राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धतियां
राजनीति विज्ञान के अध्ययन की जो पद्धतियां विकसित हुई है उन्हें दो वर्गों मे वर्गीकृत किया जाता है। व्यवहारवादी क्रांति के पूर्व जो भी पद्धतियां प्रयोग मे लायी जाती थी वे सभी परम्परागत पद्धति मानी जाती है तथा व्यवहारवादी क्रांति के साथ और बाद मे प्रयुक्त पद्धतियाँ आधुनिक पद्धतियां मानी जाती है।
(A) राजनीति विज्ञान की परम्परागत अध्ययन पद्धतियां
इसके अन्तर्गत तथ्यों का संग्रह किया जाता है, संग्रहित तथ्यों की तुलना की जाती है और तब एक निष्कर्ष तक पहुंचा जाता है। इस प्रकार इसमे विशिष्ट तथ्यों से समान्य सिद्धांत की प्राप्ति हो जाती है। आगमनात्मक पद्धति के अंतर्गत निम्न चार पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है--
(अ) प्रयोगात्मक पद्धति (Experimental Method)
(ब) पर्यवेक्षणात्मक पद्धति (Observational Methord)
(स) तुलनात्मक पद्धति (Comparativ Method)
(द) ऐतिहासिक पद्धति (Historical Method)।
(अ) प्रयोगात्मक पद्धित
राजनीतिशास्त्र का अध्ययन प्रयोगात्मक पद्धित द्वारा किया जा सकता हैं। राजनीतिशास्त्र एक ऐसा विज्ञान हैं जिसमें जाने-अनजाने प्रयोग होते रहते हैं और अध्येता इन प्रयोगों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकालता हैं। यह कहना उपयुक्त होगा कि प्रत्येक नए संविधान को लागू करना, नया कानून बनाना, राजनीति के क्षेत्र में होने वाले प्रयोग हैं। गांधी जी का सत्याग्रह सोवियत संघ में साम्यवादी शासन, भारत में प्रजातंत्र व ग्रामीण प्रजातंत्र सभी चीजें राजनीति में होने वाले प्रयोग हैं। अध्येता इनका अध्ययन कर निष्कर्ष निकालता हैं।
(ब) पर्यवेक्षणात्मक पद्धित
लावेल के मतानुसार," राजनीति विज्ञान पर्यवेक्षणात्मक विज्ञान हैं, प्रयोगात्मक नही।" इसके अंतर्गत संबंधित घटनाओं अथवा समस्याओं का पर्यवेक्षणात्मक अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला जाता हैं। निर्वाचनों, विधानसभाओं का पर्यवेक्षण कर निष्कर्ष निकालना इस पद्धित के माध्यम से होता हैं।
(स) तुलनात्मक पद्धित
इसमें सर्वप्रथम तथ्यों का संग्रह किया जाता हैं, संग्रहित तथ्यों का क्रमबद्ध अनुशीलन किया जाता है, फिर उनका वर्गीकरण करते है, उनमे सम्बद्ध ताद्तम्यता, समानता, असमानता देखी जाती है, फिर अनावश्यक तथ्यों की छंटनी की जाती है और अंत में निष्कर्ष निकाला जाता हैं।
(द) ऐतिहासिक पद्धित
राजनीतिशास्त्र का अध्येता इतिहास का अध्ययन कर निष्कर्ष निकालता है। इतिहास मे संस्थाओं का क्रमबद्ध अध्ययन करते हैं कि उनका प्रारंभ किस प्रकार हुआ और कालांतर में उनका रूप कैसा हो गया। इस प्रकार भविष्य के लिए निष्कर्ष निकाला जाता हैं। इसके समर्थक सीले, बर्क, फ्रीमैन आदि हैं।
2. निगमनात्मक पद्धति (Deductive method)इस पद्धति का दूसरा नाम दार्शनिक पद्धति (phiosophical method) है। निगमनात्मक पद्धति मे कुछ सिद्धांतों या निष्कर्षों को स्वयं सिद्ध मान लिया जाता है। इसमे अनुसंधानकर्ता अपने विचारों, धारणाओं और मान्यताओं को स्वयं सिद्ध सिद्धांत के रूप मे स्वीकार एवं प्रस्तुत करता है तथा इन सिद्धांतों को वह घटनाओं की व्याख्या के लिए प्रयुक्त करता है। प्लेटो, अरस्तु, मैकियावेली, रूसी, मिल आदि विचारक इसके अनुयायी है। मुख्य जोर क्या था?, या क्या है के स्थान पर क्या होना चाहिए, पर होता है? यह इस तथ्य पर विचार करता है कि वर्तमान राज्य व्यवस्था मे अनेक दोष है अतः राज्य को अच्छा होना चाहिए। राज्य के भावी स्वरूप की यह व्याख्या करता है। इसमे स्वयंसिद्ध सिद्धांतों को मान लिया जाता है। इन सिद्धांतों को विशिष्ट परिस्थितियों मे क्रियान्वित कर निष्कर्ष निकाला जाता है। इस पद्धति मे हम सामान्य सिद्धांत से विशिष्ट तत्व की ओर बढ़ते है।
