प्रश्न; शीत युद्ध क्या था? शीत-युद्ध की उत्पत्ति के कारण बताइए।
अथवा" शीत-युद्ध से आप क्या समझते है? शीत-युद्ध के उदय के कारणों की विवेचन कीजिए।
उत्तर--
शीत युद्ध विश्व के इतिहास में एक ऐसा युद्ध था, जिसमें शस्त्रों का प्रयोग नहीं हुआ। और ना ही इसमें किसी प्रकार का खुन-खराबा हुआ। यह तो एक ऐसा युद्ध था, जिसका रणक्षेत्र मानव का मस्तिष्क था। यह विभिन्न देशों के संबंधों को घृणा से भर देने वाला युद्ध था।कुछ विद्वानों ने इस युद्ध की परिभाषा अपने-अपने शब्दों के माध्यम से दिया। जो की इस प्रकार है--
डॉ. एम. एम. राजन के शब्दों में, ‘शीतयुद्ध शक्ति संघर्ष की राजनीति का मिला-जुला परिणाम है। दो विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है। दो प्रकार की परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है। जिसका अनुपात समय और परिस्थितियों के अनुसार एक दूसरे के पूरक के रूप में बदलता रहता है।‘
जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, ‘शीत युद्ध पुरातन शक्ति संतुलन की अवधारणा का नया रूप है। यह विचारों का संघर्ष न होकर दो भीमाकार शक्तियों का आपसी संघर्ष है।
लुई हाले के अनुसार, ‘ शीत युद्ध परमाणु युग में एक ऐसी स्थिति है जो कि शस्त्र युद्ध से एकदम भिन्न किन्तु उससे अधिक भयानक युद्ध है। यह एक ऐसा युद्ध है जिसने अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने के स्थान पर उन्हें उलझा दिया है। विश्व के सभी देश और समस्यांए चाहे वह वियतनाम हो, चाहे कश्मीर या कोरयिा हो अथवा अरब-इजरायल संघर्ष हो, सभी शीत युद्ध के मोहरों की तरह प्रयुक्त किए जाते रहे। यह युद्ध का वातावरण है- शीत युद्ध वास्तविक युद्ध नहीं है। शीत युद्ध का क्षेत्र विश्व व्यापी है।‘
डॉ. एम. एम. राजन के शब्दों में, ‘शीतयुद्ध शक्ति संघर्ष की राजनीति का मिला-जुला परिणाम है। दो विचारधाराओं के संघर्ष का परिणाम है। दो प्रकार की परस्पर विरोधी पद्धतियों का परिणाम है। जिसका अनुपात समय और परिस्थितियों के अनुसार एक दूसरे के पूरक के रूप में बदलता रहता है।‘
जवाहरलाल नेहरू के अनुसार, ‘शीत युद्ध पुरातन शक्ति संतुलन की अवधारणा का नया रूप है। यह विचारों का संघर्ष न होकर दो भीमाकार शक्तियों का आपसी संघर्ष है।
लुई हाले के अनुसार, ‘ शीत युद्ध परमाणु युग में एक ऐसी स्थिति है जो कि शस्त्र युद्ध से एकदम भिन्न किन्तु उससे अधिक भयानक युद्ध है। यह एक ऐसा युद्ध है जिसने अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने के स्थान पर उन्हें उलझा दिया है। विश्व के सभी देश और समस्यांए चाहे वह वियतनाम हो, चाहे कश्मीर या कोरयिा हो अथवा अरब-इजरायल संघर्ष हो, सभी शीत युद्ध के मोहरों की तरह प्रयुक्त किए जाते रहे। यह युद्ध का वातावरण है- शीत युद्ध वास्तविक युद्ध नहीं है। शीत युद्ध का क्षेत्र विश्व व्यापी है।‘
शीत युद्ध क्या था? शीत युद्ध का अर्थ
