2/08/2022

राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ संबंध

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प्रश्न; राजनीति विज्ञान का अन्य प्रमुख सामाजिक विज्ञानों से संबंध बताइए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान का मनोविज्ञान तथा इतिहास के संबंध की विवेचना कीजिए। 

अथवा" राजनीतिशास्त्र का मनोविज्ञान, इतिहास, भूगोल और अर्थशास्त्र से संबंध बताइये। 

अथवा" राजनीति विज्ञान का अर्थशास्त्र के साथ संबंधों का वर्णन कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान का मनोविज्ञान के साथ संबंध का वर्णन कीजिए।

अथवा" राजनीति विज्ञान और भूलोग में संबंध बताइए।

अथवा" राजनीति विज्ञान और इतिहास के संबंधों का वर्णन कीजिए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र मे संबंध बताइए। 

अथवा" राजनीति विज्ञान का विभिन्न समाज विज्ञानों के साथ क्या संबंध हैं? विवेचन कीजिए।

उत्तर--

राजनीति विज्ञान का अन्य समाज विज्ञानों के साथ संबंध 

rajniti vigyan ka anya samajik vigyan se sambandh;विभिन्न समाज विज्ञानों के बीच संबंधों का विवेचन तो काफी प्राचीन काल से ही किया जाता हैं लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उदय हुए व्यवहारवादी आंदोलन ने इन संबंधों में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया हैं। वर्तमान में विभिन्न समाज विज्ञानों के बीच संबंधों का विवेचन इस आधार पर किया जाने लगा है कि मनुष्य का सामाजिक जीवन एक ऐसी आबद्ध इकाई है जिसे जीवन के विविध पक्षों से किसी भी दशा में पृथक नही किया जा सकता। वर्तमान मे राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत अन्तर-अनुशासनात्मक अध्ययन पद्धित को अत्यधिक महत्व दिया जाने लगा हैं। इस पद्धित को मिले महत्व के फलस्वरूप ही ज्ञान की कुछ नई शाखाएँ प्रस्फुटित हुई हैं, जैसे-- राजनीति मनोविज्ञान, राजनीतिक अर्थनीति, राजनीतिक समाजशास्त्र आदि। अमेरीका के विद्वानों द्वारा अभी हाल ही कुछ वर्ष पहले 'समाज विज्ञान शोध परिषद्' का गठन किया गया। इस परिषद् ने समस्त समाज विज्ञानों को एक इकाई के रूप में आबद्ध कर उनके अध्ययन की प्रक्रिया शुरू की है। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप राजनीति विज्ञान का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध और अधिक घनिष्ठ हो गया हैं।

राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में संबंध 

राजनीतिशास्त्र और अर्थशास्त्र में बड़ा घनिष्ठ संबंध हैं। प्राचीन लेखकगण अर्थशास्त्र को राजनीतिशास्त्र की ही एक शाखा मानते हैं। यूनानी विचारकों ने उसे 'राजनीतिक अर्थशास्त्र' राजनीतिक अर्थव्यवस्था' की संज्ञा दी थी। चाणक्य कौटिल्य की प्रसिद्ध पुस्तक 'अर्थशास्त्र' राजनीति की सर्वोत्तम पुस्तक हैं। इसी प्रकार 'अरस्तु' की पाॅलिटिक्स तथा लाॅक की नागरिक प्रशासन पर द्वितीय लेख में उन विषयों की व्याख्या की गई हैं, जिन्हें वर्तमान समय में अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री माना जाता हैं। 

श्रीगुरूमुख निहासिंह के अनुसार," प्रारम्भिक दिनों में अर्थशास्त्र को राजनीति विज्ञान की एक शाखा माना जाता था तथा उसके अध्ययन का विषय राज्य के लिए राजस्व प्राप्त करना था। इसी कारण इसे 'घरेलू अर्थशास्त्र' की अपेक्षा 'राजनीतिक अर्थशास्त्र' कहा जाता था।' 

मार्क्सवादियों का दावा है कि सामाजिक व राजनीतिक संस्थाओं का निर्धारण आर्थिक तत्वों द्वारा होता हैं अर्थात् आर्थिक लक्ष्य ही हमारे जीवन को गति व रूप प्रदान करते है। इस कथन को यद्यपि पूर्णतया स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि जीवन में 'अर्थ' (धन) के अतिरिक्त और भी अनेक प्रेरक शक्तियाँ हैं तथापि यह मानने में किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती कि आर्थिक परिस्थितियों का जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता हैं।

