शिवाजी की उपलब्धियां अथवा विजय
shivaji ki uplabdhi;शिवाजी के पिताजी शाहजी भौसलें मुगलों और बीजापुर को अपनी सेवा प्रदान कर चुके थे तथा शिवाजी जिनका जन्म 20 अप्रैल 1627 ई. में हुआ था इस्लामी सुल्तान और सम्राट की धर्मान्धता, अत्याचारों और स्वदेश, स्वधर्म तथा पवित्र स्थानों एंव साधु-सन्तों और भारतीय नारियों के अपमान को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव कर चुके थे। शिवाजी की माता जीजावाई तो मुगलों के यहां कुछ समय बन्दी भी थी। शाहजी की नौकरी अनिश्चित और सुल्तान की कृपा पर निर्भर थी। निर्भीक उच्च अदर्शो से प्रेरित शिवाजी को यह सब स्वीकार नहीं था तथा उन्होंने स्वराज्य, स्वधर्म स्थापित करने का और इस्लाम के अत्याचार बन्द करने का निश्चय किया। अतः इन दोनों उद्देश्य के लिये शिवाजी ने विजय-योजना तैयार की।
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राज्याभिषेक के पूर्व शिवाजी के शासनकाल की प्रमुख घटनाएं
राज्याभिषेक के पूर्व शिवाजी ने मराठों को संगठित किया उन्हें युद्ध कला सिखाई और ऐसे प्रदेशों को जीता जिनसे मराठों में उत्साह भी उत्पन्न हुआ और स्वंय को एक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया।
जावली विजय
जावली विजय शिवाजी की महत्वपूर्ण सफलता थी। सतारा जिले के उत्तर-पश्चिम कोने में जावली एक सामरिक महत्व का कस्बा था। जावली पर चन्द्रराव मोरे नामक मराठा सरदार का अधिकार था जो अपने को बीजापुर के प्रति वफादार समझता था। शिवाजी ने एक षड्यंत्र द्वारा चन्द्रराव मोरे की हत्या करवा दी और जावली के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। जावली प्राप्त हो जाने से शिवाजी का दक्षिण की ओर बढ़ाना संभव हो गया।
कोंकण विजय
जावली को जीतने के बाद शिवाजी ने राज्यगढ़ के दुर्ग का निर्माण कराया। शिवाजी ने कोंकण प्रदेश पर आक्रमण कर दिया तथा शीघ्र ही उसने भिवण्डी कल्याण, चैलतले, राचमंची, लोहगढ़, कंगोरी, तुग तिकौना, आदि पर अपना अधिकार कर लिया 1657 के अंत तक लगभग संपूर्ण कोंकण प्रदेश पर शिवाजी का अधिकार हेा गया।
बीजापुर से संघर्ष
बीजापुर में शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने हेतु अफजल खां को भेजा अफजल खां ने शिवाजी से संधि की तथा छल से उस पर अधिकार करना चाहा, पर किसी तरह शिवाजी को उसकी योजना का पता चल गया तथा शिवाजी ने अफजल खां का वध कर दिया। बाद में युद्ध हुआ, जिसमें शिवाजी को विजय मिली। अब दोनो पक्षों के बीच संधि हो गई। बीजापुर के विजित किलों पर शिवाजी का अधिकार स्वीकार कर लिया गया।
शाइस्ता खां से संघर्ष
मुगलों और शिवाजी का संघर्ष मुख्य तौर पर औरंगजेब के शासनकाल में ही चला। शाहजहां के काल में मुगल बीजापुर और गोलकुण्डा के दमन में ही लगे रहे न उन्होंने शिवाजी की तरफ ज्यादा ध्यान दिया और न शिवाजी ने उनके खिलाफ कोई खास काम किया। 1660 में दक्षिण के सूबेदार शाइस्ता खां को औरंगजेब ने शिवाजी का दमन करने के आदेश दिये। शाइस्ता खां ने पूना, चाकन और कल्याण पर अधिकार कर लिया। शिवाजी ने धैर्य नहीं खोया। उचित अवसर की तलाश में रहे। 1663 में शाइस्ता खां पूना में ठहरा हुआ था। 15 अप्रैल 1663 की रात्रि को शिवाजी अपने कुछ चुने हुए साथियों के साथ पूना में घूसे। रात को शाइस्ता खां के डेरे पर आक्रमण कर दिया। भागते हुए शाइस्ता खां का अंगूठा कट गया लेकिन जान बच गयी। जनवरी 1664 में शिवाजी ने सूरत पर आक्रमण कर मुगल अधिकारी को भगा दिया। सूरत को लूटकर शिवाजी स्वराज्य की सेना हेतु काफी धन पाने में सफल हुए। शाइस्ता खां को दक्षिण से वापस बुला लिया गया।
सूरत की लूट
शाइस्ता खां को परास्त करने के बाद शिवाजी के उत्साह में और ज्यादा वृद्धि हो गई। अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के उद्देश्य से शिवाजी ने सूरत, जो कि आर्थिक स्थिति से संपन्न था, पर 1664 में धावा बोल दिया इस धावे में शिवाजी ने 10 करोड़ रुपये से भी अधिक की लूट की।
