6/28/2023

नई कविता किसे कहते हैं? नई कविता की विशेषताएं

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नई कविता 

सन् 1950 ई. के बाद नई कविता का नया रूप शुरू हुआ। प्रयोगवादी कविता ही विकसित होकर नई कविता कहलायी। यह कविता किसी भी प्रकार के वाद के बन्धन मे न बँधकर वाद मुक्त होकर रची गयी।  नई कविता की विषय वस्तु मात्र चमत्कार न होकर एक भोगा हुआ यथार्थ जीवन है। नई कविता परिस्थितियों की उपज है।
आज हम नई कविता किसे कहते हैं? नई कविता क्या हैं? और नई कविता की विशेषताएं जानेगें।

नई कविता किसे कहते हैं? नई कविता क्या हैं? {nai kavita kise kahte hai)

नई कविता स्वतंत्रता के बाद लिखी गई वह कविता है जिसमे नवीन भावबोध, नए मूल्य तथा नया शिल्प विधान है। नई कविता मे मानव का वह रूप जो दार्शनिक है, वादों से परे है, जो एकांत मे प्रगट होता है, जो प्रत्येक स्थिति मे जीता है, प्रतिष्ठित हुआ है। उसने लघु मानव को, उसके संघर्ष को बार-बार वण् र्य बनाया है। नई कविता मे दोनों परिवेशों को लेकर लिखने वाले कवि है। एक ओर ग्रामीण परिवेश, दूसरी ओर शहरी जिसमे कुंठा, घुटन, असमानता, कुरूपता आदि का वर्णन हुआ है।
नई कविता को वस्तु की उपेक्षा शिल्प की नवीनता ने अधिक गंभीर चुनौती दी है। नए शिल्प अपनाना और परम्परागत शिल्प को तोड़ना दुष्कर कार्य था। अतएव कुछ कवितायों को छोड़कर छोटी-मोटी कविताओं की प्रचुरता रही। और प्रभावशीलता की दृष्टि से ये छोटी-छोटी रचनाएँ भी बड़े-बड़े वृत्तान्तों से कही अधिक सफल बन पड़ी हैं।

नई कविता की विशेषताएं (nai kavita ki visheshta)

