10/29/2021

द्वितीय विश्व युद्ध के कारण

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द्वितीय विश्‍व युद्ध 

dwitiya vishwa yudh ke karan;साम्राज्‍यवादी नीति के परिणामस्वरूप यूरोपीय राष्‍ट्रों में प्र‍थम विश्‍व युद्ध हुआ। इस युद्ध में पूरा विश्‍व दो भागों तथा 36 राष्‍ट्रों में बांट गया। सन् 1918 ई. में यह युद्ध समाप्‍त हुआ तथा सन् 1919 ई. में फ्रांस की राजधानी पेरिस में शांति सम्‍मेलन हुआ। इसमें परास्‍त राष्‍ट्र जर्मनी के साथ अत्‍यंत कठोर नीति अपनाते हुए इसकों प्रादेशिक, सैनिक व आर्थिक रूप से पंगु बना दिया। जर्मनी इस राष्‍ट्रीय अपमान का बदला लेना चाहता था, अतः उसने साम्राज्‍यवादी दृष्टिकोण अपनाते हुए, शास्‍त्रीकरण कर एक विशाल सेना को तैयार किया। युद्ध के बादल पुनः मंडराने लगें, इंग्‍लैंड ने शस्‍त्रीकरण कर एक विशाल सेना को तैयार किया। इंग्‍लैण्‍ड़ की तुष्टिकरण की नीति ने बारूद में आग का काम किया। जिससे द्वितीय महायुद्ध शुरू हुआ। वास्‍तव में वर्साय संधि में सन् 1939 ई. के द्वितीय विश्‍व युद्ध का बीज का रोपण किया। 

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द्वितीय विश्‍व युद्ध के कारण (dwitiya vishwa yudh ke karan)

द्वितीय विश्‍व युद्ध के लिए निम्‍नलिखित कारक जिम्‍मेदार थें--

1. वर्साय की संधि के प्रति आक्रोश 

इस संधि ने द्वितीय विश्‍व युद्ध की पृष्‍ठ भूमि तैयार करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा की। इस संधि के सदंर्भ में परिषद के प्रमुख ने कहा था कि, ‘‘ वर्साय की संधि शैतान का कार्य है।" वास्‍तव में मित्र राष्‍ट्रों में बदले की भावना इतनी प्रबल हो गई, कि उन्‍होंने अपना विवेक तक खो दिया। उन्‍होंने जर्मनी को प्रत्‍येक दृष्टि से नष्‍ट करने का प्रयास किया। जर्मनी ने विल्‍सन के चौदह सूत्रों के आधार पर युद्ध विराम संधि की थी किन्‍तु पेरिस शांति सम्‍मेलन में जर्मनी के साथ विश्‍वासघात किया गया। उसे युद्ध के लिए एकमात्र उत्तरदायी ठहराते हुए प्रोदशिक, आर्थिक और सैनिक दृष्टि से पंगु कर दिया गया। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्साय की संधि में द्वितीय विश्‍व युद्ध के बीच निहित थे। यह संधि अन्‍यायपूर्ण, एकपक्षीय एंव कठोर थी, इस कारण से जर्मनी में इसके प्रति भारी आक्रोश था। इसे जर्मनी ने राष्‍ट्रीय अपमान के रूप में लिया। जर्मनी इसे मानने के लिए नैतिक रूप से बाध्‍य नहीं था। जर्मनी के लोग हिटलर के नेतृत्‍व में इस अवसर की तलाश में थे कि वे कब इस संधि को उखाड़ फेंके और मित्रराष्‍ट्रों से अपने अपमान का बदला लें। हिटलर का उत्‍कर्ष वर्साय संधि की ही देन था। हिटलर के उत्‍थान का अर्थ ही था - एक और युद्ध।  

2. सैनिकवाद का प्रारंभ

वर्साय की संधि के तहत मित्र राष्‍ट्रों ने जर्मनी को पंगु बनाने में कोई कसर नहीं रखी, उस पर दबाब डालकर निःशस्‍त्रीकरण पर जोर दिया लेकिन यूरोप के बाकी देश अंदर ही अंदर इसे मानने को तैयार नहीं थे, खुद फ्रांस एंव इंग्‍लैण्‍ड़, जर्मनी के भय से शस्‍त्रीकरण कर रहे थे, लेकिन जब हिटलर सन् 1933 में सत्ता में आया तो उसने तुरंत ही वर्साय की संधि शून्‍य घोषित कर सैन्‍य शक्ति  में बढ़ोत्तरी का प्रयत्‍न किया। 

