12/19/2020

कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव (सुझाव), गुण, दोष

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कैबिनेट मिशन (योजना) 

cabinet mission ke prastav, gun or dosh;24 मार्च, 1946 को ब्रिटिश मंत्रिमंडल के तीन मंत्रियों पेथिक लारेन्स, सर स्टेफर्ड क्रिप्स व ए.वी. अलेक्जेंडर- को भारत की संवैधानिक समस्या सुलझाने के लिये भेजा गया। वी.पी. मेनन के अनुसार, एटली के भाषण ने, जिसमे शीघ्र व सम्पूर्ण स्वतंत्रता का वायदा था, कांग्रेस की उम्मीदें काफी बढ़ा दी, साथ ही " हम अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की प्रगति को रोकने का निषेधाधिकार नही देंगे" की घोषणा मे किसी सर्वमान्य हल की संभावनाएं नजर आने लगीं। कैबिनेट मिशन ने विभिन्न प्रचलित योजनाओं का अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पाकिस्तान ने विषय मे मुस्लिम लीग की मांग एक पक्षीय व अवास्तविक है। पंजाब, असम व बंगाल की हिन्दू बहुसंख्यक जनता को पाकिस्तान की प्रस्तावित योजना मे मिलना उचित नही नही है। नये राज्य के निर्माण के खिलाफ अन्य कई पहलू थे जैसे आर्थिक व सैनिक। 

कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव (सुझाव) {cabinet mission ke prastav}

कैबिनेट मिशन ने निम्नलिखित प्रस्ताव (सुझाव) रखे थे-- 

1. भारत का संघ एक भारत संघ होगा जिसमे देशी रियासतें व ब्रिटिश भारत मे प्रांत शामिल होंगे-विदेशी मामले सुरक्षा और संचार-साधन तथा इसके लिये उसे उचित आर्थिक साधन मुहैया कराये जाएँ। 

2. संघ की एक कार्यकारिणी व व्यवस्थापिका सभा हो जिसके सदस्य ब्रिटिश प्रांत व रियासतों से चुने जाएँ। किसी भी साम्प्रदायिक निर्णय पर दोनों बहुसंख्यक जातियों का बहुमत तथा सम्पूर्ण सदन का बहुमत होना अनिवार्य है।

3. संघीय विषयों के अतिरिक्त अन्य विषय व शेष शक्तियाँ प्रांतो मे निहित हों। 

4. रियासतों मे केन्द्रीय विषयों को छोड़ शेष विषय व शक्ति निहित हो।

5. प्रांत एक समान प्रांतीय विषयों के संबंध मे निर्णय लेने के लिए व्यवस्थापिका अथवा कार्यकारिणी के गुट बना सकते है।

6. संघ व प्रांतो के संविधान मे एक ऐसा उपबंध हो जिससे किसी भी प्रांत मे व्यवस्थापिका सभा द्वारा बहुमत द्वारा 10 वर्षों पश्चात संविधान के पुनः संशोधन की सुविधा हो। यही सुविधा आने वाले हर दस वर्षों मे एक बार दी जाये।

संविधान सभा का गठन 

प्रांतों की व्यवस्थापिका सभाएं 10 लाख पर एक सदस्य निर्वाचित कर संविधान सभा का गठन करेंगी। सिख तथा मुस्लिम प्रतिनिधि जनसंख्या के आधार पर जातियों के निश्चित प्रतिनिधियों को तीन उपभागो अ, ब, स, मे बाँटा जायेगा। स, भाग मे बंगाल व असम के प्रतिनिधि क्षेत्र, ब, भाग मे पंजाब, सिंध तथा पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के तथा अ भाग मे शेष भारत के। ये भाग अपने क्षेत्र के लिये संविधान का निर्माण करेंगे तथा यही अपने उप भाग के विषयों को निश्चित करेंगे। इसके बाद सभी राजनीतिक दल मिलकर अंतरिम सरकार का निर्माण करेंगे।