3. सादृश्यमूलक पद्धति (Anlogical method)सादृश्यमूलक पद्धति मे राज्य की तुलना किसी अन्य इकाई से की जाती है। स्पेशर ने राज्य की तुलना जीवधारी व्यक्ति या सावयव (Organism) से की है। कुछ विचारकों ने राज्य को वैधानिक व्यक्तित्व माना है। इस अध्ययन पद्धति के अंतर्गत निम्न चार पद्धतियाँ आती है--
(क) विधिशास्त्रीय या वैधानिक पद्धति (Juristic method)
(ख) जैविकीय पद्धति (Biological Method)
(ग) समाजशास्त्रीय पद्धति (Sociological method)
(घ) मनौवैज्ञानिक पद्धति (Psychological method)
वर्तमान मे राजनीतिक विज्ञान की मुख्य स्वीकृत विधियां निम्नलिखित है--1. पर्यवेक्षण प्रणाली (The Onservation method)
2. प्रयोगात्मक प्रणाली (The experimental method)
3. तुलनात्मक प्रणाली (The comparative method)
4. ऐतिहासिक प्रणाली (The historical method)
5. सादृश्य प्रणाली (The method of analogy)
6. दार्शनिक प्रणाली (The philosohical method)
7. सांख्यिकी पद्धति (The statistical method)।
(B) राजनीति विज्ञान की आधुनिक या व्यवहारवादी अध्ययन पद्धतियां
द्वितीय महायुद्ध के बाद के समय को राजनीति विज्ञान का वैज्ञानिक युग कहा जाता है। इस युग के प्रमुख विचारकों मे चाल्र्स मेरियम, डेविड ईस्टन, लासवेल, केटलिन आदि प्रमुख है। इस युग मे विकसित राजनीति विज्ञान के अध्ययन की आधुनिक पद्धतियों ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन की प्रकृति को नया विस्तार दिया है। अब राजनीति के सैद्धान्तिक प्रश्नों पर भी वैज्ञानिक सोच और व्यावहारिक की दृष्टि से विचार किया जाता है। सांख्यिकी, कम्प्यूटर, चार्ट आदि के प्रयोग ने विषय प्रतिपादन की तकनीक को और वैचारिक चिंतन के साथ व्यावहारिक स्थितियों को ध्यान मे रखकर निष्कर्ष निकालने के अवसरों को प्रमुखता से सामने लाए है। आधुनिक युग मे राजनीति विज्ञान की अध्ययन प्रणालियों मे बहुत परिवर्तन हो गया है। जिससे इसके अध्ययन मे क्रान्ति आई है। ऐसी अध्ययन पद्धतियां निम्न है---
1. व्यवहारवादव्यवहारवादी अध्ययन पद्धति राजनीति विज्ञान को 20 वीं शताब्दी की महत्वपूर्ण देन है। इसे राजनीति चिंतन प्रक्रिया मे एक महान क्रांति की संज्ञा दी गई है। मूलतः यह परम्परागत राजनीति विज्ञान की उपलब्धियों के प्रति असंतोष का परिणाम है। जब परम्परागत ऐतिहासिक, दार्शनिक, वर्णनात्मक और संस्थागत पद्धतियों के परिणायों से निराशा हुई तो राजनीति विज्ञानियों के द्वारा, विशेषतः अमेरिका मे ऐसी अध्ययन पद्धति विकसित हुई जिसके द्वारा राजनीति घटनाओं का प्रेक्षण एवं परीक्षण कर राजनीति विज्ञान के अंतर्गत अनुभवजन्य सिद्धांतों का प्रतिपादन किया जा सके। डेविड ईस्टन ने इसे व्यवहारवादी क्रांति के नाम से सम्बोधित किया।