वस्तुतः राजनीतिक और आर्थिक दशाएं एक दूसरे से जुड़ी है और वे राजनीति विज्ञान व अर्थशास्त्र के मध्य घनिष्ठ संबंधों का निर्माण करती है। आर्थिक व्यवस्था की क्षीण हो जाने पर राजनीतिक जीवन प्रसन्न नहीं रह सकता। आर्थिक लोकतंत्र के अभाव में राजनैतिक लोकतंत्र व्यर्थ साबित हो रहा हैं। आर्थिक विकास और समृद्धि राजनैतिक विकास की कुंजी हैं। आर्थिक असंतोष राजनैतिक क्रांतियों को जन्म देता हैं। आर्थिक न्याय के बिना सामाजिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना नहीं हो सकती। 

यद्यपि आधुनिक समय में राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र को अलग-अलग विषय माने गए हैं तथापि आज भी राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र एक दूसरे से जुड़े हैं। दोनों का संबंध मनुष्य से हैं। दोनों शास्त्रों का मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण हैं। मानव का आर्थिक कल्याण अशांति और अराजकता की स्थिति में असंभव हैं इसलिए शांति और सुव्यवस्था की स्थापना करना राज्य का अनिवार्य कर्त्तव्य हैं। 

गेटिल का कहना हैं," आर्थिक परिस्थितियाँ राज्य के संगठन, विकास और क्रियाकलापों पर प्रभाव डालती है और प्रत्युत्तर में राज्य अपने कानूनों द्वारा आर्थिक स्थितियों को बदलता हैं।" 

इसी कारण गार्नर का यह कथन अर्थपूर्ण और यथार्थ के करीब हैं," संपूर्ण सरकारी प्रशासन का सिद्धांत ही वास्तव में आर्थिक हैं।" 

अर्थशास्त्र की राजनीत विज्ञान को देन

1. राज्य संस्थाओं का उदय व विकास 

यह आर्थिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप ही हुआ हैं। आर्थिक गतिविधियों के कारण विशाल राज्यों की स्थापना संभव हो सकी है। कार्ल मार्क्स का मत है," किसी युग में संपूर्ण सामाजिक जीवन के स्वरूप का निर्धारण आर्थिक परिस्थितियाँ करती हैं। 

2. राजनीतिक घटनाएं आर्थिक गतिविधियों का परिणाम 

विश्व की अनेक राजनीतिक घटनाएं आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप घटित हुई हैं। सन् 1935 में स्पेन की गणतंत्रात्मक सरकार ने श्रमिक वर्ग के हित में कानून पारित करने का प्रयास किया तो सामंत, पादरी, सेना वर्ग ने गणतंत्रतात्मक सरकार को भंग कर दिया। सन् 1922 में इटली की शोचनीय आर्थिक दशा के कारण तानाशाही की स्थापना कर ली। सन् 1930 में भीषण आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप ही हिटलर का उत्थान और द्वितीय विश्व युद्ध का प्रारम्भ हुआ। 

3. राज्य की नीति आर्थिक अवस्थाओं पर ही निर्भर करती है। 

अर्थशास्त्र का राजनीतिशास्त्र पर प्रभाव 

अर्थशास्त्र स्वतंत्र सामाजिक-शास्त्र अवश्य हैं परन्तु इसका राजनीतिशास्त्र के साथ बड़ा घनिष्ठ संबंध हैं। दोनों शास्त्रों का मुख्य उद्देश्य मानव कल्याण हैं। मानव का आर्थिक कल्याण अशांति और अराजकता की स्थिति में असंभव हैं। इसलिए शांति और सुव्यवस्था की स्थापना करना राज्य का एक अनिवार्य कर्त्तव्य हैं। 

राज्य का विकास आर्थिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप ही हुआ हैं। आर्थिक गतिविधियों के कारण ही विशाल राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना संभव हो सकी हैं। कार्ल मार्क्स का मत है कि किसी युग में संपूर्ण सामाजिक जीवन के स्वरूप का निर्धारण आर्थिक परिस्थितियाँ करती हैं। 

राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में अंतर 

राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में घनिष्ठ संबंध होते हुए भी मौलिक अंतर हैं, जो इस प्रकार हैं-- 

1. अध्ययन-विषय में अंतर 

अर्थशास्त्र का संबंध मनुष्य के आर्थिक जीवन से है जबकि राजनीति विज्ञान का संबंध मनुष्य के राजनीतिक जीवन से है। आइबर ब्राउन ने इस संबंध में लिखा हैं," अर्थशास्त्र का संबंध वस्तुओं से है जबकि राजनीति विज्ञान का संबंध मनुष्यों से है, एक का संबंध कीमतों से है, दूसरे का वास्तविक मनुष्य से।"

2. उद्देश्य में अंतर 

अर्थशास्त्र व्यक्ति का अध्ययन धन के सन्दर्भ में करता है। उसके लिए, वही व्यक्ति उपयोगी है जो आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है, जबकि राजनीति विज्ञान व्यक्ति का आदर मनुष्य होने के कारण करता हैं। इसी कारण कभी-कभी व्यंग्य में प्रायः इस कथन का प्रयोग किया जाता है," एक अर्थशास्त्री हर वस्तु का दाम तो जानता हैं परन्तु वह किसी भी वस्तु के वास्तविक मूल्य को नही जानता।" 

