mugal kal me striyon ki dasha;मुगल काल में सामाजिक-आर्थिक जीवन के बारे में इस काल के साहित्यिक एंव ऐतिहासिक ग्रन्थों से कुछ जानकारी मिलती है, परन्तु इस विषय पर सबसे ज्यादा मदद मिलती है 16वीं और 17वीं शताब्दी में भारत आए यूरोपीय यात्रियों के यात्रा विवरणों से। इन यात्रियों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों का अवलोकन किया तथा समाज के विभिन्न तबकों के सम्पर्क में भी आए। यद्यपि इनके यात्रा वृंतातों में अनेक दोष हैं, तथापि ये यात्रा विवरण ही इस युग की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को जानने के मुख्य स्त्रोत है।
मुगलकाल में स्त्रियों की दशा अथवा स्थिति
मुगल काल मे स्त्रियों की दशा व स्थिति निम्न बिन्दुओं द्वारा समझा जा सकता है--
1. पुत्री-जन्म को अशुभ मानना
सल्तनत काल की तरह ही मुगल काल में भी पुत्री के जन्म को अशुभ माना जाता था। पुत्र के उत्पन्न होने पर जितनी प्रसन्नता होती थी, उसके विपरीत उतना ही दुःख लड़की के जन्म पर होता था। राजपूत काल के इतिहास में कर्नल टाउ के अनुसार,‘‘ वह पतन का दिन होता था, जब एक कन्या का जन्म होता था। पुत्र-जन्म पर दावतें हेाती थी, मुगल-गीत गाये जाते थे, परन्तु कन्या के जन्म लेने पर परिवार पर दुःख के बादल छा जाती थे।‘‘
2. पर्दा प्रथा
भारत में प्राचीन समय में पर्दा-प्रथा का प्रचलन नहीं था। लेकिन जब मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा भारत में सत्ता प्राप्त की गई। तभी इस प्रथा का प्रचलन प्रांरभ हुआ था। इसी प्रकार स्वाभाविक है कि मुगलकाल में भी पर्दा-प्रथा का प्रचलन था। मुस्लिम स्त्रियां बुर्के का प्रयोग करती थी। विशेष अवसरों पर ही स्त्रियां घर से बाहर निकलती थी। मुस्लिम शासक वर्ग ने भी पर्दा प्रथा का अनुसरण किया था लेकिन नूरजहां को उक्त का अपवाद कहा जा सकता है। हिन्दू भी इस प्रथा से प्रभावित हुए। जायसी तथा विद्यापति ने उत्तर प्रदेश एंव बंगाल में हिन्दू घरों में पर्दे के प्रचलन की बात कही है। धीरे-धीरे राजपूतों में भी इस प्रथा का प्रसार हुआ। कुलीन घराने की स्त्रियां घर से बाहर घूंघट निकाल कर निकलती थीं। निम्न हिन्दू वर्ग की स्त्रियां पर्दा नहीं करती थीं। दक्षिण भारत में पर्दा प्रथा नहीं थी।
3. बहु-विवाह
कुरान मुस्लिम वर्ग के लोगों को चार पत्नियां रखने की छूट देती है। किसी सीमा तक उच्च घरों में इस नियम को अपनाया भी गया था, परन्तु निम्न वर्ग के मुसलमानों में बहु-विवाह का प्रचलन नहीं था। सर्वसाधारण एक पत्नी व्रत का पालन करता था, जिसका प्रमुख कारण आर्थिक असमर्थता थी। अकबर बहु-विवाह के दोषों को पहचानाता था, इस पर उसने यह आज्ञा दे दी थीं कि यदि प्रथम पत्नी बांझ है तो पुरुष विवाह कर सकता है। इस कथन की पुष्टि बदायूंनी के कथन से भी होती है। परन्तु व्यवहार में क्या होता था यह कहना कठिन है क्योकि अकबर की स्वंय 5,000 स्त्रियां थी।
4. बाल विवाह
मुगलकाल मे बाल विवाह बहुत प्रचलित था। हिन्दू सदा मुसलमानों के प्रति भयभीत रहते थे कि कहीं जवान होने पर हमारी कन्याओं को उठाकर न लें जाये। इस कारण ही वे लड़कियों को तरूण अवस्था में पहुंचने से पूर्व ही उनको विवाह के बन्धन में डालते थे। 6 या 7 वर्ष की कन्याओं की प्रायः शादी कर दी जाती थी। मुकुन्दराम के शब्दों में," वह पिता भाग्यशाली है जो अपनी कन्या का विवाह 9 वर्ष तक की आयु में कर देता था।"
