सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
लोकतंत्र मे वास्तविक शक्ति जनता मे निहित होती है। भारत की संप्रभुता भारत के लोगों मे निहित है तथा वियधायिका और कार्यपालिका का मुख्य कार्य जनकल्याणका ही ही है। निश्चित ही, जनता को उसके प्रतिनिधियों तथा प्रशासकों द्वारा किये गये प्रत्येक कार्य को जानने का अधिकार होना चाहिए।इस लेख मे हम सूचना का अधिकार क्या है? सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू किये जाने के कारण, सूचना के अधिकार के उद्देश्य, सूचना आयोग के कार्यों को जानेंगे।
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था मे सूचना के अधिकार का व्यापक महत्व है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था मे सही सूचना व जानकारी के अभाव मे जनता न तो अपनी पसंद की सरकार चुन सकती है और न ही सरकार तक अपनी बात रक सकती है। विश्व के अनेक विकसित देशों मे सूचना के अधिकार को मान्यता दी गई है। लोकतांत्रिक देशों मे स्वीडन पहला देश था जिसने अपने देश के लोगों को 1766 मे संवैधानिक रूप से सूचना के अधिकार के अंतर्गत शामिल किया। इस अधिकार पर मात्र व्यक्ति की गोपनीयता के आधार पर प्रतिबंध लगाया गया है। जर्मनी के संविधान मे यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि प्रत्येक नागरिक को उन सभी सूचनाओं और उनके स्त्रोतों की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है जिनका संबंध उनके निजी हित अथवा किसी सार्वजनिक हित से है। अमेरिका मे 1964 मे एक अधिनियम पारित कर सूचना के अधिकार को मान्यता दी गई। इस अधिनियम के अनुसार, प्रत्येक नागरिक अपनी इच्छानुसार कीसी भी सरकारी कार्यालय से एक निश्चित रकम देकर किसी भी सरकारी दस्तावेज की प्रतिलिपि प्राप्त कर सकता है।
इस लेख मे हम सूचना का अधिकार क्या है? भारत मे सूचना का अधिकार, सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 बनाए जानें के कारण, सूचना के अधिकार के उद्देश्य।
आज विश्व के अधिकांश देशों जैसें-- डेनमार्क, नार्वे, कनाडा, नीदरलैण्ड, आस्ट्रेलिया आदि मे सूचना के अधिकार की व्यवस्था लागू हैं।
सूचना का अधिकार क्या है? (suchna ka adhikar kiya hai)
सामान्यतः सूचना के अधिकार का अर्थ जानने के अधिकार से लगाया जाता है। सूचना के अधिकारों को संभवतः सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा परिभाषित किया गया था। 1984 मे जारी मानवाधिकार की विश्व घोषणा मे विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत एक सौ से भी अधिक मानवाधिकारों में सूचना के अधिकार को भी शामिल किया गया। इस अधिकार मे भौगोलिक सीमाओं से परे मौखिक, लिखित, मुद्रित अथवा किसी भी अन्य माध्यम से सभी तरह की सूचनाओं और विचारों को चाहने, प्राप्त करने या प्रदान करने का अधिकार शामिल है। इसका स्पष्ट आशय यह है कि सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19 मे वर्णित वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक भाग है जो सभी व्यक्तियों को प्रदान किया जाना चाहिए। सूचना के अधिकार के तहत प्रत्येक नागरिक किसी भी सरकारी कार्यालय या अधिकारों से वांछित सूचनाएं प्राप्त करने, सरकारी फाइलों को देखने और उनकी प्रतिलिपि या अधिकारों से वांछित सूचनाएं प्राप्त करने, सरकारी फाइलों को देखने और उनकी प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार होगा। सरकारी प्राधिकरण एक तय सीमा के अंदर आवश्यक सूचना उपलब्ध कराने को बाध्य होगा।भारत मे सूचना का अधिकार अधिनियम 2005
भारत मे सूचना का अधिकार विभिन्न जन-आन्दोलनों का परिणाम है। इस आन्दोलन की शुरुआत 1990 मे हुई जब मजदूर किसान शक्ति-संगठन (MKSS) ने राजस्थान सरकार के सामने यह मांग रखी कि अकाल राहत कार्य और मजदूरों को दी जाने वाली पगार के रिकार्ड का सार्वजनिक खुलासा किया जाये। आन्दोलन के दबाव मे सरकार को राजस्थान पंचायती राज अधिनियम मे संशोधन करना पड़ा। नए कानून के तहत जनता को पंचायत के दस्तावेजों की प्रतिलिपि प्राप्त करने की अनुमति मिल गई जबकि पंचायतों के लिए बजट, लेखा, खर्च, नीतियों और लाभार्थियों के बारे मे सार्वजनिक घोषणा करना अनिवार्य कर दिया गया। 1996 मे सूचना के अधिकार को राष्ट्रीय अभियान का रूप देने का प्रयास किया गया। 1996 मे लोकसभा चुनावों मे लगभग सभी प्रमुख पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र मे सूचना के अधिकार संबंधी कानून बनाने की बात कही। तत्पश्चात उपभोकता शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र, प्रेस काउंसिल तथा शौरी समिति की रिपोर्ट के आधार पर सूचना के अधिकार का एक मसौदा तैयार किया गया। इसी आधार पर 2002 मे सूचना की स्वतंत्रता का विधेयक पारित किया गया। पर कतिपय खामियों की वजह से इसे लागू न किया जा सका। पुनः 2005 मे सूचना के अधिकार का विधेयक पारित किया गया। जून 2005 मे राष्ट्रीपति एपीजे अब्दुल कलाम ने बहुप्रतिक्षित सूचना के अधिकार विधेयक को अपनी मंजूरी दी और यह विधेयक पूर्णतया 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गयासूचना के अधिकार के कारण
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के बनाए जाने के कारण उसकी प्रस्तावना मे निम्ननुसार स्पष्ट किए गए हैं- " प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कार्यकरण मे पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के संवर्धन, लोक प्राधिकारियों के नियंत्रणाधीन सूचना तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये, नागरिकों के सूचना का अधिकार की व्यावहारिक शासन पद्धति स्थापित करने, एक केन्द्रीय सूचना आयोग तथा राज्य सूचना आयोगों का गठन करने के लिये, यह अधिनियम पारित किया गया हैं।सूचना के अधिकार के उद्देश्य (suchna ke adhikar ke uddeshya)
अधिनियम की प्रस्तावना उसके उद्देश्यों को भी स्पष्ट करती है, जिसके अनुसार---- भारत के संविधान ने लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की है और लोकतंत्र का शिक्षित नागरिक वर्ग ऐसी सूचना की पादर्शिता की अपेक्षा करता है, जो उसके कार्यकरण तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए भी और सरकारों और उसके सहायक उपकरणों के शासन के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिये अनिवार्य है।
- और वास्तविक व्यवहार मे सूचना के प्रकटन से संभवतः अन्य लोकहितों जिनके अंतर्गत सरकारों के दक्ष प्रचालन, राज्य के सीमित वित्तीय संसाधनों के अधिकतम उपयोग और संवेदनशील सूचनाओं की गोपनीयता को बनाए रखना भी है, के साथ विरोध हो सकता है।
- और लोकतंत्र आर्दश की प्रभुता को बनाए रखते हुए इन विरोधी हितों के बीच सामंजस्य बनाना आवश्यक हैं।
- अतः यह समीचीन है कि ऐसे नागरिकों को कतिपय सूचना देने के लिये जो उसे पाने के इच्छुक है, उपबंध किए जाएं।
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