3. प्रकृति में अंतर 

अर्थशास्त्र एक वर्णनात्मक विषय है जबकि राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विषय हैं। राजनीति विज्ञान प्रत्येक समस्या पर नैतिक मूल्यों की दृष्टि से विचार करता है जबकि अर्थशास्त्र केवल आर्थिक दृष्टिकोण से ही विचार करता हैं। 

4. क्षेत्र की दृष्टि में अंतर 

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अर्थशास्त्र की अपेक्षा विस्तृत है क्योंकि वह सामाजिक जीवन के आर्थिक पहलू के साथ-साथ अन्य पहलुओं, जैसे सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक आदि से भी संबंध रखता हैं। इसका स्वरूप आदर्शात्मक, चिन्तनात्मक तथा व्यावहारिक सभी प्रकार का हैं, जबकि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं का ही मोटे तौर पर विचार किया जाता हैं और उसका स्वरूप व्यावहारिक और सैद्धांतिक ही है। 

5. साध्य और साधन में अंतर 

राजनीति विज्ञान साध्य और अर्थशास्त्र साधन है। सुसंगठित और सफल, राजनीति व्यवस्था के लिए अच्छी आर्थिक परिस्थितियाँ परम आवश्यक हैं। आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होने पर कोई व्यक्ति अच्छा नागरिक बन सकता हैं। संक्षेप में, आर्थिक परिस्थितियाँ राजनीतिक लोकतंत्र की बुनियाद को सुदृढ़ करती हैं।

राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र में संबंध 

समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों का जनक कहलाता है। यह एक सामाजिक विज्ञान है, जिसमें सामाजिक जीवन के सभी मूलभूत विषयों का अध्ययन होता है, जो मानव के क्रमिक विकास से सम्बन्धित होता है। यह समाज की उत्पत्ति, उसके विकास, सामाजिक रीति-रिवाजों आदि का अध्ययन करता है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक इत्यादि सभी पहलू आ जाते हैं। अतएव कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र सभी समाज विज्ञानों का जनक है।

राजनीति विज्ञान की समाजशास्त्र पर निर्भरता

राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र एक-दुसरे के पूरक हैं। यह निम्न प्रकार स्पष्ट होता है-- 

1. राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्रीय तत्वों से बँधा हुआ है

समाजशास्त्र मानव जीवन के वंशीय, जातिगत, धार्मिक और राजनीतिक पहलुओं की विवेचना करता है इसीलिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की उपेक्षा नहीं कर सकता। राज्य अथवा सरकार का समाजशास्त्र से पृथक कोई अस्तित्व नहीं है। समाजशास्त्र यह बताता है कि राज्य संस्था का विकास मानव की कुछ नैसर्गिक प्रवृत्तियों का परिणाम है। इन प्रवृत्तियों को बल मुख्यतः इन तत्वों से मिला है- रक्त सम्बन्ध, धार्मिक विश्वासों की एकता, आर्थिक आवश्यकतएं तथा युद्ध और विजय। समाजशास्त्र के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि प्रारम्भ में राज्यों का स्वरूप अत्यन्त सरल था किन्तु धीरे-धीरे उनके स्वरूप और कार्य क्षेत्र में वृद्धि होती चली गयी। एडम स्मिथ और कार्ल मार्क्स ने सामाजिक संरचना को अपने अध्ययन का आधार बनाया था। आधुनिक युग में रिचर्ड टॉनी, मैक्स वेबर (1864-1920), राबर्टो मिशेल्स (1876-1936), विल्फ्रेडो पैरेटो (1848-1923) और इमील दुर्खीम (1858-1919), मोस्का, कार्लमैनहाइम लासवैल और डेविड ईस्टन ने राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन के लिए समाजशास्त्र की विषय-वस्तु का सफलता पूर्वक उपयोग किया है। उन्होंने विस्तारपूर्वक यह समझाया है कि," धर्म का पूँजीवाद से क्या सम्बन्ध है, मजदूर वर्ग राजनीति को किस प्रकार प्रभावित करता है, शक्ति का राजनीति से क्या सम्बन्ध है तथा समाज की संरचना मतदान को किस प्रकार प्रभावित करती है। उदाहरणार्थ, शहरी मतदाताओं के आचरण को समझने के लिए हमें मुख्य रूप से इन बातों को जानना होगा-शहरीकरण से उत्पन्न समस्याएँ, शिक्षित बेरोजगारी, श्रमिक संख्या में हो रही वृद्धि तथा पानी, बिजली, स्वास्थ्य व शिक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ। इसी प्रकार ग्रामीण राजनीति को जातीय और धार्मिक विभिन्नताओं तथा कृषि भूमि के स्वामित्व के सन्दर्भ में अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है। 

