11/01/2021

द्वितीय विश्व के प्रभाव/परिणाम

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द्वितीय विश्व युद्ध प्रभाव एंव परिणाम

dwitiya vishwa yudh ke parinaam prabhav;द्वितीय विश्‍व युद्ध की नौवत आने का प्रमुख कारण वर्साय की भेदभाव पूर्ण संधि थीं। इस संधि के दोष, यूरोपीय राष्‍ट्रों की प्रतिशोधपूर्ण कार्यवाही, अधिनायकों की प्रबल युद्ध-पिपासा, इंग्‍लैण्‍ड़ की तुष्टिकरण नीति तथा तथा राष्‍ट्रसंघ पर इंग्‍लैण्‍ड़ और फ्रांस के प्रभुत्‍व हिटलर और मुसोलिनी के विनाश के लिये यूरोप में मित्र-संघ बना था तथा वह अपने इस उद्देश्‍य में सफल भी हुये। 

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परन्‍तु मित्र संघ विजेता होकर भी युद्ध की क्षति के कारण पराजित देशों के समान ही अस‍मर्थ हो चुके थे। दोनों के इन विनाशों के कारण इनके द्वारा ही शोषित-पीडि़त और अधीन राष्ट्रों को स्‍वतंत्रता प्राप्‍त करने तथा लोकतंत्र को स्‍थापित करने के अवसर भी मिलें। 

द्वितीय विश्‍व युद्ध के अच्‍छे बूरे परिणामों का संक्षिप्‍त विवरण निम्‍नलिखित है--

1. विश्‍व की क्षति और यूरोपीय प्रधानता का नाश

संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की सभा में चर्चा के दौरान कहा गया कि युद्ध एंव उसके परिणामों के लिए कुटिल राजनीति ही प्रमुखतः जिम्‍मेदार होती है। द्वितीय विश्‍वयुद्ध में प्रथम विश्‍व युद्ध के अपेक्षा दुगले लोग ने अपने प्राणों का बलिदान दिया। इस युद्ध की जन-धन हानि का वास्‍तविक अनुमान लगाना कठिन हैं। किंतु एक अनुमान के अनुसार इस युद्ध में 3 करोड़ 75 हजार से अधिक लोग मारे गए। रूस की जनक्षति सर्वाधिक थीं। उसके 2 करोड़ सैनिक मारे गऐ। इस युद्ध में प्रथम विश्‍वयुद्ध की अपेक्षा पांच गुना अधिक धन व्‍यय हुआ जो अरबों पौण्‍ड़ था। घायलों की संख्‍या 3 करोड़ से अधिक थीं। इस विनाशकारी युद्ध ने विश्‍व को अर्द्धशताब्‍दी पीछे ढकेल दिया। 

2. दो महाशक्तियों का उदय और शीत युद्ध

द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद स्‍थायी शांति स्‍थापित करने के लियें कई प्रयास किये गए। लेकिन दो स्‍पष्‍ट विचारधाराओं साम्‍यवाद तथा साम्राज्‍यवादी प्रजातन्‍त्र के कारण यह सभी प्रयत्‍न निष्‍फल ही रहें। सोवियत संघ यूरोपीय राष्‍ट्रों तथा उपनिवेशों में अपना प्रभाव जमाने का प्रयत्‍न कर रहा था। अतः एक स्‍पष्‍ट गुट का नेता रूस बन गया। द्वितीय विश्‍वयुद्ध के बाद अमेरिका एक शक्तिशाली राष्‍ट्र के रूप में उभर के सामने आया। इंग्‍लैण्‍ड़ तथा फ्रांस ने साम्राज्‍यवादी देशों की बगडोर अमेरिका के हाथों में सौप दिया। अमेरिकी प्रभाव यूरोप तथा विश्‍व के अन्‍य क्षेत्रों में छा गया। अब निःशस्‍त्रीकरण तथा शन्ति समझौते की बातें बयानबाजी बनकर रह गई। पूरा विश्‍व अब बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट तरीके से दो विचारधारों का केन्‍द्र बन गया। साम्राज्‍यवादी गुट तथा साम्‍यवादी गुट। दोनों गुट कूटनीतिक शब्‍दों का उपयोग कर एक-दूसरे की अलोचना करने लगे। संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ तथा सुरक्षा परिषद् भी आरोप-प्रत्‍यारोप के मंच बन गए। इस ‘‘शीत-युद्ध‘‘ कहा गया है। यह पैंतरे बदलकर आज भी निरन्‍तर रूस से लड़ा जा रहा है। अमेरिका और रूस की प्रतिष्‍ठा में वृद्धि हो गई। इनकी प्रतिच्‍छाया प्रत्‍येक राष्‍ट्र पर पड़ने लगे। विश्‍व में दो बड़े दादाओं की दादागिरी राजनीति में प्रारंभ हो गई। 

3. संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ का निर्माण 

द्वितीय विश्‍व युद्ध के कारण फैली अशांति को भंग करके शांति स्‍थापित करने के उद्देश्‍य से संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ अस्तित्‍व सबके सामने आया। इसके निर्माण की प्रकिया के लियें 8 सम्‍मेलन हुये और 24 राष्‍ट्रों का सहयोग प्राप्‍त हुआ। 24 अक्‍टूबर, 1945 ई. को संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ का निर्माण हुआ। संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ ने अन्‍तर्राष्‍ट्रीय शांति और सुरक्षा, राष्‍ट्रों के समान अधिकार और आत्‍मनिर्णय तथा सामाजिक, आर्थिक और सांस्‍कृतिक समस्‍याओं के समाधान आदि के उद्देश्‍यों के लियें कार्य करना आरंभ किया। इसके सदस्‍य राष्‍ट्रों ने इसके सिद्धांतों का पालन करने की शपथ ली तथा संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ को सुव्‍यवस्थित रूप देने के लियें उसके अंगों की रचना की। साधारण सभा, आर्थिक और सामाजिक परिषद्, सचिवालय, न्‍यास परिषद्, अभिकरण संस्‍थाओं आदि बनीं। इनके माध्‍यम से संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ ने विश्‍व समस्‍याओं को सुलाझाने का प्रयत्‍न किया। 

4. औ‍पनिवेशिक साम्राज्‍यों का अन्‍त

अमेरिका के राष्‍ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्‍ट की अटलांटिक चार्टर की घोषणा से उपनिवेशों तथा अधिकृत देशों में रहने वाली जनता को अत्‍याधिक प्रोत्‍साहन मिला। इसलिए एशियाई देशों में स्‍वतंत्रता के लियें आंदोलन होने लगें। इन आंदोलन का स्‍वरूप इतना भयानक और तीव्र हो उठा कि साम्राज्‍यवादी राष्‍ट्रों को झुकाना पड़ा और उन्‍हें अपने अधीनस्‍थ देशों की स्‍वतंत्रता स्‍वीकार करनीं पडी। परिस्थितियों से विवश होकर महायुद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपनी नीति में परिवर्तन किया, जिससे भारत वर्मा, मलाया( आज के थाईलैंण्‍ड़, मलेशिया और सिंगापूर)  श्री लंका, मिस्‍त्र आदि अनेक देश ब्रिटेन के आधिपत्‍य से मुक्‍त हो गये। फ्रेंच हिन्‍दचीन में फ्रांसीसी आधिपत्‍य के अनेक देशों को भी स्‍वतंत्रता प्राप्‍त हुईं। कम्‍बोडि़या, लाओस, वियतनाम आदि देश स्‍वतंत्र हो गये। इस प्रकार दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद के वर्षो में धीरे-धीरे यूरोप के औपनिवेशिक साम्राज्‍य का सूर्य अस्‍त हो गया। वास्‍तव में 1919 ई. के बाद से ही एशिया और अफ्रीका में यूरोपीय साम्राज्‍य के विरूद्ध जो आंदोलन उठा था, उसको दूसरे महायुद्ध के बाद शानदार सफलता मिली और यूरोपीय साम्राज्‍य का पतन हो गया। इस तरह ब्रिटिश, फ्रांसीसी और डच साम्राज्‍य के बहुत बडे भाग का अन्‍त हो गया। सचमुच यह एक अभूतपूर्व घटना थीं। 