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात विश्व दो गूटों- पूँजीवादी गुट व साम्यवादी गुट मे बंट गया। पूँजीवादी गुट का नेतृत्व अमेरीका व साम्यवादी गुट का नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था। ये दो महाशक्तियों और उनके आपसी सम्बन्धों की अभिव्यक्ति का नाम शीत युद्ध था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दोनों महाशक्तियों में वैमनस्य और कटुता बढ़ती गई। दोनों महाशक्तियों में राजनीतिक प्रभुत्व के लिए राजनीतिक प्रचार का संग्राम छिड़ गया। यह एक ऐसा युद्ध था, जिसका रणक्षेत्र मानव मस्तिष्क था।
एन.एन.धर के के मत में, " शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका एवं रूस के मध्य क्रमशः विकसित उन कटु सम्बन्धों को कहा जाता है जिनके कारण दोनों राष्ट्र परस्पर प्रतिद्वंदी बनकर तीसरे विश्व युद्ध के लिये सम्बध्द हो गये थे।"
शीत युद्ध का रणक्षेत्र मानव मस्तिष्क था। वास्तव में शीत युद्ध, नरसंहार और उसके पड़ने वाले प्रभाव से बचने तथा युध्द के लक्ष्य को प्राप्त करने की नवीन कला थी जिसमें कागज के गोलों, पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों तथा रेडियो के प्रचार साधनों से लड़ा जाने वाला युद्ध था। शीत युद्ध सोवियत संघ-अमेरिका आपसी सम्बन्धों की वह स्थिति थी जिसमे दोनों पक्ष शान्तिपूर्ण राजनयिक सम्बन्ध रखते हुए भी परस्पर शत्रुभाव रखते थे तथा शस्त्र-युद्ध के अतिरिक्त अन्य सभी उपायों से एक-दूसरे की स्थिति और शक्ति को निरन्तर दुर्बल करने का प्रयत्न करते थे। वस्तुतः शीत-युद्ध एक प्रचारात्म युद्ध था जिसमें एक महाशक्ति दूसरे के खिलाफ घृणित प्रचार का सहारा लेती थी।
यह युद्ध कई चरणों से गुजरा जो की इस प्रकार है:-
शीत युद्ध विश्व की दो महान शक्तिशाली शक्तियों के बीच था, जिसमें एक तरफ अमेरीका वहीं दूसरी तरफ रूस था जिनमें आधुनिकतम भयंकर शस्त्रों और परमाणु बमों की एक-दूसरे की सैनिक और आर्थिक रूप से घेराबन्दी की और एक-दूसरे पर या तो आक्रमण करने या आक्रमण की सहायता करने के लिये गुटबन्दी करने की होड़ लगी हुई है। रूस को अमेरिका और अमेरिका को रूस का सदैव डर बना रहता था। अतः दोनों का शीत-युद्ध हर स्तर पर होता रहता है। इसलियें नाटों व सीटों जैसे संगठन बने हैं। शीत युद्ध के प्रारंभ होने के निम्नलिखित कारण थे--
1. अणुबम का अविष्कार
एन.एन.धर के के मत में, " शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका एवं रूस के मध्य क्रमशः विकसित उन कटु सम्बन्धों को कहा जाता है जिनके कारण दोनों राष्ट्र परस्पर प्रतिद्वंदी बनकर तीसरे विश्व युद्ध के लिये सम्बध्द हो गये थे।"
शीत युद्ध का रणक्षेत्र मानव मस्तिष्क था। वास्तव में शीत युद्ध, नरसंहार और उसके पड़ने वाले प्रभाव से बचने तथा युध्द के लक्ष्य को प्राप्त करने की नवीन कला थी जिसमें कागज के गोलों, पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों तथा रेडियो के प्रचार साधनों से लड़ा जाने वाला युद्ध था। शीत युद्ध सोवियत संघ-अमेरिका आपसी सम्बन्धों की वह स्थिति थी जिसमे दोनों पक्ष शान्तिपूर्ण राजनयिक सम्बन्ध रखते हुए भी परस्पर शत्रुभाव रखते थे तथा शस्त्र-युद्ध के अतिरिक्त अन्य सभी उपायों से एक-दूसरे की स्थिति और शक्ति को निरन्तर दुर्बल करने का प्रयत्न करते थे। वस्तुतः शीत-युद्ध एक प्रचारात्म युद्ध था जिसमें एक महाशक्ति दूसरे के खिलाफ घृणित प्रचार का सहारा लेती थी।