2. सामाजिक सन्तुलन एवं सामंजस्य लाने में समाजशास्त्र की भूमिका 

समाजशास्त्र के आधार पर सामाजिक संघर्षों को समझने में सहायता मिलती है। फलस्वरूप राज्य इस तरह की नीतियाँ निर्धारित कर सकता है जिससे सामाजिक न्याय लाने में सहायता मिले और समाज में सन्तुलन व सामंजस्य स्थापित हो सके। सभी देशों और विशेषकर भारत में जहाँ भिन्न-भिन्न धर्मों और जातियों के लोग निवास करते हैं, राजनीतिज्ञों के सामने एक बड़ा प्रश्न राष्ट्रीय एकता को पुष्ट करने का उठता है। इस दृष्टि से समाजशास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत आँकड़े हमारा पर्याप्त मार्गदर्शन कर सकते हैं। 

3. सार्वजनिक निर्णयों को प्रभावी बनाने में समाजशास्त्र की भूमिका 

राजनीति विज्ञान का एक कृत्य सार्वजनिक निर्णयों तक पहुँचना है। ये निर्णय तभी प्रभावशाली हो सकते हैं जब सम्बन्धित समूहों की सामाजिक प्रेरणाओं को ध्यान में रखा जाए। किसी भी सामाजिक कार्यवाही का सम्भावित प्रत्युत्तर क्या होगा और उसकी सफलता की कितनी सम्भावनाएँ हैं- यह निश्चित करने के लिए लोगों की मूल्य परम्पराओं, अभिवृत्तियों, स्वभाव, मान्यताओं और पूर्वाग्रहों की जानकारी जरूरी होती है। इस प्रयत्न में समाज विज्ञान विशेष रूप से सहायक सिद्ध होता हैं। देखा जाए तो आज का राजनीति विज्ञान औपचारिक प्रक्रियाओं और संस्थाओं के अध्ययन से आगे बढ़कर अनौपचारिक संगठनों और प्रक्रियाओं को समझने के लिए तत्पर है और इसके लिए समाज विज्ञान का सहारा लेना जरूरी हो जाता है। 

4. राजनीतिक विश्लेषण और राजनीतिक संस्थाओं का समाजशास्त्र पर प्रभाव 

राजनीतिक विश्लेषण और विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन से समाजशास्त्र को काफी मदद मिली है। जैसे समाज के सन्दर्भ में राज्य ने निरन्तर समाज वैज्ञानिक विश्लेषण की विधियों को नियंत्रित किया है। समाज विज्ञानी शासन को उच्चतम सामाजिक संस्था के रूप में मान्यता देते हैं, क्योंकि शासन में समाज को दिशा देने और सामाजिक व्यवहार को नियमित करने की क्षमता होती है। आजकल तो राज्य का कार्य-क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक हो गया है। विवाह, सम्पत्ति तथा पारिवारिक व्यवस्था, जिनका समाजशास्त्र से बहुत निकट का सम्बन्ध है, राज्य द्वारा नियमित होने लगे हैं। उदाहरणार्थ- परिवार नियोजन और दहेज सम्बन्धी सरकारी नीतियों ने भारतीय परिवार और विवाह प्रथा को काफी सीमा तक प्रभावित किया है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अंतर 

निःसन्देह राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र में राजनीतिक समाज विज्ञान का उद्भव हुआ है जिसने  राजनीतिक व्यवस्था, राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण और राजनीतिक संस्कृति के रूप में संकल्पनात्मक ढाँचों के तौर पर राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान किया है। 

परन्तु राजनीति विज्ञान और समाज विज्ञान के बीच के कुछ महत्वपूर्ण अन्तर भी है, जिन्हे ध्यान में रखना आवश्यक है।  

राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में घनिष्ठ संबंध होते हुए भी उनमें निम्नलिखित रूपों में विभिन्नताएं पायी जाती हैं-- 

1. क्षेत्र की दृष्टि से 

दोनों विज्ञानों का क्षेत्र तथा समस्याएं समान नहीं हैं। समाजशास्त्र का क्षेत्र राजनीति विज्ञान से कहीं ज्यादा व्यापक हैं। राजनीति विज्ञान व्यक्ति के राजनीतिक जीवन तथा राज्य और शासन जैसी संस्थाओं का ही अध्ययन करता हैं, लेकिन समाजशास्त्र मनुष्य को उसके सारे कार्य व्यापार के साथ देखता हैं तथा परिवार, धर्म एवं व्यापार संघ, आदि सभी सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। इसी आधार पर गिलक्राइस्ट ने समाजशास्त्र को विस्तृत, किन्तु संस्थाओं का अध्ययन करता हैं। इसी आधार पर गिलक्राइस्ट ने समाजशास्त्र को विस्तृत, किन्तु राजनीतिशास्त्र को विशिष्ट शास्त्र माना हैं। 

