मुख्यमंत्री
राज्य विधानसभा मे बहुमत दल के नेता को राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री नियुक्ति किया जाता है। मंत्रिपरिषद् का गठन मुख्यमंत्री की सलाह से राज्यपाल द्वारा किया जाता है। मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है। इसके बाद ही वह वैधानिक रूप से मुख्यमंत्री पद को ग्रहण करता है। राज्य व्यवस्थापिका के किसी सदन का सदस्य नही होना पर भी किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद हेतु आमंत्रित किया जा सकता है, बशर्ते कि वह विधायकों के बहुमत द्वारा अपना नेता घोषित किया गया हो। उसे छह माह के अन्दर राज्य विधानसभा के किसी सदन का सदस्य होना होगा।
1. मंत्रिपरिषद् का निर्माण
मुख्यमंत्री का सर्वप्रथम कार्य अपने मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना है। इस मामले मे राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह के अनुसार अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मुख्यमंत्री मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा करता है। वह मंत्रिमंडल की अध्यक्षता करता है और राज्य के प्रशासन के संबंध मे नीतिगत निर्णय लेता है, मंत्रियों को वांछित नेतृत्व और निर्देश देता है तथा मंत्रिमंडल के सदस्यों मे समन्वय स्थापित करता है। मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल के सदस्यों के कामकाज की समीक्षा कर मंत्रिमंडल को एक संगठित टीम के रूप मे कार्य करवाने मे अहम् भूमिका निभाता है।
2. वैधानिक कड़ी
अनुच्छेद 167 के अनुसार राज्यपाल को राज्य शासन या व्यवस्थापन सम्बंधी मंत्रिमंडल के निर्णयों से अवगत कराता है। यदि राज्यपाल राज्य-प्रशासन अथवा व्यवस्थापन सम्बंधी कोई जानकारी चाहे तो उसे प्रदान करता है। इस प्रकार वह राज्पाल और मंत्रिपरिषद् के बीच एक वैधानिक कड़ी के रूप मे कार्य करता है।
3. अध्यक्ष
राज्य प्रशासन का अध्यक्ष होने के नाते वह निरीक्षण, नियन्त्रण, नियोजन , समन्वय और नीति निर्धारण करता हैं। मुख्यमंत्री की राज्य प्रशासन के संचालन मे अहम् भूमिका होती है। उसके द्वारा ही राज्य प्रशासन के लिए वांछित नीतियों और दिशा-निर्देश दिए जाते है।
4. नीति तथा नेतृत्व
राज्य मे की जाने वाली महत्वपूर्ण नियुक्तियों मे मुख्यमंत्री की निर्णायक भूमिका रहती है। मुख्यमंत्री को राज्य की नीतियों का प्रवक्ता माना जाता है। वह विधानसभा मे और बाहर राज्य के निर्णयों की घोषणा करता है। मुख्यमंत्री को राज्य विधान मण्डल का भी नेता माना जाता है। सदन की गरिमा और प्रतिष्ठा को कायम रखने का दायित्व उसी का है। मुख्यमंत्री ही राज्य विधानमंडल के सदस्यों के विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों की रक्षा करने के दायित्व का निर्वाह करता है। मुख्यमंत्री पर राज्य मे शांति और व्यवस्था को बनाए रखने तथा प्रशासन के प्रति जनता के विश्वास और आस्था को बनाए रखने का उत्तरदायित्व होता है। वह कार्यपालिका का ही नही बल्कि व्यवस्थापिका का भी नेतृत्व करता है।
5. सामान्य देख-रेख
मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि वह मंत्रिपरिषद् को एक सुगठित टीम का रूप दे। अतएव उसे सभी विभागों की सामान्य देख-रेख करने का अधिकार प्राप्त है।
