10/09/2021

रूस जापान युद्ध, कारण, परिणाम, प्रभाव

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रूस-जापान युद्ध (1904-1905)

रूस को बीसवीं शताब्‍दी के आरंभ में एशिया का बहुत शक्ति संपन्न देश समझा जाता था। रूस भी इंग्‍लैण्‍ड और फ्रांस की तरह  साम्राज्‍यवाद नीति का अनुगमन करने मे लगा था। दूसरी ओर जापान भी अपनी शक्ति वृद्धि कर चीन में साम्राज्‍य वृद्धि के लिये प्रयत्‍नशील था। चीन ने रूस-जापान के साम्राज्‍यवादी और सैन्‍यवादी कार्यो और उद्देश्‍यों में तनाव होना स्‍वाभाविक था। अतः दोनों में 1904 - 05 में युद्ध हो गया। 

रूस और जापान युद्ध के कारण (rus japan yudh ke karan)

रूप और जापान के मध्‍य युद्ध के निम्‍नलिखित कारण थे--

1 .रूस का चीन में हस्‍तक्षेप और मंचूरिया का प्रश्‍न

जापान रूस में अनबन का प्रमुख कारण मंचूरिया पर दोनो के प्रभाव को लेकर था। मंचूरिया चीनी साम्राज्‍य का एकमात्र प्रांत था। इसलिए जापान और रूस में तकरार होना स्‍वाभाविक थीं। जापान अपनी मानसिकता को बदलते हुए वह साम्राज्‍यवादी होता जा रहा था। शिमोनास्‍की की संधि का विरोध कर रूस ने चीन से अपना विरोध बताया। 1895 ई. में चीन से संधि कर ली। मंचूली से ब्‍लादीवोस्‍तक तक रेल्‍वे लाइन बिछाने की अनुमति प्राप्‍त कर रूस से सूदूर पूर्व में अपने प्रसार हेतु अग्रिम कार्यवाही प्रारंभ कर दी। पोर्ट आर्थर एंव उसके समीप का प्रदेश रूस से 25 वर्ष तक पट्टे पर प्राप्‍त कर लिया और यहां की किलेबंदी शुरू की। रूस मंचूरिया में प्रभाव बढ़ाने लगा। रूस का विचार यहां विस्‍तार करना था। मंचूरिया के रंगमंच पर रूसी चालें चली गई। रूस की इन चालों से जापान नाराज हो गया। जापान अपनी जनसंख्‍या को मंचूरिया में बसाना चाहता था। इसके कारण वह ऐसा नहीं कर पा रहा था। रूस ने पोर्ट आर्थर और मास्‍कों के बीच रेल्‍वे लाइन बनाई। पूर्वी एशिया के लिए एक रूसी वायसराय नियुक्‍त किया। जापान के‍ लिए यह असहनीय था। 

2. रूस से बदला लेने की भावना 

जापान का चीन से युद्ध के बाद एक संधि हुई, जिसमें जापान को लिआओतुंग का प्रायद्वीप मिला था, परंतु रूस और फ्रांस और जर्मनी के विरोध के कारण उसे उस द्वीप पर उसे अपना अधिकार छोड़ना पड़ा था। अपनी इस क्षति का कारण वह रूस को मानता था और उससे बदला लेना चाहता था। इस युद्ध के कारणों में यह भी एक कारण था। 

3. रूस के प्रभाव को समाप्‍त करना और मित्र की खोज

जापान के द्वारा चीन की पराजय के बाद कोरिया रूस का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। चीन में जापान को रोकने के लियें 1895 ई. के समान रूस, जर्मनी और फ्रांस कोई संयुक्‍त हस्‍तक्षेप न कर पाये इसलिए जापान ने अपने मित्रों की खोज आरम्‍भ की। इसी कारण आंग्‍ल-जापान संधि 1902 ई. में सम्‍पन्‍न हुई जिसमें इंग्‍लैण्‍ड़ ने जापान के कोरिया में विशेष हित और जापान चीन में इंग्‍लैण्‍ड़ के हितों को स्‍वीकार कर अन्‍य देश के आक्रमण के समय स्‍वंय तटस्‍थ रहने तथा अन्‍य देशों को तटस्‍थ रखने का प्रयास करने के आश्‍वासन दिया। इस संधि के बाद जापान का कोरिया में प्रवेश और रूस-जापान युद्ध का रास्‍ता साफ हो गया। इंग्‍लैण्‍ड़ भी इस समय रूस के प्रभाव को काम करना चाहता था और रूस-जापान युद्ध से अच्‍छा कोई उपाय नहीं था। उधर इंग्‍लैण्‍ड़ को जर्मनी की नौसेनिक शक्ति से भी भय था इसलियें उसने जापान से संधि करना उचित माना। दूसरी ओर जर्मनी, आस्ट्रिया और इटली ने भी जापान से सहानुभूति प्रगट की जबकि आंग्‍ल-जापान संधि के समय रूस अकेला था।

4. बाक्‍सर विद्रोह 

सन् 1900 ई. में चीन में एक विद्रोह हुआ। जिसे बाक्‍सर विद्रोह के नाम से जाना जाता हैं। इस विद्रोह का प्रभाव रूस के अधिकार क्षेत्र में मौजूद मंचूरिया तक इसका विस्‍तार हुआ तो रूस ने अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा के बहाने वहां सेना उतार दी और यह कहा कि जैसे ही विद्रोह समाप्‍त होगा वह अपनी सेना को वापस बुला लेगा, परंतु उसने ऐसा नहीं किया। इससे उसके इरादे स्‍पष्‍ट हो गए थें। अंततः जापान और रूस का संघर्ष अनिवार्य हो गया था। 