शीत युद्ध का प्रांरभ
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में दो महाशक्तियां अमेरिका व रूस बचीं। युद्ध अंत के पूर्व ही मित्र देशों के मतभेद उजागर हो गए थे। अतः दुनिया पूर्वी और पश्चिमी खेमों में विभाजित हो गयीं थी। यह शीत युद्ध मुख्य रूप से अखबारों और अन्य प्रचार साधनों से लड़ा गया जाता था। शीत युद्ध शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अमेरिका के बर्नाड ने 16 अप्रैल, 1946 में किया था।यह युद्ध कई चरणों से गुजरा जो की इस प्रकार है:-
प्रथम चरण (1945-1950)
रूस की साम्यवादी सिद्धांतों से यूरोपीय देश पहले से ही शंकित थे उनकी शंका तब सही साबित हुई जब रूस ने पौलेण्ड़ में अस्थायी सरकार की स्थापना के निर्णय को ठुकराकर याल्टा सम्मेलन, 1945 ई. में सम्पूर्ण पोलैण्ड़ पर अधिकार कर लिया और राष्ट्रीयता और लोकतंत्र का दमन किया। इसी प्रकार चर्चिल से स्टालिन ने समझौता करके तोड़ दिया तथा सम्पूर्ण बल्कान राज्य पर कब्जा कर लिया। द्वितीय विश्व युद्ध के काल में इंग्लैण्ड़ और अमेरिका ने ईरान से सेना वापिस कर लिया। लेकिन रूस ने सेना को वापिस बुलाने से इंकान कर दिया। टर्की में सुविधायें प्राप्त करने के लियें यूनाने में विद्रोह करवा दिया। इन कार्यवाहियों को देखकर 1947 में टूमैन ने टर्की, यूनान की सरकार को आर्थिक सहायता देने की घोषणा की। इसके उत्तर में रूस ने 1947 ई. में कॉमिन फार्म और मॉलोटॉव योजना बनाई और साम्यवादी देशों की आर्थिक सहयोग परिषद् की स्थापना की। जब 1948 ई. में चैकोस्लाविया में साम्यवादी सरकार की स्थापना हो गई और जब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस ने अपने जर्मनी को त्रिक्षेत्र बनाया तो रूस ने विरोध किया और बर्लिन की घेराबन्दी की तथा जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की। इस प्रकार त्रिशक्तियों से नियन्त्रित जर्मन संघीय गणराज्य बन गया। रूस के खिलाफ अमेरिका ने नाटो और सीटो का निर्माण किया। 1949 ई. में रूस की मदद से माउत्से तुंग ने चीन में साम्यवादी सरकार बनाई तो च्यांगकाई शेक ने राष्ट्रवादी सरकार बनाई और पश्चिमी देशों ने चीन कों संयुक्त राष्ट्रसंघ का सदस्य नहीं बनने दिया।दूसरा चरण(1950-1953)
प्रथम चरण में शीत युद्ध का प्रभाव सिर्फ यूरोप और पूर्वी अमेरिका तक ही सीमित था लेकिन दूसरे चरण में इसका प्रभाव एशिया में भी होने लगा था। जब कोरिया को विभाजित करके एक भाग पर अमेरिका ने और दूसरे पर रूस ने अधिकार कर लिया। दोनों ने अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में अपनी समर्थित सरकारें बना दी। रूस की प्रेरणा से 1950 ई. में उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया। जिसमें खूब शीत-युद्ध हुआ और प्रत्यक्ष युद्ध विराम 1953 ई. में हुआ।तीसरा चरण (1953-1959)
