dwitiya vishwa yudh ki ghatnayen;द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ होने से पहले ही फ्रांस, जर्मनी तथा अन्य राष्ट्रों ने युद्ध की पूरी तैयारियां करके रखी थीं। इन तैयारियों का युद्ध की घटना पर भी प्रभाव पड़ा था। आत्मरक्षा के लियें यूरोपीय राष्ट्रों ने अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण, जनता को सैनिक शिक्षा तथा युद्ध से बचाव की शिक्षा देकर युद्ध की तैयारियां कर रखी थीं। विविध राष्ट्रों ने युद्ध की स्थिति में अपने मित्रों की खोज कर गुट बनाए थे, ताकि उनमें से किसी पर आक्रमण के समय उनके मित्र राष्ट्र युद्ध में सम्मिलित होने के लिए विवश हो जावें।
फ्रांस की मैगिनी लाइननिःशस्त्रीकरण की असफलता के बाद जर्मनी से अगर किसी को सर्वाधिक भय था, तो वह फ्रांस को था। प्रथम विश्वयुद्ध के समय जर्मनी की सेना ने बेल्जियम तथा फ्रांस की सीमा को सुगमता पूर्वक और तीव्र गति से पार कर लिया था। इस उदाहरण को सामने रखकर फ्रांस ने उत्तरी सीमा पर मैगिनो-लाइन तैयार की थी। स्विट्जरलैण्ड़ की सीमा पर बास्ल नगर से शुरू होकर जर्मनी की सीमा के साथ-साथ इंग्लिश चौनल के समुद्री तट पर डनकर्क तक यह लाइन विस्तृत थी। फ्रांस ने करोड़ों रूपयें खर्च का अपने सैनिक इंजीनियरों की मदद से सम्पूर्ण मैगिनों लाइन पर किलाबन्दी की थी। मैदानों में 100 से 150 फीट नीचे खुदाई कर विशाल किले बनाए गए थे। इन किलों में सैनिकों के निवास, भोजन एंव शस्त्र के भंडार थे। किलों में बिजली, भारी शस्त्र रखने के स्थान, घायल सैनिकों हेतु अस्पताल आदि का निर्माण किया गया था। जमीन के नीचे भू-गर्भ में छिपी इन फौजी छावनियों की कल्पना दुश्मन नहीं कर सकता था। अगर सम्राट भूमि पर दुश्मन का अधिकार भी हो जायें तो यह भूमिगत छावनियां महीनों तक युद्ध जारी रख सकती थीं। भूमिगत किले फौलाद, सीमेंट एंव कंक्रीट से निर्मित थे, जिन पर भारी मोर्टार एंव बमवर्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता था। फ्रांस ने खन्दकों था खाइयों के स्थान पर जर्मनी एंव फ्रांस के बीच अभेद्य किलाबन्दी कर ली थी।
जर्मनी की सींग फ्रीड़ लाइन
फ्रांस की मैगिनी लाइन के बार-बार में तीन से दस मील के अन्तर पर जर्मनी ने भी अपनी किलेबन्दी सीग फ्रीड लाइन के रूप में कर रखी थी। मैगिनी लाइन तथा सीग फ्रीड लाइन के मध्य का भाग आबादी रहित था। यहां कोई भी जाने का साहस नहीं करता था। दोनों लाइनों के मध्य की भूमि पर दोनों पक्षों ने कंटीले तारों के ढेर से आवृत्त कर बारूदी सुरंगों का जाल बिछा रखा था। जर्मनी और फ्रांस की सीमा को कोई भी टैंक अथवा बख्तरबन्द गाड़ी पार नहीं कर सकती थीं।
द्वितीय विश्व युद्ध की प्रमुख घटनाएं
द्वितीय विश्व युद्ध की मुख्य घटनाएं निम्नलिखित हैं--
1. जर्मनी का पोलैण्ड़ पर आक्रमण
