6/14/2023

छायावाद के प्रमुख कवि

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छायावाद के कवि 

छायावाद के प्रमुख कवि इस प्रकार से हैं-- 

1. महादेवी वर्मा 

ये छायावाद की प्रमुखतम कवयित्री मानी जाती है। अपना परिचय देते हुए महादेवी जी ने जो पंक्तियाँ लिखी है वे इनके व्यक्तित्व और काव्य-विषय दोनों को स्पष्ट कर देती हैं-- 

मैं नीर भरी दुःख की बदली। 

विस्तृत नभ का कोना-कोना, 

कोई न कभी अपना होना। 

परिचय इतना, इतिहास यही, 

उमड़ी कल थी मिट आज चली।

महादेवी की कविता में तीन बातें स्पष्ट हैं-- 

(अ) उस अज्ञात के प्रति विरह-व्याकुलता, 

(ब) संसार में उसी सत्ता के दर्शन, 

(स) उससे नैकट्य। 

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महादेवी जी का कथन है कि 'तुमको पीड़ा में ढूँढ़ा तुममें ढूँढूंगी पीड़ा' तथा 'प्रिय से कम मादक पीर नहीं।' महादेवी जी साधना की उस सबल पीड़ा को भी बहुत प्यार करती है जो आँसुओं की जननी है। एकांत में वे अपने प्राणों का दीप जलाकर उसी से अज्ञात के स्नेह मंदिर को प्रकाशित रखती हैं-- 

अपने इस सूनेपन की मैं हूँ रानी मतवाली 

प्राणों का दीप जलाकर करती रहती दीवाली।

2. प्रसाद 

प्रसाद जी का 'आँसू' काव्य तो मानो अश्रु की ही काव्य-निर्झरणी है, उसमें प्रियतम का जो एक बार वियोग हुआ तो कवि को जीवन भर रोना पड़ा-- 'आँसू' काव्य लिखा गया। फिर तो वियोग हो जाने पर विरह के स्फुलिंग निकलने लगे और कवि का जीवन अवसाद का ही संसार हो गया। विरह की वह पीड़ा जो न जाने कवि के मष्तिष्क में कब से संचित हो रही थी, 'आँसू' काव्य के रूप में बरस पड़ी-- 

जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई। 

दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आई।।

यह हाहाकार कवि के ह्रदय का ही हाहाकार है। कवि रो-रोकर अपनी कहानी सुनाने लगा, पर कौन सुने? 

निरंतर विरह ज्वाला ने ह्रदय में फफोले उठा दिये हैं। प्रिय की स्मृति के घर्षण से वे फूट उठते है और आँसू के रूप में बरस पड़ते हैं--

छिल-छिल कर छाले फोड़े, मल-मल मृदुल चरण से। 

घुल-घुल कर वह रह जाते, आँसू करूणा के कण से।। 

3. निराला 

निराला के जीवन इतिहास पर संघर्ष के चिन्ह सबसे अधिक स्पष्ट हैं। उन जैसा महान कवि हिन्दी में अन्य कोई नहीं है। फिर उन जैसा उपेक्षित कवि भी किसी अन्य देश और साहित्य में नहीं होगा। यद्यपि निरालाजी के पुष्ट शरीर और प्रकट पौरूष ने उनको कठोर कवि के रूप में प्रसिद्ध किया है फिर भी करूणा को अन्तः सलिला उनके काव्य में सर्वत्र प्रवाहित है। कवि स्वाभिमान के कारण व्यथा को अभिव्यक्त करना नहीं चाहता। पर व्यथा नहीं रूक पाती। विश्व का व्यंग्य वह सहने में असमर्थ है, फिर भी कभी-कभी लगता है उसके अंतर की कराह उसके ह्रदय का भेद खोल देगी। वह गा उठता हैं-- 

एक दिन थम जायेगा रोदन तुम्हारे प्रेम अंचल में। 

4. पंत 

पंत का जीवन जितना कोमल है, उतना ही करूण भी। Shelley की भाँति वे "Our sweetest songs are those that tell of saddest thought." को ही अपने शब्दों में लिखते हैं-- 

वियोगी होगा पहला कवि, आह में उपजा होगा गान। 

उमड़ कर आँखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान।। 

इस कविता में पंत की करूणा का स्वर कितना तीखा और मार्मिक है, यह स्पष्ट हैं। 

मिलन के पल केवल दो-चार विरह के होते कल्प अपार।। 

अरे वे अपलक चार नयन, आठ आँसू रोते निरूपाय। 

उठे रोओं आलिंगन, कसक उठते काँटों से हाय।।

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