निदर्शन के प्रकार
निदर्शन के प्रकार निम्न तरह है--
1. सुविचार या सोद्देश्य निदर्शन
इस प्रणाली के अंतर्गत अनुसंधानकर्ता अपनी इच्छा के अनुरूप समग्र मे से कुछ इकाइयाँ चुन लेता है व उनका अध्ययन करता है। कौन-सी इकाई निदर्शन मे सम्मिलित हो और कौन सी छूट जाए यह अवसर की बात नही रहती वरन् अनुसंधानकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता है। यह पद्धति इस मान्यता पर निर्भर है कि अनुसंधानकर्ता समग्र की सभी विशेषताओं से परिचित है तथा वह अपने व्यक्तिगत ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर यह निश्चित करता है कि कौन सी इकाई समग्र की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करती है। यह पद्धति सरल है परन्तु दोष रहित नही है। इसमें व्यक्तिगत अभिमति के सम्मिलित होने की पूर्ण संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त समग्र का सम्पूर्ण ज्ञान अनुसंधानकर्ता को पहले से ही होगा यह मानना भी भ्रमपूर्ण ही है। इसके बावजूद कई बार इस पद्धति का प्रयोग अनुसंधान कार्य मे किया जाता है।
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2. सुविधाजनक निदर्शन
यह प्रणाली किसी नियम या विधि पर आधारित नही होती है। सुविधानुसार जो भी मिल जाए उसे निदर्शन मे सम्मिलित कर लिया जाता है। यह एक प्रकार से आकस्मिक या संयोग विधि भी कही जा सकती है। आकस्मिक रूप से या संयोग से जो भी इकाई मिल जाए उसे निदर्शन मे सम्मिलित कर लिया जाता है। यह विधि पूर्णतः अवैज्ञानिक है व प्रयोग मे लाने योग्य नही है।
3. क्षेत्रीय निदर्शन
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है इसमें क्षेत्रों का निदर्शन किया जाता है। किसी भी अनुसंधान मे जब समग्र को छोटे-छोटे क्षेत्रों में विभाजित कर उनमें से किसी एक क्षेत्र को निदर्श मानकर उस क्षेत्र के सभी निवासियों का सम्पूर्ण अध्ययन किया जाता है तो इसे क्षेत्रीय निदर्शन कहा जाता है। इसे संभाग निदर्शन भी कहा जाता है। वर्तमान मे इस निदर्शन का प्रयोग अधिक होता है। कृषि अनुसंधानों, जनसंख्यात्मक एवं अपराधी क्षेत्रों के अध्ययन मे यह निदर्शन प्रणाली बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है।
4. बहुस्तरीय निदर्शन पद्धति
जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट होता है कि किसी निदर्शन का अंतिम रूप से निश्चय होने के पूर्व उसे कई स्तरों से गुजरना पड़ता है। तीन-चार स्तरों से गुजरने के बाद अंतिम रूप से निदर्शन का निश्चय होता है। इसीलिये इसे बहुस्तरीय निदर्शन कहा जाता है। इस पद्धति से किसी बड़े समग्र का अध्ययन करना हो तो निदर्शन की प्रक्रिया को निम्न स्तरों से गुजरना पड़ेगा। सर्वप्रथम उस बड़े समग्र को छोटे-छोटे क्षेत्रों मे बाँटना होगा। इन क्षेत्रों मे से दैव निदर्शन पद्धति के आधार पर कुछ गृह समूहों का चयन करना होना। फिर इन गृह समूहों में से कुछ परिवारों का दैव निदर्शन के आधार पर चयन करना होगा। इन परिवारों मे से किसी व्यक्ति का मुखिया का या अन्य किसी का अध्ययन किया जाए इसका निर्धारण करना होगा। इस प्रकार निदर्शन का चयन कई स्तरों से गुजरने के बाद होता है। इसीलिये इसे बहुस्तरीय निदर्शन कहते है। इसमें स्तरीकृत एवं दैव निदर्शन दोनों प्रणालियों का प्रयोग हो जाता है।
5. दैव निदर्शन
यह बहुत प्रचलित निर्देशन पद्धति है सामाजिक अनुसंधान या सर्वेक्षण में इस पद्धति का सर्वाधिक प्रयोग इसलिए होता है क्योंकि इसमें सामग्री की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में चुने जाने के समान अवसर प्राप्त होते है। सोद्देश्य निदर्शन के समान इसमें इकाइयों का चुनाव अनुसंधानकर्ता की अपनी इच्छा के अनुसार नहीं होता बल्कि अवसर एवं सहयोग के अनुसार इकाइयों का चुनाव होता है। इस प्रकार देव निर्देशन में अनुसंधानकर्ता की व्यक्तिगत अभिमती का कोई महत्व नहीं होता। इस तरह निदर्शन वैषयिक एवं निष्पक्ष बना पड़ता है। क्योंकि सामग्री की सभी इकाइयों के निदर्शन में चुने जाने के समान अवसर प्राप्त होते हैं। आतः यह समग्र का प्रतिनिधि निर्देशन बन जाता है।
हार्पर, गुडे एवं हैट, थामस, वाटसन, पार्टेन आदि सभी विद्वानों ने दैंव निदर्शन की परिभाषाओं में समग्र की सभी इकाइयों के चुने जाने के समान अवसर के तत्व पर ही जोर दिया है। यही तत्व दैंव निदर्शन को प्रतिनिधि निदर्शन बनाता है। निर्देशन पूर्णतः संभावनाओं पर ही आधारित है। अतः इसमें व्यक्तिगत अभिमती का प्रभाव भी नहीं पड़ता।
6. स्तरित (वर्गीकृत) निदर्शन
जिस विधि में अध्ययन सामग्र को कुछ समानताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांट कर उन वर्गों में से उप निदर्शन लिए जावे उसे स्तरित या वर्गीकृत निदर्शन कहते हैं। इसमें समग्र को वर्गों के उद्देश्य निदर्शन प्रणाली के आधार पर बांटा जाता है तथा इन वर्गों में से दै निदर्शन प्रणाली से अध्ययन इकाई का चुनाव किया जाता है। अतः इसे मिश्रित निदर्शन भी कहा जाता है। क्योंकि पहले समग्र को विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जाता है। बाद में इन वर्गों में से दैव निदर्शन प्रणाली से अध्ययन इकाइयों का चयन किया जाता है अतः यह वर्गीकृत देव निदर्शन भी कहलाता है।
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