10/24/2021

जर्मनी मे नाजीवाद के उदय के कारण

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हिटलर का प्रारम्भिक जीवन

germany me najiwad ke uday ke karan;एडौल्‍फ हिटलर का जन्‍म बबेरिया की सीमा के निकट ब्रानों नामक गांव में 20 अप्रैल , 1889 ई. में हुआ था। उसका आरम्भिक जीवन बड़ी ही कठिनाइयों एंव संघर्ष से भरा रहा। बारह वर्ष की अवस्‍था में ही उसके सिर से उसके पिता का साय उठ गया। उसे मजदूरी कर अपना जीवनयापन करना पड़ा। वास्‍तुकला में उसकी रूचि थी। परन्‍तु वियेना के वास्‍तु विद्यालय में उसे प्रवेश नही मिला। इसके बाद 1912 में म्‍यूनिख आ गया तथा 1914 ई. में बबेरिया की सेना में भर्ती होकर उसने ‘‘आयरन-क्रॉस‘‘ पदवी प्राप्‍त कर सम्‍मान पाया। हिटलर समझता था," कि युद्ध मे विजयी होने की जर्मनी में क्षमता थी परन्‍तु यहूदियों और साम्‍यवादियों के राष्‍ट्रद्रोहों के कारण उसकी पराजय हुई वर्साय संधि को स्‍वीकार करने वाले गणतंत्रवादी कायर और अयोग्‍य थे। अतः उसने बईमर गणतंत्र को समाप्‍त करके वर्साय के अपमान तथा पराजय का प्रतिशोध लेने का विचार किया। इसके लिये उसने पहले श्रमिक दल पर कब्‍जा किया फिर उसका नाम राष्‍ट्रीय समाजवादी जर्मन श्रमिक संघ रखा। इसी दल के माध्‍यम से उसने सत्ता प्राप्‍त करने में सफलता प्राप्‍त की। 

नाजीवाद के उदय के कारण

जर्मनी में नाजीवाद के उदय के निम्नलिखित कारण थे--

1. वर्साय की संधि 

प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद वर्साय संधि जर्मनी के लियें राष्‍ट्रीय अपमान के कारण बन गई। इस संधि के द्वारा जिस तरह जर्मनी के भौगोलिक क्षेत्र उससे अलग कर दिये गये, और उसकी सैना पंगु कर दिया गया, उसके आर्थिक संसाधन छीनकर उससे विलग कर दिए गए, उससे भी बढ़कर संधि की धारा 231 के अनुसार उसे युद्ध अपराधी ठहराया गया। यह सब स्‍वाभिमानी जर्मन जाति के लिए अत्‍यन्‍त निराशा, लज्‍जा और राष्‍ट्रीय अपमान की बात थी। जर्मनी के युवा वर्ग में यह भावना व्‍याप्‍त हो गई थी कि जर्मनी के समस्‍त संकटों एंव दुःखों का एकमात्र कारण वर्साय की संधि है। जर्मनी ने इसे अत्‍यन्‍त दबाव में स्‍वीकार किया था। 

बेकार सैनिकों, भूखों, बेरोजगारों उद्देश्‍यहीन भ्रमित युवा वर्ग, असंतुष्‍ट कारखानेदार एंव व्‍यापारी वाइमर गणतंत्र में विश्‍वास खो बैठे थे। उनका मानना था कि गणतंत्र सरकार की दुर्बालताएं इस परिस्थिति के लिए जिम्‍मेदार हैं। संसदीय परंपरा एंव व्‍यवस्‍था से उनका विश्‍वास उठा गया था। राष्‍ट्र के लोगों में यह विश्‍वास जम गया था कि बाइमर गणतंत्र को समाप्‍त करने से ही स्थिति से उबरा जा सकता है। जर्मनी के युवक समझते थे कि जर्मनी का पुनरोद्धार हिटलर और उसकी नात्‍सी पार्टी ही कर सकती है। हिटलर और उसके साथियों ने इसका लाभ उठाया। वर्साय संधि का विरोध करना हिटलर के भाषणों का प्रमुख तत्‍व होता था। आवेश में गरज कर जब वह कहता था कि हमें वर्साय संधि का नाश करना है तो जनसमूह आंदोलित हो उठता था। हिटलर के उदय से पूर्व यद्यपि जर्मनी की समस्‍याए काफी सीमा तक कम हो गई थी। उसे राष्‍ट्रसंघ की सदस्‍यता मिल गई थी, उसकी भूमि से विदेशी सेना हट चुकी थी, क्षतिपूर्ति का दायित्‍व भी लगभग समाप्‍त हो चुका था, किन्‍तु जर्मन लोग वर्साय के अपमान को अपने मन-मस्तिष्‍क से दूर नहीं कर पा रहे थे वे इसका बदला लेना चाहते थे। इसके लिए उन्‍हें हिटलर जैस महानायक जरूरत थी।  

