6/15/2021

शोध अभिकल्प/प्ररचना के प्रकार

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शोध अभिकल्प या प्ररचना के प्रकार 

शोध प्ररचना या शोध अभिकल्प के प्रकार निम्न तरह है--

1. अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक शोध अभिकल्प 

अन्वेषणात्मक प्ररचना, वह प्ररचना है जिसका उद्देश्य अज्ञात तथ्यों की खोज करना है। ताकि यथार्थ उपकल्पना निर्मित की जा सके। इस प्रकार की प्ररचना का निर्माण अनेक प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी किया जा सकता है। जैसे किसी संरचनात्मक अध्ययन से पूर्व अनुसंधानकर्ता द्वारा किसी प्रवरण के विषय में जानकारी प्राप्त करना, अवधारणाओं का स्पष्टीकरण करना, अग्रिम अनुसंधान करने के लिए प्राथमिकताओं का पता लगाना, यथार्थ परिस्थिति में अनुसंधान करने के लिए व्यवहारिक संभावनाओं की खोज अथवा महत्वपूर्ण समस्याओं का पता लगाना इत्यादि।

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अन्वेषणात्मक अध्ययन में किसी सामाजिक घटना के अन्तर्निहित कारणों की खोज करनी पड़ती है। जिस क्षेत्र में अनुसंधान कार्य सीमित होता है और सिद्धांत विकसित नहीं होते वहां उपयोगी और उत्तम उपकल्पना के लिए अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना महत्वपूर्ण होती है। सैल्टिल एवं जहोदा के अनुसार," अन्वेषणात्मक प्ररचना उस अनुभव को प्राप्त करने के लिए जरूरी है जो अधिक निश्चित अनुसंधान हेतु संबद्ध उपकल्पना के निरूपण में सहायक होगा।

2. वर्णनात्मक शोध अभिकल्प 

वर्णनात्मक अनुसंधान प्ररचना का उद्देश्य समस्या से संबंधित पूर्ण यथार्थ और विस्तृत तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना है। इस प्ररचना द्वारा वास्तविक तथ्यों का संकलन किया जाता है और इन तथ्यों के आधार पर वर्णनात्मक चित्रण प्रस्तुत किया जाता है।

वर्णनात्मक अध्ययन में किसी समूह या समुदाय की जनसंख्या, आय समूह, प्रजातीय लक्षण, शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक संगठन, व्यवहार, प्रतिमान, व्यक्तिगत दृष्टिकोण, सामूहिक मान्यताएं आदि आते हैं। विभिन्न घटनाओं के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन करने के लिए भी वर्णनात्मक अनुसंधान उपयोगी होता है।

वर्णनात्मक अध्ययन साक्षात्कार, प्रश्नावली, व्यवस्थित प्रत्यक्ष अवलोकन समुदायिक रिकॉर्ड का विश्लेषण सहभागी अवलोकन आदि अनुसंधान प्रविधियों द्वारा किया जा सकता है। वर्णनात्मक अध्ययन या प्ररचना के निम्न चरण है--

(अ) अध्ययन के उद्देश्यों का निरूपण, 

(ब) तथ्य-संकलन की पद्धति का चुनाव,

(स) निदर्शन का चुनाव,

(द) सामग्री का संकलन तथा उसकी जांच,

(ई) परिणामों का विश्लेषण ,

(फ) प्रतिवेदन।

3. निदानात्मक शोध अभिकल्प 

सामाजिक अनुसंधान मूल रूप से दो प्रकार की समस्याओं से संबंधित है, एक तो सामान्य सामाजिक नियमों की खोज करने तथा दूसरी अलग-अलग परिस्थितियों के समाधान से संबंधित है। निदानात्मक शोध अभिकल्प वे अभिकल्प जो किसी विशिष्ट समस्या के निदान की खोज करते हैं। निदानात्मक शोध अभिकल्प में समस्या का पुरा एवं विस्तृत अध्ययन किया जाता है। निदानात्मक शोध अभिकल्प की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

1. निदानात्मक अध्ययन, केवल ज्ञान प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं होता अपितु  तो किसी सामाजिक परिस्थिति के उपचार से संबंधित होता है। 

2. उपचार अथवा निदान प्रस्तुत करने के लिए लक्षण अथवा परिस्थिति को उत्पन्न करने वाले कारकों का पता लगाना अनिवार्य है।

3. निदानात्मक शोध अभिकल्प सामाजिक ढांचे तथा सामाजिक संबंधों से उत्पन्न उन सामाजिक समस्याओं से संबंधित रहता है जिन को दूर करना तत्काल जरूरी होता है।

4. निदानात्मक अध्ययन एक स्पष्ट तथा निश्चित उपकल्पना के द्वारा संचालित होता है। वास्तव में निदानात्मक शोध अभिकल्प का तात्कालिक उद्देश्य होता है और वह वर्णनात्मक अध्ययन के बाद की कड़ी है।

4. परीक्षणात्मक अनुसंधान अभिकल्प 

भौतिक विज्ञानों के समान ही इसमें कुछ निश्चित नियंत्रण अवस्थाओं में रखकर विषय का अध्ययन किया जाता है। श्री चैपिन के के शब्दों में," समाजशास्त्रीय शोध में परीक्षणात्मक प्ररचना की अवधारणा नियंत्रण की दिशा के अंतर्गत निरीक्षण द्वारा मानवीय संबंधों के व्यवस्थित अध्ययन की ओर इंगित करती है। इसके तीन प्रकार हैं--

1. केवल पश्चात परीक्षण

इसमें समान विशेषताओं वाले दो समूहों को चुना जाता है एक समूह नियंत्रित समूह और दूसरा परीक्षणात्मक समूह कहलाता है। नियंत्रण समूह में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं लाया जाता जबकि परीक्षणात्मक समूह में परिवर्तन लाने का प्रयत्न किया जाता है। इस प्रकार प्रथम समूह दूसरे से अलग हो जाता है तो उसके रूप को उस परिवर्तन का कारण मान लिया जाता है।

2. पूर्व-पश्चात् परीक्षण 

इसके अंतर्गत केवल एक ही समूह का चुनाव किया जाता है और उसी का अध्ययन एक अवस्था विशेष के पहले और बाद में किया जाता है। इन दोनों अंतरों को देखा जाता है और उसे परिवर्तित परिस्थिति का परिणाम माना जाता है।

3. कार्यान्तर-तथ्य परीक्षण 

इस प्रकार का परीक्षण किसी ऐतिहासिक घटना का अध्ययन करने के लिए किया जाता है। अध्ययनकर्ता दो समूह का चयन करता है जिसमें से एक में वह घटना जिसका उसे अध्ययन करना है घटित हो चुकी होती है। जबकि दूसरे समूह में नहीं होती इन दोनों समूहों की पुरानी परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करके यह पता लगाने का प्रयत्न किया जाता है, की घटित होने वाली घटना का कौन सा कारक रहा है? इस प्रकार ऐतिहासिक घटना चक्रों का परीक्षा कर वर्तमान घटना व्यवस्थाओं के कारणों की खोज कार्यान्तर-तथ्य परीक्षण कहलाता है।

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