4/27/2021

भक्ति आंदोलन, उदय के कारण, विशेषताएं, प्रभाव/परिणाम

By:   Last Updated: in: ,

भक्ति आन्‍दोलन 

bhakti aandolan uday ke karan visheshta prabhav;जब कभी भी हिन्‍दू धर्म में आंतरिक जटिलतांए बढी तब-तब प्रतिक्रिया स्‍वरूप धर्म सुधार आन्‍दोलन या धार्मिक क्रांतियां हुई। धर्म और समाज को सुधारने के ये प्रयास प्राचीनकाल मे जैन व बौद्ध धर्म के रूप में, मध्‍यकाल में भक्ति परम्‍परा के रूप में तथा 19वीं सदी में धार्मिक पुनर्जागरण के रूप में हमारें सामने आये। धार्मिक-सामाजिक प्रतिक्रिया स्‍वरूप उपजे इन धार्मिक आन्‍दोलनों ने हिन्‍दू धर्म और समाज में हर बार नई चेतना, नई शक्ति और नव जीवन का संचार करके उसे और अधिक पुष्‍ट और सहिष्‍णु बनाने में मदद दी। इस दृष्टि से समय, काल राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए मध्‍ययुगीन भक्ति आन्‍दोलन भारतीय संस्‍कृति की एक बहुपक्षीय और महान घटना थी। 

भक्ति आंदोलन के उदय के कारण (bhakti aandolan ke uday ke karan)

मध्‍यकालीन भक्ति आन्‍दोलन के उदय के निम्‍नलिखित कारण थे--

1. जाति व्‍यवस्‍था का जटिल होना 

मध्‍यकालीन भारत में जाति व्‍यवस्‍था का स्‍वरूप बहुत जटिल हो चुका था। उच्‍च जातियों खुद को श्रेष्‍ठ मानकर निम्‍न जातियों पर भीषण अत्‍याचार करती थी जिससे उनमें व्‍यापक असंतोष व्‍याप्‍त हुआ। ऐसी स्थिति में भक्ति मार्ग ने सबके लिए मार्ग खोल दिया। इस आन्‍देालन के संचालक ऊंच-नीच की भावना के सर्वथा विरूद्ध थे। 

2. मुस्लिम अत्‍याचार 

इस समय मुस्लिमों शासकों द्वारा हिन्‍दू पर कभी अत्‍याचार किया जाता था। इन अत्‍याचारों से मुक्ति पाने हेतु हिन्‍दू जनता एक सुरक्षित स्‍थान की खोज करने लगी थी जो ईश्‍वर भक्ति के द्वारा ही उन्‍हें मिल सकता था। एक विद्वान के मुताबिक ‘‘जब मुसलमान हिन्‍दूओं पर अत्‍याचार करने लगे, तो हिन्‍दू निराश होकर उस दीनरक्षक भगवान से प्रार्थना करने लगे।‘‘

3. इस्‍लाम का प्रभाव 

भक्ति आन्‍देालन के उदय का कारण इस्‍लाम धर्म का प्रभाव था। लेकिन डॅा. भण्‍डारकर ने इसका खण्‍डन करते हुए लिखा है कि ‘‘भक्ति आंदोलन श्री मद्भगावत गीता की शिक्षाओं पर आ‍धारित था।‘‘

4. मन्दिर व मूर्तिया का विनाश 

मध्‍यकाल में मुस्लिम आक्रमाणकारी मन्दिर में लुटपाट के लिए मन्दिरों में तोडा़फौडी और मूर्तियों का विनाश करते थे। ऐसी स्थिति में हिन्‍दू स्‍वतन्‍त्र रूप में मन्दिर में उपासना अथवा मूर्ति पूजा नही कर पाते थे। इसलिए वे भक्ति एंव उपासना के माध्‍यम से ही मोक्ष प्राप्‍त करने का प्रयास करने लगे। 

5. ब्राह्मणवाद का जटिल होना 

उस समय हिन्‍दू धर्म का स्‍वरूप बहुत जटिल हो गया था। याज्ञिक कर्मकाण्‍ड, पूजा-पाठ, उपवास आदि धार्मिक क्रियाओं की जटिलता को सर्वसाधारण सरलता से नहीं निभा सकती थी। अतः निम्‍न जाति के व्‍यक्ति इस्‍लाम धर्म ग्रहण करने लगे थे। 

भक्ति आंदोलन की विशेषतांए (bhakti aandolan ki visheshta)

भक्ति आंदोलन की प्रमुख विशेषतांए निम्‍नलिखित है--

1. भक्ति आंदोलन के सन्‍तों ने मूर्ति पूजा का खण्‍डन किया। 

2. इसके कुछ सन्‍तों ने हिन्‍दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। 

3. भक्ति आंदोलन के नेता सन्‍यास मार्ग पर बल नहीं देते थे। उनका कहना था कि यदि मानव का आचार-विचार एंव व्‍यवहार शुद्ध हो, तो वह गृहस्‍थ जीवन में रहकर भी भक्ति कर सकता है। 

4. भक्ति आंदोलन के संत सारे मनुष्‍य मात्र को एक समझते थे। उन्‍होनें धर्म, लिंग, वर्ण व जाति आदि के भेदभाव का विरोध किया। 