2. अध्ययन सामग्री की दृष्टि से 

राजनीति विज्ञान का संबंध केवल संगठित समुदायों और व्यक्तियों से ही हैं, जबकि समाजशास्त्र संगठित तथा असंगठित दोनों प्रकार के समुदायों और व्यक्तियों से संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त राजनीति विज्ञान मानव की केवल चेतन कार्यप्रणाली का अध्ययन करता हैं, जबकि समाजशास्त्र मनुष्य की अचेतन कार्यविधि का भी अध्ययन करता हैं। 

3. उद्देश्य की दृष्टि से

समाजशास्त्र एक वर्णनात्मक विज्ञान हैं, किन्तु राजनीति विज्ञान एक 'आदर्शपरक विज्ञान' भी हैं। समाजशास्त्र केवल इस बात का अध्ययन करता है कि 'क्या हो चुका हैं' और 'क्या हो रहा हैं'। भविष्य में क्या होना चाहिए', इस बात से समाजशास्त्र कोई संबंध नहीं रखता हैं, पर राजनीति विज्ञान 'क्या होना चाहिए' इस बात से भी संबंध रखता हैं और इसका उद्देश्य एक आदर्श व्यवस्था की प्राप्ति है। 

राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र के अंतर को वार्कर ने बड़ी चतुराई से इस प्रकार रखा हैं," राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सिद्धांतों का अध्ययन करता हैं," जो एक संविधान द्वारा संयुक्त किए गए एक ही सरकार के अधीन है। समाजशास्त्र सभी समुदायों का अध्ययन करता हैं। राजनीति विज्ञान एक सिद्धान्त के रूप में स्वीकार कर लेता हैं कि मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी हैं, यह समाजशास्त्र की भाँति यह बताने का प्रयत्न नहीं करता कि वह राजनीतिक प्राणी कैसे हुआ।"

राजनीति विज्ञान और इतिहास में संबंध 

राजनीतिशास्त्र और इतिहास का घनिष्ट संबंध हैं। इस घनिष्ठता को स्पष्ट करते हुए प्रो. सीले ने लिखा हैं," राजनीतिशास्त्र के बिना इतिहास विफल है तथा इतिहास के बिना राजनीतिशास्त्र की कोई जड़ नहीं।" 

फ्री मैने का विचार हैं," इतिहास अतीत की राजनीति के अलावा कुछ नही और राजनीति भी वर्तमान इतिहास के अलावा कुछ नही हैं।" 

बर्गेस के अनुसार," यदि दोनों शास्त्रों को एक-दूसरे से अलग कर दिया जाए, तो उनमें एक मृत नहीं तो अपंग जरूर हो जाएगा और दूसरा केवल आकाशकुसुम बनकर रह जायेगा। 

लार्ड एक्टन का मत हैं," राजनीतिशास्त्र वह शास्त्र है जो इतिहास की धारा रूपी नदी में बालू के स्वर्णकणों के समान संचित किया जाता हैं।" 

राजनीतिशास्त्र की इतिहास पर निर्भरता 

राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिए इतिहास आवश्यक एवं उपयोगी हैं। इतिहास राजनीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए निम्न प्रकार से सहायक हैं-- 

1. राजनीतिशास्त्र के लिए इतिहास अध्ययन सामग्री प्रदान करता हैं 

इतिहास राजनीति विज्ञान को अध्ययन सामग्री प्रदान करता हैं। इतिहास राजनीतिशास्त्र की तुलना एवं विवेचना के लिए अध्ययन सामग्री प्रदान करता हैं। इतिहास के द्वारा राजनीतिक विचारों, संस्थाओं के जन्म के विषय में हमें अनेक जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, इतिहास के अभाव में राजनीतिशास्त्र का अध्ययन काल्पनिक बनकर रह जाएगा। 

2. इतिहास राजनीतिशास्त्र की प्रयोगशाला हैं 

इतिहास राजनीतिशास्त्र की प्रयोगशाला हैं। अतीत में राजनीतिक क्षेत्र में किए गए विभिन्न कार्यों के परिणाम एवं प्रभाव का विवरण हमें इतिहास में मिलता हैं। अतीत में किए गए प्रयोग वर्तमान समस्याओं को सुलझाने में और भविष्य को सुन्दर बनाने में सहायक होते हैं। विलसन के शब्दों में," इतिहास राजनीतिशास्त्र की विस्तृत प्रयोगशाला हैं जिसके प्रयोग द्वारा गलतियों को दोहराने से बचा जा  सकता हैं।" 

इतिहास की राजनीतिशास्त्र पर निर्भरता

राजनीतिशास्त्र ही इतिहास का ॠणी नहीं हैं, इतिहास भी राजनीतिशास्त्र पर निर्भर हैं-- 

