10/27/2021

हिटलर की विदेश नीति

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हिटलर की विदेश नीति 

hitler ki videsh niti;हिटलर जर्मनी का सर्वेसर्वा 24 अगस्‍त, 1934 ई. को बन गया। इसके बाद उसने अपनी सरकार का संचालन यूरोपीय राजनीतिक परिस्थितियों को ध्‍यान में रखकर किया। तथा उसने सक्रिय आक्रामक और साम्राज्‍यवादी नीति का निर्माण करने के पूर्व, सैन्‍यवृद्धि और शस्‍त्रास्‍त्र निर्माण में पर्याप्‍त वृद्धि कर ली थी। हिटलर की विदेश नीति के तीन मुख्‍य सिद्धांत थे-- 

1. वर्साय की संधि को भंग करना। 

2. तृतीय साम्राज्‍य के अंतर्गत सारी जर्मन जातियों को एक सूत्र में संगठित करना। 

3. जर्मन साम्राज्‍य का विस्‍तार करना। 

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ऊपर दिये गये लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लियें वह किसी भी हद तक जा सकता था, इस बात को स्‍पष्‍टीकरण देते हुए हिटलर ने कहा था, ‘‘इसकी प्राप्ति के लिए समझौता और यदि न हो सका तो युद्ध का आश्रय लेना विदेश नीति की ओर हमारा कदम होगा।" हिटलर ने अपने इन लक्ष्‍यों को प्राप्ति के लिए जो मार्ग चुना था वह उसकी आत्‍मकथा ‘मेरा संघर्ष‘ में इस प्रकार स्‍पष्‍ट किया गया है। - ‘‘ जर्मनी के पीडि़त प्रदेश  उग्र विरोध प्रदर्शनों द्वारा पितृ देश में वापस नहीं लाए जा सकते, बल्कि कठोर चोट करने में सक्षम तलवार द्वारा ही लाए जा सकते हैं। इस तलवार का निर्माण करना आन्‍तरिक नेतृत्‍व का कार्य है तथा इसके निर्माण कार्य की रक्षा करना और युद्ध साथी खोजना विदेश नीति का कार्य है।"

विदेश नीति का क्रियान्‍वयन

हिटलर के द्वारा निर्मित लक्ष्‍य की प्राप्ति के लियें विदेश नीति के तहत निम्‍नलिखित कदम उठायें गये--

1. निःशस्‍त्रीकरण सम्‍मेलन का बहिष्‍कार तथा राष्‍ट्रसंघ का त्‍याग 

हिटलर की विदेश नीति में सबसे रोड़ा निःशस्‍त्रीकरण तथा राष्‍ट्रसंघ थें। अतः उसने सबसे पहले सन् 1993 ई. में राष्‍ट्रसंघ द्वारा आयोजित निःशस्‍त्रीकरण सम्‍मेलन में 14 अक्‍टुबर 1933 ई. को हिटलर ने महत्‍वपूर्ण घोषणा कर मांग की कि अन्‍य राज्‍यों को भी जर्मनी की भांति सैन्‍य शक्ति में कमी कर देनी चाहिए अथवा जर्मनी को भी अन्‍य राष्‍ट्रों के समान शस्‍त्रीकरण तथा सैन्‍यकरण का अधिकार मिलना चाहिए। फ्रांस यह नहीं चाहता था, अतः उसने विरोध किया। 

यह हिटलर की कूटनीतिक चाल थीं। वह जानता था कि उसके दोनों विकल्‍प स्‍वीकार नहीं किए जाएंगें अतः उसने तत्‍काल राष्‍ट्रसंघ से त्‍यागपत्र देकर घोषणा की कि वह किसी भी देश के विरूद्ध बल प्रयोग नहीं करेगा तथा विभिन्‍न देशों से अनाक्रामक संधि करेगा। राष्‍ट्रसंघ के यूरोपीय सदस्‍य राष्‍ट्र हिटलर की झांसापट्टी में आकर शांत बैठ गए। 

2. रूस से अनाक्रमण संधि

रूस को यह विश्‍वास था कि वह अगर जर्मनी से अनाक्रमण संधि कर लेता है, तो उसे पोलैंड का कुछ प्रदेश मिल जाएगा। और बाल्टिक राज्‍यों की रक्षा भी होगी। हिटलर ने 1939 ई. के साथ अनाक्रमण संधि करके सारे संसार को आश्‍चर्य में डाल दिया। इसके द्वारा यह तय हुआ कि दोनों पोलैण्‍ड़ को बांट लेंगे और रूस जर्मनी को खाद्यान्‍न, पेट्रोल तथा युद्ध की अन्‍य सामग्री देगा। यह संधि हिटलर की बड़ी भारी विजय थी। पोलेंड़ के आक्रमण के समय के इंग्‍लैंड़ और फ्रांस ही उसके शत्रु रह गये और उन दोनों ने जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 

