरल शब्दों मे संविधान किसी राज्य की शासन प्रणाली को विवेचित करने वाला कानून होता है। यह राज्य का सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख होता है। राज्य के लिए संविधान का वही अर्थ एवं महत्व है जो मनुष्य के लिए शरीर का है। अतः संविधान राज्य का शरीर है। राज्य के संदर्भ मे शरीर का अर्थ है उस राज्य की पद्धति। यूनानी दार्शनिक अरस्तु के शब्दों मे, " संविधान उस पद्धति का प्रतीक होता है जो किसी राज्य द्वारा अपने लिए अपनाई जाती है।
संविधान जीवन का वह मार्ग हैं, जिसे राज्य ने अपने लिए चुना है। राज्य का रूप चाहे किसी भी प्रकार का हो, आवश्यक रूप से उसका अपना एक जीवन-मार्ग अर्थात् संविधान होता है। यदि राज्य में कोई भी नियम न हो, मर्यादा का सर्वथा अभाव हो तो ऐसी परिस्थिति में आवश्यक रूप से अराजकता की दशा उत्पन्न हो जायेगी। राज्य के संविधान की अनिवार्यता बताते हुए जेलिनेक ने लिखा हैं," संविधान रहित राज्य की कल्पना नही की जा सकती। संविधान के अभाव में राज्य, राज्य न होकर एक प्रकार की अराजकता होगी। इसी प्रकार शुल्टज लिखते है कि," राज्य कहलाने का अधिकार रखने वाले हर समाज का संविधान अवश्य होना चाहिए.....संविधानहीन राज्य की कल्पना ही नही की जा सकती।" 

संविधान की परिभाषा (samvidhan ki paribhasha)

डायसी के अनुसार," संविधान उन कानूनों को कहते है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य की सर्वोच्चता की शक्ति के वितरण और प्रयोग को निश्चित करते है। "
वुल्से के शब्दों मे, " संविधान उन सिद्धांतों का संग्रह है, जिसके अनुसार सरकार की शक्तियों और शासितों के अधिकारों तथा दोनो के बीच संबंधों का समन्वय किया जाता है।"
डाॅ. फाइनर के अनुसार," राज्य मानवीय वर्गबंधन है जिसमे एक प्रकार का शक्ति संबंध इसके व्यक्तियों और सम्बद्ध संघटकों के बीच शासन करता है। यह शक्ति संबंध राजनीतिक संस्थाओं मे मूर्तिमान होता है। मूलभूत राजनीतिक संस्थाओं का प्रकार ही संविधान है।
गिलक्राइस्ट के अनुसार, " संविधान उन समस्त लिखित और अलिखित विधियों और नियमों का संग्रह है जिनके आधार पर किसी देश की शासन व्यवस्था संगठित की जाती है, शासन के विभिन्न अंगों के बीच शक्तियों का विभाजन किया जाता है और उन सिद्धांतों का निर्धारण किया जाता है जिन पर उन शक्तियों का प्रयोग किया जाएगा।"
सी. एफ. स्टांग के अनुसार, " संविधान उन सिद्धांतों के संग्रह को कहा जा सकता है जिसके अनुसार शासन की शक्तियाँ, शासितों के अधिकार तथा दोनो के मध्य सम्बन्ध समायोजित होते है।"
लास्की के अनुसार," नियमों का वह भाग संविधान कहलाता हैं, जिसके द्वारा यह निर्धारित होता है कि ऐसे नियम किस प्रकार बनाए जाएं, किस प्रकार बदले जाएं और कौन उन्हें बनायें।" 
के. सी. ह्रीयर के अनुसार," संविधान नियमों का वह समूह है जो उन उद्देश्यों की प्राप्ति करता हैं, जिनके लिए शासन-शक्ति प्रवर्तित की जाती है ओर जो शासन के उन विविध अंगों की सृष्टि करता हैं, जिसके माध्यम से सरकार अपनी शक्ति का प्रयोग करती हैं।
बूवियर ने अपनी कानूनी शब्दकोष मे संविधान की परिभाषा इस प्रकार की है " किसी राज्य का वह मौलिक कानून जो उन सिद्धांतों का निर्देश करता है जिन पर सरकार की नींव डाली जाती है, जो संप्रभुता शक्ति के व्यवहार और उपयोग का नियमन करता है और जो निर्देश देता है कि ये शक्तियाँ किन-किन संस्थाओं और व्यक्तियों को सौंपी जा सकती है और किस प्रकार उनका उपयोग किया जायेगा।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि एक संविधान में निम्नलिखित बातों का उल्लेख होना आवश्यक होता हैं-- 
1. राज्य के शासन का स्वरूप और उसका गठन। 
2. शासन के प्रमुख अंगों-- कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका का संगठन, शक्तियाँ एवं कार्यों का उल्लेख। 
3. शासन के विभिन्न अंगों के पारस्परिक संबंध। 
4. नागरिकों के अधिकार एवं कर्त्तव्य। 
5. शासकों एवं शासितों के बीच आपसी संबंध। 
6. संविधान के संशोधन के लिए प्रावधान। 

