यह भी पढ़ें; सामाजिक संगठन की अवधारणा अर्थ और परिभाषा
सामाजिक गठबंधन का अभिप्राय समाज की निर्माणक इकाइयों के बीच परस्पर संबध्दता से है। यह स्थिति तब निर्मित होती है जब समाज के सदस्यों के बीच परस्परिक सहयोग व एकता की भावना हो। इसके लिए आवश्यक अनुशासन सामाजिक नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा संभव है। समाजशास्त्रीय इमाइल दुर्खीम ने समाज मे नैतिकता और मूल्य मतैक्यता को सामूहिकता का आधार माना। सरल समाजों मे सामाजिक गठबंधन की प्रक्रिया समाज के आदर्श प्रतिमानों से अनौपचारिक तरीकों से संभव होती थी। आधुनिक समाजों मे हित प्रधान संबंधों मे औपचारिक तरीके से यह संभव हो पाता है।
2. सामाजिक एकमतता
समाज की साधारण बातों पर अधिकांश सदस्यों का एकमत हुए बिना सामाजिक सम्बन्धों के व्यवस्थित रूप की कल्पना करना सम्भव नही है। यहाँ एकमत का अर्थ है, सामज की सामान्य बाते अर्थात् धर्म, सरकार, अर्थ व्यवस्था आदि के विषय मे अधिकांश सदस्यों द्वारा समान विचार तथा समान दृष्टिकोण रखना। यदि सदस्यों के समान विचार नही होते तो समाज मे एकमत समाप्त हो जाता है।
3. सामाजिक नियन्त्रण
सामाजिक संगठन का एक आवश्यक तत्व सामाजिक नियन्त्रण भी है। सामाजिक नियन्त्रण का सामाज मे सामाजिक संगठन बनाए रखने मे महत्वपूर्ण योगदान होता है। सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख उद्देश्य समाज मे अनुरूपता बढ़ाना, संतुलन स्थापित करना है। सामाजिक नियन्त्रण के द्वारा सामाजिक संरचना मे सापेक्षिक स्थिरता की स्थिति निर्मित होती है और इकाइयों की प्रकार्यात्मक निरंतरता बनी रहती है।
3. सहयोग
सहयोग एक स्वाभाविक एवं अनिवार्य प्रक्रिया है। सहयोग के बिना हम सामाजिक जीवन की कल्पना भी नही कर सकते। इस प्रकार सहयोग सामाजिक संगठन के लिए अति आवश्यक है।
4. सामाजिक मानदण्ड
सामाजिक मानदण्ड एक नियम या आदर्श है जो हमारे आचरण को उस सामाजिक परिस्थिति मे निर्धारित करते है जिसमे हम भाग लेते है, यह एक सामाजिक अपेक्षा है जिसमे हम भाग लेते है।
5. स्थिति तथा कार्य
समाज का निर्माण करने वाली अनेक इकाइयां होती है। उनके निश्चित पद तथा कार्य होते है। ये इकाइयां अपने निश्चित पदों के अनुसार कार्य करती है। यदि ये इकाइयां अपने निश्चित पदों के अनुसार कार्य करती रहती है तो समाज मे व्यवस्था बनी रहती है। इसके विपरीत स्थिति मे सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था टूट जाती है। सामाजिक सम्बन्धों अथवा समाज की संरचना का व्यवस्थित रूप ही सामाजिक संगठन कहलाता है।
6. सामाजिक प्रचार माध्यम
सामाजिक प्रचार के माध्यम भी सामाजिक संगठन का एक तत्व है। आधुनिक समाजों मे प्रचार के साधन उद्देश्यों की पूर्ति मे विशेष रूप से सहायक होते है। प्रचार वह चेतन प्रयास है जिसके द्वारा विचारों, विश्वासों और व्यवहार के तरीकों को लोगों मे इस प्रकार फैलाया जाता है कि वे उसे स्वीकार कर सके। प्रेस, समाचार-पत्र, पत्रिकायें, टेलीविजन, सिनेमा, रेडियो का उपयोग और अब सोशल मीडिया के माध्यम से विशाल समूह की सामान्य महत्व के विषयों पर आम सहमति बनाई जा सकती है। सुझाव दिया जा सकता है। इन सुझावों के माध्यम से व्यक्तियों की रूचियों, मनोवृत्तियो को परिवर्तित किया जा सकता है।
7. आत्मीकरण
आत्मीकरण सामाजिक संगठन के लिए अति आवश्यक है। यह एकीकरण की प्रक्रिया है जो समाज मे व्यक्तियों के दृष्टिकोणों को एक समान बनाती है।
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आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; व्यवस्थापन के प्रकार व व्यवस्थापन की पद्धतियाँ
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सामाजिक संगठन के आवश्यक तत्व
