1/21/2024

राजनीति विज्ञान का अर्थ, परिभाषा, क्षेत्र/विषय-क्षेत्र

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प्रश्न; राजनीति विज्ञान की परिभाषा देते हुए राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र का वर्णन कीजिए। 
अथवा" राजनीति विज्ञान से आप क्या समझते हैं? इसके क्षेत्र की व्याख्या कीजिए। 
अथवा" राजनीति विज्ञान का अर्थ बताइए तथा उसके क्षेत्र के संबंध में परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोणों की विवेचना कीजिए। 
अथवा" राजनीति विज्ञान क्या हैं? इसकी परिभाषायें कीजिए। विभिन्न दी गई परिभाषाओं में कौन-सी उपयुक्त और श्रेष्ठ हैं? उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर राजनीति-शास्त्र क्या हैं? समझाइए।
उत्तर-- 

राजनीति विज्ञान का अर्थ (rajniti vigyan kya hai) 

राजनीति विज्ञान या राजनीतिशास्त्र सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है। यह मानव जीवन के राजनीतिक पक्ष का अध्ययन करता है। अंग्रेजी भाषा मे राजनीति विज्ञान को 'political science' कहते है। इसके अन्तर्गत सामाजिक जीवन के राजनैतिक सम्बन्ध एवं संगठनों का अध्ययन आता है।
प्राचीन एवं आधुनिक अनेक राजनीति शास्त्रियों ने राजनीति विज्ञान को राज्य का पर्याय मानते हैं। इनका मानना है कि राजनीति का प्रधान विषय राज्य है। अतः राजनीति विज्ञान को राज्य का सिद्धान्त मानना उचित होगा क्योंकि राजनीति में राज्य, उसका उदभव, अतीत में राज्य कैसा था वर्तमान में कैसा है तथा भविष्य मे कैसा होगा का अध्ययन किया जाता हैं।

राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा (rajniti vigyan ki paribhasha)

राजनितिक विज्ञान की परिभाषा देते हुए विद्वानों ने उसके अलग-अलग पहलुओं को देखा है। राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा के निम्न दो दृष्टिकोण से है--
(अ) परम्परावादी दृष्टिकोण 
(ब) आधुनिक दृष्टिकोण 

(अ) परम्परागत दृष्टिकोण 

राजनीति विज्ञान एक गतिशील विज्ञान हैं, अतः इसे समय-समय पर परिभाषित किया गया हैं। परम्परागत तरीके से राजनीति विज्ञान की विषय-वस्तु को परिभाषित करने का क्रम यूनान के समय से लेकर 19वीं शताब्दी तक प्रचलित रहा। इसे परम्परावादी दृष्टिकोण (Traditional Approch) अथवा संस्थागत दृष्टिकोण (Instituonal Approch) भी कहा जाता हैं। इस दृष्टिकोण से संबंधित विद्वानों द्वारा राजनीति विज्ञान को राज्य, सरकार अथवा दोनों का अध्ययन करने वाले विषय के रूप में परिभाषित किया गया। सरकार के बिना कोई राज्य संभव ही नही हैं, क्योंकि एक बाध्यकारी समुदाय (Coercive Association) के रूप के अंदर आने वाली भूमि का तब तक कोई अर्थ नही हैं जब तक कि राज्य की ओर से नियमों का निर्धारण करने वाले और उसका अनुपालन सुनिश्चित करने वाले कुछ व्यक्ति न हों। इन्हीं व्यक्तियों के संगठित रूप को सरकार कहते हैं। इस प्रकार राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओं को सामान्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया हैं-- 
1. राजनीतिक विज्ञान राज्य का अध्ययन है
2. राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन है
3. राजनीति विज्ञान सरकार और राज्य दोनों का अध्ययन हैं

1. राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन हैं 

कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन मानते हैं। इनके विचार में राज्य के अध्ययन में सरकार का भी अध्ययन सम्मिलित हैं। इस श्रेणी के कुछ प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-- 
गार्नर के अनुसार," राजनीति विज्ञान के अध्ययन का आरंभ और अंत राज्य हैं।" 
ब्लंश्ली के अनुसार," राजनीति विज्ञान वह विज्ञान हैं जिसका संबंध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्व क्या हैं, इसका तात्विक रूप क्या हैं, इसकी अभिव्यक्ति किन विविध रूपों में होती है तथा इसका विकास कैसे हुआ हैं।" 
गैरिस के अनुसार," राजनीति विज्ञान राज्य के उद्भव, विकास, उद्देश्य तथा समस्त राजनीय समस्याओं का उल्लंघन करता हैं।" 
जकारिया के अनुसार," राजनीति विज्ञान व्यवस्थित रूप से उन आधारभूत सिद्धांतो को प्रस्तुत करता है जिनके अनुसार एक समष्टि के रूप में राज्य को संगठित किया जाता हैं तथा संप्रभुता को क्रियान्वित किया जाता हैं।" 
उपर्युक्त परिभाषाएँ मूलतः राज्य के यूनानी दृष्टिकोण पर आधारित हैं जिसके अंतर्गत राज्य को समाज के पर्यायवाची के रूप में सर्वश्रेष्ठ समुदाय माना जाता था। इन विद्वानों ने सरकार या मनुष्य के अध्ययन को राज्य के अध्ययन में ही सम्मिलित किया हैं। 

2. राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन हैं

दूसरे वर्ग के विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन करने वाले विषय के रूप में परिभाषित किया है। इसके पीछे एक सामान्य धारणा यह है कि राज्य एक अमूर्त अवधारणा (Abstract Concept) हैं, जिसे किसी भी प्रकार की सार्थकता प्रदान करने के लिए सरकार अपरिहार्य हैं। सरकार के कार्य राज्य के होने का आभास कराते हैं अतः इस विचार को केन्द्र में रखकर राजनीति विज्ञान की भी परिभाषा की गई हैं। इस श्रेणी की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-- 
लीकाॅक के अनुसार," राजनीति विज्ञान सरकार से संबंधित हैं, शासन जो वृहत अर्थ मे सत्ता के मूलभूत विचार पर आधारित होता हैं।" 
सीले के अनुसार," राजनीति विज्ञान के अंतर्गत शासन व्यवस्था का उसी प्रकार अनुशीलन किया जाता है जिस प्रकार अर्थशास्त्र में धन का, प्राणि शास्त्र में जीवन का, बीजगणित में अंकों का एवं रेखागणित में स्थान का तथा दूरी का।" 
विलियम राॅब्सन के अनुसार," राजनीति विज्ञान का उद्देश्य राजनीतिक विचारों तथा राजनीतिक कार्यों पर प्रकाश डालना हैं, ताकि सरकार का समुन्नयन किया जा सके।" 
उपर्युक्त परिभाषाएँ एक इकाई के रूप में राज्य के सैद्धांतिक पक्ष की तुलना में इसके व्यावहारिक पक्ष अर्थात् सरकार को महत्व प्रदान करती हैं। ये परिभाषाएँ इस अवधारणा पर आधारित हैं कि एक सुसंगठित समाज के रूप में राज्य का परिचालन व्यवहार में उन लोगों की समष्टि पर ही आधारित हैं जिनके द्वारा कानूनों का निर्माण और क्रियान्वयन किया जाता है। 

3. राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन है 

परम्परागत दृष्टिकोण की तीसरी कोटि में वे परिभाषाएं आती हैं जो राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय राज्य और सरकार दोनों को मानती हैं, क्योंकि राज्य के अभाव में सरकार की कल्पना नही की जा सकती और सरकार के अभाव में राज्य एक सैद्धांतिक और अमूर्त अवधारणा मात्रा है। इस श्रेणी की कुछ मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-- 
विलोबी के अनुसार," साधारणतया राजनीति विज्ञान तीन प्रमुख विषयों से संबंधित हैं-- राज्य, सरकार तथा कानून।"
पाॅल जेनेट के अनुसार," राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह भाग हैं जो राज्य के आधारों और सरकार के सिद्धांतों पर विचार करता हैं।" 
गिलक्राइस्ट के अनुसार," राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता हैं।"
डिमाॅक के अनुसार," राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य और इसके साधन सरकार से हैं। 
राजनीति विज्ञान की परिभाषा विषयक परम्परावादी दृष्टिकोण की तीसरी श्रेणी पहली (जो राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन मानती हैं) तथा दूसरी (जो राजनीति विज्ञान को सरकार का अध्ययन मानती हैं) श्रेणियों की तुलना में अधिक विस्तृत और स्पष्ट मानी जा सकती हैं, क्योंकि इस श्रेणी की परिभाषाएँ राज्य के मूर्त (Abstract) तथा अमूर्त (Concrete) दोनों पक्षों को अपने में समाहित करती हैं। 
राजनीति विज्ञान की परिभाषा के परम्परावादी दृष्टिकोण को इस रूप में अपूर्ण माना जाता हैं कि यह कमोवेश रूप से औपचारिक संस्थाओं या संरचनाओं के अध्ययन को ही राजनीति विज्ञान के केंद्र में मानता हैं। इस श्रेणी के विद्वान इस बात पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नही समझते कि राज्य और इसकी संस्थाएँ व्यक्ति की आवश्यकताओं और उसके कल्याण की किस सीमा तक पूर्ति करती हैं? दूसरे शब्दों में, यह दृष्टिकोण सीमित अर्थों में ही राज्य तथा अन्य संस्थाओं का अध्ययन करता हैं। 