अनिवार्य सैनिक भर्ती, शास्‍त्र के कारखानों का निर्माण और उत्‍पादन, सामुद्रिक शक्ति का विकास, वायुसेना का निर्माण, ये सब उसके कार्यो से इंग्‍लैड़ और फ्रांस ने युद्ध की संभावना को देखते हुए खुले आम शस्‍त्रीकरण किया। जापान, इटली, रूस भी पीछे नहीं रहे। इस प्रकार सभी राष्‍ट्रों के द्वारा भारी मात्रा में सैनिक तैयारी ने पुनः महायुद्ध को स्‍वाभाविक बना दिया। 

3 .राष्‍ट्रसंघ की असफलता

वर्साय की संधि के फलस्‍वरूप ही राष्‍ट्रसंघ की स्‍थापना की गई थीं। वर्साय संधि की पहले से आलोचना होते आ रही थीं तथा राष्‍ट्रसंघ को भी ‘एक बदनाम माता की बदनाम पुत्री‘ कहा जाने लगा। राष्‍ट्रसंघ का निर्माण आदर्शो पर हुआ था, किन्‍तु व्‍यावहारिक रूप में मित्र राष्‍ट्र इस संस्‍था द्वारा स्‍वार्थ पूर्ति करते रहे। अन्‍तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर तथा सामूहिक सुरक्षा के आदर्शो पर राष्‍ट्रसंघ उपयोगी हो सकता था। किन्‍तु राष्‍ट्रसंघ के सदस्‍यों में एकता का अभाव पाया गया और यह मात्र एक वाद-विवाद का मंच बनकर रह गया था। जापान, इटली तथा जर्मनी की आक्रामक कार्यवाही को राष्‍ट्रसंघ मूक दर्शक बनकर देखता रहा। हिटलर ने राष्‍ट्रसंघ की नपुंसकता को उजागर कर दिया। राष्‍ट्रसंघ के सदस्‍यों का इस संस्‍था से विश्‍वास समाप्‍तप्राय हो गया था। अतः शांति तथा समझौते की चर्चा के लिए सक्षम अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मंच के अभाव में युद्ध को रोकना संभव नहीं था। 

4. तानाशाहों का उत्‍कर्ष 

प्रथम विश्‍व युद्ध के समाप्ति के बाद पराजित राष्‍ट्रों तथा नवनिर्मित राज्‍यों में लोकतंत्रीय शासन व्‍यवस्‍था इसलिए कि गयीं ताकि इन राज्‍यों में ये व्‍यवस्‍थां स्‍थायी रूस संचालित हो सकें, किन्‍तु यह आशा व्‍यर्थ गयीं। जर्मनी में प्रथम विश्‍व युद्ध के पश्‍चात् वाइमर गणतंत्र की स्‍थापना की गई थी। वाइमर गणतंत्र पर वर्साय की संधि पर हस्‍ताक्षर करने का आरोप था। अतः नाजी दल का उदय हुआ। यह दल वर्साय की संधि को भंग कर अन्‍तर्राष्‍ट्रीय क्षेत्र में जर्मनी की प्रतिष्‍ठा पुनः स्‍थापित करना चाहता था। आर्थिक मंदी ने हिटलर के उदय में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया। हिटलर ने विश्‍व के देशों को यह विश्‍वास दिलाने का प्रयत्‍न किया था कि उसका उद्देश्‍य शांति स्‍थापित करना हैं, किन्‍तु वह अधिक समय तक अपने असली लक्ष्‍य को छिपा नहीं सका। 