1. राजनीतिक घटनाएँ इतिहास को आधारभूत सामग्री प्रदान करती हैं 

इतिहास इस दृष्टि से राजनीतिशास्त्र का ॠणी हैं। राजनीतिक घटनाओं और गतिविधियों के परिणामों के समुचित अध्ययन के अभाव में इतिहास का ज्ञान अधूरा हैं। सीले का मत हैं," यदि राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो इतिहास केवल साहित्य मात्र रह जाएगा।" 

2. राजनीतिक विचारधाराएँ इतिहास का प्राण 

इतिहास को राजनीतिक विचारधाराएँ प्रभावित करती हैं। स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व का विचार राजतंत्र के विनाश तथा प्रजातंत्र का आधार बन गए। रूसों के विचारों ने फ्रान्स के इतिहास को, मार्क्सवाद ने सोवियत संघ को गांधीवादी विचारधार ने भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। 

राजनीतिशास्त्र तथा इतिहास में अंतर 

राजनीति विज्ञान और इतिहास में निम्नलिखित अंतर हैं--

1. विवेचन पद्धित में अंतर 

इतिहास वर्णनात्मक हैं। वह घटनाओं का केवल कालचक्र के अनुसार क्रमबद्ध वर्णन मात्र कर देता हैं, वह आदर्शों को खोजने का प्रयास नहीं करता। इसके विपरीत राजनीतिशास्त्र विचारात्मक हैं। वह इतिहास द्वारा प्रदत्त सामग्री का प्रयोग करते हुए सामान्य नियमों तथा सिद्धान्तों की खोज करता हैं। 

2. क्षेत्र के आधार पर अंतर 

राजनीतिशास्त्र मनुष्य में राजनीतिक जीवन तथा राजनीतिक संस्थाओं का ही अध्ययन करता हैं, किन्तु इतिहास मनुष्य के जीवन के विविध पहलुओं का अध्ययन करता हैं, इसके साथ ही राजनीतिशास्त्र अतीत, वर्तमान तथा भविष्य की दृष्टि से अध्ययन करता हैं, किन्तु इतिहास मात्र अतीत का अध्ययन करता हैं। 

3. कार्य के आधार पर 

इतिहास किसी धारा के संबंध में अपना निर्णय देने में असमर्थ हैं, परन्तु राजनीतिशास्त्र का खोजकर्ता ऐसा कर सकता हैं। 

4. उद्देश्य के आधार पर 

उद्देश्य की दृष्टि से भी दोनों सामाजिक विज्ञानों में अंतर हैं। इतिहास राज्य की उत्पत्ति एवं विकास की विवेचना करता हैं। राजनीतिशास्त्र मुख्य रूप से इस बात से संबंधित हैं कि राज्य का उद्देश्य तथा प्रकृति क्या होनी चाहिए? इतिहास का कार्यक्षेत्र विस्तृत हैं।

राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में संबंध 

मनोविज्ञान मानव के मन और व्यवहार का विज्ञान है। मनोविज्ञान की सहायता से ही मानव की अभिप्रेरणाओं और खास कामों का लेखा-जोखा लिया जाता है। इसलिए, मानव को समझने के लिए मनोविश्लेषणात्मक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह माना जाता है कि मानव मन की खास कार्यशैली के कारण ही खास काम सम्पन्न होते हैं। मनावैज्ञानिक रूप से किसी व्यक्ति को जानकर ही आप उसे सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहतर समझ सकते हैं। 

राजनीति विज्ञान एक सामाजिक विज्ञान होने के कारण मनुष्य के अध्ययन से सम्बन्धित है। राजनीतिक संस्थाओं पर मानसिक गतिविधियों का प्रभाव पड़ना नितान्त स्वाभाविक है। यही कारण है कि राजनीति विज्ञान और मनोविज्ञान में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

ज्ञातव्य है कि सबसे पहले मैकियावली ने राजनीतिक गतिविधियों के आधार पर मनोविज्ञान का महत्व प्रतिपादित किया और हॉब्स ने इसे वैज्ञानिक स्वरूप दिया। हॉब्स को राजनीति के मनोवैज्ञानिक उपागम का जनक माना जाता है। मनोविज्ञानोन्मुखी राजनीतिक विश्लेषण पर सर्वाधिक बल देने वाले फ्रांसीसी और अंग्रेज लेखकों में प्रमुख रहे टार्डे, डरखाइम, लेबोन, ग्राहम वैलास और मैकडोगल। राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में मनोविज्ञान के बढ़ते प्रभाव को ग्राहम वैलास ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ भ्नउंद दंजनतम पद च्वसपजपबे में व्यक्त किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि मनुष्य अपने राजनीतिक व्यवहार में केवल विवेक के द्वारा प्रेरित नहीं होता, वह भावनाओं और आवेगों द्वारा भी प्रभावित होता है। 

