घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 (gharelu hinsa adhiniyam 2005)
घरेलू हिंसा एक व्यापक सामाजिक समस्या है भारतीय समाज मे पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण महिलाएं दोयम दर्जे पर रही है। यद्यपि सांस्कृतिक मूल्यों मे महिलाओं के प्रति सम्मान का आदर्श निहित है। किन्तु व्यावहारिक स्थिति समाज की विभाजित मानसिकता को स्पष्ट करती है। लैंगिक असमानता के व्यवहारिक रूपों मे महिलाओं के विरूद्ध क्रूरता महिलाओं पर अत्याचार की अनके घटनाएं घटित होती रहती है। लैंगिक भूमिकाओं के विभाजन मे घर के कामों मे महिलाओं की भूमिका उनकी गतिशीलता को बाधित करती है। सामाजिक सांस्कृतिक मानदण्ड, आर्थिक आत्मनिर्भरता न होना, कानूनों की जानकारी का अभाव ऐसे कारण है जिनकी वजह से महिलाएं अपनी स्थिति मजबूत नही कर पाती। क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की घड़ी के मुताबिक हर पाँचवें मिनट मे एक महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है। यद्यपि संविधान मे महिला समानता के लिए प्रावधान किए गए है। किन्तु विडंबना यह है कि लोकतंत्रात्मक देश मे औसत महिलाएं घर के अंदर लोकतंत्र नही पाती। परिवार समाज की केन्द्रीय इकाई है। परिवार के सदस्यों के बीच अंतःक्रियात्मक संबंध भावनात्मक होते है। किन्तु जब भावनाएँ हिंसक व्यवहार मे परिवर्तित हो जाएँ तो परिवार का संगठन टूट जाएगा। इस तरह समाज मे विघटन की प्रक्रिया बढ़ जाएगी। अतः एक ऐसे कानून की आवश्यकता महसूह की गई जिससे महिला अपने विरुद्ध होने वाली हिंसा के विरूद्ध आवाज उठा सके और अपने संरक्षण की मांग कर सके।समाज समयानुसार जैसे-जैसे प्रगति के मार्ग पर उन्मुख हो रहा है वैसे-वैसे समाज मे हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। प्राचीनकाल से लेकर आज तक महिलाएं हिंसा का सबसे अधिक शिकार हुई है। अतः भारत मे महिलाओं के विरूद्ध घरेलू हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 मे पारित किया गया जो 26 अक्तूबर, 2006 से भारत मे लागू है।
घरेलू हिंसा क्या है? घरेलू हिंसा की परिभाषा
घरेलू हिंसा मे ऐसा किसी भी तरह का व्यवहार शामिल है जिसमे महिला के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन तथा अन्य सुख से रहने की इच्छा का हनन होता हो या ऐसा दुर्व्यवहार जो घरेलू महिला को शारीरिक या मानसिक कष्ट देता है। इसमें मारपीट, भावनात्मक, प्रताड़ना, आर्थिक प्रताड़ना और नाजायद शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश, गाली या तादे शामिल है।राज्य महिला आयोग के अनुसार “”कोई भी महिला यदि परिवार के पुरूष द्वारा की गई मारपीट अथवा अन्य प्रताड़ना से त्रस्त है तो वह घरेलू हिंसा की शिकार कहलाएंगे।
महिलाओं के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार के स्वरूप
1. शारीरिक दुर्व्यवहार; शारीरिक दुर्व्यवहार मे महिला को मारपीट, डराना, धमकाना, स्वास्थ्य को नष्ट करने वाली चेष्टा, अंग-भंग करना शामिल हैं।2. मौखिक या भावनात्मक दुर्व्यवहार
उपेक्षा करना, भेदभाव करना, देहज न लाने हेतु अपमानित करना, पुत्र का जन्म न होने पर अपमानित करना, अप्रतिष्ठित अपमानजनक टिप्पणी करना, हंसी उड़ान, निंदा करना, घर से बाहर जाने के लिए रोकना, विद्यालय, महाविद्यालय या नहीं कोई शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यस्थल पर जाने से रोकना, अपनी इच्छा के विरुद्ध विवाह करने पर बल देना। इस तरह के सभी व्यवहार भावनात्मक दुर्व्यवहार मे सम्मिलित किए जा सकते हैं।
3. अर्थिक दुर्व्यवहार
भरण-पोषण कि पूर्ति न करना, स्त्री व उसकी संतानों को भोजन, दवाइयां उपलब्ध न करवाना, नौकरी करने मे बाधा डालना, प्राप्त आय बलपूर्वक ले लेना, घर-गृहस्थी के उपयोग कि वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना आदि इस तरह के व्यवहार आर्थिक दुर्व्यवहार मे शामिल किए जा सकते जा सकते है।
घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 के अनुसार यह स्पष्ट जानना आवश्यक है कि पीड़ित कौन है एवं कानून की सहायता से पीड़ित संरक्षण कैसे प्राप्त कर सकता है, इन पहलुओं पर यहाँ क्रमशः चर्चा करेंगे—
पीड़ित कौन हैं?
घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 का उद्देश्य महिलाओं को घरेलू नातेदारी से उपजे दुर्व्यवहार से सम्बंधित करना है। घरेलू नातेदारी का अभिप्राय किन्हीं दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच के उन संबंधों से है जिसमे वे या तो साझी गृहस्थी मे एक साथ रहते है या पहले कभी रह चुके है। इसमें निम्न संबंध शामिल हो सकते है—
1. रक्त जनित संबंध जैसे– माँ-बेटा, पिता-पुत्री, भाई-बहन इत्यादि।
2. विवाह जनित संबंध जैसे– पति-पत्नी, सास-बहु, ससुर-बहु, देवर-भाभी, ननद, परिवार मे विधवा महिला से संबंध।
3. दत्तक ग्रहण अथवा गोद लेने से उपजे संबंध जैसे– गोद ली हुई बेटी और पिता।
4. विवाह जैसे रिश्ते जैसे– लिव इन संबंध कानूनी तौर पर अमान्य तौर पर अमान्य विवाह उदाहरण के लिए पति ने दूसरी बार शादी की है अथवा पति और पत्नी समरक्त संबंधी है अतः विवाह अवैध है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि घरेलू हिंसा नातेदार के दायरे मे आने के लिए जरूरी नही कि दो व्यक्ति वर्तमान मे किसी साझा घर मे रह हो। उदाहरण के लिए यदि पति ने अपनी पत्नी को अपने घर से निकला दिया तो वह भी घरेलू नातेदारी के दायरे मे आएया।
घरेलू हिंसा के विभिन्न रूप
1. आत्महत्याआत्मसात मे अधिकतर मामले फाँसी लगाने के होते है। इसका मुख्य कारण पति द्वारा शराब पीकर पत्नी के साथ मारपीट करना अथवा ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ना है।
2. दहेज हत्या
दहेज भौतिक सुख-सुविधाएं बढ़ाने के साथ-साथ दहेज लोभियों की मांग भी बढ़ती जा रही है। निम्न मध्यमवर्गीय तथा अशिक्षित वर्ग ही नही बल्कि उच्च वर्गीय परिवारों मे भी दहेज हत्या के मामले अधिक हो रहे है।
3. प्रताड़ना
पुलिस थानों मे मानसिक तथा शारीरिक प्रताड़ना देने के मामले तेजी से बढ़ रहे है। गरीब तथा अशिक्षित वर्गों मे प्रताड़ना के मामले अधिक होते है। शराब की लत, जुआ तथा आवारगी इसके प्रमुख कारण है।
4. बलात्कार
परिवार के सदस्यों तथा रिश्तेदारों के द्वारा ही बलात्कार करने के मामले अधिक हो रहे है। नाबलिग लड़कियों से लेकर अधेड़ावस्था की महिलाओं को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है। बलात्कार के एक तिहाई मामले 10 से 30 वर्ष की लड़कियों तथा महिलाओं के साथ अधिक होते है।
5. मारपीट
घर-परिवार मे ही महिलाएं सुरक्षित नही है। अक्सर छोटी-छोटी बातों पर ही उन्हें मारपीट का शिकार होना पड़ता है। विशेषतः निम्नवर्गीय तथा निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों मे महिलाओं से मारपीट अधिक होती है।
घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत पीडित महिला कैसे लाभ प्राप्त कर सकती है? घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के प्रावधान
पीड़त को कानूनी मदद पहुँचाने के लिए अधिनियम के तहत प्रत्येक राज्य सरकार अपने राज्य मे संरक्षण अधिकारी नियुक्ति करती है। इसके अलावा सेवा प्रदाता संगठन होते है जो पीड़िती महिलाओं की सहायता के लिए कानून के तहत पंजीकृत होते है। पीड़ित महिला संरक्षण अधिकारी अथवा सेवा प्रदाता संगठन से संपर्क कर सकती है। संबंधित महिला इनसे शिकायत दर्ज कराने अथवा चिकित्सा सुविधा प्रदान कराने अथवा रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्राप्त कराने हेतु संपर्क कर सकती है। इनके अलावा पुलिस अधिकारी या माजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया जा सकता है।पीड़ित स्वयं शिकायत कर सकती है अथवा कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसे घरेलू हिंसा की घटना की जानकारी है अथवा अंदेशा है वह भी संरक्षण अधिकारी को सूचित कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपने आस-पास घरेलू हिंसा की घटनाओं की जानकारी रखते है और सद्भावना की दृष्टि से शिकायत दर्द करते है तो जानकारी की पुष्टि न होने पर उनके खिलाफ कार्यवाही नही की जाएगी।
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