7. संविधान सभा ब्रिटेन से एक संधि करेगी।

नये संविधान के अंतर्गत चुनाव हो जाने पर अपनी व्यवस्थापिका के निर्णय द्वारा ये प्रांत अपने समूह से अगल हो सकते थे।

12 मई, 1942 को कैबिनेट मिशन ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार किसी भी स्थिति मे किसी भारतीय सरकार को सार्वभौम सत्ता नही सौंपेगी परन्तु जब निर्वाचित नयी सरकार या सरकारें बन जायेंगी तो फिर ब्रिटिश सरकार अपने पास सत्ता नही रखेगी। ऐसी स्थिति मे वह भारतीय रियासतों को उनकी प्रभुसत्ता लौटा देगी तथा वे चाहें तो नयी भारतीय शासन व्यवस्था मे विलीन होने अथवा स्वतंत्र रूप से संधि करने का अधिकार रखेगी। इस नीति को " झुलसी हुई भूमि " की नीति कहकर पुकारा गया। 

कैबिनेट योजना के गुण 

कैबिनेट योजना के गुण इस प्रकार है--

1. इस योजना का सबसे बड़ा गुण यह था कि यह जनसंख्या जनतांत्रिक आधार पर निर्मित होने वाली थी। 

2. सम्प्रदायों के मामलों मे सामान्य बहुमत का जनतांत्रिक तरीका अपनाया गया, यद्यपि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का ध्यान रखा गया।

3. इसने प्रांतों व रियासतों के संघ की घोषणा की तथा पाकिस्तान की माँग को ठुकरा दिया। यह यह ब्रिटिश राजनीतिज्ञों द्वारा भारत को विभाजन से बचाने का अंतिम प्रयास था।

4. संविधान सभा के समस्त सदस्य भारतीय थे। ब्रिटिश शासन तथा यूरीपियन सदस्यों को संविधान सभा मे कोई स्थान नही दिया गया।

5. इस योजना के अंतर्गत संविधान सभा सर्वाधिकार सम्पन्न थी तथा उसके कार्यों मे ब्रिटिश सरकार अथवा उसके अधिकारियों का कोई दखल नही था।

कैबिनेट मिशन के दोष 

1. यद्यपि मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की गई पर अन्य-- जैसे पंजाब मे सिखों आदि के हितों का ध्यान नही रखा गया।

2. प्रांतो के समूहन के विषय मे कैबिनेट मिशन योजना स्पष्ट नही थी। मुस्लिम लीग व कांग्रेस ने इसका अलग-अलग अर्थ निकाला। लीग के अनुसार यह समूह अंतिम था। कांग्रेस के अनुसार प्रांतों के लिये वैकल्पिक प्रांत चाहें तो किसी समूह से अलग हो सकते थे। अंत मे ब्रिटिश सरकार ने समूहन को अंतिम ठहराया व कांग्रेस इस बिन्दु पर हार गई।

3. कैबिनेट मिशन योजना का एक और दोष केन्द्र व प्रांतों की व्यवस्थापिका सभाओं का मिलकर संविधान बनाने का नियम था। प्रांतों व गुटों के संविधान पहले बनाकर फिर संघीय संविधान बनाना अव्यावहारिक था।

19 मई, 1946 को योजना प्रकाशित कर दी गई। लीग ने 6 जून, 1946 को एक प्रस्ताव पारित कर इस योजना को संपूर्ण रूप से ग्रहण कर लिया, जबकि कांग्रेस की वर्किग कमेटी ने 26 जून, 1946 को इस योजना को आंशिक रूप से स्वीकार किया। वह प्रांतों के समूहन को अंतिम मानने को तैयार नही थी। कांग्रेस ने अंतरिम सरकार योजना भी नामंजूर कर दी, क्योंकि विषयों का विभाजन उचित नही था। वर्किग कमेटी के निर्णय को अखिल भारतीय कांग्रेस ने मान्यता दे दी। सिखों ने इस योजना को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया, क्योंकि इनमे उनके हितों की सुरक्षा नही थी।

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