मुगलों की प्रशासनिक व्यवस्था
muglo ki prashaasnik vyavastha;सल्तनत काल की तुलना में मुगल काल का प्रशासन अधिक सुव्यवस्थित एंव समृद्ध था। मुगल राज्य का केन्द्रीय ढांचा प्रशासकीय दृष्टि से केन्द्रीयकृत था किन्तु उसका नियोजित फैलाव प्रांत, जिला और ग्राम स्तर तक किया गया। पहले संक्षेप में इस प्रशासनिक ढांचे की संरचना को समझ लिया जाये।
केन्द्रीय शासन
मुगल काल की प्रशासन व्यवस्था को निम्न भागों में विभाजित किया गया था--
1. सम्राट
सम्राट शासन का सर्वेसर्वा होता था। समस्त सत्ता और शक्ति उसी में निहित थी। उस पर किसी का नियंत्रण नहीं था। मुगल शासक निंरकुश थे, उनकी शक्ति असीम थी, उनके आदेश दूर-दूर प्रदेशों में भेजे जाते थे, फिर भी मुगल सम्राटों ने अत्याचारी शासको जैसा व्यवहार नहीं किया। उन्होंने जनता के अधिकारों का दमन नहीं किया। मुल्ला व मौलवियों पर भी उनका पूर्ण नियंत्रण था। वे स्ंवय को ईश्वर का प्रतिनिधि मानते थे। वे सेना व न्याय के प्रधान स्त्रोत माने जाते थे।
पूर्ण सत्ता संपन्न एंव निरंकुश होते हुए भी मुगल राजत्व स्वेच्छाचारी एंव अत्याचारी नहीं था। अथक परिश्रम तथा राज्य में प्रजा की भलाई, शांति एंव व्यवस्था रखना वे अपना कर्त्तव्य समझते थे। राजत्व केा देवत्व के साथ जोड़ते हुए इस युग में भी यही माना गया कि सम्राट पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और ईश्वर की कृपा से ही वह इस पद पर असीन हुआ है। इस सिद्धांत से जहां सम्राटों की निरंकुशता की भावना को बल मिला, वही अपनी प्रजा के प्रति वे अपने कर्त्तव्यों के प्रति भी प्रेरित हुए। कानूनी दृष्टि से सम्राट की इच्छा और सत्ता पर कोई नियंत्रण नहीं था परन्तु कोई अमीर, उमरा या मन्त्री अपनी व्यक्तिगत योग्यता के कारण सम्राट की नीति या विचार को कभी-कभी अवश्य प्रभावित कर लेते थे।
2. मंत्रि-परिषद्
मुगल काल में सम्राट को सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद् होती थी। इसके सदस्यों की नियुक्ति और पद्च्युति अथवा कार्यकाल सम्राट की इच्छा पर निर्भर था। वह नीति-निर्धारण का कार्य नहीं करती थी।
3. प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री को सम्राट का प्रतिनिधि के रूप में जाना जाता था तथा उसकी नियुक्ति और पद हटाने का काम सम्राट ही करता था। यह सभी विभागों की जानकारी सम्राट को देता था और उसकी नीति के अनुसार कार्य करवाता था। राज्य की आय-व्यय, कर वसूली, लगान वसूली का वह प्रधान होता था। राज्य में सामान्य भर्ती वही करता था।
4. मीरबख्शी
यह मंत्री सेना विभाग का प्रमुख होता था। लेकिन प्रधान सेनापति नही। प्रधान सेनापित स्वंय सम्राट होता था। सेना और मनसबदारों से संबंधित सभी व्यवस्थाओं में मीर बख्शी का सहयोग और नियन्त्रण रहता था। मीर बख्शी की सहायता के लिए सहायक बख्शी एंव अन्य अधिकारी होते थे।
5. सद्र-उस-सद्र
धार्मिक कार्य की देख भाल करना शिक्षा व्यवस्था तथा धार्मिक व्यक्तियों को अनुदान एंव जागीरें प्रदान करना उसके प्रमुख कार्य थे। धार्मिक मामलों में सद्र-उस-सद्र सम्राट का सलाहकार भी होता था। इस मंत्री के महत्व का कम या ज्यादा होना सम्राट के धार्मिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता था।
6. काजी-उल-कजा
मुगलों में यह न्याय विभाग का प्रधान हेाता था अर्थात् राज्य के सभी काजी इसके अधीन थे। वह स्वंय न्यायाधीश होने के साथ-साथ साम्राज्य की न्याय व्यवस्था का संगठन करता था। काजियों की नियुक्ति, पद समाप्ति, वेतन, निरीक्षण और दण्ड दिलवाना आदि यही करता था। दीवानी और फौजदारी न्यायालयों का यह प्रधान होता था। न्याय का दिन निश्चित करता था।
7. खान-ए-समां