3. चेकोस्‍लोवाकिया का पतन तथा म्‍यूनिख समझौता

सेंट जर्मन की संधि के तहत चेकोस्‍लोवाकिया का निर्माण किया गया था। ऑस्ट्रिया से बोहेमिया, मोराविया और साइलेसिया के कुछ भाग तथा हंगरी और स्‍लोवाकिया के कुछ भाग को छीनकर चेकोस्‍लोवाकिया नामक नया राष्‍ट्र गठित किया गया था। ऑस्ट्रिया के बाद हिटलर की उग्र विदेश नीति का शिकार चेकोस्‍लोवाकिया ही हुआ। चेकोस्‍लोवाकिया को हड़पने के लिए हिटलर के पास मजबूत आधार था। चेकोस्‍लोवाकिया में लगभग 33 लाख जर्मन निवास करते थे। वह स्‍यूडेटन जर्मन कहलाते थे। स्‍टूडेटन जर्मनों को चेकोस्‍लोवाकिया में दबाया जा रहा था। हिटलर ने स्‍यूडेटन जर्मनों के लिए आत्‍मनिर्णय की मांग के साथ ही स्‍यूडेटन आंदोलन के नेता कोनार्ड हेनलाइन का समर्थन कर उसकों आन्‍दोलन तथा कठोर मांगों के लिए प्रेरित किया। 

हेनालाइन ने हिटलर के इशारें पर चेकोस्‍लावाकिया सरकार के सामने कठोर मांगें रखी। चेक सरकार ने इन मांगों को अस्‍वीकार कर दिया। चेकोस्‍लोवाकिया में स्‍यूडेटन जर्मनों का आंदोलन तीव्र हो गया। स्‍यूडेटन जर्मनों के हितो की रक्षा हेतु हिटलर ने 18 जुन 1938 ई. को चेकोस्‍लोवाकिया पर आक्रमण के आदेश दे दिए। इस आक्रमण बाद स्‍यूडेटन-समस्‍या के हल के लियें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली तथा जर्मनी के प्रतिनिधि म्‍यूनिख में एकत्रित हुए। समझौतें में जर्मनी के शक्तिशाली तर्को को स्‍वीकार कर स्‍यूडेटन लैण्‍ड़ पर जर्मनी का अधिकार स्‍वीकार कर लिया गया। यूरोपीय राष्‍ट्रों द्वारा हिटलर के प्रति तुष्‍टीकरण की नीति की यह पराकाष्‍ठा थी। हिटलर फिर भी संतुष्‍ट नहीं था। वह सम्‍पूर्ण चेकोस्‍लोवाकिया पर जर्मनी का अधिकार चाहता था। 

हिटलर ने चेकोस्‍लोवाकिया के राष्‍ट्रपति एमिल-हाशा से पिस्‍तौल की नोक पर एक दस्‍तावेज पर 15 मार्च, 1938 ई. में करा लिए। इस दस्‍तावेज के अनुसार चेकोस्‍लोवाकिया का जर्मनी में विलय स्‍वीकार किया गया था। ब्रिटेन तथा फ्रांस ने तत्‍काल हिटलर को रोकने का प्रयास किया। किन्‍तु हिटलर ने द्रुतगति से अपनी सेनांए चेकोस्‍लोवाकिया भेजकर सम्‍पूर्ण क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और मित्र राष्‍ट्र देखते ही रहे गए। 

4. रोम-बर्लिन-टोक्‍यों धुरी का निर्माण 

शुरूआत में मुसोलिनी भी हिटलर का धुर्त विरोधी था। तथा उसने ऑस्ट्रिया के जर्मनी में विलय का विरोध किया था और हिटलर को वहां प्रथम प्रयास में असफल रहा। लेकिन एबीसीनिया पर मुसोलिनी के आक्रमण और राष्‍ट्र संघ में यूरोपीय राज्‍यों द्वारा मुसोलिनी की आर्थिक नाकेबन्‍दी प्रयासों से मुसोलिनी संकटों में घिर गया। इसी समय हिटलर ने मित्रता का हाथ बढ़ाया और मुसोलिनी को सैनिक सहायता देने के आश्‍वासन दिये। इससे दोनों से समझौतें का वातावरण बना अतः दोनों में 21 अक्टुबर, 1936 को निम्‍न शर्तो पर उनकी सहमति बनीं--

