6/28/2023

प्रगतिवाद किसे कहते हैं? प्रगतिवाद की विशेषताएं

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प्रश्न; प्रगतिवाद का संक्षिप्त परिचय देते हुए उसकी मुख्य प्रवृत्तियाँ बताइये। 
अथवा", प्रगतिवाद के कोई चार विशेषताएं बताइए। 
अथवा", प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए। 
अथवा", प्रगतिवाद का सामान्य परिचय देते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। 
अथवा", प्रगतिवादी काव्य-वैशिष्ट्य की समीक्षा कीजिए। 
अथवा", प्रगतिवाद की दुर्बलताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर--

प्रगतिवाद किसे कहते हैं? (pragativad kise kahte  hai) प्रगतिवाद क्या हैं 

प्रगतिवाद भौतिक जीवन से उदासीन आत्मनिर्भर, सूक्ष्म, अन्तर्मुखी प्रवृति के विरूद्ध प्रतिक्रिया के रूप मे, लोक विरूद्ध जगत की तार्किक प्रतिक्रिया है। प्रगतिवाद का प्रेरणा स्रोत कार्ल मार्क्स का द्वंद्वात्मक भौतिकवादी है। सामाजिक चेतना और भावबोध काव्य का लक्ष्य है। प्रगतिवाद काव्य मे समाजवादी विचारधारा का साम्यवादी स्वर महत्वपूर्ण रहा हैं।
आज के इस लेख मे हम प्रगतिवादी काव्य की मुख्य विशेषताएं जानेगें।
प्रगतिवाद विशेष रूप से काॅर्ल मार्क्स की साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित है। मार्क्सवादी विचारधार का समर्थक प्रगतिवादी साहित्यकार आर्थिक विषमता को ही वर्तमान दु:ख एवं अशांति का कारण स्वीकार करता है। आर्थिक विषमता के फलस्वरूप समाज दो वर्गो मे बंटा है- पूँजीपति वर्ग अथवा शोषक वर्ग और दूसरा शोषित वर्ग या सर्वहारा वर्ग। प्रगतिवाद अर्थ, अवसर और संसाधनों के समान वितरण द्वारा ही समाज की उन्नति मे विश्वास रखता हैं। सर्वहार या सामान्य जन की प्राण प्रतिष्ठा के साथ श्रम को गरिमा को प्रतिष्ठित करना और साहित्य मे प्रत्येक समाज के सुख-दुख का यर्थाथ चित्रण प्रस्तुत करना ही प्रगतिवाद का लक्ष्य है।
प्रगतिवादी चेतना के बीच छायावाद मे ही पल्लवित होने लगे थे किन्तु तीसरे और चौथे दशक मे प्रगतिशील आंदोलन ने काव्य को सामाजिकता की ओर उन्मुख किया।

प्रगतिवाद की परिभाषा 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार," जो भाव-धारा राजनीति के क्षेत्रों में साम्यवाद है, वही साहित्य में प्रगतिवाद हैं।" 
शिवकुमार शर्मा के अनुसार," मार्क्सवादी या साम्यवादी दृष्टिकोण के अनुसार निर्मित काव्यधारा प्रगतिवाद हैं।" 
प्रगतिवाद साहित्य जनजीवन का साहित्य है। प्रगतिवादी कवि कल्पना जगत को पूरे यथार्थ की भूमि से जन-जीवन के महासागर से संघर्ष की मुक्ताएँ चुनता है। उसका उद्देश्य कविता को जन-जीवन के निकट लाना हैं।

प्रगतिवादी काव्य की मुख्य विशेषताएं (pragativad ki visheshta)

