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व्यवस्थापन के प्रकार (vyvasthapan ke prakar)
गिलिन और गिलिन ने व्यवस्थापन के दो प्रकार बतलाए है---1. समन्वयात्क व्यवस्थापन
यह व्यवस्थापन का वह रूप है जिसमे दो समान शक्ति वाले व्यक्ति, समूह अथवा राष्ट्र आपस मे संघर्ष की स्थिति को टालकर खुला समझौता कर लेते है। इस तरह के व्यवस्थापन का सबसे उपयुक्त उदाहरण है, परिवारिक विघटन की स्थिति को टालकर समझौता कर लेना। वर्तमान समय मे भारतीय समाज मे विवाह विच्छेद की दर तुलनात्मक रूप से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति मे परिवार " परामर्श केन्द्रों " के माध्यम से समझौते की प्रक्रिया के अनेक उदाहरण सामने आते है। इसके अलावा दो राष्ट्रों के बीच कुछ शर्तों के साथ संधि कर लेना भी समन्वयात्क व्यवस्थापन का उदाहरण है।
2. अधीनस्थ व्यवस्थापन
यह व्यवस्थापन उन पक्षों के बीच होता है जिनमें एक पक्ष शक्तिशाली एवं दूसरा कमजोर होता है। उदाहरण के लिए युद्ध मे शक्तिशाली राष्ट्र की विजय होने के बाद वह हारे हुए राष्ट्र पर अपनी शर्तें थोपता है और हारे हुए राष्ट्र को मजबूरन उन्हें मानना पड़ता है अन्यथा उसके नष्ट होने का डर रहता है। इसी प्रकार से छोटे व्यापारिक संस्थानों को कई बार बड़े व्यापारिक संस्थानों एवं फर्मों की शर्तों के अनुसार व्यापारिक समझौता करना पड़ता है। व्यवस्थापन मे कमजोर पक्ष अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयत्न करता है जिससे कि भविष्य मे वह शक्ति-परीक्षण कर सके।
व्यवस्थापन की पद्धतियाँ
1. समझौताजब दो समान पक्षों मे विचार-विमर्श के पश्चात चेतन रूप से सहयोग की दिशा मे आगे कदम बढाया जाता है तब यह पद्धति समझौता कहलाती है। दो व्यक्ति, समूह अथवा राष्टों के बीच व्यवस्थापन की यह प्रचलित पद्धति है। उदाहरण के लिए हम 1965 मे हुए भारत और पाकिस्तान के युद्ध को ले सकते है। 1965 के युद्ध के बाद दोनों पक्षो को ताशकंद वुलाया गया यहाँ 1966 को एक शांति समझौता हुआ जिसे ताशकंद समझौते के नाम से जाना जाता है।
2. बल प्रयोग
बल प्रयोग मानसिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार से हो सकता है। इसमे कमजोर पक्ष शक्तिशाली पक्ष के सामने झुकता है। शक्तिशाली पक्ष कहीं कमजोर पक्ष को नष्ट न कर दे, अतः वह शक्तिशाली की इच्छा एवं शर्तों के अनुसार कार्य करने को तैयार हो जाता है।
3. सहनशीलता
सहशीलता व्यक्तित्व का ऐसा गुण है जिससे व्यक्ति समूह मे विपरीत परिस्थितियो मे भी अनुकूलन कर पाने मे सफल हो जाता है। इसमे दोनों पक्ष एक-दूसरे की बातों को सहन करते है।
4. विचार परिवर्तन
आधुनिक जटिल समाजों मे सांस्कृतिक विविधता के कारण विचारों मे भिन्नता स्वाभाविक है। जब दो परस्पर विरोधी पक्षों मे से एक पक्ष यह मान लेता है कि दूसरा पक्ष सही है तब व्यवस्थापन संभव हो पाता है। उदाहरण प्रजातंत्र देशो मे कई विरोधी दल कभी-कभी साझे की सरकार बना लेते है।
5. युक्तिकरण
युक्तिकरण मे व्यक्ति बाहरी परिस्थितियों से तर्क के आधार पर सामंजस्य करता है। इसमे व्यक्ति अपनी मनोवृति तथा व्यवहार का समर्थन करता है। वह सोचता है कि उन परिस्थितियों मे ऐसा करना ही उचित था। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति संघर्ष मे हारने के अभाव मे उसे हारना ही था और हारने के बाद दूसरे पक्ष की बात मानने के अलावा उसके पास कोई अन्य चारा ही क्या था? चूनाव मे हारने वाला उम्मीदवार भी युक्तिकरण द्वारा व्यवस्थापन कर लेता है।
6. पंच निर्णय या सहयोजन
पंच निर्णय व्यवस्थापन की एक प्रचलित पद्धति है। इस पद्धति मे दो पक्षों के बीच समझौता न हो पाने की स्थिति मे मध्यस्थता की जाती है। इस प्रक्रिया मे मध्यस्थता करने वाला पक्षकार तटस्थ होता है, जो दो व्यक्ति, समूह अथवा राष्ट्र के बीच समायोजन करवाने मे सहयोग देता है।
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