12/16/2020

भारत छोड़ो आंदोलन

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भारत छोड़ो आंदोलन (सन् 1942)

bharat chhodo andolan,asafalta ke karan, mahatva, mulyankan;भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व मे लड़ा गया महत्वपूर्ण सत्याग्रह आंदोलन था। द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले के वर्षो की भारतीय राजनीति की परिस्थितियां इसकी पृष्ठभूमि थी। द्वितीय विश्वयुद्ध युद्ध का क्षेत्र प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। 7 दिसम्बर, 1941 को मलाया, इण्डोचायना और इंडोनेशिया के जपान के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया था और उसकी सेनायें बर्मा तक आ चुकी थी। भारत और इंग्लैंड मे अंग्रेजों की स्थिति अनिश्चित होती जा रही थी। चर्चिल ने भी यह स्वीकार किया था कि भारत की रक्षा के लिये उनके पास पर्याप्त साधन नही थे। भारत के अंदर भी राष्ट्रीय आंदोलन के कारण पर्याप्त जन-जागरण और अंग्रेजो के विरूद्ध असंतोष बढ़ रहा था। अतः ब्रिटिश भारत संबंध तथा राष्ट्रीय आंदोलन से उत्पन्न परिस्थिति 1942 के " भारत छोड़ो आंदोलन " के लिये उत्तरदायी थी। 

15 अगस्त 1940 को कांग्रेस के बम्बई अधिवेशन मे व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाने का प्रस्ताव पारित किया गया था। यह सत्याग्रह विनोबा भावे के सत्याग्रह से प्रारंभ हुआ। विनोबा भावे के बाद नेहरू की बारी थी, लेकिन उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया। इसी समय ब्रिटिन तथा मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध जापान भी युद्ध मे आ गया। इसलिए युद्ध मे भारतीयो का सहयोग जरूरी हो गया। इसलिए सरकार ने व्यक्तिगत सत्याग्रह के सभी बंदियों को छोड़कर व्यक्तिगत सत्याग्रह समाप्त करने का प्रस्ताव पेश किया। क्रिप्स मिशन भारत भ्रमण हेतु आया लेकिन इसके प्रस्ताव कांग्रेस को पसंद नही आए इसलिए 14 जुलाई 1942 को कांग्रेस महासमिति की वर्धा बैठक मे आगामी आंदोलन की रूपरेखा तैयार की गई। 8 अगस्त को महात्मा गांधी द्वारा समिति के समक्ष रखा गया भारत छोड़ो का अपना ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित करते हुए समिति मे  कहा गया कि" भारत के लिये और मित्र राष्ट्रों के आदर्श की पूर्ति के लिये भारत मे ब्रिटिश शासन का तत्काल अंत आवश्यक है। इसी के ऊपर युद्ध का भविष्य एवं स्वतंत्रता और लोकतंत्र की सफलता निर्भर है।

इसमे जो प्रस्ताव पारित किया गया उसी को भारत छोड़ो आंदोलन कहते है। महात्मा गांधी ने कहा था कि ," जिन्ना के ह्रदय परिवर्तन की प्रतीक्षा नही कर सकते। यह उनके जीवन का अंतिम संघर्ष है। लड़ाई खुली और अहिंसक होगी और यह संघर्ष " करो या मरो " का होगा। इस तरह 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ। 

इस प्रस्ताव के पारित होते ही कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को जेल मे डाल दिया गया। इस तरह व्यवहार मे यह आंदोलन समाजवादी नेताओं जैसे- जयप्रकाश लोहिया, पटवर्धन आदि ने चलाया था। यह उन्होंने भूमिगत रहकर चलाया गया था। कांग्रेस के महात्मा गांधी समेत सभी नेता जेल मे थे। अतः यह आंदोलन अहिंसक ना रह सका। हड़तालें, प्रदर्शन तथा जुलूस जलसे हुए। सरकार ने आंदोलन को बर्बतापूर्वक दबाया। 11 अगस्त, 1942 ई. को बंबई मे पुलिस ने शाम तक तेरह बार गोलियाँ चलाई। "गांधी जी की जय" गांधी जी को छोड़ दो" के नारे लगाते हुए शांतिपूर्ण जुलूसो पर सरकार ने गोलियां चलाई थी। अतः लोगो मे पुलिस और सरकार के विरुद्ध विद्रोह की आग भड़क उठी और वे हिंसा पर उतर आये। भारतीय जनता ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। 

क्रांतिकारी लोगो ने गुप्त रूप से रेलवे स्टेशनों, डाकघरों, पुलिस स्टेशनो मे आग लगा दी। म्युनिसिपाल्टियों के भवनों, सरकारी इमारतों तथा संपत्ति पर आक्रमण किये गये। रेलों और तार की लाइनें काट दी गई। उत्तरप्रदेश के बलिया जिले तथा पूर्वी उत्तरप्रदेश के कुछ स्थानों पर अस्थाई सरकार की स्थापना कर दी गई। सरकार ने  इस आंदोलन को दबाने के लिये सेना का सहारा लिया और लोगो पर भीषण अत्याचार किये। कई लोग मारे गये तथा हजारों से लोग घायल हुए। एक लाख से भी अधिक आंदोलनकारी जेल मे ठूंस दिये गये। 