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राज्य विधानसभा मे बहुमत दल के नेता को राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री नियुक्ति किया जाता है। मंत्रिपरिषद् का गठन मुख्यमंत्री की सलाह से राज्यपाल द्वारा किया जाता है। मुख्यमंत्री को राज्यपाल द्वारा पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है। इसके बाद ही वह वैधानिक रूप से मुख्यमंत्री पद को ग्रहण करता है। राज्य व्यवस्थापिका के किसी सदन का सदस्य नही होना पर भी किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद हेतु आमंत्रित किया जा सकता है, बशर्ते कि वह विधायकों के बहुमत द्वारा अपना नेता घोषित किया गया हो। उसे छह माह के अन्दर राज्य विधानसभा के किसी सदन का सदस्य होना होगा।
मुख्यमंत्री की शक्तियाँ व कार्य (mukhyamantri ki shaktiya)
मुख्यमंत्री किसी भी राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं प्रभावशील व्यक्ति होता है। राज्य के शासन मे मुख्यमंत्री की वही स्थिति होती है जैसे कि संघ मे प्रधानमंत्री की। सैद्धांतिक दृष्टि से उसकी नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है परन्तु व्यवहार मे विधानसभा के बहुमत दल के नेता को ही मुख्यमंत्री नियुक्ति करने लिए राज्यपाल बाध्य होता है। मुख्यमंत्री के कार्य व शक्तियाँ निम्म प्रकार से हैं--1. मंत्रिपरिषद् का निर्माण
मुख्यमंत्री का सर्वप्रथम कार्य अपने मंत्रिपरिषद् का निर्माण करना है। इस मामले मे राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह के अनुसार अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मुख्यमंत्री मंत्रियों के बीच विभागों का बंटवारा करता है। वह मंत्रिमंडल की अध्यक्षता करता है और राज्य के प्रशासन के संबंध मे नीतिगत निर्णय लेता है, मंत्रियों को वांछित नेतृत्व और निर्देश देता है तथा मंत्रिमंडल के सदस्यों मे समन्वय स्थापित करता है। मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल के सदस्यों के कामकाज की समीक्षा कर मंत्रिमंडल को एक संगठित टीम के रूप मे कार्य करवाने मे अहम् भूमिका निभाता है।
2. वैधानिक कड़ी
अनुच्छेद 167 के अनुसार राज्यपाल को राज्य शासन या व्यवस्थापन सम्बंधी मंत्रिमंडल के निर्णयों से अवगत कराता है। यदि राज्यपाल राज्य-प्रशासन अथवा व्यवस्थापन सम्बंधी कोई जानकारी चाहे तो उसे प्रदान करता है। इस प्रकार वह राज्पाल और मंत्रिपरिषद् के बीच एक वैधानिक कड़ी के रूप मे कार्य करता है।
3. अध्यक्ष
राज्य प्रशासन का अध्यक्ष होने के नाते वह निरीक्षण, नियन्त्रण, नियोजन , समन्वय और नीति निर्धारण करता हैं। मुख्यमंत्री की राज्य प्रशासन के संचालन मे अहम् भूमिका होती है। उसके द्वारा ही राज्य प्रशासन के लिए वांछित नीतियों और दिशा-निर्देश दिए जाते है।
4. नीति तथा नेतृत्व
राज्य मे की जाने वाली महत्वपूर्ण नियुक्तियों मे मुख्यमंत्री की निर्णायक भूमिका रहती है। मुख्यमंत्री को राज्य की नीतियों का प्रवक्ता माना जाता है। वह विधानसभा मे और बाहर राज्य के निर्णयों की घोषणा करता है। मुख्यमंत्री को राज्य विधान मण्डल का भी नेता माना जाता है। सदन की गरिमा और प्रतिष्ठा को कायम रखने का दायित्व उसी का है। मुख्यमंत्री ही राज्य विधानमंडल के सदस्यों के विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों की रक्षा करने के दायित्व का निर्वाह करता है। मुख्यमंत्री पर राज्य मे शांति और व्यवस्था को बनाए रखने तथा प्रशासन के प्रति जनता के विश्वास और आस्था को बनाए रखने का उत्तरदायित्व होता है। वह कार्यपालिका का ही नही बल्कि व्यवस्थापिका का भी नेतृत्व करता है।
5. सामान्य देख-रेख
मुख्यमंत्री का कर्तव्य है कि वह मंत्रिपरिषद् को एक सुगठित टीम का रूप दे। अतएव उसे सभी विभागों की सामान्य देख-रेख करने का अधिकार प्राप्त है।
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