राज्य के कार्य
rajya ke karya;प्राचीन समय से ही यह प्रश्न बड़ा जटिल तथा विवादग्रस्त रहा है कि राज्य के क्या कार्य है? सभी विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से राज्य के कार्य निश्चित करने का प्रयत्न किया है। इस संबंध मे विभिन्न मत निम्न प्रकार है--
(अ) प्लेटो तथा अरस्तू
प्लेटो तथा अरस्तू का मत था कि राज्य एक नैतिक संस्था है। इसका उद्देश्य मनुष्य के जीवन को नैतिक और समुन्नत बनाना है। इस दृष्टिकोण मे राज्य का कार्य मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित हो जाता है।
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(ब) आदर्शवादी विचारक
आदर्शवादी विचारकों ने इसी दृष्टिकोण के आधार पर राज्य से अलग मानव के प्राकृतिक अधिकारों का विरोध करते हुए राज्य के नियंत्रण के महत्व को बताया है। हीगल के अनुसार राज्य नैतिक एवं दैवी है। व्यक्ति की स्वतंत्रता व अधिकार राज्य मे ही निहित है।
(स) उपयोगितावादी विचारक
उपयोगितावादी विचारक राज्य को एक कृत्रिम संस्था एक साधन मानते है, जिसका निर्माण उपयोगिता के आधार पर किया गया है।
(द) व्यक्तिवादी विचारक
समाजवादी विचारक राज्य को उन समस्त कार्यों को करने का अधिकार देते है जिनसे समाज की उन्नति हो तथा व्यक्ति का जीवन सुखमय बनें।
राज्य के कार्यों को दो भागों मे विभाजित किया जा सकता है--
(अ) आवश्यक कार्य
राज्य के आवश्यक कार्य इस प्रकार हैं--
1. देश की बाहरी आक्रमणों से रक्षा करना
यह राज्य का सर्वप्रथम कार्य है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए राज्य जल, थल तथा नभ सेना को आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित रखता है।
2. अन्तर्राष्ट्रीय संबंध
इस कार्य को संपन्न करने के लिए राज्य देशों मे अपने राजदूतों तथा वाणिज्य दूतों की नियुक्ति करता है। इसी प्रकार वह अन्य राज्यों से आये हुए राजदूतों का स्वागत करता है। अन्तर्राष्ट्रीय समारोहों तथा संगठनों मे अपने प्रतिनिधि भेजता है।
3. कर संग्रह
धन के अभाव मे राज्य का कार्य नही चल सकता। यह धन करों के रूप मे एकत्र किया जाता है। इस प्रकार प्रजा पर कर लगाना तथा उसे एकत्र करना राज्य का प्रमुख कार्य है।
4. मुद्रा बैकिंग तथा करेन्सी
यदि करेन्सी पर राज्य का नियंत्रण नही होगा तो वह एक क्षण के लिए भी अपना कार्य नही कर सकता। देश की आर्थिक संस्थाओं पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से राज्य द्वारा रिजर्व बैंक की स्थापना की जाती है।
5. नागरिक के अधिकारों तथा कर्तव्यों की विवेचना करना
प्रजातान्त्रिक सिद्धांतों की समुचित पूर्ति उसी समय हो सकती है जब राज्य नागरिक अधिकारों तथा कर्तव्य को निश्चित करे तथा उनके उपयोग मे आने वाली बाधाओं को दूर करे।
6. शक्ति की स्थापना
कांट राज्य के उद्देश्य के रूप मे राज्य मे नियमों की रक्षा और शांति की कल्पना करते है। उनका विचार है कि राज्य का उद्देश्य अपने नियमों द्वारा समाज मे शांति और व्यवस्था लाना है। गिलक्राइस्ट का विचार है कि वैयक्तिक दृष्टिकोण के अनुसार राज्य का उद्देश्य केवल कानून का निर्माण करना है। परन्तु कुछ अन्य व्यक्तिवादियों ने राज्य के उद्देश्य मे समाज की रक्षा और शांति की स्थापना को भी शामिल कर लिया है। व्यक्तिवादियों का कथन है कि राज्य को केवल अपने नागरिकों की आन्तरिक तथा बाहरी संकटों से रक्षा करने के अतिरिक्त उनके किसी भी कार्य मे हस्तक्षेप नही करना चाहिए। पर यह एक संकीर्ण विचार है।
7. न्याय
कुछ विचारकों का कथन है कि राज्य का उद्देश्य न्याय है। यह दृष्टिकोण सामान्यतः आदर्शवाद का है। आदर्शवादियों ने इसे राज्य का प्रधान उद्देश्य माना है, जिसमे उन्होंने नैतिक धारणा को भी सम्मिलित किया है। हीथरिंग्टन और म्यूरहैड के अनुसार न्याय राज्य का सदा ही मुख्य उद्देश्य रहा है।
(ब) ऐच्छिक कार्य
इन कार्यों को करना या न करना राज्य की इच्छा पर निर्भर है। आधुनिक युग मे राज्य के ऐच्छिक कार्यों को मोटे तौर पर निम्न श्रेणियों मे विभाजित किया जा सकता है--