अकबर के समय भी यह पद तो महत्वपूर्ण था परन्तु इसें मंत्री का दर्जा बाद के सम्राटों ने दिया। सम्राट के परिवार, निवास के महलों तथा भोजन आदि की व्यवस्था एंव निगरानी करना इस मंत्री का खास दायित्व था। इस पद पर सम्राट का अत्यन्त विश्वास पात्र व्यक्ति ही नियुक्त किया जाता था।
8. मुहतसिब
जन आचरण निरीक्षण विभाग का प्रधान होता था, यह जनता के समाचार निरीक्षण विभाग का प्रधान होता था।
9. डाक विभाग
विभिन्न सूबों के सूबेदारों तथा उच्च कर्मचारियों से पत्र व्यवहार करने का कार्य-भार दरोगा-ए-डाक चैकी पर होता था।
प्रांतीय प्रशासन
प्रांतीय प्रशासन केन्द्रीय प्रशासन का ही छोटा रूप था। प्रान्तपति का प्रशासनिक नाम निजाम था, परन्तु उसे सूबेदार भी कहा जाता था। प्रशासन प्रांतों की राजधानी में केन्द्रित था।
1. सूबेदार
मुगल साम्राज्य कई सूबों में बंटा हुआ था। जैसे की अकबर के शासनकाल में 15 सूबे में विभाजित था। वही औरंगजेब का शासन आते-आते सूबों की संख्या 20 तक पहुंच गयी थी। प्रत्येक प्रान्त का प्रधान एक राज्यपाल होता था, जो अकबर के काल में सिपहसालार एंव उसके पश्चात् सूबेदार अथवा नाजिम कहलाता था। इसका मुख्य कार्य प्रान्तो में शांति व्यवस्था बनाये रखना, राजस्व वसूली में सहायता करना और शाही फरमानों को कार्यान्वित करना था। उसे यह भी सलाह दी जाती थी कि वह सेना सुज्जित रखे, चौकन्ना रहे, दीन तथा संतों की सहायता करे। उसका मुख्य कार्य अपने क्षेत्र के पास के अधीनस्थ राजाओं से कर वसूल करना भी था।
2. प्रान्तीय दीवान
प्रान्त का एक और महत्वपूर्ण अधिकारी दीवान होता था। यद्यपि इसका पद सूबेदार के समकक्ष का होता था, परन्तु उसके अधिकार सूबेदार से कम नही होते थे। वास्तव में ये दोनो अधिकारी परस्पर द्वेष रखते थे और एक-दूसरे की कड़ी निगरानी रखते थे। दीवान के अधिकार में कर-वसूली का प्रबन्ध था।
जिले अथवा सरकार
प्रान्त जिलों अथवा सरकारों में विभाजित थे। प्रत्येक जिले का प्रमुख फौजदार होता था। वह सूबेदार से सम्पर्क बनाये हुये उसी की आज्ञानुसार कार्य करता था। वह एक प्रबन्ध अधिकारी था। जिले में शांति-व्यवस्था बनाये रखना उसके मुख्य कार्य थे। युद्ध के अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में उसे सदैव तत्पर रहना होता था, ताकि युद्ध में उसकी भी सहायता ली जा सके।
नगरों का प्रबन्ध
नगर का प्रधान प्रबन्धक कोतवाल होता था। वह नगर का पूलिस सर्वोच्च भी था। उसकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा होती थी।
उसके मुख्य कार्य थे-
नगर की रक्षा करना, बाजार-नियंत्रण, लावारिस सम्पत्ति की देख-भाल, जनता के चरित्रों का निरीक्षण, शमशान की व्यवस्था, सामाजिक बुराईयां को दूर करना। इन कार्यो की पूर्णता के लिये उसके अधिकार में घुडसवार तथा पैदल फौज और बहुत बड़ी पुलिस रहती थी। वह नगरों को वार्डो में बांटकर उन्हे ईमानदार सहायकों में अधिकार में सौंप देता था और उन्हें एक रजिस्टर दे देता था, जिसमें वे नागरिकों के चरित्र का ब्यौरा रखते थे, जो नगर में आने-जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति की उसे सूचना देते थे और सरायो पर नियंत्रण रखते थे।
राजस्व वसूली करने वाले
वास्तविक पदाधिकारी फ्रोड़ी था। फ्रोडी उस जिले के पदाधिकारी को कहा जाता था, जिससे एक करोड़ दाम की आय की आशा होती थी। दूसरा अधिकारी अमीन होता था, यह मध्यस्थ का कार्य करता था। कानूनगों भूमि सम्बन्धी कानून का जीवित कोष था।
पंचायत
मुगल काल के दौरान प्रत्येक गांवों में एक लोकतंत्रात्मक पंचायत होती थी, जिसमें परिवारों के प्रधान रहते थे। यह पंचायत गांवों की चैकीदारी, सफाई, प्रारम्भिक शिक्षा, सिंचाई, दवा-दारू, सड़क, चरित्र-गठन के लिये उत्तरदायी होती थी। ग्राम पंचायत में एक-या दो चैकीदार, एक पुरोहित, एक अध्यापक, एक ज्योतिषी, एक बढ़ई, एक लौहार, एक कुम्हार, एक धोबी, एक नाई, एक वैद्य एंव एक पटवारी होता था।
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