(ब) राजनीतिक विज्ञान की आधुनिक दृष्टिकोण पर आधारित परिभाषाएं 

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में आए व्यापक परिवर्तन के कारण राजनीति विज्ञान की विषयवस्तु एवं परिभाषाओं के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन आया हैं। सामान्यतः इस परिवर्तन को बौद्धिक क्रांति (Intellectual Revoluton) अथवा व्यवहारवादी क्रांति (Behavioural Revolution) के रूप में जाना जाता हैं। इस क्रांति ने परम्परावादी दृष्टिकोण को 'संकुचित' (Parochial) और 'औपचारिक' (Formal) कहकर आलोचना की हैं। व्यवहारवादियों द्वारा यह तर्क दिया गया है कि पारम्परिक दृष्टिकोण मूल रूप से औपचारिक संस्थाओं और उनके वैधानिक प्रतिमानों (Legal Norns), नियमों तथा विचारों पर केन्द्रित रहा है न कि उन संस्थाओं के व्यवहार (Behavior), कार्य (Performance) तथा अन्तःक्रिया पर। कैप्लान, जाॅर्ज, कैटलिन, एफ.एम. वाटकिन्स, बर्ट्रेण्ड रसेल, बर्ट्रेण्ड जावेनल, ज्याँ ब्लाण्डेल, डिविट एप्टर आदि विचारक इसी श्रेणी में आते हैं। मोटेतौर पर इन विचारकों ने राजनीति विज्ञान को सत्ता का अध्ययन माना हैं। इसके अंतर्गत वे सभी गतिविधियाँ आ जाती हैं जिनका या तो 'सत्ता के लिए संघर्ष' से संबंध होता हैं अथवा जो इस संघर्ष को प्रभावित करती हैं। आधुनिक या व्यवहारवादियों ने राजनीति विज्ञान की परिभाषा इस प्रकार की हैं-- 
बर्ट्रेण्ड डी. जोवेनल के अनुसार," राजनीति का अभिप्राय उस संघर्ष से है जो निर्णय के पूर्व होता है और उस नीति से है जिसे लागू किया जाता हैं। 
डेविड ईस्टन के अनुसार," राजनीति मूल्यों के प्राधिकृत विनिधान से संबंधित हैं।" 
लासवेल और कैप्लान के अनुसार," एक आनुभविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और बँटवारे का अध्ययन हैं।" 
हसजार एवं स्टीवेंसन के अनुसार," राजनीति विज्ञान अध्ययन का वह क्षेत्र है जो मुख्य रूप से शक्ति संबंधों का अध्ययन करता हैं।" 
वस्तुतः आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान को राज्य या सरकार जैसी औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन मात्र न मानकर, इसे वृहत आयाम प्रदान करने का प्रयास मानता हैं। व्यवहारवाद हर उस गतिविधि को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मान लेता है जिसका संबंध समाज में सत्ता या शक्ति-प्राप्ति से हैं।
उपयुक्त परिभाषा
उपरोक्त सभी परिभाषाओं के अध्ययन के आधार पर राजनीतिक शास्त्र की एक ही उपयुक्त परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है कि राजनीतिशास्त्र समाज विज्ञान का वह अंग है, जिसके अन्तर्गत राज्य तथा शासन के अध्ययन के साथ-साथ मनुष्य के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यकलापों तथा उनकी प्रकियाओं का अध्ययन भी किया जाता है। संक्षेप मे, राजनीतिशास्त्र को सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन कहा जा सकता है।

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र (rajniti vigyan ka kshetra) 