जयसिंह और शिवाजी
शिवाजी का सूरत पर आक्रमण औरंगजेब के लिये एक खुली चुनौती थी। अतः शिवाजी का दमन करने मिर्जाराजा जयसिंह को भेजा गया। मिर्जाराजा जयसिंह की सैनिक योग्यता और रणकुशलता से शिवाजी परिचित थे। जयसिंह ने शिवाजी को बीजापुर, पूर्तगाली, जंजीरा के सिद्धियों और कर्नाटक से सहायता प्राप्त करने के मार्ग बन्द कर दिये तथा शिवाजी के अनेक क्षेत्रों की वीरान बना दिया तथा उसने पुरन्दर को घेर लिया। विनाश को देखकर और संघर्ष को टालने के लिये शिवाजी ने मिर्जाराजा जयसिंह से संधि कर ली और आगरा पहुंचकर औरंगजेब से भेंट करने की बात मान ली। इस सन्धि में शिवाजी ने मुगलों को 35 दुर्गो में से 23 दुर्ग देना स्वीकार किया। इनकी आय चार लाख होण थी। सम्भाजी को पांच हजारी मनसबदार बनकर औरंगजेब के दरबार में रहना होगा तथा बीजापुर से मुगलो के साथ लड़ना होगा और शिवाजी बीजापुर का निचला भाग जीत लेंगे किन्तु इसके बदले में चार लाख रुपये सम्राट को देंगे।
आगरा की घटना
शिवाजी जब मुगल दरबार में पहुंचे तो औरंगजेब ने उनका सम्मान नहीं किया, बल्कि उन्हें तथा उनके पुत्र शंभाजी को जेल में डाल दिया गया, शिवाजी किसी तरह भेष बदलकर आगरा से भाग निकले और मथूरा होते हुए 1666 ई. में महाराष्ट्र पहुंचे।
शिवाजी का राज्याभिषेक
1674 में रायगढ़ के किले में शिवाजी का बड़ी धूमधाम से राज्याभिषेक हुआ। उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की और भगवा ध्वज को अपना झंडा बनाया।
राज्याभिषेक के बाद शिवाजी के शासनकाल की प्रमुख घटनाएं/उपलब्धियां
राज्याभिषेक के बाद शिवाजी ने अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए कई राज्यों पर आक्रमण किया और लूटमार कर धन अर्जन किया। उनके इस शासनकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन निम्नवत है-
बीजापुरी दुर्गो पर अधिकार
शिवजी ने बीजापुर की अराजकता का लाभ उठाकर सन् 1675 ई. में पौडा, शिवेश्वर, अंकोला और कारवार को जीतकर अपने अधिकारी नियुक्त कर दिये।
सतारा, पार्ली और कोल्हापूर की विजय
जुलाई, 1675 ई. में इन प्रदेशों पर शिवाजी ने अधिकार कर लिया और पार्ली बन्दरगाह प्राप्त कर लिया।
बहादूर खां से समझौता
बहादुर खां मुगल सेनापति था। शिवाजी का 1676 में बहादूर खां से एक समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार देानों के मध्य यह तय हुआ कि जब शिवाजी दक्षिण में कर्नाटक में होगें, तब उसके राज्य को किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी। इसके बदले में जब मुगलों तथा बीजापुर में युद्ध होगा तो शिवाजी बीजापुर की सहायता नहीं करेंगे।
बीजापुर और मुगलों का संयुक्त आक्रमण
शिवाजी ने सम्भाजी को अनैतिकता के आधार पर कुछ समय तक बन्दीगृह में रखा था अतः वह नाराज होकर मुगल शिविर में चला गया, लेकिन वह थोड़े दिन बाद पुनः पिता के पास लौट आया। अब दिलेर खां ने 1669 ई. में बीजापुर के सरदारों को खरीद लिया और दोनों ने सयुंक्त आक्रमण कर दिया। शिवाजी ने भी कूटनीति से मुगल विरोधी और बीजापुर के सिद्धी मसूद को अपनी तरफ कर उसे सहायता दी। इस कारण दिलेर खां की कोई चाल नहीं चल सकीं तथा वह सफल नहीं हो सका। इस प्रकार मुगल अन्तिम रूप से पराजित हो गये।
अन्य विजय
20 नवम्बर, 1679 ई. को सम्भाजी के लौटने के बाद और शिवाजी की मृत्यु तक (1680 ई.) शिवाजी ने अग्रेंजो से समुद्रतट पर सिद्धी से, पुर्तगालियों से संघर्ष किये और इन्हें पराजित कर दिया।
निष्कर्ष
शिवाजी ने निरन्तर संघर्ष, जय-पराजयों से अन्तिम विजय कर हिन्दू साम्राज्य की स्थापना करमें में सफलता पाई।
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