माइक ब्रेचर के अनुसार, " सरकार का दमनचक्र बहुत कठोर था और क्रांति को दबाने के लिए पुलिस राज्य की स्थापना हो गई थी।"

बिहार के एक गाँव मे 11 अगस्त और 22 अगस्त तथा 6 दिसम्बर, 1942 को मशीनग्नों से लोग को मारा गया।

पुलिस और सेना के अत्याचारों से क्षुब्ध जनता ने बंगाल के विभिन्न स्थानों पर और मद्रास मे आक्रमण करने के लिये हथियारों का आश्रय लिया। बम्बई, उत्तरप्रदेश और मध्य प्रान्त मे कई स्थानों पर क्रांतिकारियों ने बम फेंके। 

भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण 

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय इतिहास का एक महान जन-आंदोलन था लेकिन यह असफल रहा। भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण इस प्रकार है--

1. सरकार की शक्ति ज्यादा होना 

इस आंदोलन के दौरान जनता की शक्ति सरकार के मुकाबले कम थी। सरकार अस्त्र शस्त्रों से लेश थी सरकार की शक्ति जनता से कई गुना ज्यादा थी।

2. मतभेद 

इस आंदोलन के संबंध मे बहुत मतभेद थे। स्वयं पंडित जवाहर लाल नेहरू का कहना था कि इससे फासिस्टवाद को बल मिलेगा। कम्युनिस्टों और अम्बेडकर व राष्ट्रीय स्वयंसेवकों इत्यादि ने इसमे मदद नही दी। अकाली भी तटस्थ ही रहे।

3. संगठन की कमी

यह एक जन आंदोलन था। इसकी पूर्व से ही रणनीति बननी चाहिए थी। लेकिन इस आंदोलन मे ऐसा कुछ नही हुआ। कोई पूर्व निर्धारित कार्यक्रम नही था। किसी को यह पता नही था कि आंदोलन कैसे चलाना है तथा यदि नेता गिरफ़्तार हो जाते है तो आंदोलन को कैसे चलाना है? 

4. सरकारी कर्मचारियों की सरकार के प्रति निष्ठा 

इस आंदोलन के दौरान सरकारी सेवको ने जनता को कोई सहयोग नही दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व 

bharat chhodo andolan ka mahatva;हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन तत्काल सफल ना हो सका। क्योंकि यह तत्काल अंग्रेजों को भारत छोडने के लिए विवश नही कर पाया। लेकिन  इसने 1947 मे भारतीय स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि तैयार की।  

डाॅ. ईश्वरी प्रसाद ने लिखा है," इस विद्रोह की ज्वालाओं ने औपनिवेशिक स्वराज्य की सारी ताकत जल गई। पूर्ण स्वतंत्रता से कम अब भारत कुछ नही चाहता था। भारत छोड़ो एक स्थाई बात थी। सम्राज्यशाही भारत के लिये बहुत बड़ा धक्का था।" उपरोक्त कथन से सिद्ध होता है कि असफल होने के बाद भी 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन अत्यंत महत्वपूर्ण था। ब्रिटिश सरकार समझ चुकी थी कि अब अधिक दिनों तक भारत को अपने पैरों तले दबाकर नही रखा जा सकता। वस्तुस्थिति अब सम्पूर्ण विश्व के सामने आ चुकी थी तथा अमेरिका, चीन एवं मित्रराष्ट्र भारत की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटेन पर दबाव डाल रहे थे। इस आंदोलन ने भारत मे एकता और राष्ट्रीयता की भावना मे वृद्धि कर दी।

भारत छोड़ो आंदोलन की एक अन्य विशेषता यह थी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अन्य सभी प्रमुख नेता जेलों मे बंद थे। अतः इसे समाजवादियों तथा नौजवानों के नेतृत्व ने सफलतापूर्वक चलाया जिसने यह सिद्ध कर दिया कि भारत अब जाग गया है। अब इसे स्वतंत्र होने से नही रोका जा सकता। इस आंदोलन के अनुभव बहुत लाभकारी थे। यह एक कार्यकारी आंदोलन बन गया था। जनता ने इसमे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इस आंदोलन की ख्याति पूरे विश्व मे फैल गई, क्योंकि इसकी विश्वव्यापी प्रतिक्रिया हुई थी। 

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन एक जन मुक्ति सैलाब के रूप मे जाना जा सकता है। यह आंदोलन असल मे भारत की जनता ने लड़ा था।

ब्रिटिश सरकार पर भारत छोड़ो आंदोलन का बहुत बूरा प्रभाव पड़ा था, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को 2-3 वर्ष के बाद ही विवश होकर भारत छोड़ना पड़ा।

भारत को स्वतंत्रता के अंतिम लक्ष्य 15 अगस्त 1947 तक पहुंचाने मे मील के कई पत्थर थे। इनमे सबसे अधिक महत्व भारत छोड़ो आंदोलन का था।

"भारत छोड़ो आंदोलन के बाद अंग्रेजों का भारत छोड़ना निश्चित हो गया।"

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