2. आर्थिक संकट 

प्रथम विश्‍व के दौरान हुई क्षति की पूर्ति के लिए जर्मनी पर 6 अरब 68 करोड़ पौण्‍ड़ थोपी गई थी। जर्मनी के उद्योग, व्‍यापार, खदान की क्षति होने पर भी फ्रांस की सेनाओं ने इन पर कब्‍जा कर लिया था। उसे प्रतिवर्ष 20 करोड़ स्‍वर्ण मार्क देना थे। सन् 1922 ई. तक उसने 266 करोड़ पौण्‍ड़ मित्र देशों को दे दिये। इसके बाद जर्मनी की आर्थिक दशा, मुद्रा प्रसार, मन्‍दी एवं ऋणों के कारण बहुत गिर गई। उसके स्‍वर्ण मार्क का जहां मूल्‍य इंग्‍लैण्‍ड़ के एक पौण्‍ड़ के बराबर था वहीं युद्ध काल में उसका इतना अवमूल्‍यन हुआ कि वह 90 करोड़ मार्क रह गया। जर्मनी की बाईमर गणतंत्र की सरकार ने क्षति-पूर्ति राशि कम करने की प्रार्थना मित्र देशों से की। परन्‍तु मित्र देशों ने डावेस योजना के अतिरिक्‍त कुछ नहीं किया। 

3. जर्मनी जाति की श्रेष्‍ठता का अभिमान

हिटलर ने अपने कारागृह वाले समय में एक पुस्‍तक लिखी जिसका नाम ‘‘मेरा संघर्ष‘‘ था। इस पुस्‍तक में जर्मन जाति को आर्यो  की नस्‍ल बताकर जर्मन जाति की श्रेष्‍ठता, को स्‍थापित किया गया। जर्मन जाति शुद्ध आर्य है तथा समस्‍त विश्‍व पर शासन करने के लियें ही जन्‍मी है। इस प्रकार की विचार धारा का हिटलर ने बड़े ही जोर शोर से प्रचार किया। हिटलर का कथन था कि उन्‍हीं लोगों को जर्मन कहा जा सकता है। जिनकी धमनियों में आर्य रक्‍त का संचार हो रहा है। जर्मनी में रहने वाला अन्‍य व्‍यक्ति देश के लिए कितना भी त्‍याग करता है तो भी जर्मन स्‍वीकार नहीं किया जा सकता। जर्मन जाति को कोई भी संधि अपमानित नहीं कर सकती। विश्‍व में जर्मन जाति ही श्रेष्‍ठ जाति है। इस भावना के कारण हिटलर ने नाजी दल के ध्‍वज पर प्राचीन आर्यो का प्रतीक ‘‘स्‍वास्तिक‘‘ चिंह अंकित किया था।

4. संसदीय परंपरा का अभाव 

जर्मनी में प्रथम विश्‍व युद्ध के बाद वाइमर गणतंत्र की स्‍थापना हुई, जिससे की जर्मन जनता में कभी असंतोष था। इसके निमार्ण से यह निकम्‍मा साबित हुआ। वहां गणतंत्र की स्‍थापना मित्रराष्‍ट्रों द्वारा हुई थी जिसे लोग आरंभ से ही राष्‍ट्रीय अपमान का प्रतीक समझने लगे। 1919 से 1923 ई. के बीच जितनी भी सरकारें बनी सब कमजेार और अस्‍थायी साबित हुई। पार्टियों की संख्‍या भी काफी थी और किसी को स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं था। 1928 ई. में वहां 34 दल थे। फलस्‍वरूप रिस्‍टेग व्‍यर्थ, बकवाद, विलम्‍ब, राजनीतिक झगड़ों और षड़यंत्रों का अखाड़ा बन गया। बहुत से लोगों को पुराने दिन याद आते थे जब रिस्‍टेग में अनुशासन रहता था और व्‍यवस्थित ढंग से काम होता था। जनतांत्रिक व्‍यवस्‍था में जब लोगों का विश्‍वास घट जाता है तो तानाशाही के लिए रास्‍ता साफ हो जाता है। जर्मनी के साथ भी यही हुआ। इस समय इटली में फासिज्‍म की विजय हुई वैसे ही जर्मनी में नात्‍सीवाद की विजय होगी। जर्मनी की जनता भी चाहती थी उनके सामने कोई ऐसा कर्मठ व्‍यक्ति आये जो संसदीय गतिरोध का अन्‍त कर सुव्‍यवस्‍था कायम करे और जर्मनी की खोई हुई प्रतिष्‍ठा को पुनः स्‍थापित करे। नात्‍सीवाद इस तरह की व्‍यवस्‍था कायम करने का कार्यक्रम रखती थी और हिटलर के व्‍यक्तित्‍व में मुसोलिनी की तरह वह एक नेता देने को तैयार थी।  