प्रगतिवाद की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. शोषकों के प्रति विद्रोह और शोषितों से सहानुभूति 
प्रगतिवादी कवियों ने किसानों, मजदूरों पर किए जाने वाले पूँजीपतियों के अत्याचार के प्रति अपना विद्रोह व्यक्त किया है।
2. जागृति और प्रगति का संदेश 
प्रगतिवाद में सर्वत्र पुरातन के प्रति आक्रोश एवं नवीन के प्रति प्रेरणा का भाव मिलता है। प्रगतिवादी कवि सोये हुये समाज एवं राष्ट्र को जागरण का संदेश देते हुये कहता हैं कि-- 
'नव युग शंख ध्वनि जगा रही तु, जाग-जाग मेरे विशाल।'
3. मानवतावादी दृष्टिकोण
प्रगतिवादी काव्य की एक विशेषता यह है कि प्रगतिवादी काव्य मे मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाया गया है। प्रगतिवादी काव्य मे मानवतावादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है।
4. रूढ़ियों का विरोध 
प्रगतिवादी कवि धर्म, समाज तथा तथाकथित ईश्वर द्वारा निर्दिष्ट नियमों को छिन्न-भिन्न कर देना चाहता है। उसे ईश्वर की सत्ता, आत्मा, परलोक, स्वर्ग, नरक, भाग्यवाद आदि पर विश्वास नहीं है। धर्म को वह अफीम का नशा मानता है और प्रारब्ध को प्रवंचना मात्र। मदिंर, मस्जिद, गिरजघर और गुरूद्वारा कुछ भी उसके लिए महत्व नहीं रखते। रूढ़ियों और अंध-विश्वासों का दलन ही उसके लिए अभीष्ट हैं।
5. आर्थिक व सामाजिक समानता पर बल
प्रगतिवादी कवियों ने आर्थिक एवं सामाजिक समानता पर बल देते हुए निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के अंतर को समाप्त करने पर बल दिया।
6. क्रांति की भावना 
सामंतवादी परम्पराओं का समूल विनाश प्रगतिवादी कवि का अभीष्ट है, अतएव वह क्रांति के प्रलयकारी स्वरों का आव्हान करता है। पूँजीवादी शोषण से क्षुब्ध कवि नव-निर्माण का आकांक्षी है और इसलिए वह क्रांति को निमन्त्रण देता है। बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' उस विप्लवगान को सुनाना चाहते है, जो संसार में उथल-पुथल मचा दे-- 
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओं। जिससे उथल-पुथल मच जाये।
7. नारी शोषण के विरुद्ध मुक्ति की आवाज़
प्रगतिवादी कवियों ने नारी को उपभोग की वस्तु नही समझा वरन उसे सम्माजनक स्थान दिया है। नारी को शोषण से मुक्त कराने हेतु इन्होंने आवाज़ उठाई और प्रयास किए है।
8. साम्यवादी देशों के प्रति श्रद्धा 
प्रगतिवादी काव्य-धारा के अनेक कवियों ने साम्यवाद के प्रवर्तक मार्क्स तथा उनकी विचारधारा की पल्लवन-भूमि रूस के प्रति अपने ह्रदय के श्रद्धा-सुमन अर्पित किये है। परंतु यह अंध-श्रद्धा उचित नहीं हैं। पंत तो कहीं-कहीं साम्यवादी दर्शन की व्याख्या मात्र करने में तल्लीन रहे है। ऐसी कविताओं में भाषा की स्वच्छता तो मिलती है परंतु वे किसी प्रकार की रागात्मकता की सृष्टि नहीं करती। इस बात का विचार किये बिना कि वहाँ की मान्यताएँ यहाँ के लिए उपयोगी भी है या नहीं, उनका गुण-गान करते जाना कहाँ तक तर्कसंगत हैं? रूस में पानी बरसने पर भारत में छाता लगाकर चलना क्या बुद्धिमत्ता कहा जायेगा? नरेंद्र शर्मा ने लाल रूस का गुणगान इस प्रकार किया हैं-- 
लाल रूस है ढाल साथियों। सब मजदूर किसानों की। 
वहाँ राह है पंचायत का, वहाँ नहीं है बेकारी।। 
लाल रूस का दुश्मन साथी। दुश्मन सब इंसानों का। 
दुश्मन है सब मजदूरों का दुश्मन सभी किसानों का।।
9. पूँजीपतियों के प्रति विद्रोह
प्रगतिवादी काव्य मे पूँजीपतियों के प्रति विद्रोह देखने को मिलता है।
10. ईश्वर के प्रति अनास्था
इस काल के कवियों ने ईश्वर के प्रति अनास्था का भाव व्यक्त किया है। वे ईश्वरीय शक्ति की तुलना मे मानवीय शक्ति को अधिक महत्व देते है।
11. तीव्र व्यंग्य 
प्रगतिवादी कवि सुधार की भावना से प्रेरित होकर सामयिक समस्याओं के वर्णन में तीव्र व्यंग्य का पुट भर देता है। उसने पूंजीवाद को, शोषण की प्रवृत्ति को, आधुनिक राजनीति को, लीडरों को अपने व्यंग्यों का लक्ष्य बनाया है। स्वाधीनता के उपरांत राष्ट्र की प्रगति के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनती रहीं। नेता चैन से गुलछर्रे उड़ाते रहे और जनता खून के आँसू रोती रही।
12. शोषितों के प्रति सहानुभूति
प्रगतिवाद काव्य मे शोषितों के प्रति सहानुभूति देखने को मिलती है।
13. सामाजिक यर्थाथ का चित्रण
प्रगतिवादी कवियों ने व्यक्तिगत सुख-दुःख के भावों की अपेक्षा समाज की गरीबी, भुखमरी, अकाल, बेरोजगारी आदि सामाजिक समस्याओं की अभिव्यक्ति पर बल दिया।
14. कला
प्रगतिवादी काव्य मे "कला को कला के लिए" न मानकर कला को जीवन के लिए' का सिद्धांत अपनाया गया है।
15. उपयोगितावाद 
प्रगतिवादी साहित्य उपयोगितावाद में विश्वास रखता है। वह उसी साहित्य को महत्व देता है जो मानव-जीवन के लिए अधिकाधिक उपयोगी हो। जन-जीवन को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने वाले साहित्य को ही वह सच्चा साहित्य मानता हैं।
16. प्रतीकों का प्रयोग
अपनी भावनाओं की स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए इस काल के कवियों ने प्रतीकों का सहार लिया है।
17. भाग्यवाद की उपेक्षा कर्मवाद की श्रेष्ठता बल 
प्रगतिवादी कवियों ने श्रम की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए भाग्यवाद को पूँजीवादी शोषण का हथियार बताया है।

