4/05/2023

रहस्यवाद किसे कहते हैं? रहस्यवाद की विशेषताएं

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प्रश्न; रहस्यवाद से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
अथवा", रहस्यवाद का अर्थ बताते हुए रहस्यवाद की विशेषताएं लिखिए।
उत्तर--
हिन्दी कविता  मे रहस्यवाद का काल निर्धारण करना कठिन हैं क्योंकि रहस्यवाद सृष्टि के आरम्भ से ही कवितायों को प्रिय रहा है। वेदों मे ऊषा, मेघ सरिता आदि के वर्णन मे अव्यक्त परमात्मा के स्परूप को लक्ष्य किया गया है। यह प्रकृति और जगत ही रहस्यमय है। कण-कण मे परमात्मा मे होने का आभास ही रहस्यवाद हैं।
आज हम रहस्यवाद किसे कहते हैं? रहस्यवाद क्या हैं? रहस्यवाद की विशेषताएं तथा छायावाद और रहस्यवाद मे अतंर को जानेंगे।

रहस्यवाद किसे कहते हैं? एवं रहस्यवाद की परिभाषा (rahasyavad kise kahte hai)

रहस्यवाद कवि की एक ऐसी साहित्यिक अधिव्यक्ति है जिसमें वह परम सत्ता के विषय में अपने विचारों को सीधी-साधी भाषा में प्रस्तुत न करके एक नई भाषा में अंकित करता हैं वह परमसत्ता को अपनी लेखनी का विषय बना एक ऐसे अनंत संसार में पहुंच जाता है जहाँ सुख-दुख, आशा-निराशा, हास्य-रूदन, संयोग-वियोग, शोक-विषाद आदि भी समान हैं। 
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार," साधना के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद हैं, काव्य के क्षेत्र में वही रहस्यवाद हैं।" 
डाॅ. रामकुमार वर्मा के अनुसार," रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तर्निहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है, जिसमें वह दिव्य और अलौकिक शक्ति से अपना शान्त और निश्चल संबंध जोड़ना चाहता है और वह संबंध यहाँ तक बढ़ जाता है कि दोनों में अन्तर नहीं रह जाता हैं।" 
डाॅ. त्रिगुणायत के अनुसार," जब साधक भावना के सहारे आध्यात्मिक सत्ता की रहस्यममी अनुभूतियों को वाणी के द्वारा शब्दमय चित्रों में सजाकर रखने लगता हैं, तभी साहित्य में रहस्यवाद की दृष्टि होती हैं।"
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रहस्यवाद की परिभाषा इस प्रकार की हैं " चिंतन के क्षेत्र मे जो अद्वैतवाद है, भावना के क्षेत्र मे वही रहस्यवाद हैं।"
महादेवी वर्मा के शब्दों मे " अपनी सीमा को असीम तत्व में खोजना ही रहस्यवाद है।"
जहाँ कवि इस अनन्त परमतत्व और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा मे प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता हैं, वहाँ रहस्यवाद है। रामचंद्र शुक्ल ने रहस्यवाद को भारतीय साहित्य की विशिष्ट उपलब्धि माना हैं।
बाबू  गुलाबराय ने " प्रकृति मे मानवीय भावों का आरोप कर जड़ चेतन के एकीकरण की प्रवृत्ति के लाक्षणिक प्रयोग को रहस्यवाद कहा हैं।"
मुकुटधर पांडेय के अनुसार रहस्यवाद " प्रकृति मे सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यवाद हैं।"
हिन्दी काव्य मे छायावाद प्रवृत्ति के जन्म के बहुत पहले कबीर, जायसी, मीरा आदि मे रहस्यवाद अपनी पूर्ण गरिमा के साथ विद्यमान है।
आधुनिक हिन्दी कविता मे रहस्यवाद का उद्भव और विकास छायावाद युग मे हुआ। छायावाद कविता के समापन के साथ ही रहस्यवादी कविताओं का सृजन बंद हो गया। सन् 1928 से 30 के आस-पास रहस्यवाद अपनी चरम अवस्था मे था। आधुनिक युग की विशेषकर, छायावादी कविताएँ पढ़कर रहस्यवादी प्रवृत्तियों को समझना सरल हो जाता हैं।

रहस्यवाद की चार विशेषताएं (rahasyavad ki visheshta)

रहस्यवाद की निम्नलिखित विशेषताएं हैं--
1. अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम
इस युग की कविताओं मे अलौकिक सत्ता के प्रति जिज्ञासा, प्रेम व आकर्षण के भाव व्यक्त हुए हैं।
2. परमात्मा मे विरह-मिलन का भाव
आत्मा को परमात्मा की विरहिणी मानते हुए उससे विरह व मिलन के भाव व्यक्त किए गए हैं।
3. जिज्ञासा की भावना
सृष्टि के समस्त क्रिया तथा अदृश्य ईश्वरीय सत्ता के प्रति जिज्ञासा के भाव प्रकट गए है।
4. प्रतीकों का प्रयोग
प्रतीकों के माध्यम मे भावाभिव्यक्ति की गई है।

रहस्यवाद और छायावाद मे अंतर 

1. रहस्यवाद मे चिंतन की प्रधानता हैं, छायावाद मे कल्पना की प्रधानता हैं।
2. रहस्यवाद में ज्ञान व बुद्धितत्व की प्रधानता हैं, छायावाद मे भावना की प्रधानता हैं।
3. रहस्यवाद की प्रकृति दार्शनिक है, इसके मूल मे प्रकृति है।
यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगी

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