इस समय के दरम्यान रूस में आंतरिक संघर्ष चल रहा था। और इस आंतरिक संघर्ष में 1958 ई. में ख़ुश्चैव सफलता पाकर प्रधानमंत्री बने। उन्होंने स्टालिन नीति का त्याग कर विश्व शांति और निःशस्त्रीकरण तथा शीत-युद्ध की समाप्ति में विश्वास व्यक्त किया। यद्यपि हिंदचीन के वियतनाम पर रूस और यूरोपीय देशों में शीत-युद्ध चला, परन्तु 1954 ई. में जेनेवा सम्मेलन में समझौता हो गया और वियतनाम का विभाजन कर दिया। लाओस तथा कम्बोडिया को स्वतंत्र कर दिया गया। परन्तु 1954 में अमेरिका ने साम्यवाद विरोधी सीटो बनाया। सन् 1955 से 1958 ई. में पश्चिमी देशों ने रूस विरोधी बगदाद पैक्ट या सेन्टो तथा रूस ने वार्सा पैक्ट की स्थापना की। सन् 1955 ई. में रूस ने पश्चिम जर्मनी की सरकार को मान्यता प्रदान कर दी और 1956 ई. में स्वेज नहर के राष्ट्रीकरण के प्रश्न पर ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन नहीं किया। इससे शीत-युद्ध कम हुआ। परन्तु सन् 1957 ई. के आईजन हावर सिद्धांत से शीत-युद्ध उग्र हो गया लेकिन सन् 1958 ई. में बर्लिन संकट के हल हो जाने के कारण शीत-युद्ध बहुत कम हो गया।
इस चरण में अमेरिका और रूस ने शीत-युद्ध कम करने का प्रयास किया। इसी दौरान रूस के प्रधान मंत्री खुश्चैव ने अमेरिका की और आईजनहाबर ने रूस की यात्रायें की और पेरिस में शिखर सम्मेलन से शीत-युद्ध कम हो गया। परन्तु यू-2 की घटना से सम्बंध कटु हुये परन्तु खुश्चैव के कारण शीत-युद्ध बढ़ नहीं पाया। खुश्चैव ने कैनेडी के साथ मिलकर भी शीत-युद्ध के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया। इनहीं प्रयासों के तहत सन् 1962 ई. का क्यूबा संकट भी टल गया। चतुर्थ चरण (1959-1962)
पंचम चरण (1962-1972)
चतुर्थ चरण में जिस प्रकार शीत-युद्ध को कम करने के प्रयास किया जा रहे थे। उसी के तहत इस चरण में शीत-युद्ध का पतन आरंभ हो गया और रूस अमेरिका ने अपने सम्बंधों को सुधारा। इस युग में अणु परीक्षणों पर रोक लगाने वाली संधियां हुयी सीधे सम्बंध बनाये गये। 1963 ई. में नये प्रधानों ने पुरानी नीतियों पर चलने का संकल्प लिया। सन् 1964 ई. में वियतनाम युद्ध और 1967 ई. में अरब-इजराईल युद्ध के कारण दोनों में शीत-युद्ध बढ़ा। सन् 1969 में बर्लिन संकट टल गया। सन् 1972 में दोनों का कोरिया में समझौता हो गया, इसी प्रकार पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में समझौता हो गया, इससे शीत-युद्ध में कमी आ गई। शीत-युद्ध की उत्पत्ति/उदय के कारण (shit yudh ke karan)
विश्व के इतिहास में शीत युद्ध के जैसी स्थिति निर्मित हुई इसके लिए बहुत से कारक जिम्मेदार थे। जैसे की विभिन्न देशों में परस्पर अविश्वास, वचन-भंगता, गुप्त संधि और समझौते, उग्र राष्ट्रीय भावना, परस्पर देशों के आन्तरिक विषयों में और व्यापार में हस्तक्षेप और विभिन्न देशों के मध्य उठने वाली समस्याओं के कारण ही शीत युद्ध जैसी स्थिति निर्मित हुई।शीत युद्ध विश्व की दो महान शक्तिशाली शक्तियों के बीच था, जिसमें एक तरफ अमेरीका वहीं दूसरी तरफ रूस था जिनमें आधुनिकतम भयंकर शस्त्रों और परमाणु बमों की एक-दूसरे की सैनिक और आर्थिक रूप से घेराबन्दी की और एक-दूसरे पर या तो आक्रमण करने या आक्रमण की सहायता करने के लिये गुटबन्दी करने की होड़ लगी हुई है। रूस को अमेरिका और अमेरिका को रूस का सदैव डर बना रहता था। अतः दोनों का शीत-युद्ध हर स्तर पर होता रहता है। इसलियें नाटों व सीटों जैसे संगठन बने हैं। शीत युद्ध के प्रारंभ होने के निम्नलिखित कारण थे--