1. शिक्षा की व्यवस्था
प्रत्येक राज्य की प्रगति के लिए शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। जाॅन स्टुअर्ट मिल ने बड़े स्पष्ट शब्दों मे लिखा है," अच्छी सरकार का मुख्य कार्य व्यक्तियों के गुणों और योग्यताओं का विकास करना है।
2. जनहित सेवाओं की व्यवस्था
प्रत्येक राज्य रेलवे, तार, डाक, वायरलैस आदि की उचित व्यवस्था करता है, जिससे जनता को यातायात आदि मे कठिनाई न हो। सड़कों, पुलों, छायादार वृक्षों, जलाशयों और विश्राम गृहों का प्रबंध भी राज्य का कर्तव्य है।
3. बेकारी का अंत
प्रत्येक राज्य मे कुछ न कुछ लोग बेकार होते है। इस बेकारी का अंत करना और सबको जीविका के साधनों को उपलब्ध कराने का भी राज्य को प्रबंध करना चाहिए।
4. उद्योग-धन्धों, वाणिज्य व्यवसाय का विकास
राज्य को बड़े-बड़े उद्योग-धन्धों की व्यवस्था करनी चाहिए। राज्य को व्यवसाय को प्रोत्साहन देना चाहिए। आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार की होनी चाहिए कि किसी का शोषण शोषण न किया जा सके।
5. सामाजिक कुरीतियों का निवारण
राज्य को अनेक पुरानी सड़ी गली कुरीतियों को समाज से दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।
6. वृद्ध निर्धन एवं असहायों की रक्षा
राज्य का प्रत्येक व्यक्ति कार्य करने योग्य नही होता। बहुत से वृद्ध और असहाय व्यक्ति अपनी जीविका स्वयं नही चला सकते। उनकी सहायता के लिए राज्य द्वारा प्रबंध किया जाना चाहिए। निर्धनों के लिए भी उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
7. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का प्रबंध
स्वच्छता का प्रबंध करना राज्य का एक पुनीत कर्तव्य है। इसके लिए राज्य को स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी कानून बनाने चाहिए। जल की उचित व्यवस्था करनी चाहिए, औषधालयों का प्रबंध करना चाहिए तथा सड़कों की व्यवस्था करनी चाहिए।
8. कृषि का विकास
प्रत्येक राज्य को कृषि के विकास मे योगदान देना चाहिए। आधुनिक वैज्ञानिक साधनों की उपलब्धि, सिंचाई का सुप्रबन्ध इत्यादि राज्य के कार्य है।
9. अन्य सामाजिक कल्याण के कार्य
राज्य को कुछ अन्य सामाजिक कार्यों यथा महिलाओं का उत्थान, शिशुओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा आदि का प्रबंध भी करना चाहिए और सामाजिक कल्याण के कार्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
10. प्राकृतिक स्त्रोतों का उपभोग एवं ऐतिहासिक स्थलों की रक्षा
राज्य को अपने प्राथमिक स्त्रोतों का उपभोग अधिक करना चाहिए। राज्य को चाहिए कि वह ऐतिहासिक स्थलों की रक्षा करे। यह स्थल हमारी प्राचीन संस्कृति के परिचायक होते है।
11. मनोरंजन के साधनों का प्रयोग
व्यक्ति के लिए मनोरंजन अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए राज्य पार्कों, स्नानगृहों आदि का निर्माण करवा सकता है तथा प्रदर्शनियों और मेलों आदि का प्रयोजन कर सकता है।
12. मादक वस्तुओं पर नियंत्रण
शराब, अफीम, गाँजा-भांग आदि मादक वस्तुयें व्यक्ति की उन्नति के मार्ग मे बाधक है। राज्य का यह कर्तव्य है कि वह मादक वस्तुओं पर रोक लगाये और इस प्रकार सामाजिक वातावरण का निर्माण करे कि लोग मादक वस्तुओं से घृणा करने लग जायें।
13. श्रमिकों के हित की रक्षा
औद्योगिक संस्थाओं मे बहुत अधिक संख्या मे मजदूर कार्य करते है। इन मजदूरों के हितों की रक्षा राज्य का कर्तव्य है। राज्य को इस प्रकार का कानून बनाना चाहिए कि मजदूरों के काम के घण्टे, वेतन, भत्ते, छुट्टियाँ आदि इस प्रकार निर्धारित की जाये कि वह राज्य की प्रगति मे अधिक से अधिक योगदान दे सकें।
निष्कर्ष
आधुनिक राज्य का प्रमुख कार्य अपनी जनता की भलाई करना है। अरस्तू ने लिखा है," राज्य एक सर्वोच्च संस्था है और इसका उद्देश्य सर्वोच्च भलाई है।"
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