फ्रायड और दूसरे मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि मानव व्यवहार का आधार उसके मन की अवचेतन प्रवृत्तियों हैं। इन प्रवृत्तियों का उद्गम उसकी दबी हुई इच्छाएं हैं। फ्रायड के अनुसार मनुष्य साधारणतः विवेक या बौद्धिक विश्लेषण के आधार पर कार्य नहीं करता। बुद्धि अवचेतन आवेगों की दासी है। यदि यह सच है तो राजनीति के विद्यार्थी को भी इन अवचेतन प्रेरणाओं और मनोवृत्तियों को समझना आवश्यक हो जाएगा। इन्हें बिना समझे वह राजनीतिक जीवन का न तो यथार्थवादी विश्लेषण कर सकता है और न उसके आदर्शों के सम्बन्ध में कोई निष्कर्ष निकाल सकता है। इसी प्रकार टोटर ने अपनी पुस्तक (शान्ति और युद्ध के दौरान मानववृत्ति) में यह बताया है कि शान्ति एवं युद्ध दोनों ही स्थितियों में किस प्रकार राष्ट्रीय नेता जनता के मनोभावों का अध्ययन कर उससे लाभ उठा सकते हैं। लिप्पमैन ने अपने ग्रन्थ 'लोकमत' में सर्वसाधारण जनता के मत, लोगों की हठधर्मी और उनके विचारों का विश्लेषण किया है । गुन्नार मिर्डल की प्रसिद्ध पुस्तक 'अमेरिकी दुविधा' अमेरिका के लोगों की मनोवृत्ति को भली प्रकार स्पष्ट करती है।

राजनीति विज्ञान के लिए मनोविज्ञान की उपादेयता निम्न प्रकार स्पष्ट की जा सकती है--

1. यह उल्लेखनीय है कि भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न शासन प्रणालियों का आधार जन-समाज की मनोवृत्ति ही है। प्रमुख फ्रांसीसी पत्रकार बौतमी ने अपने दो महान ग्रन्थों में इंग्लैण्ड और अमेरिका के लोगों की मनोवृत्ति का विवेचन करके यह बताने का प्रयत्न किया है कि इन दोनों देशों की राजनीतिक संस्थाओं में जो मुख्य भेद हैं, उनका प्रमुख कारण लोगों की मनोवृत्ति ही है। इंग्लैण्ड एक लोकतंत्रीय देश होते हुए भी आज तक सम्राट के अस्तित्व को बनाये हुए है। इसके मूल में अंग्रेजों की भावना व मनोवृत्ति है। सम्राट का पद वहाँ यद्यपि कुछ सीमा तक निरर्थक और सारहीन हो गया है, तथापि इंग्लैण्ड के लोगों की ऐसी धारणा बन गयी है कि जब तक बकिंघम महल में राजा अथवा रानी विद्यमान हैं, तभी तक वे शान्ति की नींद ले सकते हैं। इस प्रकार वहाँ राजपद की व्यावहारिक उपयोगिता उतनी नहीं है जितनी कि उसके पीछे जन-साधारण की भावना है। 

2. राज्य को किसी नवीन नीति का निर्धारण अथवा किसी नये कानून को बनाते समय समाज की मनोवृत्ति का भली प्रकार अध्ययन कर लेना चाहिए अन्यथा जनता उस नीति या कानून का स्वागत नहीं करेगी। आधुनिक युग में तो जनमत का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। लोकतंत्र का आधार 'जनमत' है और जनमत बनाने के लिए अब विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रचार-साधनों का उपयोग किया जाने लगा है। प्रो. गेटेल के शब्दों में," राजनीतिक दलों की प्रकृति आजकल पर्याप्त सीमा तक मनोवैज्ञानिक बन गयी है।" 

3.जन-सामान्य के आचरण तथा उत्तेजित भीड़ के मनोभावों को समझे बिना कोई व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ अथवा जननेता नहीं बन सकता। उदाहरणार्थ- प्रथम विश्वयुद्ध के उपरान्त जर्मनी की जनता में पराजय के कारण घोर निराशा तथा असन्तोष उत्पन्न हो गया था। हिटलर ने उसे पहचाना और उससे लाभ उठाया। जनता में उत्साह, साहस और सैनिक भावना का संचार करने के लिए हिटलर और उसके साथी कहा करते थे कि," मनुष्य को शेर की तरह निर्भय और खूनी होना चाहिए। सच्चा जर्मन वह है जो अपनी बुद्धि से नहीं अपितु अपने रक्त से सोचे।" इस प्रकार महात्मा गाँधी की सफलता का मुख्य कारण भी जनता की मनोवृत्ति का अध्ययन कर उसी के अनुरूप कार्य करना था। महात्मा गाँधी जानते थे कि भारत एक धर्म प्रधान देश है। इसीलिए उन्होंने धार्मिक प्रतीकों-- प्रार्थना, उपवास, गौरक्षा, ब्रह्मचर्य, सत्याग्रह आदि का आश्रय लिया । गाँधीजी ने एक साधारण किसान की वेश-भूषा ग्रहण की और अपने संदेश को गाँव-गाँव तक पहुँचाया। इटली के महान देशभक्त मैजिनी की ही भाँति गाँधीजी ने भी अध्यात्मवाद का सहारा लिया और देशभक्ति को 'धर्म' व 'उपासना' का स्वरूप प्रदान किया। 