1. मुसोलिनी ने आस्ट्रिया पर हिटलर के अधिकार को माना। 

2.ए बीसीनियां पर इटली का अधिकार हिटलर ने बैध माना। 

इधर हिटलर को भी रूस की तरफ से आक्रमण का भय था। रूस से अपनी सुरक्षा और साम्‍यवाद के प्रसार के लियें ‘कॉमिन्‍टर्न‘ पेक्‍ट भी करके एक संगठन बना लिया था। अतः वह किसी रूस विरोधी मित्र की खोज में था। मंचूरिया में रूस और जापान एक-दूसरे के विरोधी भी थे। अतः जापान भी रूस-विरोधी मित्र की खोज कर रहा था। अतः जापान ने 25 नवम्‍ब्‍र, 1936 को एन्‍टी कॉमिन्‍टर्न पेक्‍ट पर हिटलर के साथ हस्‍ताक्षर किये। इस पेक्‍ट ने शीघ्र ही ‘रोम-बर्लिन-टोक्‍यों‘ धुरी का रूप धारण किया। बाद में इसमें स्‍पेन और जापान द्वारा स्‍थापित मंचकुओं सरकारें भी शामिल हो गई। इससे विश्‍व दो गुटों में बंट गया तथा राष्‍ट्र संघ, वर्साय संधि और यूरोप की साम्राज्‍यवादी शक्तियों को चुनौती देने वाला इन्‍ही के समान एक गुट तैयार हो गया। 

5. पोलैण्‍ड़ के साथ अनाक्रमण समझौता 

अपने देश के उत्‍कर्ष के लिए हिटलर सिर्फ अपने सैन्‍य शक्ति पर ही विश्‍वास नहीं करता था। बल्कि अपने देश के साथ इस प्रकार संबंध भी स्‍थापित करने के लिए ही प्रयत्‍नशील था जो जर्मनी की राष्‍ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति में सहायक हो सकें। इसलिए उसने जनवरी, 1934 में पोलैण्‍ड़ के साथ एक संधि की जिसके अनुसार दोनों राज्‍यों ने यह वायदा किया कि वे दस साल तक एक दूसरे की वर्तमान सीमाओं का किसी भी प्रकार से उल्‍लंघन व अतिक्रमण नहीं करेंगे। पोलैण्‍ड़ के साथ की गई इस जर्मन संधि से फ्रांस को बहुत आश्‍चर्य हुआ। फ्रांस के राजनीतिज्ञ पोलैण्‍ड़ से पहले ही इसी तरह की संधि कर चुके थे और पोलैण्‍ड़ फ्रांस गुट का एक महत्‍वपूर्ण सदस्‍य था। जर्मनी की राष्‍ट्रीय आकांक्षायें तभी पूर्ण हो सकती, जबकि वह उन जर्मन प्रदेशों को पुनः प्राप्‍त कर ले जो कि पेरिस संधि की शान्ति परिषद द्वारा पोलैण्‍ड़ के अन्‍तर्गत कर दिए गए थे, किन्‍तु कूटनीतिक हिटलर का उद्देश्‍य इस समय दूसरा था। वह सबसे पहले आस्ट्रिया, जहां के निवासी जर्मन जाति के थे, को विशाल जर्मन साम्राज्‍य का अंग बनाना चाहता था। ऐसा करने से पूर्व वह पोलैण्‍ड़ की ओर से निश्चित हो जाना चाहता था। जर्मनी और पोलैण्‍ड़ की इस संधि का यही मुख्‍य उद्देश्‍य था। 

6. ऑस्ट्रिया में षड्यंत्र 

पोलैण्‍ड़ की तरफ से आश्‍वासत होकर नाजी दल ने आस्ट्रिया में नाजीं सगंठन शुरू किया। जल्‍द ही वहां दल संगठित हो गया। जुलाई, 1934 ई. में आस्ट्रिया की नाजी दल ने एक षड्यंत्र द्वारा सरकार को पद से हटाने का प्रयत्‍न करके वहां भी जर्मन ढंग से की नाजी सरकार स्‍थापित कर ली जाए। इसी उद्देश्‍य से आस्ट्रियन सरकार के प्रधान डाल्‍फस की हत्‍या भी कर दी गई, किन्‍तु नाजी लोगों का यह षड्यंत्र सफल नहीं हो सका। इसकी विफलता के प्रमुखतः दो कारण थे:- प्रथम, अभी ऑस्ट्रिया में नाजी दल की शक्ति मजबूत नही हो पाई थी। दूसरा इटली की फासीवाद सरकार यह किसी भी स्थिति में सहने को तैयार नहीं थी कि जर्मनी और ऑस्ट्रिया मिलकर एक विशाल साम्राज्‍य स्‍थापित करें। आस्ट्रिया की सीमांए इटली से मिलती थीं और अपने पड़ोस में विशाल जर्मन राष्‍ट्र का संगठित हो जाना मुसोलिनी को अपने देश के लिए भयप्रद मालूम होता था। इस समय चेकोस्‍लोवाकिया भी इटली की इस नीति का पक्षधर था।

