5/07/2021

मुगलकाल मे आर्थिक दशा/स्थिति

By:   Last Updated: in: ,

मुगलकाल में आर्थिक दशा अथवा स्थिति 

mughal kaal ki aarthik dasha;मुगलकाल में बाबर और औरंगजेब को छोड़कर अकबर से लेकर औरंगजेब के शासन काल तक भारत एक समृद्ध, सम्‍पन्‍न और अमीर देश था। इस लेख मे मुगलकाल के  आर्थिक जीवन के प्रमुख पक्षों  कृषि, उद्योग, व्‍यापार एंव वाणिज्‍य के बारे में संक्षेप में जानेंगें। 

कृषि और कृषक

कृषि मुगलकाल का प्रमुख व्‍यवसाय था। इस काल में गेंहू, चावल, मक्‍का, बाजरा, दलहन सभी प्रकार की खेती होती थी। फलों की उपज की जाती थी। कृषि के साधन, उपकरण पुराने थे- हल, कुल्‍हाड़ी, कुदाली आदि। 

मुगलकाल मे सिंचाई के साधन अधिक नहीं थे। सिंचाई के लिए कुओं, तालाबों और नदियो पर निर्भर रहना पड़ता था, कृषको को प्रांतीय सूबेदारों तथा राजस्‍व विभाग के अधिकारियों से अधिक हानि होती थी। इसके कारण कृषको की दशा ठीक नही रहती थी। उन पर करों का बोझ रहता था। 

सल्‍तनतकाल में मालगुजरी प्रथा रही थी। अकबर ने इसमें परिवर्तन किए, 1580 में यह छः साल तय किया गया। इसके अनुसार जमीन को 4 भागों में बांटा गया। साम्राज्‍य की भूमि की नाप की गई। पोलज, पड़ौती, चच्‍चर और बंजर। उपज का तिहाई भाग लगान के रूप में लिया जाता था। लगान का निश्चित भाग ही किसानों से लिया जाता था। यह रैयतवाड़ी प्रथा थी। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र के लोग कृषि के अलावा छोटे-छोटे धंधों में लगे रहते थे। ये धंधें कृषि की उपज पर आधारित रहते थे। छोटे-छोटे उद्योग धंधे परंपरागत होते थे। जैसे टोकरी, गुड़, तेल, मिट्टी के बर्तन, लोह के औजार बनाना आदि। इन लोगों को सामाजिक बंधनों का भी सामना करना पड़ता था। गांवों में खेतिहर किसानों के अलावा श्रमिक भी थे। ये प्रायः दलित वर्ग के होते थे। सरकारी अधिकारी इनसे बेगार का काम कर वाते थे।

उद्योग

मुगलकाल में औद्योगिक नगर भी थे। फतेहपुर सीकरी, बुरहानपुर, श्रीनगर, मुर्शीदाबाद आदि नगरों में कारखानें थे। यहां उच्‍च कोटि की वस्‍तुओं का निर्माण होता था। कारीगरों की कार्य कुशलता पर इनाम दिया जाता था। दरबार में इनकी कलाओं का प्रदर्शन होता था। हस्‍त शिल्पियों के द्वारा आकर्षक माल बनाया जाता था। 

व्‍यापार 

मुगलकाल में उद्योग व्‍यापार की उन्‍नति के फलस्‍वरूप शहरीकरण की प्रवृत्ति को बल मिला। कई छोटे-छोटे कस्‍बें और नगर इस दौर में बडे़-बडे़ शहरों मे बदल गए थे व्‍यापार के बड़े केन्‍द्र बन गए थे। सोनारगांव, चाटगांव, श्रीपुर, सूरत गोआ, कालीकट, कोचीन, मच्‍छली पट्टम आदि इस काल के बडे और प्रसिद्ध बन्‍दरगाह थे। यहां से भारत का निर्यात और आयात व्‍यापार बड़ी मात्रा में होता था। 17 वीं सदी में इस दिशा में विशेष प्रगति हुई थी। विदेशी यूरोपीय यात्रियों के विवरण इस प्रगति के प्रमाण है। भारत से निर्यात होने वाली मुख्‍य वस्‍तुएं थीं-- सूती और रेशमी, कपडे़ नील, कालीमिर्च त‍था अन्‍य मसाले, अफीम, चीनी, शोर आदि। एशिया, यूरोप एंव अफ्रीका के देशो को निर्यात होता था। यूरोपीय देशों से ऊनी कपडे़, बढिया शराब, कांच के बर्तन, सोना-चांदी आदि मंगवाए जाते थे। चीन से कच्‍चा रेशम, ईरान से गलीचे तथा अ‍रब घोड़े मंगवाए जाते थे। सड़क, नदी और समुद्र सभी रास्‍तों से व्‍यापार होता था। 