निष्कर्ष

प्रगतिवाद की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसने उपेक्षित दलित वर्ग को काव्य का विषय बनाया है और इस प्रकार साहित्य को एक व्यापक यथार्थवादी आयाम प्रदान किया। डाॅ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में," इनके सिद्धांत और उद्देश्य बहुत सुन्दर हैं, लेकिन ये लोग कम्युनिस्ट पार्टी के साथ जुड़े हुए है, यही जरा खटकता है। अगर ये लोग दल द्वारा परिचालित होना छोड़ दें तो सब कुछ ठीक हो जायेगा।" 
अतः निःसंदेह कहा जा सकता है कि प्रगतिवाद का लक्ष्य महान् है। यह मुट्टठी भर उद्योगपतियों को खरी-खोटी सुनाकर बहुसंख्यक शोषितों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है। शोषित वर्ग के अभाव-जर्जन अंतःकरण की मूक व्यथा-कथा को वाणी प्रदान करने का इसका प्रयास सराहनीय है। बाबू गुलाबराय ने लिखा हैं," प्रगतिवाद हमको स्वार्थ-परामय व्यक्तिवाद से हटाकर समष्टिवाद की ओर ले गया है। यही प्रगतिवाद का सबसे बड़ा प्रदेय है और यही उसके महत्व का सबसे बड़ा कारण हैं।" प्रगतिवाद के आलोचक आचार्य नन्ददुलारे बाजपेयी को भी इसकी मंगल-विधायिनी शक्ति से प्रभावित होकर लिखना पड़ा हैं," साहित्य के सामाजिक लक्ष्यों और उद्देश्यों का विज्ञापन करने वाली यह पद्धित साहित्य पर बहुत कुछ उपकार भी कर सकी है। उसने हमारे युवकों को एक नई तेजस्विता भी प्रदान की है और एक नया आत्मबल भी दिया हैं।" उसने दो वस्तुएँ मुख्य रूप से दी है। प्रथम यह कि काव्य साहित्य का समन्वय सामाजिक वास्तविकता से है और वही साहित्य मूल्यवान है जो सजग और संवदेनशील है, द्वितीय यह कि जो साहित्य सामाजिक वास्तविकता से जितना ही दूर होगा, वह उतना ही काल्पनिक और प्रतिक्रियावादी कहा जायेगा।
लक्ष्मीनारायण वार्ष्णेय के अनुसार," क्योंकि काव्य-शिल्प की दृष्टि से उसमें अनेक नवीन बातों का समावेश हुआ, अनेक प्रयोग हुए, इसलिए प्रकार की सभी नवीन कविताओं की प्रकृति को "प्रयोगवाद" की संज्ञा प्रदान की गई।" 
अज्ञेय के अनुसार," प्रयोगशील कविता में नये सत्यों या नई यथार्थताओं का जीवत बोध भी है, उन सत्यों के साथ नये रागात्मक सबंध और उनको पाठक या सह्रदय तक पहुँचाने या साधारणीकरण करने की शक्ति हैं।