राजनीति के अध्ययन का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसका निर्धारण भी बहुत कठिन है क्योंकि व्यक्ति और समाज का ऐसा शायद ही कोई पक्ष हो जो राजनीतिक इकाई से न जुड़ा हो।
राजनीतिक विज्ञान की परिभाषा की भाँति ही राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र के संदर्भ मे भी मूलतः दो प्रकार के दृष्टिकोण पाए जाते है--
(अ) परम्परागत दृष्टिकोण ( Traditional approach) तथा
(ब)आधुनिक या व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Modern or behavioural approach)।
परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत गार्नर, गेटिल, गिलक्राइस्ट, ब्लंश्ली आदि के दृष्टिकोण को सम्मिलित किया जा सकता है। ये सभी विद्वान राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र के अंतर्गत राज्य, सरकार तथा इसी प्रकार की अन्य राजनीतिक संस्थाओं के औपचारिक अध्ययन को रखते है।
गिलक्राइस्ट और फ्रेडरिक पोलक ने राजनीतिक विज्ञान के दो विभाजन किए है-- सैद्धांतिक और व्यावहारिक।
गिलक्राइस्ट का विचार है कि सैद्धांतिक राजनीतिक के अंतर्गत राज्य की आधारभूत समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत इस बात का अध्ययन सम्मिलित नही है कि कोई राज्य अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किन साधनों का प्रयोग करता है।
इसके विपरीत व्यावहारिक राजनीति के अंतर्गत सरकार के वास्तविक कार्य संचालन तथा राजनीतिक जीवन की विभिन्न संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।
सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार सैद्धान्तिक राजनीतिक के अंतर्गत राज्य, सरकार, विधि-निर्माण तथा राज्य का अध्ययन किया जाता है, जबकि व्यावहारिक राजनीति के अंतर्गत सरकारों के विभिन्न रूप अथवा प्रकार, सरकारों के संचालन तथा प्रशासन, कूटनीति, युद्ध, शांति तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार एवं समस्याओं आदि का अध्ययन किया जाता है।"
व्यवहारवादी दृष्टिकोण राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को राज्य और सरकार के अध्ययन तक सीमित नही मानता वरन् मनुष्य के व्यवहार का समग्रता मे अध्ययन करता है। व्यवहारवादियों का मत है कि राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तक सीमित नही है वह व्यापक है क्योंकि मनुष्य के राजनीतिक क्रिया-कलाप, उसके जीवन के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, नैतिक आदि सभी क्रिया-कलापों से प्रभावित होते हैं और उन्हें प्रभावित भी करते है। राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र के अध्ययन में निम्नलिखित अध्ययन सम्मिलित हैं--
1. मनुष्य का अध्ययन
राजनीति विज्ञान मूलतः मनुष्य के अध्ययन से सम्बंधित है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह राज्य से किंचित मात्र भी अपने को पृथक नही रख सकता। इसी कारण अरस्तु की यह मान्यता है कि राज्य या समाज मे ही रहकर मनुष्य आत्मनिर्भर हो सकता है। मनुष्य राज्य की गतिशीलता का आधार है। राज्य की समस्त गतिविधियां मनुष्य के इर्द-गिर्द केन्द्रीत होती है। मानव के विकास की प्रत्येक आवश्यकता राज्य पूरी करता है, उसे अधिकार देता है तथा उसे स्वतंत्रता का सुख प्रदान करता है। परम्परागत दृष्टिकोण मनुष्य के राजनीतिक जीवन को राजनीति विज्ञान के विषय-क्षेत्र मे रखता है, जबकि व्यावहारवादी दृष्टिकोण मनुष्य के समग्र जीवन को इसमें सम्मिलित करता है।
2. राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन
राज्य राजनीतिक विज्ञान का केन्द्रीय विषय है, सरकार इसको मूर्तरूप देती है। राज्य की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि इसके माध्यम से ही जीवन की आवश्यकताएं पूरी की जा सकती है। परन्तु राजनीतिक जीवन का उद्देश्य मात्र दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति नही है। जैसा कि अरस्तु ने लिखा है " राज्य का जन्म दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होता है, परन्तु इसका अस्तित्व एक अच्छे जीवन के लिए कायम रहता है।" इस रूप मे राज्य मानव के लिए अपरिहार्य संस्था है।
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र का वर्णन करते हुए गैटिल ने लिखा है," राजनीति विज्ञान राज्य के भूतकालीन स्वरूप की ऐतिहासिक गवेषणा, उसके वर्तमान स्वरूप की विश्लेषणात्मक व्याख्या तथा उसके आदर्श स्वरूप की राजनीतिक विवेचना है।" 