1. सामाजिक गठबंधनसामाजिक गठबंधन का अभिप्राय समाज की निर्माणक इकाइयों के बीच परस्पर संबध्दता से है। यह स्थिति तब निर्मित होती है जब समाज के सदस्यों के बीच परस्परिक सहयोग व एकता की भावना हो। इसके लिए आवश्यक अनुशासन सामाजिक नियन्त्रण की प्रक्रिया द्वारा संभव है। समाजशास्त्रीय इमाइल दुर्खीम ने समाज मे नैतिकता और मूल्य मतैक्यता को सामूहिकता का आधार माना। सरल समाजों मे सामाजिक गठबंधन की प्रक्रिया समाज के आदर्श प्रतिमानों से अनौपचारिक तरीकों से संभव होती थी। आधुनिक समाजों मे हित प्रधान संबंधों मे औपचारिक तरीके से यह संभव हो पाता है।
2. सामाजिक एकमतता
समाज की साधारण बातों पर अधिकांश सदस्यों का एकमत हुए बिना सामाजिक सम्बन्धों के व्यवस्थित रूप की कल्पना करना सम्भव नही है। यहाँ एकमत का अर्थ है, सामज की सामान्य बाते अर्थात् धर्म, सरकार, अर्थ व्यवस्था आदि के विषय मे अधिकांश सदस्यों द्वारा समान विचार तथा समान दृष्टिकोण रखना। यदि सदस्यों के समान विचार नही होते तो समाज मे एकमत समाप्त हो जाता है।
3. सामाजिक नियन्त्रण
सामाजिक संगठन का एक आवश्यक तत्व सामाजिक नियन्त्रण भी है। सामाजिक नियन्त्रण का सामाज मे सामाजिक संगठन बनाए रखने मे महत्वपूर्ण योगदान होता है। सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख उद्देश्य समाज मे अनुरूपता बढ़ाना, संतुलन स्थापित करना है। सामाजिक नियन्त्रण के द्वारा सामाजिक संरचना मे सापेक्षिक स्थिरता की स्थिति निर्मित होती है और इकाइयों की प्रकार्यात्मक निरंतरता बनी रहती है।
3. सहयोग
सहयोग एक स्वाभाविक एवं अनिवार्य प्रक्रिया है। सहयोग के बिना हम सामाजिक जीवन की कल्पना भी नही कर सकते। इस प्रकार सहयोग सामाजिक संगठन के लिए अति आवश्यक है।
4. सामाजिक मानदण्ड
सामाजिक मानदण्ड एक नियम या आदर्श है जो हमारे आचरण को उस सामाजिक परिस्थिति मे निर्धारित करते है जिसमे हम भाग लेते है, यह एक सामाजिक अपेक्षा है जिसमे हम भाग लेते है।
5. स्थिति तथा कार्य
समाज का निर्माण करने वाली अनेक इकाइयां होती है। उनके निश्चित पद तथा कार्य होते है। ये इकाइयां अपने निश्चित पदों के अनुसार कार्य करती है। यदि ये इकाइयां अपने निश्चित पदों के अनुसार कार्य करती रहती है तो समाज मे व्यवस्था बनी रहती है। इसके विपरीत स्थिति मे सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था टूट जाती है। सामाजिक सम्बन्धों अथवा समाज की संरचना का व्यवस्थित रूप ही सामाजिक संगठन कहलाता है।
6. सामाजिक प्रचार माध्यम
सामाजिक प्रचार के माध्यम भी सामाजिक संगठन का एक तत्व है। आधुनिक समाजों मे प्रचार के साधन उद्देश्यों की पूर्ति मे विशेष रूप से सहायक होते है। प्रचार वह चेतन प्रयास है जिसके द्वारा विचारों, विश्वासों और व्यवहार के तरीकों को लोगों मे इस प्रकार फैलाया जाता है कि वे उसे स्वीकार कर सके। प्रेस, समाचार-पत्र, पत्रिकायें, टेलीविजन, सिनेमा, रेडियो का उपयोग और अब सोशल मीडिया के माध्यम से विशाल समूह की सामान्य महत्व के विषयों पर आम सहमति बनाई जा सकती है। सुझाव दिया जा सकता है। इन सुझावों के माध्यम से व्यक्तियों की रूचियों, मनोवृत्तियो को परिवर्तित किया जा सकता है।
7. आत्मीकरण
आत्मीकरण सामाजिक संगठन के लिए अति आवश्यक है। यह एकीकरण की प्रक्रिया है जो समाज मे व्यक्तियों के दृष्टिकोणों को एक समान बनाती है।
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आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; सहयोग अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
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आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; व्यवस्थापन के प्रकार व व्यवस्थापन की पद्धतियाँ
आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए; सात्मीकरण का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
आवश्यक संगठन के तत्व कौन से हैं
जवाब देंहटाएंKonsa samajic prakriya ka aavasyak tatv nahi hai
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