मराठों के उत्कर्ष अथवा उदय के कारण
marathon ke uday ke karan;मराठ शक्ति का उद्धभव एंव उदय भारत के इतिहास की बहुत महत्वपूर्ण घटना थी। 17 वीं और 18 वीं सदी की भारतीय राजनीति में मराठा शक्ति की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। शिवाजी ने महाराष्ट्र में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। उनकी मृत्यु के बाद औरंगजेब के विरुद्ध मराठों ने 1707 ई. तक एक जबरदस्त संघर्ष किया। इसके पश्चात् 1713 ई. से पेशवाओं का उत्थान हुआ। पेशवाओं के प्रभुत्व काल में ही मराठा शक्ति ने अपना चरम उत्कर्ष एंव विस्तार देखा।
मराठों के उत्कर्ष या उदय के कारण इस प्रकार थे--
1. महाराष्ट्र की भौगोलिक विशेषताएं एंव बनावट
मराठों के उत्थान का कारण महाराष्ट्र की भौगोलिक दशा थी, यह प्रदेश सहृादि की पहाडि़यों द्वारा दक्षिण में तथा विंध्याचल एंव सतपुडा़ द्वारा उत्तर की ओर से घिरा हुआ है, इसके दोनो ओर पश्चिमी और पूर्वी घाट है, यह पहाड़ी प्रदेश है जो कि पूर्वी और पश्चिमी घाट से लगा हुआ है जिसकी लंबाई 500 मील है। जिसको तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्रथम कोंकण तथा पश्चिमी घाट, दूसरा देश अथवा पूर्वी भाग , तीसरा मावलों का प्रदेश जहां कृषि के योग्य भूमि है। इन तीनों को मिलाकर मराठों का देश बना है। प्राचीनकाल से यहां के निवासी मराठा अथवा मराठों के नाम से पुकारे जाते हैं। यहां की आबहवा उत्तरी भारत से अलग है।
2. सामाजिक संतुलन
महाराष्ट्र में राजनीतिक चेतना के पहले सामाजिक और धार्मिक चेतना पहले से विद्यमान थी। महाराष्ट्र तथा दक्षिण भारत में उत्तर की अपेक्षा जातीय सन्तुलन अधिक समन्वित था। वहां के सामाजिक, धार्मिक आन्दोलन में जनसाधारण की भागीदारी अधिक रहने से सामाजिक एकता की भावना अपेक्षाकृत अधिक रही। समाज की दृष्टि से महाराष्ट्र में भाषा, विचार, सादगीपूर्ण रहन-सहन और खान-पान से महाराष्ट्र वासियों का जो चरित्र विकसित हुआ, उससे एकरूपता तथा स्वराज्य की स्थापना में बड़ा सहयोग मिला। महाराष्ट्र में आर्थिक सम्पन्नता के होने से महाराष्ट्र के निवासियों में आर्थिक असमानता भी ज्यादा नहीं थी।
3. मराठों का निजी सम्मान
मराठों को दरबारों में द्वितीय अथवा तृतीय सामंतों की प्रतिष्ठा प्राप्त थी। मराठों का अपने ढंग का रहन-सहन और समाज था। इस समाज के लोगों की विशेषता यह थी कि इनमें आर्थिक और सामाजिक समानता थी। और एक धर्म और संस्कृति के साथ-साथ इनके जीवन का दृष्टिकोण भी एक ही था। इनमें धनी बहुत कम थे। इनकी भाषा मराठी और धर्म हिन्दू था। ये सादा जीवन बिताते और काफी परिश्रमी होते थे। ये मेहमानों का आदर करते थे। ये स्वभाव से उत्साही, वीर और स्वाभिमानी थे।
4. भक्ति आंदोलन
मराठों के उत्कर्ष में भक्ति आंदोलन योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा था। शिवाजी द्वारा राजनीतिक संगठन का निर्माण होने से पूर्व महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन अथवा एक धार्मिक आंदोलन चला और भक्ति आंदोलन का व्यापक प्रभाव रहा। 16वीं और 17 वीं शताब्दियों में महाराष्ट्र में इसके कारण अनेक धर्मोपदेशक पैदा हुए। उन उपदेशकों में से कुछ निम्न वर्ग के थे, किन्तु उच्च जातियों में भी उनका सम्मान था, ये व्यक्ति को उपदेश देते थे। इन संतों ने ऊंच-नीच और धनी-निर्धन की सतह से दूर हटकर सामाजिक और धार्मिक एकता का संदेश दिया। तुकाराम, रामदास, वाम पंडित और एकनाथ के नाम सारे महाराष्ट्र में गुंज रहे थे। इनमें से कुछ ने मराठी भाषा के विकास के साथ-साथ लोगों को जातीयता का नवीन जीवन प्रदान किया और प्रजांतत्र की ठोस भावना भर दी, जो कि भारत के किसी प्रदेश में नहीं थी। मराठों में राष्ट्रीयता, राजनीतिक चेतना और स्वतंत्रता की भावना के अभाव को शिवाजी ने पूरा किया। अलाउद्दीन की दक्षिण नीति का अभियान केवल राजनीतिक प्रभुत्व के लिए था, उसने यहां अनेक अत्याचार किए थे, परंतु इन संतो ने महाराष्ट्र में राम-रहीम की एकता का उपदेश दिया और भक्ति भावना भरी थी, इन धार्मिक नेताओं ने ऊंच-नीच के भाव को समाप्त किया। न्याय और उदारता के भाव लोगों में भरें। उनके उपदेशों से महाराष्ट्र की जनता जाग्रत हो गई। संत रामदास ने ईश्वर की भक्ति के साथ राष्ट्रभक्ति का पाठ लोगों को पढ़ाया।