व्यवहारवादियों का मत है कि ऐतिहासिक घटनाएं, राजनीतिक संस्थाएं और संविधान जान लेने से राजनीति का अध्ययन पूर्ण नही हो जाता। यह तभी पूर्ण होता है जब कि राज्य मे रहने वाले व्यक्तियों के और व्यक्ति समूह के व्यवहार का गहन अध्ययन किया जाए। ऐसा करके उनके अनुसार राजनीति भी विज्ञान की तरह ठोस तथ्यों पर आधारित विज्ञान बन सकता है और राजनीति मे भी प्राकृतिक विज्ञानों की तरह भविष्यवाणियाँ की जा सकती है।
2. वैज्ञानिक पद्धति
यह आधुनिक अध्ययन पद्धति है। वर्तमान मे किया जाने वाला सम्पूर्ण अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से किया जाता है। इसमे शामिल है--
(अ) सर्वेक्षण पद्धति
इस पद्धति मे किसी क्षेत्र के निवासियों के बारे मे अध्ययन, विषय के बारे मे तथ्यों का संग्रह कर निष्कर्ष निकाला जाता है।
(ब) केस प्रणाली
किसी विषय पर गहन अध्ययन करने के लिए इस पद्धति का सहारा लिया जाता है।
(स) प्रश्नावली
इसमे प्रश्नों की लम्बी सूची बनाकर सम्बंधित लोगों से प्रश्न पूछकर जानकारी प्राप्त की जाती है और अध्ययन किया जाता हैं।
(द) साक्षात्कार
संबंधित लोगों का विषय विशेष पर साक्षात्कार लेकर, दृष्टिकोण की जानकारी प्राप्त की जाती है।
(इ) जनमत मतदान
एक क्षेत्र विशेष मे रहने वाले लोगों से मतदान द्वारा उनके विश्वास, मत आदि का पता लगया जाता है।
(फ) सांख्यिकीय
इसके अन्तर्गत आंकड़ों के माध्यम से किसी समस्या पर शोध किया जाता है।
3. समाजशास्त्रीय अध्ययन पद्धति
इस पद्धति मे राजनीति शास्त्र का अध्ययन समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से किया जाता है। इसके अनुसार राजनीति का अध्ययन एक संगठित समाज के रूप मे किया जाता है। इसमे राजनीतिक व्यवस्था मे भाग लेने वालों की सामाजिक दशा, सामाजिक पृष्ठभूमि और सामाजिक मूल्यों का अध्ययन किया जाता है।
4. संरचनात्मक प्रकार्यवादी दृष्टिकोण
इसके मुख्य अध्ययनकर्ता आमण्ड, मर्टन आदि है, जिसमे राज्य व्यवस्था की संरचना और प्रकार्य को ध्यान मे रखकर राजनीति का अध्ययन किया जाता है।
5. विनिश्चय निर्माण दृष्टिकोण
इसमे नीति निर्णय प्रक्रिया के अध्ययन पर बल दिया जाता है इसका प्रयोग लोक प्रशासन व अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन मे होता है।
6. पद्धति सिद्धांत
इसका प्रयोग डेविड ईस्टन ने किया। उनका मत है कि राजनैतिक पद्धति संस्थाओं और प्रक्रियाओं का समूह हैं।
राजनीति विज्ञान की कौन-सी पद्धित सर्वश्रेष्ठ हैं?
प्रश्न यह उठता है कि राजनीति विज्ञान में अध्ययन की इन विभिन्न पद्धितियों में सही कौन-सी हैं और सबसे अच्छी कौस सी है? इसके संबंध में कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान एक जटिल विषय हैं। उसके अध्ययन की कोई एक पद्धति नहीं हो सकती। एक ही तथ्य को कई पद्धतियों के सहयोग से समझना आवश्यक हो जाता हैं। आधुनिक युग में पश्चिम में भी और भारत में भी इस बात पर बहुत बढ़ावा दिया गया हैं कि वैज्ञानिक पद्धति ही सर्वश्रेष्ठ हैं, परन्तु अब तो वैज्ञानिक पद्धति के प्रतिपादक भी उसकी सीमाएं स्वीकारने और यह मानने लगे है कि उनके तथ्यों की विवेचना के लिए दार्शनिक या तार्किक पद्धति का सहारा लेना जरूरी हैं।
अतः डाॅ. एम. पी. शर्मा के शब्दों में," राजनीति के अध्ययन में किसी एक पद्धित से काम नहीं चलता। इसके किसी भाग में एक पद्धित काम देती हैं और दूसरे भाग में दूसरी। इसलिए अलग-अलग विद्वानों और लेखकों ने अलग-अलग पद्धतियों का अनुसरण किया हैं।
राज्यों के आधुनिक वर्गीकरण को समझाइए
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