प्रगतिवाद की दुर्बलताएं

आलोचकों ने प्रगतिवादी काव्य पर अनेक आरोप लगाये हैं जो निम्नलिखित हैं-- 
1. प्रगतिवादी साहित्यकार की दृष्टि एकाँगी है, वह समाज का सर्वागीण चित्रण प्रस्तुत नहीं करता है। उसकी सारी सहानुभूति शोषित वर्ग के साथ है। पूंजीपति वर्ग मे यदि कोई गुण हो भी, तो भी उसकी दृष्टि उन पर नहीं जाती।
2. प्रगतिवाद का ईश्वर, परलोक, धर्म, संस्कृति आदि में कोई विश्वास नहीं। भारत जैसे धर्मप्राण देश के लिए यह उचित नहीं हैं। 
3. अनेक प्रगतिवादी साहित्यकार ऐसे हैं जिनका सुखमय जीवन रहा है उनके दलित वर्ग के चित्रों में अनुभूति और अभिव्यक्ति की मार्मिकता नहीं मिलती लगता है कि किसानों और मजदूरों के प्रति उनकी सहानुभूति किराये की है, दलित वर्ग की पीड़ा को खुद न भोगने के कारण उनके चित्रों में भावानुभूति की तीव्रता नहीं हैं। 
4. प्रगतिवादी साहित्यकार यथार्थ को आवश्यकता से अधिक महत्व देता है। फलस्वरूप उसका यथार्थ चित्रण कहीं-कहीं वीभत्स हो उठता है। 
5. प्रगतिवादी साहित्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाये जाने के कारण बौद्धिकता का प्राधान्य हो जाता है और रस-विभोर की क्षमता प्रायः नहीं रहती। 
6. प्रगतिवादियों का यह कथन कि मार्क्सवाद ही जीवन को सच्चा और सही दिशा-निर्देशन कर सकता है, भ्रामक है। मार्क्सवाद के अतिरिक्त अन्य सभी चिन्तकों की विचारधारा और कार्यपद्धति को अनुपयोगी बताना उनके संकीर्ण और अनुदार दृष्टिकोण का परिचायक है। 
7. प्रगतिवाद कार्ल मार्क्स की राजनीतिक विचारधारा को साहित्य पर आरोपित करना चाहता है, फलस्वरूप काव्य-कला का उन्नयन नहीं हो पाता। किसी राजनीतिक मतवाद के आधार-स्तम्भ पर अवस्थित साहित्य-प्रासाद भव्य और गरिमामय हो ही नहीं सकता। राजनीत का अनुचित प्रवेश साहित्य के लिए बाधा बन जाता हैं।

प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ 

1. नागार्जुन
रचनाएँ; युगधार, सतरंगे पंखो वाली, प्यासी पथराई आँखें।
2. केदारनाथ अग्रवाल
रचनाएँ; युग की गंगा, फूल नही रंग बोलते है, नींद के बादल।
3. शिवमंगलसिंह सुमन
रचनाएँ; हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया।
4. त्रिलोचन
रचनाएँ; धरती, मिट्टी की बारात, मैं उस जनपद का कवि हूँ।
5. रांगेय राघव
रचनाएँ; अजेय खण्डहर, मेधावी, पांचाली, राह के दीपक।
6. सुमित्रानंदन पंत
रचनाएँ; युगवाणी, ग्राम्या।
7. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
रचना; कुकुरमुत्ता।
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