संविधानों का वर्गीकरण या प्रकार (samvidhan ka vargikaran)

राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों ने संविधान को अलग-अलग आधारों पर वर्गीकृत किया है। सामान्यतः तीन आधारों पर संविधानों का वर्गीकरण किया गया है--

(अ) संविधान की उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण

इसके अंतर्गत विकसित और निर्मित संविधान आते है--
1. विकसित संविधान
विकसित संविधान वे संविधान होते है जिनका निमार्ण किसी निश्चित संविधान सभा द्वारा नही किया जाता, वे लंबे राजनीतिक विकास का परिणाम होते है। इनमे प्रथाओं एवं परम्पराओं, राति-रिवाजों तथा न्यायलयों के निर्णयों एवं राजनीतिक चेतना की मुख्य भूमिका होती है। ब्रिटेन का संविधान विकसित संविधान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
2. निर्मित संविधान
निर्मित संविधान वे संविधान है जिनको निश्चित समय पर एक निश्चित संविधान सभा द्वारा निर्मित या लेखबद्ध किया जाता है। निर्मित संविधान का पहला उदाहरण अमेरिका का संविधान है जिसका निर्माण तत्कालीन 13 राज्यों द्वारा फिलाडेल्फिया सम्मेलन द्वारा किया गया है।

(ब) प्रथाओं और कानून के अनुपात के आधार पर वर्गीकरण

इसके अन्तर्गत लिखित संविधान और अलिखित संविधान आते है--
1. लिखित संविधान
लिखित संविधान वह संविधान होता है जिसके अधिकांश अंश एक या अनेक लेख-पत्रों मे लिखे जाते है। ऐसे संविधान का निर्माण संविधान सभा द्वारा अथवा किसी व्यक्ति विशेष द्वारा संपूर्ण विचार-विमर्श द्वारा किया जाता है।
2. अलिखित संविधान
अलिखित संविधान उस संविधान को कहते है जिसका अधिकांश भाग अलिखित होता है। इस संविधान का निर्माण किसी व्यक्ति अथवा संविधान निर्मात्री सभा द्वारा नही किया जाता। यह संविधान निरंतर विकास का परिणाम होता है। इसके विकास मे परंपरागत प्रथाओं, परंपराओं तथा न्यायालयों द्वारा दिये निर्णयों का योगदान महत्वपूर्ण होता है। इस संविधान मे शासन के विभिन्न अंगों के पारस्परिक संबंधों का निर्धारण परंपराओं द्वारा होता है।

(स) संविधान की परिवर्तनशीलता के आधार पर वर्गीकरण

इस प्रकार के संविधानों मे लचीला या सुपरिवर्तनीय संविधान और कठोर या दुष्परिवर्तनीय संविधान आते है--
1. लचीला संविधान
लचीले संविधान से तात्पर्य ऐसे संविधान से होता है, जिसमे संशोधन की प्रक्रिया अत्यंत सरल हो अर्थात् जिस संविधान मे सरलतापूर्वक परिवर्तन किये जा सकते है, उसे लचीला संविधान कहते है। इसे परिवर्तनशील या नमनीय संविधान भी कहा जाता है। ब्रिटेन का संविधान लचीला संविधान है। वहां जिस प्रकार सारधारण कानून बनाये जाते है उसी प्रक्रिया से संविधान मे संशोधन भी काया जा सकता है।
2. कठोर संविधान
लचीले संविधान के विपरीत कठोर संविधान मे परिवर्तन करना कठिन होता है। कठोर संविधान मे संशोधन करने की प्रक्रिया जटिल होती है, अतः उसमे आसानी से परिवर्तन नही किया जा सकता। लिखित संविधान ही कठोर हो सकता है। लिखित संविधान के द्वारा संविधान मे संशोधन की प्रक्रिया स्पष्ट कर दी जाती है। अमेरिकी संविधान कठोर संविधान का उदाहरण है।

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