5/25/2022

तनाव शैथिल्य का अर्थ, परिभाषा, कारण

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प्रश्न; तनाव शैथिल्य किसे कहते हैं? इसकी स्थापना कैसे हुई। 

अथवा" देतांत से आप क्या समझते हैं? देतान्त के कारणों पर प्रकाश डालिए। 

अथवा" तनाव शैथिल्य से आप क्या समझते हैं? इसकी स्थापना के क्या कारण थे। 

अथवा" तनाव शैथिल्य (दितान्त) से अभिप्राय स्पष्ट कीजिए तथा तनाव शैथिल्य की उदय के कारण बताइए।

उत्तर-- 

तनाव शैथिल्य का अर्थ (tanav shaithilya kya tha)

तनाव शैथिल्य का अर्थ हैं, तनाव में शिथिलता या कमी। शीत-युद्ध की कमी पर 1970-80 के दो दशकों में विश्व में एक नई स्थिति उत्पन्न हुई। इस स्थिति को 'तनाव शैथिल्य' नाम दिया गया। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में इसका अभिप्राय सोवियत संघ और अमेरिकी तनाव में कमी आने से हैं। 

द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद संसार दो गुटों में बँट गया था। इन गुटों में राजनीतिक संघर्ष आरंभ हो गया था। अमेरिका और रूसी गुट के बीच चलने वाले इस संघर्ष को शीत-युद्ध कहा गया। शीत-युद्ध से संपूर्ण संसार में युद्ध-सा वातावरण बन गया। 

1962 में क्यूबा संकट के समय पहले तो ऐसा लगा कि अमेरिका और सोवियत संघ रूस के बीच युद्ध आरंभ हो जाएया जो संभवतः तीसरे विश्वयुद्ध में परिणित हो जाए, परन्तु संयोग से क्यूबा संकट टल गया। रूस और अमेरिका ने आपस में युद्ध करने का विचार त्याग दिया। इसके बाद रूस और अमेरिका के बीच चलने वाला शीत-युद्ध धीरे-धीरे कम होने लगा। दोनों देशों के बीच व्यावहारिकता के आधार पर संबंधों की कटुता कम होने लगी। तनान शिशिल होने लगा। व्यापारिक प्रतिनिधिमंडलों का आदान-प्रदान होने लगा। शिखर वार्ताएँ होने लगीं। इसी स्थिति को 'तनाव शैथिल्य या देतान्त' कहा जाता हैं। 

तनाव शैथिल्य या देतान्त की परिभाषा (tanav shaithilya paribhasha)

डाॅ. के. पी. मिश्र के अनुसार," तनाव शैथिल्य का अर्थ मित्रतापूर्ण संबंध नही है। रूस और अमेरिका के मध्य मित्रता कभी स्थापित हुई ही नहीं। तनाव शैथिल्य का अर्थ हैं कटुता में कमी, संबंधो में सहजता।" 

डाॅ. बी. के. श्रीवास्तव के शब्दों में," संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने अब शीत-युद्ध के संघर्षपूर्ण संबंधों का अवसान करने का निश्चय किया जिसे प्रायः दितान्त के नाम से जाना जाता हैं।" 

जाॅर्ज ऐराबाटोव के अनुसार," दितान्त अन्तर्राष्ट्रीय स्थितियों की नयी वास्तविकताओं से समझौता हैं।" 

प्रो. हरीश कपूर के अनुसार," दितान्त संबंधों की व्यवस्था में दोनों महाशक्तियों के आपसी व्यवहार में समझौतावादी रूझान का दायरा बढ़ना, यूरोपीय महाद्वीप का अब विभाजित न होना अपितु यूरोपीय देशों में व्यापारिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान का विस्तार होना तथा संघर्षपूर्ण एवं विवादास्पद समस्या को द्वि-पक्षीय एवं बहु-पक्षीय वार्ताओं से निपटाना शामिल है।"

तनाव शैथिल्य के कारण (tanav shaithilya ke karan)

तनाव शैथिल्य के निम्‍नलिखित कारण थे-- 

1. आर्थिक विकास 

क्यूबा मिसाइल संकट ने दोनों को सबक दिया कि वे परस्पर उलझकर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पतन की ओर धकेल रही हैं सोवियत संघ ने इस बात को समझते हुए उसने आर्थिक विकास की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति जोर दिया। 

