रीति सिद्ध काव्य की विशेषताएं
रीतिसिद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं--
1. रीतिसिद्ध काव्य के रचयिता के कवित्व में अधिक उद्घाटन मिलता है जबकि रीतिबद्ध काव्य के रचयिता अपने आचार्यत्व की झलक अपनी कृतियों में छोड़ते हैं।
2. रीतिबद्ध कवियों ने रीति-परंपरा की न तो उपेक्षा की न उसका अंधानुकरण। रीति सिद्ध कवि रीतिबद्ध और रीतिमुक्त कवियों से इस बात में भिन्न कि वे आचार्य बनने के आकांक्षी न होते हुए भी रीति-परंपरा द्वारा प्राप्त काव्य के उपकरणों से अपनी रचनाओं को मंडित करने में संकोच नहीं करते। रीतिमुक्त कवियों की तरह रीतिसिद्ध कवि काव्यशास्त्रीय परंपरा की नितांत उपेक्षा नहीं करते। रीतिसिद्ध कवि रीति-ग्रंथों का निर्माण नहीं करते। इस प्रकार ये न तो रीति से बंधे है न पूर्णतः उदासीन हैं।
3. रीतिबद्ध कवियों की अपेक्षा इन कवियों ने काव्य में अपने व्यक्तित्व का प्रतिबिम्बन अधिक किया हैं, परंतु रीतिमुक्त कवियों की अपेक्षा इनमें सामान्य तत्व अधिक हैं।
4. इस वर्ग के कवि चमत्कार की चिंता लक्षण-ग्रंथों के अनुमोदन की अपेक्षा संस्कृत के श्रृंगार मुक्तकों के अधिक अनुगामी हैं।
5. संस्कृत की शास्त्रीय परंपरा की अपेक्षा संस्कृत के श्रृंगार मुक्तकों के अनुगामी कवि।
6. ऐहिक जीवन के मार्मिक खंड-चित्र प्रस्तुत करने के कारण इनके मुक्तक रीतिबद्ध कवियों के लक्षण अनुगामी मुक्तकों की अपेक्षा अधिक रसात्मक हैं। इसी से कतिपय रीतिसिद्ध कवियों को समीक्षकों ने रस-सिद्ध भी माना हैं।
7. रीतिसिद्ध के कवियों ने दोहा-छंद का अधिक प्रयोग किया है। मुक्तक शैली तथा श्रृंगार का प्राधान्य इन्हीं कवियों की रचनाओं में सबसे अधिक उभर कर सामने आया हैं।
8. अपनी काव्य कृतियों के लिए इन कवियों ने अलंकार, रस तथा ध्वनि संप्रदायों को अपना प्रेरणा-स्त्रोत बनाया हैं।
9. इनके अलंकार-विधान में पिष्ट योषण न्यूनतम हैं।
10. रीतिसिद्ध काव्य में भाव-पक्ष और कला-पक्ष का संतुलित समन्वय है जबकि रीतिबद्ध काव्य में कला-पक्ष तथा रीति-मुक्त काव्य में भाव-पक्ष प्रधान हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
Write commentआपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।