राजनीतिक विज्ञान मे सर्वप्रथम राज्य के अतीत का अध्ययन किया जाता है। इससे हमें राज्य एवं उसकी विभिन्न संस्थाओं के वर्तमान स्वरूप को समझने तथा भविष्य मे उनके सुधार एवं विकास का आधार निर्मित कर सकने मे सहायता मिलती है।
राजनीतिक विज्ञान राज्य के वर्तमान स्वरूप का भी अध्ययन करता है। राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र का यह अंग सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति राज्य से अनिवार्यतः जुड़ा हुआ है। वर्तमान के संदर्भ मे राज्य के अध्ययन के अंतर्गत हम राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करते है, उसी रूप मे जिस रूप मे वे क्रियाशील है। हम व्यावहारिक निष्कर्षों के आधार पर राज्य के कार्यों एवं उसकी प्रकृति का अध्ययन करते है। इसके अतिरिक्त हम राजनीतिक दलों एवं हित-समूहों, स्वतंत्रता एवं समानता की अवधारणाओं एवं इनके मध्य सम्बन्धों सत्ता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के एक सदस्य के रूप मे राज्य के विकास आदि का भी अध्ययन करते है। इतना ही नही राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र मे हम यह भी अध्ययन करते है कि राज्य आने वाले समय मे कैसा हो सकता है अथवा अपने आदर्श रूप मे उसे कैसा होना चाहिए।
3. सरकार का अध्ययन 
परम्परागत राजनीति विज्ञान में सरकार का अध्ययन किया जाता है  सरकार राज्य का अभिन्न अंग है राज्य एक अमूर्त संस्था है जबकि सरकार उसका मूर्त रूप है। 
क्रॉसे के अनुसार," सरकार ही राज्य है और सरकार में ही राज्य पूर्णता प्राप्त कर सकता है, वस्तुतः सरकार के बिना राज्य का अध्ययन अपूर्ण है।" 
सरकार राज्य की प्रभुसत्ता का प्रयोग करती है। सरकार ही राज्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं को व्यावहारिक रूप प्रदान रकती है। सरकार के विभिन्न रूपों का अध्ययन राजनीतिशास्त्र में किया जाता है। 
सरकार के विभिन्न अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) का अध्ययन भी इसमें किया जाता है। लीकॉक ने तो स्पष्टतया राजनीतिशास्त्र को सरकार का अध्ययन कहा जाता है।।
4. शासन प्रबन्ध का अध्ययन
लोक प्रशासन राजनीति विज्ञान का एक भाग होते हुए भी आज पृथक विषय बन गया है परन्तु उसकी मूल बातों का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत आज भी किया जाता है। असैनिक कर्मचारियों की भर्ती, प्रशिक्षण, उन्नति, उनका जनता के प्रतिनिधियों से सम्बन्ध तथा प्रशासन को अति कुशल और लोकहितकारी तथा उत्तरदायी बनाने के बारे में अध्ययन राजनीति विज्ञान में किया जाता है। 
5. राजनीति सिद्धांतों का अध्ययन
इसके अन्तर्गत राज्य की उत्पत्ति, विकास, संगठन, स्वभाव, उद्देश्य एवं कार्य आदि का अध्ययन सम्मिलित है। इस प्रकार राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध मुख्यतः राजनीतिक दल के लक्ष्य संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं से होता है। इसके आधार पर सामान्य नियम निर्धारित करने का प्रयत्न किया जाता है।
6. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का अध्ययन 
वर्तमान युग मे अन्तर्राष्ट्रीय विकास की बढ़ती हुई गति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि समस्त संसार एक होता जा रहा है फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का महत्व बढ़ता जा रहा है। विज्ञान ने दूरी और समय पर विजय प्राप्त करके संसार के राष्ट्रों मे सम्बन्धों को स्थापित करने की प्रेरणा दी है। अतः अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठन आदि का अध्ययन अब राजनीतिक विज्ञान के विषय क्षेत्र बन गये है।
7. राजनीतिक दलों तथा दबाव गुटों का अध्ययन
राजनीतिक दल और दबाव गुट वे संस्थाएँ हैं जिनके द्वारा राजनीतिक जीवन को गति दी जाती है। आजकल तो राजनीतिक दलों और दबाव गुटों के अध्ययन का महत्व संविधान और शासन के औपचारिक संगठन के अध्ययन से अधिक है। इस प्रकार का अध्ययन राजनीतिक जीवन को वास्तविकता से सम्बन्धित करता है।
उपरोक्त विवेचन से सिद्ध होता है कि राजनीति-विज्ञान का अध्ययन क्षेत्र अत्यंत व्यापक है। इसमे राज्य के साथ मनुष्य के उन सम्पूर्ण क्रियाकलापों का अध्ययन किया जाता है, जिसका सम्बन्ध राज्य अथवा सरकार से होता है। इस प्रकार राजनीति-विज्ञान मनुष्य और मनुष्य के तथा मनुष्य और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों पर विचार करता है। सरकार के विभिन्न अंगों, उनके संगठन, उनमे शासन सत्ता का विभाजन तथा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का भी अध्ययन करता है।
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