7. जर्मनी द्वारा पोलैण्‍ड पर आक्रमण और द्वितीय युद्ध का आंरभ

म्‍यूनिख समझौतें से प्रेरणा लेकर जर्मननी ने पोलैण्‍ड़ से डेन्जिंग शहर की मांग रखी और पोलैण्‍ड़ से एक सड़क व रेलमार्ग बनाने के लिए जगह की मांग की। इस मांग कों पोलैण्‍ड़ द्वारा ठुकरा दिया गया। पोलैण्‍ड़ फ्रासं और इंग्‍लैण्‍ड़ द्वारा दियें गयें, आश्‍वासन से आश्‍वस्‍त था। हिटलर का धैर्य चुकता जा रहा था। हिटलर ने पोलैण्‍ड़ में रह रहे जर्मन लोगों के हितों का मसला उठाया। उसने कहा कि जर्मन लोगों के हितों के लिए उसे सहायता करना ही चाहिए। युद्ध की आशंका को देखते हुए इंग्‍लैण्‍ड़ के प्रधानमंत्री चेम्‍बरलेन ने हिटलर को पत्रचार के माध्‍यम से चेतावनी दी कि इस बार कोई बड़ी भूल नहीं की जाना चाहिए वरना इंग्‍लैण्‍ड़ इस बार पोलैण्‍ड़ की रक्षा के लिए लड़ेगा। हिटलर ने पत्र के माध्‍यम से उत्तर में कहा कि डेन्जिंग और पोलैण्‍ड़ का गलियारा जर्मनी को वापस मिलना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो जर्मनी सैनिक कार्रवाई करेगा। उसकी जिम्‍मेदारी ब्रिटेन पर होगी। 31 अगस्‍त 1939 ई. की दोपहर को पोलिश सरकार ने इंग्‍लैण्‍ड़ को सूचित किया कि एक पोलिश दूत जर्मन अधिकारियों से बातजीत के लिए बर्लिन पहुंच गया है। पोलैण्‍ड़ का दूत जर्मनी के प्रतिनिधि रॉबनट्रोप से मिला। उसने बातचीत के लिए प्रस्‍ताव रखा। हिटलर ने उक्‍त प्रस्‍ताव को नामंजूर कर जर्मन सेना आदेश दे दिया कि पोलैण्‍ड़ पर आक्रमण कर दिया जायें। उसी रात फ्रांस और ब्रिटेन के दूतों ने बर्लिन में अलग-अलग किन्‍तु समान नोटिस जर्मनी को दिए कि यदि पोलैण्‍ड़ से सारी जर्मन सेना वापस नहीं आती है तो जर्मनी पर आक्रमण किया जाएगा। जर्मनी ने इस सैनिक कार्रवाई पर कोई ध्‍यान नहीं दिया और पोलैण्‍ड़ में सैनिक कार्रवाई जारी रखी। अन्तिम समय में मुसोलिनी ने विश्‍व युद्ध रोकने का प्रयास किया। उसने स्थिति पर विचार-विमर्श कर शांति स्‍थापित करने के लिए एक संधि का प्रस्‍ताव भी रखा। फ्रांस और ब्रिटेन को यह प्रस्‍ताव मंजूर था यदि जर्मनी पोलैण्‍ड़ को खाली कर देता है। हिटलर अपने फैसले पर अड़ा रहा। अंततः 3 सितंबर को ब्रिटेन ने जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। उसी दिन फ्रांस ने यही किया। इस तरह द्वितीय विश्‍व युद्ध का आरंभ हो गया। यह हिटलर और उसके नाजी जर्मन के पतन होना प्रारंभ हो गया। 

समीक्षा

हिटलर के कार्यों की समीक्षा करने से यह तो स्‍पष्‍ट हो गया कि वर्साय में हुई अपामानित संधि की धाराओं को ठुकराते हुए, साम्राज्‍य विस्‍तार, शस्‍त्रीकरण, समुद्री जहाजों का विकास कर फिर से जर्मनी को एक शक्तिशाली राष्‍ट्र बनाया। उसकी विदेशनीति पूर्णतः नाजीवादी दलों के सिद्धांत के अनुरूप थी, वह संपूर्ण जर्मनी को युद्ध के लिए तैयार कर रहा था तथा फिर युद्ध में झोंक दिया।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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