5. शीत युद्ध का आरंभ 

द्वितीय विश्‍व के पश्‍चात् अंतर्राष्‍ट्रीय पटल पर रूस और अमेरिका जैसी महाशक्तियों का उदय हुआ। इन दोनों में सिर्फ विचारधाराओं का मतभेद था, जहां एक ओर साम्‍यवाद की विचार थीं वहीं दूसरी ओर पूंजीवादी विचारधारा थीं। अतः दोनों देशों के बीच विभिन्‍न समस्‍याओं के सम्‍बंध में शीघ्र ही तीव्र मतभेद उत्‍पन्‍न हो गये। इन मतभेदों ने इतना तनाव और वैमनस्‍य उत्‍पन्‍न कर दिया कि सशस्‍त्र संघर्ष के न होते हुए भी दोनों के बीच आरोपों, प्रत्‍यारोपों एंव परस्‍पर विरोधी राजनीतिक प्रचार का तुमुल युद्ध आरंभ हो गया जो अनेक वर्षो तक चलता रहा। यही शीतयुद्ध कहलाता है। इस प्रकार परस्‍पर विरोधी राष्‍ट्रों के बीच कूटनीतिक सम्‍बंध तो बने रहे और कोई प्रत्‍यक्ष संघर्ष नहीं हुआ लेकिन उनके व्‍यावाहारिक संबंध शत्रुतापूर्ण बना रहा। इन देशों के समाचार-पत्रों में आरोप-प्रत्‍यारोप 1991 ई. तक लगायें जाते रहे हैं।। सोवियत संघ के विघटन के साथ ही सैद्धान्तिक रूप से शीत युद्ध की भी समाप्ति हो गयी हैं। 

6. अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग और विकास की भावना 

संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की स्‍थापना के बाद विश्‍त के राजनीतिक मतभेदों और संघर्ष के बावजूद परस्‍पर सहयोग की भावना भी विकसित हुई। भूख, गरीबी, बीमारियों, संस्‍कृति प्राकृतिक आपदाओं आदि के प्रश्‍नों पर अभी राष्‍ट्र संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के तत्‍वावधान में एक साथ कार्य करने लगे। विज्ञान व प्रौद्योगिकी।

विश्‍व में हुयें प्रथम और द्वितीय विश्‍व युद्ध परिणामों की दृष्टि से विकास की ओर बढ़ते दिखाई देते हैं। बुडरों विल्‍सन ने जिन आदर्शो की कल्‍पना की थी उन्‍हें वास्‍तविक रूप से नहीं किया जा सका। परन्‍तु राष्‍ट्रसंघ अनेक व्‍यावहारिक, मानवीय सुरक्षा और शन्ति के निर्देशक तत्‍वों की ओर संकेत कर गया। युद्ध को पवित्र, सरल और प्रतिष्‍ठा कारक समझने की प्रवृत्ति समाप्‍त हो गई। विजेता राष्‍ट्र भी समझ गये कि विजय कितनी महंगी होती है और उसके लियें कितना मूल्‍य चुकाना पड़ता है। वर्षो से की गई प्रगति, विकास कुछ ही क्षणों में युद्ध में नष्‍ट हो जाती हैं। अतः युद्ध प्रवृत्ति को सीमित करने के प्रयास बड़े और छोटे देश करते रहते हैं। यही कारण है कि विश्‍व में अभी तक तृतीय विश्‍व युद्ध हुआ।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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