5. अधिनायकवाद एंव उग्र राष्‍ट्रीयता का उदय

अधिनायक वाद का जन्‍म प्रथम विश्‍व युद्ध की परिस्थिति के फलस्‍वरूप हुआ था। यद्यपि पेरिस शांति सम्‍मेलन में राष्‍ट्रसंघ आदि की स्‍थापना कर अंतर्राष्‍ट्रीयता को प्रोत्‍साहन दिया गया किन्‍तु उसके निर्णय राष्‍ट्वाद से ग्रसित थे। फ्रांस, इंग्‍लैण्‍ड़ आदि द्वारा लिए गए निर्णय अपने राष्‍ट्रीय हितों को पुष्‍ट करने वाले थे। दूसरी तरफ इन निर्णयों से पीडि़त राष्‍ट्र अपने राष्‍ट्र के अपमान का बदला लेने के लिए उग्र राष्‍ट्रवाद से ग्रसित हो रहे थे। जर्मनी, इटली में उत्‍पन्‍न नाजी एवं फासी विचारधारांए राष्‍ट्र को सर्वोच्‍चता प्रदान करती थीं। इसी उग्र राष्‍ट्रीयता की लहर पर सवार हो दोनो देशों में तानाशाहों का उदय हुआ। हिटलर एंव मुसोलिनी ने जनता की इस भावना को और प्रोत्‍साहित किया। सत्ता में बने रहने और अपनी अधिनायकवादी प्रवृत्तियों को बढ़ाने के लिए यह आवश्‍यक था। दूसरी ओर इन राष्‍ट्रों की जनता को भी ऐसे कट्टर एंव शक्तिशाली नेताओं की आवश्‍यकता थी जो इंग्‍लैण्‍ड़, फ्रांस जैसे राष्‍ट्रों से बदला ले सकें। जर्मनी और इटली की अधिनायकवादी प्रवृत्तियों ने राष्‍ट्रसंघ के अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग एंव शांति के प्रयासों को ध्‍वस्‍त कर दिया।  

6 .अल्‍पसंख्‍यकों का असंतोष

यूरोप में अल्‍पसंख्‍यकों की समस्‍या प्रथम विश्‍व युद्ध के पहले से ही बनीं हुई थीं। प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद विल्‍सन ने आत्‍मनिर्णय के सिद्धांत के आधार पर अल्‍पसंख्‍यकों के असंतोष एंव समस्‍या का निदान ढूंढ़ने का प्रयास किया गया था। यूरोप में भाषा, धर्म तथा संस्‍कृति के आधार पर कई अल्‍पसंख्‍यक जातियां उन राष्‍ट्रों के अधीन थीं जिनमे बहुसंख्‍यक जातियों से उनकी समरूपता नहीं थी। यह अल्‍पसंख्‍यक सदैव ही अपने स्‍वदेश से मिलने के लिए आन्‍दोलन करते रहे थे। यूरोप में पोल, हंगेरियन, जर्मन, इटेलियन, बल्‍गेरियन तथा अल्‍बानियन यत्र-तत्र बिखरे हुए थे। अल्‍पसंख्‍यकों के असंतोंष राष्‍ट्रसंघ के माध्‍यम से दूर करना संभव नहीं था। अल्‍पसंख्‍यकों की सुरक्षा के प्रश्‍न पर तानाशाहों ने पड़ोसी राष्‍ट्रों को निगलना प्रारंभ कर दिया था। हिटलर द्वारा स्‍यूडेटनलैण्‍ड़ की रक्षा के लिए सम्‍पूर्ण चेकोस्‍लोवाकिया को हड़प लेना इसका ज्‍वलन्‍त उदाहरण था। 

7. तात्‍कालिक कारण-जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण 

वर्साय की संधि के तहत जर्मनी को मलेशिया और पश्चिमी प्रशा का अधिकांश भाग जर्मनी को दिया गया था। तथा पोलैंड को समुद्र तक पहुंचने के लिए जर्मनी का भू-भाग मिला था। जर्मनी के प्रसिद्ध बंदरगाह डेजिंग का प्रशासन पोलैंड के हितों की रक्षा के लिए राष्‍ट्रसंघ को सौंपा गया। इसके बाद जर्मनी ने पूर्वी प्रशा जाने के लिए मार्ग मांगा पर पोलैंड के न देने पर 1 सितंबर, 1939 ई. को डेजिंग पर आक्रमण कर जर्मनी ने द्वितीय विश्‍व युद्ध शुरू कर दिया।

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