5/21/2022

युद्ध का अर्थ, परिभाषा एवं कारण

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yuddh arth paribhasha karan;युद्ध के विषय में बहुत से विचार हैं । युद्ध भी विभिन्न प्रकार और श्रेणियों के हैं। इसी कारणवश युद्ध की परिभाषा के बारे में संभ्रांति एवं संदिग्धता व्याप्त हैं। जे. बी. स्ट्रेक ने युद्ध को इन शब्दों में परिभाषित किया है," युद्ध दो या अधिक राज्यों के बीच प्रधानतः सशस्त्र सेनाओं के माध्यम से एक प्रतिद्वंद्विता होती है, प्रत्येक प्रतिद्वंद्वी समूह का दूसरे को परास्त करना तथा अपनी शर्तों के अनुरूप शांति को लादना अंतिम उद्देश्य होता है।
एल. ओपेनहीम ने युद्ध को इन शब्दों में परिभाषित किया," युद्ध दो या अधिक राज्यों के बीच सशस्त्र सेनाओं के माध्यम की एक ऐसी प्रतिद्वंद्विता है जिसका लक्ष्य एक दूसरे को परास्त करना और शांति शर्तों को लादना है जो विजेता की इच्छा के अनुरूप हो।"

युद्ध का अर्थ ( yuddh kya hai) 

युद्ध संघर्ष की चरम स्थिति है। संघर्ष की स्थिति मे शांति भंग हो जाती है। अतः युद्ध शांतिरहित अवस्था का ही एक प्रकार है। साधारणतया युद्ध का अर्थ किन्ही दो तत्वों अथवा प्राणियों के मध्य पारस्परिक विरोध के फलस्वरूप घात-प्रतिघात ले लगाया जाता है। युद्ध किन्ही भी दो समूहों, राष्ट्रों, व्यक्तियों के मध्य हो सकता है। युद्ध की समस्या कोई सरल समस्या नही है और न ही एकाकी समस्या है।

युद्ध की परिभाषा (yuddh ki paribhasha)

सामाजिक विज्ञान के विश्वकोष के अनुसार, " साधारणतया युद्ध शब्द का प्रयोग ऐसे शस्त्रात्मक संघर्ष के लिए किया जाता है जो कि चेतन इकाइयों, जैसे; प्रजातियों या जनजातियों, राज्य अथवा छोटी भौगोलिक इकाइयों, धार्मिक अथवा राजनैतिक दल, आर्थिक वर्गों से निर्मित जनसंख्यात्मक समूहों के अन्तर्गत होता है।"
किंबालयंग के अनुसार, " युद्ध मनुष्य के मानवीय संघर्ष का सबसे अधिक हिंसक रूप है।"
हाॅबेल के अनुसार, " युद्ध एक सामाजिक समूह द्वारा दूसरे सामाजिक समूह पर किया संगठित आक्रमण है जिसमे आक्रमण समूह आक्रांता समूह के हितों की कीमत पर अपने हितों की वृद्धि जानबूझकर अपनी जान-माल की बर्वादी करके करता हैं।"
इलियट और मैरिल के अनुसार, " युद्ध उन संबंधों का औपचारिक तौर पर टूटना है जो शांतिकाल मे राष्ट्रों को परस्पर एक दूसरे से बाँधे रखते है।"
उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि युद्ध एक तरह का संगठित आक्रमण है। युद्ध हिंसा का कार्य हैं।

युद्ध के कारण (yuddh ke karan)

युद्ध के निम्‍नलिखित कारण हो सकते हैं-- 
1. राजनैतिक कारण
युद्ध का महत्वपूर्ण कारण राजनीतिक सत्ता को प्राप्त करना रहा है। युद्ध का राजनीतिक कारणों से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मुख्य रूप से साम्राज्यवादी नीति इसके लिए जिम्मेदार है। वस्तुतः राजनीतिक कारणों तथा तनावो से ही भिन्न-भिन्न राष्ट्रों मे युद्ध के रूप मे संघर्ष हो जाता है। युद्ध की परिस्थितियों को उत्पन्न करने मे राजनीतिक कारणों का प्रमुख हाथ रहता है।
एच.टी. मजूमदार ने राज्यों की अबाधित प्रभुता, सत्ता की राजनीति, साम्राज्य व्यवस्था, औपनिवेशिक अथवा निरंकुश अनुयायी संबंध जैसे राजनीतिक आधारों को युद्ध का प्रमुख कारण माना है।
2. आर्थिक कारण
आर्थिक कारणों से भी युद्ध होता है। किन्ही दो राष्ट्रों के आर्थिक हित जब टकराते है तो युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आर्थिक स्तर पर तेल व प्राकृतिक गैस और प्रमुख खनिजों को आधुनिक विश्व के विवादों के संभावित स्त्रोतों के रूप मे देखा जाता है। मर्क्सवादियों के अनुसार युद्ध का कारण राजनीतिक नही बल्कि राज्यों के बीच संघर्ष विभिन्न राज्यों के पूँजीपति वर्गों के बीच प्रतियोगिता के आर्थिक संदर्भ भे देखा जाना चाहिए।
3. सांस्कृतिक कारण
राजनीतिक, आर्थिक कारणों के अलावा सांस्कृतिक कारण भी युद्ध को जन्म देने मे अहम् भूमिका निभाते है। संस्कृति एक जटिल समग्रता है इसका संबंध विचारधारा और धार्मिक मूल्यों से भी होता है। इस संदर्भ मे विश्व इतिहास मे घटित हुई युद्ध की घटनाओं के आधार पर समझा जा सकता है। प्रोटेस्टेंट-कैथोलिक, ईसाई-मुस्लिम मतभेद एवं हिन्दू-मुस्लिम मतभेद संघर्षों को जन्म देते रहे है। मध्यकालीन यूरोप मे धर्म के नाम पर कई युद्ध हुए।
4. अन्तर्राष्ट्रीय कारण
आधुनिक युग मे युद्ध की घटना अन्तर्राष्ट्रीय तनावों के आधार पर होती है। यही नही वरन् आधुनिक युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय तनावों तथा विपरीत विचारधाराओं की प्रतिच्छाया भी कहा जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों मे जब विघटन उत्पन्न होता है, तो विभिन्न शक्तियों मे संघर्ष का होना स्वाभाविक है।
5. मनोवैज्ञानिक कारण
युद्ध मानव मस्तिष्क की उपज है। मनोवैज्ञानिक इस विचार के आधार पर युद्ध के मानसिक कारणों की विवेचना करते है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से घृणा, असुरक्षितता, असन्तोष, ईष्र्या, द्वेष एवं बदले की भावना आदि बहुत कुछ सीमा तक युद्ध को प्ररित करती है। फ्रायड तथा अन्य मनोवैज्ञानिक का यही मानना है कि मनुष्य मे बदला लेने की इच्छा, विनाशकारी प्रवृत्ति, संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है। यह प्रवृत्तियाँ भी युद्ध का एक कारण है।
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