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि कोई भी राजनीतिज्ञ मनोविज्ञान के अध्ययन की उपेक्षा नहीं कर सकता। लॉर्ड ब्राइस ने तो यहाँ तक कह डाला है कि," मनोविज्ञान ही राजनीति विज्ञान का आधार हैं।"

राजनीति विज्ञान और भूलोग में संबंध 

हम जानते है कि राज्य के निर्माणक तत्वों में से भू-खण्ड भी एक महत्वपूर्ण तथ्य है क्योंकि भूगोल के अध्ययन के विषय भी भू-खण्ड अर्थात् पृथ्वी, जल तथा वायु होते हैं अतः भूगोल एवं राजनीति विज्ञान परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। 

फ्रांस के रूसो ने कहा हैं कि जलवायु की प्रकृति तथा शासनों के रूपों के बीच संबंध देखा जा सकता हैं और इस आधार पर उसने यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया कि गरम जलवायु निरंकुशवाद का समर्थन करती हैं। ठण्डी जलवायु बर्बरता को उकसाती हैं, तथा मध्यम प्रकृति की जलवायु अच्छी नीति के अनुकूल होती हैं। माॅन्टेस्क्यु ने कहा है कि ठण्डी जलवायु के लोग के लोग ही स्वतंत्रता का अर्थ समझ सकते हैं। बकिल ने कहा कि लोग अपनी मुक्त इच्छा से अपनी राजनीतिक संस्थाएँ नहीं बनाते बल्कि यह सब भौतिक परिणामों के कारण होता हैं। घूमते हुए कबीलों ने वही अपना स्थायी स्थान बनाया जो पहाड़ो से घिरे व नदियों के तट पर थे या जहाँ की जलवायु बहुत अच्छी थी। 

भौगोलिक दूरी के कारण प्राचीन यूनान में राजनीतिक एकता स्थापित न हो सकी। यही बात अब इण्डोनीशिया या फिलीपींस के बारे मे कही जा सकती हैं। अफ्रीका का मध्य एशिया के देश अपनी भौगोलिक दशाओं के कारण उभर नहीं सकें, यदि अफ्रीकी देश बहुत गरम हैं, तो पश्चिमी एशिया के देशों में जल व वनस्पति का अभाव हैं। ऐसे देशों में आर्थिक समृद्धि नहीं आ सकती हैं। स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र की सफलता का कारण वहाँ की भौगोलिक स्थिति ही हैं। भूटान और नेपाल जैसे देश यदि राजनैतिक दृष्टि से इतने पीछे है तो इसका कारण प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से उनका असम्पन्न होना भी हैं। 

वस्तुतः किसी भी देश के समाज की राजनैतिक समस्याएं तथा जीवन को समझने के लिए वहाँ के भूलोग का पर्याप्त मात्रा में ज्ञाना होना जरूर हैं। भूलोग न केवल राष्ट्र की गृहनीति को प्रभावित करता है अपितु उसकी विदेश नीति भी उसके प्रभाव से अछूती नहीं रहती। आज अमेरिका और रूस विश्व की महानतम शक्तियाँ है, इसका कारण वहाँ का भूगोल हैं। प्राकृतिक सम्पदा और खनिज पदार्शों की बहुतायत के कारण उनकी राष्ट्रीय शक्ति में अप्रतिम वृद्धि हुई हैं। आज पश्चिमी एशिया के देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र बन गये हैं, इसका कारण उनकी भौगोलिक स्थिति, खनिज पदार्शों की बहुलता एवं तेल के विशाल भण्डार हैं। 

राजनीति विज्ञान तथा भूलोग में अंतर 

भूलोग तथा राजनीति विज्ञान में समीपता होते हुए भी दोनों शास्त्रों मे निम्नलिखित अंतर हैं-- 

1. निश्चितता की दृष्टि से 

भूलोग में एक पूर्णतः निश्चितता पायी जाती हैं। राजनीति विज्ञान में अनिश्चितता की स्थिति अधिक होती हैं।    

2. प्रकृति की दृष्टि से 

भूलोग एक यथार्थ विज्ञान होने के साथ आदर्शात्मक भी हैं। आवागमन और संचार के साधनों के विकास के कारण विज्ञान की प्रगति ने भूलोग की राजनीति का निर्यायक तत्व बनने से रोक दिया हैं। 

3. अध्ययन सामग्री की दृष्टि से 

भूलोग में पृथ्वी, जलवायु का अध्ययन किया जाता हैं। ये सामग्री भौतिक हैं, राजनीति विज्ञान राज्य नामक मानवीय संस्था का अध्ययन करता हैं।

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