हिटलर के द्वारा जैसें ही 1 सितंबर 1939 ई. को पोलैण्ड़ पर आक्रमण किया गया। इसी के बाद ही द्वितीय विश्व युद्ध का आरंभ हो गया। 3 सितंबर को इंग्लैण्ड़ और फ्रांस ने जर्मनी को चेतावनी दी कि यदि जर्मनी सेनांए पोलैण्ड़ से वापस नहीं होती हैं। तो दोनों राष्ट्र उसके विरूद्ध युद्ध आरंभ कर देंगे। 17 सितंबर को सोवियत संघ ने भी पोलैण्ड़ कर दिया। सोवियत संघ और जर्मनी ने पोलैण्ड़ को बांट लिया। जून 1940 ई. में सोवियत सेनाओं ने एस्टोनिया, लाटविया और लिथूआनिया पर कब्जा कर लिया। अक्टुबर 1939 ई. में सोवियत संघ ने फिनलैण्ड़ पर अधिकार का प्रस्ताव रखा। सोवियत संघ ने फिनलैण्ड़ पर आक्रमण कर उसे परास्त कर दिया तथा फिनलैण्ड़ के साथ मार्च 1940 ई. में एक संधि संपन्न हुई। अक्टुबर 1940 में ब्रिटेन ने युद्ध की घोषणा कर दी। इसके साथ ही कनाडा़, न्यूजीलैण्ड़, आस्ट्रेलिया और यूनियन ऑफ अफ्रीका ने भी जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
2. फिनलैण्ड़ पर रूस का आक्रमण
रूस और जर्मनी में जों संधि हुई थी उस समझौते के तहत जर्मनी पश्चिमी मोर्चे पर ब्रिटेन और फ्रांस के साथ युद्ध के व्यस्त था। इस अवसर का फायदा उठाकर सोवियत संघ ने भी बाल्टिक क्षेत्र के तीन छोटे राज्य स्टोनिया, लेटेविया एंव लिथूआनिया के साथ परस्पर सहयोग सम्बन्धी संधि की और तीनों राज्यों में अपनी सेनांए रखने का आश्वासन ले लिया। इतने से ही रूस सन्तुष्ट नहीं था। वह लेनिनग्राड की रक्षा के लिए फिनलैण्ड़ में भी सैनिक अड्डा स्थापित करने की सुविधांए चाहता था। इसी उद्देश्य से रूस की सरकार ने फिनलैण्ड़ की खाड़ी में कुछ द्वीपो पर अधिकार प्रमुख थे। फिनलैण्ड़ की सरकार ने हांगों में रूसी नौसना के अड्डे को छोडकर सभी मांगें स्वीकार कीं। परन्तु इसके विरोध में रूसी सरकार अपनी मांगो को पूरा करने हेतु दबाव डाल रही थी। इसलिए यह समझौता भंग हो गया। 2 दिसम्बर, 1939 को फिनलैण्ड़ पर जोरदार आक्रमण किया। 12 मार्च, 1940 ई. को उसने आत्मसमर्पण किया।
5. फ्रांस का पतन
द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ होने के बाद जर्मनी की शक्ति लगातार बढ़ती जा रही थीं। उसने 3 जून, 1940 ई. को फ्रांस पर तीनों तरफ से आक्रमण कर दिया। । 9 जून को उसने फ्रांस की सीमा को पार कर लिया तथा पेरिस पर आक्रमण किये। 10 जून को इटली ने भी फ्रांस के विरूद्ध युद्ध किया। 22 जून को फ्रांस ने आत्मसमर्पण किया। हालांकि स्वयं फ्रांस के प्रधानमंत्री हरेना ने राष्ट्रीय सुरक्षा तथा युद्ध मंत्री का कार्य संभाला। उसी दिन जनरल गोमली के स्थान रह चुके थे, लेकिन 75 वर्ष की अवस्था में फ्रांस की रक्षा करने में असफल रहे। 25 मई को वोलोन तथा 27 मई को केले का पतन हो चुका था। इसके बेल्जियम के शासन लियोपोल्ड़ ने आत्मसमर्पण कर युद्ध बन्द कर दिया। 10 जून को फ्रांस की सरकार पेरिस छोड़कर दूसरे जगह चली गई।
6. हिटलर का रूस पर आक्रमण
1939 ई. में रूस और जर्मनी के बीच पहले ही अनाक्रमण समझौता हो गया था। लेकिन हिटलर की तानाशाही के सामने इस संधि का कोई औचित्य नहीं रहा। वह रूस को पराजित कर पूर्वी सीमा के खतरे को समाप्त करना चाहता था। रूसी सेनाओं ने इस्टोनिया, लेटविया और लिथूआनिया पर अधिकार कर लिया। परन्तु जर्मनी ने इसका विरोध नहीं किया। इसके बाद दोनों देशों ने बाल्कन क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहा, जिससे दोनों देशों में प्रतिद्वद्विन्ता आरंभ हो गई। 