व्‍यापारियों का माल एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर पहुंच सके, इसके लिए शेरशाह तथा अकबर से लेकर औरंगजेब तक सभी मुगल बादशाहों ने सड़कों की सुरक्षा व्‍यवस्‍था पर ध्‍यान दिया। सड़कों के किनारें व्‍यवस्थित तरीकें से बनवाई गई सरायें व्‍यापारियों तथा डाक हरकारों के ठहरने या विश्राम करने के काम आती थीं। 

वस्‍तुओं का मूल्‍य 

मुगलकाल में दैनिक जीवन में उपयोग वाली वस्‍तुयें सस्‍ती हुआ करती थीं। दैनिक जीवन में उपयोग वाली वस्‍तुयें जैस- अन्‍न, साग-मछली, फल-फुल, दूध, घी, तेल, मांस, मछली तथा कपड़ा आदि तो बहुत ही सस्‍ता था। अकबर के शासन-काल में गेहूं एक रूपयें का बारह मन, जौ अठारह मन, बढिया चावल दस मन, मूंग अठारह मन, उर्द और नमक सोलह मन मिलता था। एक भेड़ का मूल्‍य डेढ़ रूपया था। एक रूपये का सत्रह सेर मांस और चवालीस सेर दूध मिलता था। मजदूरों को दैनिक मजदूरी बहुत कम मिलती थी। अकुशल मजदूरों को दाम अर्थात् 1/20 रूपया प्रतिदिन मजदूरी मिलती थी। बढ़ई तथा निपुण कार्य करने वाले मजदूरों को सात दाम प्रतिदिन मिलते थे। अकबर के उत्तराधिकारियों के समय में भी लगभग यही मूल्‍य रहे थे। युद्ध-कालीन परिस्थितियों अथवा अकाल के थोड़े समय को छोड़कर सम्‍पूर्ण मुगल-काल में वस्‍तुयें सस्‍ती रहीं। वस्‍तुयें सस्‍ती होने के कारण साधारण जनता का जीवन सुखी रहा। इतिहासकार स्मिथ के शब्‍दों में -‘भूमिहीन मजदूर आज की अपेक्षा अकबर और जहांगीर के शासन-काल में अधिक खा-पहन सकते थे।‘ इसके विपरीत मोरलैण्‍ड लिखते हैं, ‘मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि मुगल-काल में भी सर्व-साधारण की दशा आज जैसी ही थीं। इन सब बातों के अतिरिक्‍त एक बात यह भी थी कि साधारण मनुष्‍य की आश्‍यकताएं भी कम थी और आज की अपेक्षा वह सन्‍तुष्‍ट भी अधिक था। आज की अपेक्षा उसका जीवन अधिक सीधा-सच्‍चा होता था। 

मुगल काल में पटवारी, महाजन और जागीरदार

मुगलकाल में पटवारी, महाजन और जागीरदारों के विषय में जानकारी मिलती है। पटवारी जमीन का लगान वसूल करता था। गांवो का एक समूह होता था, जिसमें एक जमींदारों होता था। मुगलकाल मे रैयती गांव और जागीरी गांव होते थे। जागीरदारी वंशानुगत थी। 

अबुल फजल ने अपनी पुस्‍तक में इसका विवरण दिया है। जमींदार अपने कृषकों से कर वसूल करते थे। सुरक्षा के लिए जमींदार सेना रखते थे। रैयती गांव के कृषक अपनी भूमि मे मालिक होते थे। शासकीय अधिकारी उनसे कर वसूल करते थे। पट्टेदार कृषक भी होते थे। 

आंतरिक और विदेशी व्‍यापार

आंतरिक व्‍यापार के लिए मुगलकाल में अनेक मंडियां और व्‍यापारिक नगर थे। आंतरिक व्‍यापार के लिए सड़के थीं। मुगलकाल में विदेशों से भी व्‍यापार होता था। इस प्रकार आर्थिक दशा के विषय में जानकारी मिलती है। आर्थिक पतन औरंगजेब के काल में शुरू हुआ।

यह भी पढ़ें; मुगल काल में स्त्रियों की दशा/स्थिति

यह जानकारी आपके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी 

कोई टिप्पणी नहीं:
Write comment

आपके के सुझाव, सवाल, और शिकायत पर अमल करने के लिए हम आपके लिए हमेशा तत्पर है। कृपया नीचे comment कर हमें बिना किसी संकोच के अपने विचार बताए हम शीघ्र ही जबाव देंगे।