मुगल प्रशासन की मनसबदारी प्रथा क्या थी?
mansabdari pratha arth gun dosh;मनसब एक अरबी शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘पद‘ या स्थान निश्चित करना‘। विलियम इरविन के मतानुसार मनसब का उद्देश्य पद श्रेष्ठता निर्धारण तथा वेतन दर वर्गीकरण करना था। मनसब का अभिप्राय किसी विशेष पद या कार्य संपादन से नहीं था। इससे केवल यह स्पष्ट होता था कि मनसब प्राप्तकर्ता सरकारी सेना मे है। आवश्यकतानुसार उससे किसी भी प्रकार की सेवा ली जा सकती थी। अभिजात वर्ग के लिए भी ‘मनसब‘ के अतिरिक्त और कोई पृथक श्रेणी या नाम नहीं था। मुगल शासन काल में सेना, सामंती प्रथा असैनिक शासन व्यवस्था सब मनसबदारी व्यवस्था में समाहित हो गये थे।
दरबार में उनके पद, वेतन और स्थान के द्वारा उनमें मनसब का पता लगता था। यह प्रथा ईरान से ली गई थी। अकबर ने इस प्रथा को वैज्ञानिक ढंग से शुरू किया गया।
1. मनसबदार
इस प्रकार मनसबदार वे व्यक्ति थे जो कि राज्य की सैनिक या अन्य प्रकार की सेवा करते थे। अकबर के समय मनसब में 33 श्रेणी होती थी। सबसे नीचे का मनसब 10 का, सबसे ऊंचे का मनसब 12000 का होता था। 5000 से ऊपर के मनसब राजकुमारों को प्रदान किए जाते थे, 7000 की मनसबदारी कुछ व्यक्तियों को उनकी सेवाओं के अनुसार प्रदान की जाती थी। प्रत्येक मनसबदार उतने सैनिक रखता था, जितने का वह मनसबदार था। उसकी नियुक्ति स्वंय सम्राट करता था। यह पद वंशानुगत नहीं था।
2. जब्ती प्रथा का प्रचलन
मुगल सम्राटों ने जब्ती प्रथा को अपनाया जिसके द्वारा मनसबदार की संपत्ति पुत्र को अथवा संबंधी को दी जा सकती थी।
3. सम्राट के अधिकार
मनसबदार की नियुक्ति का अधिकार सिर्फ सम्राट को था। सम्राट ही उसको पद से हटा सकता था। वह उसको पैरों तले रौंद सकता था और प्रसन्न होने पर उसका दर्जा ऊंचा कर सकता था।
4. जात और सवार
जात और सवार के अंतर में विद्वानों के मत अलग-अलग है। मनसबदार का पद व्यक्तिगत था, जिसमें सवार जोड़ दिए जाते थे। यह प्रथा अकबर ने 1603 ई. में अपनाई। बिन सवार का पद प्राप्त किए जात पद मिल सकता था, किन्तु जात के बिना सवार पद नहीं।
5. नगद वेतन व्यवस्था
मनसबदारी को नगद वेतन देने की व्यवस्था रखी गई। अकबर ने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर दिया। मनसबदारों को 12 माह की जगह आठ माह का वेतन दिया जाता था।
मनसबदार विभाग
मनसबदारों की नियुक्ति, पद-वृद्धि तथा निष्कासन का एक अलग विभाग होता था। यह विभाग समस्त मनसबदारों की जानकारी का ब्यौरा रखता था। मनसबदारों का वेतन इस विभाग द्वारा उनके सैनिकों की संख्या और की संख्या के आधार पर दिया जाता था। मनसबदारों की नियुक्ति, पद-वृद्धि तथा निष्कासन का कोई नियम न था। बादशाह जिसें चाहे जो पद दे सकता था।
मनसबदारो का वेतन मवेशी रखने और श्रेणी के अनुसार मिलता था। उदाहरण के लियें 5 हजार के मनसबदार को 346 घोड़े, 100 हाथी और अन्य जानवर रखने होते थे। प्रथम श्रेणी का होने पर उसे 30 हजार रुपये मिलते थे।
मनसबदारी प्रथा के लाभ/गुण (mansabdari pratha ke gun)
मनसबदारी प्रथा के गुण इस प्रकार थे--
1. अकबर इस व्यवस्था के माध्यम से सैन्य व्यवस्था में सुधार लाना चाहता था।
2. यह प्रथा पहले से अच्छी थी। हालाकि इस विशाल सेना के संगठन के लिए काफी तकलीफ उठानी पड़ी।
3. मनसबदारी प्रथा ने देश की सभी जातियो के लोगों की नियुक्ति की गई थी। सम्राट उनकी सेवा का उपयुक्त फायदा ले सकता था।
4. अकबर ने नगद वेतन देकर पुरानी जागीरदारी प्रथा को समाप्त किया।
5. इसके द्वारा जमींदारों और जागीरदारों का किसानों पर अत्याचार कम हुआ।
6. मनसबदार सम्राट के प्रति वफादार होते थे।
7. मनसबदार विश्वासघात कम करते थे, क्योकि ऐसा करने से वे पकड़े जाते थे।
मनसबदार प्रथा के दोष (mansabdari pratha ke dosh)
मनसबदारी प्रथा के दोष इस प्रकार थे--
1. मनसबदारी प्रथा में सेना में भी जागीरदार की सेना की भक्ति में देश-भक्ति के स्थान पर स्वामी-भक्ति ज्यादा होती थी।
2. इस प्रथा के द्वारा सैनिक व्यय बहुत बढ़ गये थे। बाद में यह मुगल वंश के पतन का एक कारण बनी।
3. सेना का वेतन मनसबदारों के द्वारा प्राप्त होता था अतः भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन मिला।
4. इस प्रथा से मनसबदारों का नैतिक पतन हुआ क्योकि वे जिस अनुपात में सेना व मवेशी रखते थे, उसी अनुपात में अधिक वेतन प्राप्त करते थे।
5. मनबसदारी प्रथा के द्वारा मनसबदार के भोग-विलास में वृद्धि हुई थी। मुगल राज्य की अवनति के अन्य कारणों में एक कारण मनसबदारों की अकुशलता भी थी। वह अपने क्षेत्र में अपने नौकर-चाकरों, नर्तकियो, हाथियों, गाने-बजाने के दल सहित जाते थे।
6. मनसबदारी प्रथा में कोई केन्द्रीय सेना न होती थी जबकि केन्द्रीय सेना का होना अत्यधिक आवश्कय था।
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