22 जून, 1941 ई. को जर्मन सेना ने रूस पर आक्रमण कर यूक्रेन, इन्टोरिया, लेटेविया, लिथुआनिया, फिनलैण्ड़ और पूर्वी पोलैण्ड़़ से रूस सेनाओं को हटाकर अधिकार कर लिया। जर्मनी की सेनांए लेनिनग्राण्ड़ तक पहुंच गयीं। मास्कों पर आक्रमण करके जर्मनी ने भूल की। रूस के प्रत्येक नागरिक ने इस संघर्ष में भाग लिया था। साथ ही शीत ऋतु के प्रारंभ होने से जर्मनी कों बढ़ना कठिन था। अन्त में जर्मन सेनाओं को पीछे हटना पड़ा। इस प्रकार जर्मनी का मास्कों पर अधिकार करने का लक्ष्य पूरा न हो सका, परन्तु उसे 5 वर्ग मील भूमि प्राप्त हो गई।
7. जापान का अमेरिका पर आक्रमण
एशिया और प्रशांत महासागर में जापान अपना वर्चस्व स्थापित करने का लगातार प्रयास कर रहा था, उसे कुछ सफलता भी मिली। जर्मनी के साथ मिलकर जापान ने रोम-टोकियों धूरी का निर्माण किया। जर्मनी चाहता था कि जापान उसके साथ युद्ध में शामिल हो। फ्रांस के पत्तन के बाद जापान ने फ्रेंच इण्डोचीन में नाविक अड्डे स्थापित कर लियें। जापान की गतिविधि से अमेरिका और इंग्लैण्ड़ घबरा गये। अमेरिका ने जापान को चेतावनी दी और उसने वहां हस्तक्षेप किया जहां जापान ने संकट उत्पन्न किया था। हांगकांग और सिंगापुर को भी जापान ने अधिकृत किया। जापान की शक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी। उसने जावा, सुमात्रा बोर्निया, बाली द्विपों पर अधिकार कर लिया। भारत के उत्तर पूर्व पर आक्रमण किया, किन्तु उसे सफलता प्राप्त न हो सकी। जापान का उत्थान जितनी जल्दी हुआ, उसकी शक्ति का हृास भी उतनी ही जल्दी हुआ।
8. नार्वे और डेनमार्क पर आक्रमण
हिटलर ब्रिटेन और फ्रांस के विरूद्ध युद्ध छेड़ने से पहले नार्वे और डेनमार्क पर कब्जा करना चाहता था। उस समय के परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक भी था। क्योकि ब्रिटिश नौ-सेना पर आक्रमण करने के लिए इन देशों में महत्त्वपूर्ण सैनिक अड्डे थे। इसके अतिरिक्त इन देशों के अपार प्राकृतिक साधन, लोहे की खान तथा खाद्य सामग्री को भी हथियाया जा सकता था। इसलिए 1939 ई. के शीतकाल में जर्मनी, नार्वे और डेनमार्क पर आक्रमण करने का प्रयोजन करने लगा। नार्वे में पहले से ही एक नाजी पार्टी थी। जर्मन नाजी नेताओं ने नार्वे के नाजी नेता मेजर क्विस्लींग से सम्पर्क स्थापित किया। क्विस्लींग दिसम्बर के माह में हिटलर से मिलने खुद बर्लिन गया, पर इन देशों पर आक्रमण करने में कुछ दिक्कते थीं। स्केनडेनवियाई देश परम्परा और रीति रिवाज से तटस्थ रहे आये थे और स्वंय हिटलर कई बार उनकी तटस्थता की रक्षा करने का वादा कर चुका था। इसके अतिरिक्त डेनमार्क जर्मनी के बीच एक अनाक्रमण संधि भी थी। इन देशों पर आक्रमण करने के लिए हिटलर को शीघ्र बहाना मिल गया। जिस समय फिनलैण्ड़ पर सोवियत आक्रमण हुआ था उस समय फिनलैण्ड़ को मदद पहुंचाने के लिए ब्रिटेन और फ्रांस, नार्वे और स्वीडन ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया तो भी हिटलर को एक बहाना मिला गया। इन देशों को ब्रिटिश आधिपत्य से बचाने के लिए जर्मनी ने अपना आक्रमण शुरू कर दिया।
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