नई कविता की विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. लघु मानव वाद की प्रतिष्ठा
मानव जीवन को महत्वपूर्ण मानकर उसे अर्थपूर्ण दृष्टि प्रदान की गई।
2. नवीन सौंदर्य-बोध 
नई कविता छायावादी सौंदर्य-बोध का पुर्नमूल्यांकन कर नवीन दृष्टिकोण से सौंदर्य-छवियाँ अभिचित्रित करती है। वह वासनात्मक चित्रों के स्थान पर प्रसन्न भाव-चित्रों को महत्व देती है। बालकृष्ण राव की कविता 'आगरा और ताज' की ये पंक्तियाँ देखिये-- 
रात भर 
रात भर चाँदनी अकेली घूमती है सुनी सड़कों पर 
ज्वार उठता है संगमरमर के सागर में 
पर न कभी छीटों से
टूट सकी गाढ़ी नींद 
दिन-भर के जपे तपे, थके-हारे आगरे की।
3. प्रयोगों मे नवीनता
नए-नए भावों को नए-नए शिल्प विधानों मे प्रस्तुत किया गया है।
4. मानवतावाद 
नई कविता की मूल प्रेरणा मानव है, इसकी संवेदना मानव मात्र तक व्याप्त है। वर्ग संघर्ष एवं शोषण के युग में मानव के प्रति अपार सम्मान जाग्रत करना नई कविता की प्रमुख प्रवृत्ति है। नई कविता में मानव-मात्र के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण जगाता हुआ कवि कहता हैं-- 
'जीवन है कुछ इतना विराट इतना व्यापक। 
उसमें है सबके लिये जगह सबका महत्व।।"
5. क्षणवाद को महत्व 
जीवन के प्रत्येक क्षण को महत्वपूर्ण मानकर जीवन की एक-एक अनुभूति को कविता मे स्थान प्रदान किया गया है।
6. अनुभूतियों का वास्तविक चित्रण
मानव व समाज दोनों की अनुभूतियों का सच्चाई के साथ चित्रण किया गया है।
7. आस्था और विश्वास के स्वर 
आस्था नई कविता की आधार भूमि है। द्वितीय सप्तक के कवियों में आस्था और विश्वास के स्वर तीव्रता से झंकृत हुये है। आधुनिक बिखराव और अनास्था पर विजय पाने के स्वर इन पंक्तियों में दृष्टव्य हैं-- 
'मनुज चल सके इसलिए तो अन्धकार में सूर्य चल रहा। 
जहाँ गया मनु-पुत्र नदी ने जल पहुँचाया। 
रत्न भरा धरा ने मानव को शत-शत हीरों से लादा। 
मनुज चला तो सृष्टि चली, अन्यथा पूर्व थी प्रकृति मात्र।।'
8. कुंठा, संत्रास, मृत्युबोध
मानव मन मे व्याप्त कुंठाओं का, जीवन के संत्रास एवं मृत्युबोध का मनोवैज्ञानिक ढंग से चित्रण इस काल की कविताओं का पहचान है।
9. संवेदनशीलता 
नई कविता जीवन के भोगे हुये प्रत्येक गहरे क्षण को आन्तरिक भावों के साथ ग्रहण करती है। क्षणों की अनुभूतियों को प्रस्तुत करने वाली कवितायें लघु होने पर भी प्रभावकारी व्यंजना करने में सक्षम है। नये कवि की अनुभूति की सच्चाई और गहराई में कितनी शक्ति निहित हैं, देखिये इन पंक्तियाँयें-- 
'मैं जिन्दगी का मुसाफिर हूँ, उस बेलोस जिन्दगी का, 
जो अपनी लाश की पसलियों पर पाँव रखकर ठहाके मारती है।।"
10. बिम्ब 
प्रयोगवादी कवियों ने नूतन बिम्बों की खोज की हैं।
आत्मा मुक्ति 
नई कविता के कवि का दर्शन आत्म मुक्ति का है। नई कविता अपने को छोटे-बड़े, देशी-विदेशी साहित्य एवं सामूहिक गुटबन्दी से बचाती हुई स्वयं के मुक्ति-दर्शन में निमग्न है। डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार," साहित्य अपने शुद्ध रूप में अहम् का विसर्जन हैं।'
11. व्यंग्य प्रधान रचनाएँ
इस काल मे मानव जीवन की विसंगतियों, विकृतियों एवं अनैतिकतावादी मान्यताओं पर व्यंग्य रचनाएँ लिखी गई हैं।
12. लघु मानव की प्रतिष्ठा
लघु मानव नई कविता की एक शोध है। लघु मानव की शोचनीय अभिव्यक्ति पर व्यग्र होकर लक्ष्मीकान्त वर्मा ने 'लघु मानव' की लघुता को व्यापक महत्ता के सन्दर्भों से जोड़ा है। वे 'लघुमानव' के लघु परिवेश और लघु-सीमा को पुंसत्वहीन और निष्क्रिय मानते हैं। 'लघुमानव' के स्वरुप की प्रतिष्ठा कवि के स्वरों में अवलोकनीय हैं-- 
'और तब मेरी अपनी लघु स्थिति में 
वह सब कुछ है, जो ऋतु है, पावन है, मंगल है, शुभ है। 
किन्तु वह भी है, रौख है, गलित, वीभत्स, कुरूप, अपरूप है।'
13. प्रकृति चित्रण 
नई-कविता में रंग, स्पर्श, ध्वनि आदि पर आधारित बिम्बों के द्वारा प्रकृति के विशिष्ट दृश्यों को बड़ी सूक्ष्मता के साथ उभारा गया है। डाॅ. धर्मवीर भारती ने 'नवम्बर की दोपहर' कविता में नवम्बर की धूप के सुखद स्पर्श को जार्जेट के पल्ले की उपमा द्वारा उपमित करते हुये लिखा हैं कि-- 
'अपने हल्के-फुल्के उड़ते स्पर्शों से मुझको छू जाती है। 
जार्जेट के पीले पल्ले-सी, यह दोपहर नवम्बर की।।'
14. जीवन चित्रण 
नया कवि व्यक्तिवादी है। वह अपने चारों ओर के समाज पर या तो दृष्टिपात करता नहीं है और यदि करता भी है तो उसकी दृष्टि समाज की कुत्सा, विषाद और भोंडे-पन पर ही जाती है। देखिये श्री देवराज के शब्दों में 'क्लर्क' का एक चित्र-- 
'सबेरे साँझ चाय पीता हूँ 
डालडा खा खुसी से जीता हूँ 
कौन न जाने शरीर में क्या हैं, 
दिल है खाली, दिमाग दोता हैं।
15. नवीनता के प्रति आग्रह 
नई कविता नवीनता की प्रवृत्ति को लेकर अग्रसर हुई हैं। नये कवि के लिये परम्परायें सदा त्याज्य रही है। नये युग के परिवेश के साथ कदम मिला कर जो मूल्य नहीं चल पाते हैं, उनके प्रति आक्रोश भी नये साहित्य में अभिव्यक्त होता है। पुरानी नैतिकता को ढोते-ढोते कवि कितना टूट चुका है, उसी के शब्दों में-- 
'मैं अध कुचला सिद्धार्थ हूँ 
जिसने वरी न कभी कोई यशोधरा
जिसका दिव्य-स्वप्न 
अमिताभ होने के पूर्व ही 
नाली में जा गिरा।'
इस प्रकार उपर्युक्त विस्तृत विवेचन से स्पष्ट है कि नई कविता साहित्य-जगत में व्यापक प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी है। चाहे विषय परिधि हो या उपमानों की परिकल्पना, चाहे बिम्ब-योजना हो या प्रतीक-विधान, चाहे वस्तुगत सौष्ठव हो या शिल्पगत सृजन-सभी क्षेत्रों में नई कविता ने अपना स्तुत्य स्थान प्राप्त कर लिया हैं।

नई कविता की कुछ अन्य विशेषताएं 

1. अति यथार्थता।
2. पलायन की प्रवृत्ति।
3. वैयक्तिकता।
4. निराशावाद।
5. बौद्धिकता।
नई कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
1. भवानी प्रसाद मिश्र 
रचनाएँ; सन्नाटा, गीत फरोश, चकित है दुःख।
2. कुंवर नारायण 
रचनाएँ; चक्रव्यूह, आमने-सामने, कोई दूसरा नही।
3. शमशेर बहादुर सिंह
रचनाएँ; काल तुझ से होड़ है मेरी, इतने पास अपने, बात बोलेगी हम नहीं।
4. जगदीश गुप्त
रचनाएँ; नाव के पाँव, शब्द दंश, बोधि वृक्ष, शम्बूक।
5. दुष्यंत कुमार
रचनाएँ; सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप।
6. श्रीकांत वर्मा 
रचनाएँ; दिनारम्भ, भटका मेघ, माया दर्पण, मखध।
7. रघुवीर सहाय 
रचनाएँ; हँसो-हँसो जल्दी हँसो, आत्म हत्या के विरुद्ध।
8. नरेश मेहता
रचनाएँ; वनपांखी सुनों, बोलने दो चीड़ को, उत्सव।
स्त्रोत; स्वाति (हिन्दी विशिष्ट) मध्यप्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र, भोपाल।
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