1. अणुबम का अविष्कार
शीत युद्ध प्रारंभ होने का एक एक बहुत बड़ा कारण अमेरिका द्वारा अणुबमों का निर्माण था जिसे उसने हिरोशिमा और नागासाकी पर विध्वंस के लिए प्रयुक्त किया था। अमेरिका द्धारा अणुबम अनुसंधान बहुत समय पहले से ही चल रहा था। इसकी जानकारी उसने ब्रिटेन को तो दी थी, किन्तु सोवियत संघ से यह रहस्य छिपाकर रखा। इससे सोवियत संघ व पश्चिमी राष्ट्रों की मित्रता में दरार पड़ गई।
2. बर्लिन की नाकाबन्दी
2. बर्लिन की नाकाबन्दी
सोवियत संघ द्वारा लंदन प्रोटोकोल का उल्लंघन करते हुए 1948 मे बर्लिन की नाकाबन्दी कर दी जिससे पश्चिम बर्लिन व पश्चिमी जर्मनी के बीच सभी यातायात के रास्ते (सड़क, जल और रेल) बन्द हो गये। पश्चिमी राष्ट्रों ने सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की उपरोक्त कार्यवाही की शिकायत करते हुए इसे शांति के लिए खतरा बताया।
3. साम्यवादी आन्दोलन
शीत युद्ध की उत्पत्ति के कुछ विचारकों के मत मे सोवियत संघ की 1917 की साम्यवादी क्रांति रही।
4. हित संघर्ष
3. साम्यवादी आन्दोलन
शीत युद्ध की उत्पत्ति के कुछ विचारकों के मत मे सोवियत संघ की 1917 की साम्यवादी क्रांति रही।
4. हित संघर्ष
शीत युद्ध वस्तुतः राष्ट्रीय हितों का संघर्ष था। द्वितीय महायुद्ध के उपरांत अनेक मुद्दों पर सोवियत संघ और अमेरिका के स्वार्थ आपस मे टकराते थे।
5. पश्चिम द्वारा सोवियत विरोधी प्रचार
5. पश्चिम द्वारा सोवियत विरोधी प्रचार
अभियान युध्दकाल मे ही पश्चिमी राष्ट्रों द्वारा सोवियत संघ के विरोधी वक्तव्य दिये जा रहे थे। उसकी शासन व्यवस्था को तानाशाही सरकार का लेबल भी दे दिया गया जिससे सोवियत संघ के मन में वैमनस्य बढ़ता गया।
6. शक्ति संघर्ष
6. शक्ति संघर्ष
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति शक्ति-संघर्ष की राजनीति है। विश्व मे जो भी परम शक्तिशाली राष्ट्र है उनमें प्रधानता के लिए संघर्ष होना अनिवार्य होता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ तथा अमेरिका ही दो शक्तिशाली राज्यों के रूप में उदय हुए, अतः इनमें विश्व-प्रभुत्व स्थापित करने के लिए आपसी संघर्ष होना अनिवार्य था।
7. महाशक्तायों का पतन
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद संसार का शक्ति-चित्र ही बदल गया। जर्मनी, जापान और इटली तो पराजित होने के कारण विनष्ट हो गए। ब्रिटेन तथा फ्रांस जीतने पर भी, बहुत अधिक आर्थिक मार खाने के कारण समाप्त हो गए। अमेरिका और सोवियत रूस केवल दो ही ऐसे देश बचे थे, जो युद्ध के बाद भी सर्वोच्च शक्तियों के रूप में उभरे। अब स्वाभाविक था कि इन दोनों के बीच उग्र प्रतिस्पर्द्धा होती हैं।
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