2. परमाणु युद्ध की भयावहता 

परमाणु अस्त्रों की भयानकता ने दोनों महाशक्तियों को चेता दिया कि युद्ध के भयंकर परिणाम होंगे और दोनों देशों के जान माल को बहुत ज्यादा नष्ट कर देंगे। इस भय के कारण दोनों महाशक्तियां शान्ति की दिशा में पहल करने लग गई। 

3. कच्चे माल की आवश्यकता 

अमेरिका ने यह महसूस किया कि उसके उद्योगों के लिए कच्चा माल सोवियत संघ से प्राप्त किया जा सकता है। उसकी अर्थव्यवस्था का विकास कच्चे मालपर ही निर्भर है म। सोवियत संघ से व्यापारिक संबंध बढ़ाने से ही कच्चा माल प्राप्त किया जा सकता है और लाभ उठाया जा सकता है। इसी कारण से अमेरिका ने टकराव का रास्ता छोड़ने की बात अपना ली। 

4. स्थायी शान्ति का विचार 

दोनों महाशक्तियां लम्बे समय से एक दूसरे के साथ तनाव को बढ़ा रही थी इस तनाव के चलते न तो उनके राष्ट्रीय हितों में वृद्धि सम्भव थी और न ही स्थायी शान्ति की स्थापना हो सकती है। स्थायी शान्ति के बिना आर्थिक विकास सम्भव नहीं था इसलिए दोनों शक्तियां परस्पर भेदभाव भूलकर सहयोग का रास्ता अपनाने को सहमत हो गई। 

5. राष्ट्रीय हितों में वृद्धि 

दोनों महाशक्तियों ने अनुभव किया कि लोक कल्याण को बढ़ावा देने, गरीबी निवारण, लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए परस्तर तकनीकी सहयोग द्वारा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। तनाव या युद्ध किसी भी अवस्था में राष्ट्रीय हितों का संवर्धन नहीं कर सकते। इसे तो शान्ति के वातावरण में ही विकसित किया जा सकता है। 

6. वास्तविक युद्ध का भय 

शीत युद्ध का वातावरण कभी भी वास्तविक युद्ध का रूप ले सकता था। इस भय ने दोनों महाशक्तियों को शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति अपनाने के लिए बाध्य कर दिया। 

7. साम्यवादी गुटबंदी का ढीलापन 

चीन तथा सोवियत संघ में भी परस्तर मतभेद पैदा हो गए। सोवियत संघ ने महसूस किया कि चीन का मुकाबला करने के लिए पश्चिमी राष्ट्रों से मित्रता करना जरूरी है। इसलिए सोवियत संघ ने अमेरिका विरोधी रूख छोड़ दिया और सौहार्दपूर्ण व्यवहार करने लग गया।

8. बहुकेन्द्रवाद का जन्म 

1963 के बाद ब्रिटेन, फ्रांस और चीन परमाणु सम्पन्न राष्ट्र बन गए म। जापान, जर्मनी, भारत जैसी शक्तियां भी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति के केन्द्र में उभरने लगे। 1975 में भारत ने भी परमाणु शक्ति हासिल करके दोनों महाशक्तियों को अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का द्विध्रुवीकरण अब बहुकेन्द्रवाद में बदलने लगा। इससे विश्व राजनीति का दो गुटों में विभाजन का विचार भंग होने लगा। ऐसे में दोनों गुटों ने टकराव का रास्त छोड़कर अपने आप को अंतर्राष्ट्रीय जगत में नई भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

9. गुटनिरपेक्ष आंदोलन का जन्म 

शीत-युद्ध के काल में भारत, इंडोनेशिया, मिस्र और यूगोस्लोविया जैसें कुछ देशों ने गुटनिरपेक्षता की विदेश नीति अपनाई। धीरे-धीरे अन्य कई देश भी यह नीति अपनाने लगे। 1961 में गुटनिरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन यूगोस्लाविया की राजधाधी बेलग्रेड में हुआ। इसके बाद गुटनिरपेक्षता एक आंदोलन बन गया। जैसे-जैसे यह आंदोलन सशक्त होता गया, एशिया और अफ्रीका के नवोदित राष्ट्रों को बल मिलता गया। इस आंदोलन के विकास ने विश्व में तनाव को कम करने में योगदान दिया। शीत-युद्ध का वेग निश्चित रूप से कुछ कम हुआ। इस गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भी तनाव शैथिल्य की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

10. वियतनाम में अमेरिका की असफलता 

वियतनाम में अमेरिका के बढ़ते हस्तक्षेप के बाद भी 1975 में वियतनाम का एकीकरण हो गया, इससे अमेरिका में दितान्त का विचार महत्वपूर्ण हो गया।

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