5. यह आन्‍दोलन मुख्‍य रूप से सर्वसाधारण का आन्‍दोलन था। इसके सारे प्रचारक जनसाधारण वर्ग के ही लोग थे। 

6. भक्ति आन्‍दोलन के प्रचारकों ने अपने विचारों का प्रचार जनसाधारण की भाषा तथा प्रचलित साधारण बोली में किया। 

7. यद्यपि यह आन्‍देालन विशेष रूप से धार्मिक आन्‍देालन था, लेकिन इसके अनेक प्रवर्तकों ने सामाजिक क्षेत्र में विद्यमान कुरीतियों को दूर करने की कोशिश की। 

8. भक्ति आदोंलन के सारे नेता विश्‍व बन्‍धुत्‍व की भावना एंव एकेश्‍वरवाद के समर्थक थे। 

9. भक्ति आंदोलन के सन्‍तों ने धार्मिक अन्‍धविश्‍वासों तथा बाह्म आडम्‍बरों का विरोध कर हिन्‍दू धर्म को सरल एंव शुद्ध बनाने का प्रयत्‍न किया। उन्‍होनें चरित्र की शुद्धता एवं आचरण की पवित्रता पर बल देकर सच्‍चे हृदय से भक्ति करना ही मुक्ति का साधन बताया।

भक्ति आन्‍देालन के प्रभाव तथा परिणाम (bhakti aandolan ke prabhav)

भक्ति आन्‍दोलन के निम्‍न‍ लिखित परिणाम हुए--

1. पुरोहित एंव ब्राह्मणवाद को ठोस 

भक्ति आंदोलन के कारण पुरोहित तथा ब्राह्मणवाद को गहरी ठेस पहुंची, जिससे स्‍पष्‍ट हुआ कि हर व्‍यक्ति चाहे वह अछुत हो ,भक्ति द्वारा ईश्‍वर को पा सकता है। इस तरह धर्म से ब्राह्मणों का एकाधिकार समाप्‍त हो गया। 

2. दलितों का उद्धार 

भक्ति आन्‍देालन के कारण दलितों को अपने विकास का मौका मिला। यह आन्‍दोलन सामाजिक विषमता, दलितों का शोषण तथा उनकी सोचनीय दशा को दूर करनें मे सहायक सिद्ध हुआ। 

3. धार्मिक सहिष्‍णुता का प्रादुर्भाव 

इससे सारे धर्मो एंव जातियों में धार्मिक सहिष्‍णुता का प्रादुर्भाव हुआ। जिससे देश में शान्ति, समृद्धि एंव सांस्‍कृतिक एकता स्‍थापित हुई। 

4. वर्ण व्‍यवस्‍था का अंत

भक्ति आंदोलन ने हिन्‍दूओं की वर्ण व्‍यवस्‍था को छिन्‍न-भिन्‍न कर पतन की ओर अग्रसर किया, जिससे ब्राह्मणों धर्म की प्रतिष्ठा धूल में मिल गयी तथा उनके जातीय अभिमान को गहरा आघात पहुंचा। इसने मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हर व्‍यक्ति के लिए खोल दिया जिससे समाज में शूद्रों को भी ब्राह्मणों के समकक्ष स्‍थान प्राप्‍त हो गया। 

5. कर्मकाण्‍डों का हृास

भक्ति आंदोलन से कर्मकाण्‍डों एंव बाहृाडम्‍बरों को गहरी क्षति पहुंची। आंदोलन के कुछ संतों ने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार कर उनका प्रबल शब्‍दों में खण्‍डन किया अतः समाज में कर्मकाण्‍डों का हृास होना शुरू हो गया। 

6. सिक्‍ख सम्‍प्रदाय की स्‍थापना 

इस आन्‍देालन में मुख्‍य सन्‍त नानक देव ने सिक्‍ख सम्‍प्रदाय की स्‍थापना की। इस सम्‍प्रदाय ने भारतीय इतिहास में कई वीरतापूर्ण कार्य किए।

निष्‍कर्ष 

यूरोप और भारत में धार्मिक पुनर्जागरण की लहर आरम्‍भ हो चुकी थी और इसका दोनों देशों में प्रमुख कारण इस्‍लाम का आक्रमण और इससे अपनी धर्म संस्‍कृति की रक्षा करना था। इस्‍लाम के धर्मान्‍ध शासकों ने मंदिरों पर आक्रमण किये, धर्मान्‍तरण कियें तथा हिन्‍दू समाज कुछ न कर सका क्‍योकि वह स्‍वंय अपनी ही विकृतियों के कारण निर्बल और निराश था। भक्‍‍त संतों ने आडम्‍बर त्‍याग, मूर्ति-पूजा का विरोध, एकेश्‍वरवाद, जाति-व्‍यवस्‍था की आलोचना, हिन्‍दू जाति में एकता, लोकभाषा और मानव सेवा आदि विशेषताओं को अपनाकर भारतीय समजा को शक्तिशाली बनाने में सफलता प्राप्‍त की। भक्ति आंदोलन के प्रमुख सन्‍त रामानुजाचार्य, रामानन्‍द, चैतन्‍य, कबीर, वल्‍लभाचार्य आदि थे। भक्ति धारा न केवल उत्तर भारत में बल्कि दक्षिण भारत में भी व्‍यापक रूप बहने लगी।

यह भी पढ़ें; भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

यह जानकारी आपके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी 

3 टिप्‍पणियां:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।