5. आंग्‍ल-जापान संधि 

सन् 1902 ई. में इंग्‍लैण्‍ड़ और जापान के मध्‍य संधि हुई। जिसमें निम्‍न प्रकार की शर्ते थीं। जो इस प्रकार हैं--

1. जापान ने चीन में इंग्‍लैण्‍ड़ के हितों को मान्‍यता प्रदान की।

2. दोनों देशों ने एक-दूसरे की सहायता का वचन दिया। 

3. पांच वर्ष के लिए इस संधि को बढ़ाया जा सकता था। 

4. इंग्‍लैण्‍ड़ और जापान दोनों देशों ने कोरिया की प्रादेशिक अखण्‍डता एंव स्‍वतंत्रता कायम रखने का निश्‍चय किया। 

इस के माध्‍यम से जापान के मनोबल में और वृद्धि हुई और उसे इतिहास में पहली बार एशियाई शक्ति की मान्‍यता मिली। जापान को इस संधि से साम्राज्‍यवादी नीति को आगे बढ़ने का मौका दिया। 

रूस अपना प्रभाव मंचूरिया में बढ़ाना चाहता था। रूस को सबसे अधिक खतरा चीन तथा ब्रिटेन की संधि से उत्‍पन्‍न हो गया था। मंचूरिया पर अपना प्रभुत्‍व स्‍थापित करने हेतु ही रूस ने बांक्‍सर विद्रोह के समय अपनी सम्‍पत्ति की रक्षा का बहाना, कर रूसी सेना मंचूरिया भेजी थीं। सन् 1902 में मंचूरिया समझौते के अंतर्गत रूस मंचूरिया से अपनी सेना पूर्णतः हटाने हेतु तत्‍पर नहीं था। उसने चीन से मांग की कि वह मंचूरिया में रूसी आर्थिक एकाधिपत्‍य को स्‍वीकार करें। जापान के हित भी मंचूरिया में निहित थें। अतः फरवरी 1904 ई. में जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण कर रूस को चुनौती दी। रूस सेनांए मंचूरिया में पूर्व से ही जमी हुई थी।  

रूस-जापान युद्ध एक विचित्र युद्ध था। यह रूस अथवा जापान की भूमि पर नहीं वरन् चीन की भूमि पर लड़ा गया था। इस युद्ध में धन खर्च करने वाली यूरोपीय शक्तियों ने भाग नहीं लिया गया था। रूस को फ्रांस और जर्मनी आर्थिक एंव अन्‍य सहायता दे रहे थे, तो दूसरी ओर जापान को इंग्‍लैण्‍ड़ तथा अमेरिका से सहायता प्राप्‍त हो रही थी। 

पोर्ट्समाउथ की संधि 

यह संधि पूर्वी एशिया के इतिहास में बहुत ही महत्‍वपूर्ण मानी जाती है। यह संधि 5 सितंबर 1905 ई. को हुई। इस संधि की शर्ते निम्‍न लिखित हैं:-

1. इस संधि के तहत कोरिया में जापान के हितों आर्थिक, राजनैतिक और सैनिक को सर्वोपरि मान्‍यता प्रदान की गई। 

2. मंचूरिया को रूस और जापान दोनों ने खाली करना स्‍वीकार कर लिया। 

3. रूस ने जापान को लियाओतुंग प्रायद्वीप का पट्टा सौंप दिया। और वहां की रेलों और खानों का अधिकार दे दिया। 

4. रूस ने जापान को साखालीन के दक्षिण का आधा हिस्‍सा देना स्‍वीकार किया। 

5. मछली पकड़ने हेतु जापान को कुछ द्वीप रूस द्वारा प्रदान किये गये। 

6. दोनों देशों ने युद्धबन्दियों को परस्‍पर आदान-प्रदान कर इस कार्य हेतु व्‍यय की राशि देना स्‍वीकार किया। जापान को इस कार्य हेतु 2 करोड़ डालर अधिक प्राप्‍त हुए। 

रूस-जापान युद्ध के परिणाम 

इस युद्ध के बाद रूस का अभिमान चूर-चूर हो गया। फलस्‍वरूप जापान का कोरिया में हस्‍तक्षेप बढ़ने लगा और वह 1910 ई. तक जापान का अंग बन गया। कोरिया में जापानी भाषा, धर्म, व्‍यापार, पूलिस तथा सेना का प्रवेश हुआ तथा जापान के हित में कोरिया का आर्थिक विकास किया गया। रेल्‍वे, यातायात में उन्‍नति हुई। 

रूस जापान युद्ध के प्रभाव 

रूस-जापान युद्ध के निम्‍नलिखित प्रभाव पड़े--

1. रूस पर प्रभाव 

इस युद्ध के बाद रूस की आंतरिक राजनीति पूरी तरह डामाडोल हो गई, और रूसी जनता जार के एकतंत्र शासन का विरोध करने लगी। इस युद्ध के कारण ही रूस में सन् 1917 ई. की क्रांति हो गई थी। 

2. एशिया पर प्रभाव 

रूस पर जापान की जीत से एशिया के राष्‍ट्रों में नवचेतना एंव उत्‍साह का संचार हो गया। भारत में राष्‍ट्रीय आंदोलन तीव्र गति से प्रारंभ हो गया। यह युद्ध एक युगांतकारी घटना बन गया। 

3. यूरोप की राजनीति पर प्रभाव

इस युद्ध के उपरांत रूस का पूर्वी एशिया का प्रभाव रूक गया तथा यूरोपीय शक्तियों ने चीन में लूट-खसोट की नीति पर अमेरिका के मुक्‍त व्‍यापार का समर्थन किया। रूस बाल्‍कन समस्‍या में उलझ गया। यूरोप में गुटबंदी प्रांरभ हो गई और यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया। जापान विश्‍व में एक प्रमुख शक्ति बन गया।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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