5. विधवा की स्थिति
एक विधवा की भारतीय समाज में क्या स्थिति है, यह प्रश्न प्राचीनकाल से ही विवादग्रस्त रहा है। विधवा-विवाहों का उल्लेख किसी ने किसी मात्रा में प्रत्येक युग में मिलता है, परन्तु सल्तनत और मुगल काल में विधवा विवाह केवल निम्न वर्ग में ही सीमित हो गया था। मुस्लिम समाज में विधवाओं को बिना भेदभाव के पुनः विवाह करने का अधिकार था। अतः उनकी दशा अच्छी थीं। हिन्दूओं के उच्च घराने में इस प्रथा को तनिक भी स्थान नहीं दिया गया था।
6. जौहर प्रथा
इस प्रथा का आंरभ राजपूतों की स्त्रियों के माध्यम से प्रारंभ की गयी थी। इस प्रथा में स्त्रियां अपनी इज्जत बचाने के खातिर आग में जौहर कर लेती थी।
7. स्त्री शिक्षा
मुगलकाल में उच्च वर्ग की स्त्रियां विदूषी थीं एंव कला तथा साहित्य में विशेष अनुराग रखती थीं। मीराबाई, नूरजहां, जेबुन्निसा, आकाबाई, कैनाबाई एवं गुलबदन बेगम इस काल की विदुषी स्त्रियां थीं। प्रायः कन्याओं को घर पर ही शिक्षा दी जाती थीं।
8. स्त्रियों का व्यवसाय
सामान्यतः भारतीय स्त्रियां अपने घर का ही कार्य देखती थीं। लेकिन कतिपय स्त्रियां विभिन्न व्यवसायों को अपनाये हुए थीं। स्त्रियां कपड़ा बुनने का कार्य करती थी। अबुल फजल के अनुसार कुछ स्त्रियां नाचने-गाने का कार्य करती थीं। अलबरूनी ने देवदासियों का उल्लेख किया है। जो कि देवदासियां कहलाती थीं। शिक्षित स्त्रियों ने अध्यापन का व्यवसाय अपनाया था। समाज में वैश्यावृत्ति को हीन दृष्टि से देखा जाता था एंव उन्हें शहर से बाहर रखा जाता था।
9. स्त्रियों का सम्मान
उपरोक्त बिंदूओं से यह प्रमाणित होता है कि मुगलकाल में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थीं। इस पर भी साधारणतया घरों में स्त्रियों का आदर होता था तथा पुत्र-पुत्रियां उन्हें सम्मान देते थे। उन्हें मां के रूप में आदर की दृष्टि से देखा जाता था। पुत्र उनकी आज्ञा का पालन करना अपना पावन कर्त्तव्य समझते थे। ‘तसलीम‘,‘कोर्निश‘ तथा ‘सिजदा‘ आदि मुगल राजकुमारों से लेकर साधारण वर्ग में मां के प्रति किया जाता था। जहांगीर उल्लेख करता है कि धार में जाकर उसने अपनी मां को अत्यन्त आदर के साथ ‘तसलीम‘ और ‘सिजदा‘ किया। मुगलों से कहीं अधिक राजपूत अपनी मां का आदर करते थे। मेवाड़ का राणा संग्रामसिंह द्वितीय नित्य प्रातः मां को प्रणाम करके भोजन करता था। राजपूत अपनी स्त्रियों को सहधर्मिणी मानते थे।
10. प्रशासन में योगदान
मुगलकाल में स्त्रियों ने प्रशासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1560-64 में अकबर की मुख्य धाय माहम अनगा के शासन का संचालन किया। रानी दुर्गावती के गढ़ गोविन्द पर शासन के अंतर्गत 70,000 ग्राम तथा कस्बे थे। अहमदनगर का इतिहास चांदबीबी की स्मृति दिलाता है। अलीवर्दी खां की पुत्री साहिबजी ने काबुल के गवर्नर का पद बहुत कूटनीतिज्ञ से चलाया। 1511 ई. से 1527 ई. तक जहांगीर के शासनकाल में नूरजहां का विशेष प्रभाव था। शिवाजी ।। की मां तारावाई ने शिवाजी ।। के राज्य का संचालन किया था, क्योकि जब शिवाजी ।। गद्दी पर बैठे थे तब उनकी उम्र 10 वर्ष थी।
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Gramin striyon se kaisa vyavhar Kiya jata tha mugal kal mein
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