5. दक्षिण के राज्यों में हिन्दू-मराठा प्रभाव
दक्षिण भारत में मुस्लिम का अधिकार उत्तर भारत की अपेक्षा कफी समय बाद हुआ। उत्तर की अपेक्षा दक्षिण के शासक अपने सम्मान और गौरव को अधिक अच्छी तरह से सुरक्षित रख सके। दक्षिण भारत में हिन्दू न केवल अपनी धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं को जीवित रखने में सफल रहे, अपितु दक्षिण की राजनीति और शासन में भी उनका प्रभाव कायम रह सका। मुसलमान शासको को भी शासन में हिन्दू अधिकारियों का सहयोग लेना पड़ा इस हिन्दू-मुस्लिम राजनीतिक शक्ति संतुलन या हिन्दू प्रभाव के राजनीति में बने रहने के कुछ कारण बताये गये -
(अ) विजयनगर साम्राज्य ने लगभग दो सौ से अधिक वर्षो तक दक्षिण भारत में हिन्दू प्रभाव को सुरक्षित रखा था।
(ब) दक्षिण भारत के मुसलमान शासक उत्तर के समान विदेशी सहायता नहीं पा सकते थे।
(स) लगान तथा कृषि एंव प्रशासन तथा सेना में बड़ी संख्या में हिन्दू अधिकारी कार्य करते रहे। कई मराठे तो मन्त्री पद पर कार्य कर चुके थे।
(द) दक्षिण के मुसलमान शासकों की उदार और सहिष्णु नीति के कारण भी राजनीति में हिन्दू प्रभाव बना रह सका।
6. मराठी भाषा तथा साहित्य
महाराष्ट्र के लोगों को एक धागें में बांधने का कार्य मराठी भाषा और साहित्य ने किया था। तुकाराम तथा अन्य मराठा सन्तों के भक्तिगीत पूरे महाराष्ट्र में एक ही भाषा में गाये जाते थे। मराठी गीतों ने मराठा जन साधारण को भीतर से प्रभावित किया। घुमक्कड़ गायकों ने इसी भाषा में वीर गाथाएं सुना-सुनाकर जन-जन को मोहित किया था। मराठी भाषा समाज की सादगी तथा एकरूपता की अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन बन गयी थी। एक भाषा के कारण इस क्षेत्र के निवासी अधिक अपनापन और समानता को महसूस करते थे।
7. मुगलों की दक्षिण नीति
मराठों के उत्कर्ष में मुगलों की दक्षिण नीति ने महत्वपूर्ण भूमिका आदा की। मराठों ने बीजापुर और गोलकुंडा की सहायता की और मुगलों के दक्षिण अभियान में अवरोध पैदा किया। मराठों में राष्ट्रीयता की भावना जाग गई।
8. शिवाजी का नेतृत्व
मराठों के उदय मे शिवाजी के नेतृत्व का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सर जदुनाथ सरकार के शब्दो,‘‘ शिवाजी के पूर्व ही महाराष्ट्र में भाषा, नस्ल और जीवन में एकता स्थापित हो गयी थी। जो कुछ कमी थी, वह शिवाजी द्वारा पूरीकर दी गई।‘‘ जाहिर है कि महाराष्ट्र में एकता और स्वराज्य के सूत्र विद्यमान थे। ये इन सुत्रों को उचित नेतृत्व प्रदान करने , एक राष्ट्र सूत्र के रूप में परिणत करने का श्रेय शिवाजी के नेतृत्व और उनकी भूमिका को है। उन्होंने युग की आवश्यकताओं का अनुभव करते हुए अपनी बहुमुखी रचनात्मक प्रतिभा के बल पर शून्य में से एक राष्ट्र का निर्माण कर दिया। शिवाजी जन्म-जात नेता थे। मराठा शक्ति के उदय में उनका योगदान अतुलनीय है।
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यह जानकारी आपके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी
Maratha estiro
जवाब देंहटाएंMartho ka uthrkshan ka kay karan thay
हटाएंGanesh sah
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