छायावाद किसे कहते हैं? (chhayavad kise kahate hain)
हिन्दी साहित्य के आधुनिक चरण मे द्विवेदी युग के पश्चात हिन्दी काव्य की जो धारा विषय वस्तु की दृष्टि से स्वच्छंद प्रेमभावना, पकृति मे मानवीय क्रिया कलापों तथा भाव-व्यापारों के आरोपण और कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान नवीन अभिव्यंजना-पद्धति को लेकर चली, उसे छायावाद कहा गया। आज हम छायावाद की विशेषताएं जानेगें।
प्रकृति पर चेतना के आरोप को भी छायावाद कहा गया है। छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद ने छायावाद की व्याख्या इस प्रकार की हैं " छायावाद कविता वाणी का वह लावण्य है जो स्वयं मे मोती के पानी जैसी छाया, तरलता और युवती के लज्जा भूषण जैसी श्री से संयुक्त होता है। यह तरल छाया और लज्जा श्री ही छायावाद कवि की वाणी का सौंदर्य है।"
छायावादी काव्य की मुख्य विशेषताएं
1. व्यक्तिवाद की प्रधानता
छायावाद मे व्यक्तिगत भावनाओं की प्रधानता है। वहाँ कवि अपने सुख-दुख एवं हर्ष-शोक को ही वाणी प्रदान करते हुए खुद को अभिव्यक्त करता है।
2. सौन्दर्यानुभूति
यहाँ सौन्दर्य का अभिप्राय काव्य सौन्दर्य से नही, सूक्ष्म आतंरिक सौन्दर्य से है। बाह्रा सौन्दर्य की अपेक्षा आंतरिक सौन्दर्य के उद्घाटन मे उसकी दृष्टि अधिक रमती है। सौन्दर्योपासक कवियों ने नारी के सौन्दर्य को नाना रंगो का आवरण पहनाकर व्यक्त किया है।
3. श्रृंगार भावना
छायावादी काव्य मुख्यतया श्रृंगारी काव्य है किन्तु उसका श्रृंगार अतीन्द्रिय सूक्ष्म श्रृंगार है। छायावाद का श्रृंगार उपभोग की वस्तु नही, अपितु कौतुहल और विस्मय का विषत है। उसकी अभिव्यंजना मे कल्पना और सूक्ष्मता है।
4. प्रकृति का मानवीकरण
प्रकृति पर मानव व्यक्तितत्व का आरोप छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को अनेक रूपों मे देखा है। कहीं उसने प्रकृति को नारी के रूप मे देखकर उसके सूक्ष्म सौन्दर्य का चित्रण किया है।
5. वेदना एवं करूणा का आधिक्य
ह्रदयगत भावों की अभिव्यक्ति की अपूर्णता, अभिलाषाओं की विफलता, सौंदर्य की नश्वरता, प्रेयसी की निष्ठुरता, मानवीय दुर्बलताओं के प्रति संवेदनशीलता, प्रकृति की रहस्यमयता आदि अनेक कारणों से छायावादी कवि के काव्य मे वेदना और करूणा की अधिकता पाई जाती है।
6. अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेम
अज्ञात सत्ता के प्रति कवि मे ह्रदयगत प्रेम की अभिव्यक्ति पाई जाती है। इस अज्ञात सत्ता को कवि कभी प्रेयसी के रूप मे तो कभी चेतन प्रकृति के रूप मे देखता है। छायावाद की यह अज्ञात सत्ता ब्रह्म से भिन्न है।
7. जीवन-दर्शन
छायावादी कवियों ने जीवन के प्रति भावात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। इसका मूल दर्शन सर्वात्मवाद है। सम्पूर्ण जगत मानव चेतना से स्पंदित दिखाई देता है।
8. नारी के प्रति नवीन भावना
छायावाद मे श्रृंगार और सौंदर्य का संबंध मुख्यतया नारी से है। रीतिकालीन नारी की तरह छायावादी नारी प्रेम की पूर्ति का साधनमात्र नही है। वह इस पार्थिव जगत की स्थूल नारी न होकर भाव जगत की सुकुमार देवी है।
9. अभिव्यंजना शैली
छायावादी कवियों ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए लाक्षणिक, प्रतीकात्मक शैली को अपनाया है। उन्होंने भाषा मे अभिधा के स्थान पर लक्षणा और व्यंजना का प्रयोग किया है।
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