­5. हिटलर शक्ति की ओर 

कारावास से छुटते ही सन् 1924 ई. में उसने अपने दल को पुनः संगठित किया। तथा सम्‍पूर्ण जर्मनी में नाजी दल  का जाल बिछा दिया। उसमें संगठन की अद्भुत क्षतमा थी। हिटलर ने देशभक्ति, जर्मन जाति की श्रेष्‍ठता, साम्राज्‍य विस्‍तार के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार कर नाजी दल को जर्मन जनता में लोकप्रिय बना दिया। सन् 1929­ ई. में जर्मन संसद के चुनाव में उसके दल को 12 स्‍थान मिले। सन् 1930 ई. के आम चुनाव में 107 तथा 1932 ई. में उसका पार्टी जर्मन संसद में सबसे बड़ा दल बन गया। सन् 1932 ई. के साम्राज्‍य चुनाव में हिटलर ने राष्‍ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ा किन्तु समाजवादी प्रजातान्त्रिक दल के प्रत्‍याशी हिण्‍डेनवर्ग के विरूद्ध उसको 35 प्रतिशत मत मिले और हिटलर चुनाव में हार गया। इस चुनाव से उसकी लोकप्रियता में वृद्धि हो गई थी। इसी समय लोकसभा का नया चुनाव हुआ। चुनाव में नाजी दल के 230 सदस्‍य, सोशल डेमोक्रेट्स के 133 तथा साम्‍यवादी दल के 79 सदस्‍य लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। संसद भवन में आग लग गई। हिटलर ने बड़े नाटकीय शब्‍दों में इस अग्निकाण्‍ड के लिए साम्‍यवादियों को दोषी ठहराया। साम्‍यवादी दल के सदस्‍यों को लोकसभा से निर्वासित कर दिया गया। फलस्‍वरूप लोकसभा में नाजी दल को स्‍पष्‍ट बहुमत मिल गया। 5 मार्च 1933 को पुनः चुनाव कराए गए। परिस्थितियों हिटलर के अनुकूल थी। साम्‍यवादियों को संसद भवन अग्निकाण्‍ड में दोषी बताने के कारण हिटलर ने चुनावों में अपनी पार्टी का वर्चस्‍व स्‍थापित कर दिया। परिणामस्‍वरूप नाजी दल के 288 स्‍थान मिल गए। सोशल डेमोक्रेटस को मात्र 52 मिले तथा साम्‍यवादियों का तो खात्‍मा हो गया था।

6. हिटलर का व्‍यक्तित्‍व

हिटलर की सफलता का प्रमुख कारण उसका व्‍यक्तित्‍व था। 1925 ई. से पहले शायद ही किसी को ज्ञात हो की वह जर्मनी के गणतंत्र का अंत कर सारी सत्ता अपने हाथ में लेगा। यहां तक कि एक बार वाइमर गणतंत्र के विदेश मंत्री डॉ. स्‍ट्रेसमैन ने राष्‍ट्रपति हिंडेनवर्ग से कहा था कि ‘‘ हिटलर कभी चांसलर नहीं बनेगा। इसें मैं पोस्‍टमास्‍टर बनाऊँगा और यह मेरी जी-हुजूरी में लगा रहेगा।‘‘ किन्‍तु हिटलर का व्‍यक्तित्‍व महान था। वह एक कुशल वक्‍ता था और उसके भाषणों का प्रभाव जनता पर जादू की तरह पड़ता था। इतिहासकार बेंस ने उसके व्यक्तित्‍व पर प्रकाश डालते हुए बतलाया है, ‘‘ हिटलर चतुर मनोवैज्ञानिक, वक्‍ता एंव प्रचार कार्य में बड़ा निपूण था। वह भीड़ को उत्तेजित करने की प्रक्रिया से परिचित था एवं उत्‍तेजना से उद्देश्‍य पूर्ति करने की कला में निपुण था। वह परिश्रमी कार्यकर्ता एंव योग्‍य संगठनाकर्ता था।‘‘ वास्‍तव में फ्यूरर बनने के सभी गुण उसमें मौजूद थे। वह अपने काम को संगठित रूस से करता था। सौभाग्‍यवश डॉ. गोबुल्‍स नामक व्‍यक्ति जो बड़ा ही योग्‍य था, प्रचार मंत्री के रूप में उसे सहायक मिल गया। 

हिटलर के उद्देश्‍य

हिटलर के निम्नलिखित उद्देश्य थे--

1. देश के संसदीय शासन को समाप्‍त कर अधिनायकवाद की स्‍थापना करना। 

2. वर्साय संधि और उसके प्रभाव को समाप्‍त करना। 

3. समाजवादी और यहूदियों का दमन करना। 

4. सेना के शस्‍त्र में वृद्धि करना। 

5. राष्‍ट्रीयता एकता और संघर्ष को प्रोत्‍साहित करना। 

6. देश की आर्थिक दशा में सुधार। 

8. पुनः विशाल जर्मन साम्राज्‍य की स्‍थापना करना और उसे पवित्र रोमन साम्राज्‍य की पुरानी पदवी से विभूषित करवाना‘‘ आदि उसके प्रमुख उद्देश्‍य थे। 

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यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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